Monday, November 12, 2018

वेदों में वर्णित सूर्य एवं छठ पर्व



वेदों में वर्णित सूर्य एवं छठ पर्व

डॉ विवेक आर्य

आज छठ पर्व है। सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। सूर्यषष्ठी व्रत होने के कारण इसे 'छठ' कहा जाता है। सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को पुरुष और महिला समान रूप से मनाते हैं, लेकिन आमतौर पर व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है। कुछ वर्ष पूर्व तक मुख्य रूप से यह पर्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता था, लेकिन अब यह पर्व पूरे देश में मनाया जाता है।

                   वेदों में सूर्य की उपासना और महत्व के अनेक मन्त्र आये हैं। आज मानव केवल भौतिक सूर्य की उपासना कर रहा हैं। जबकि वेदों में सूर्य केवल भौतिक सूर्य के लिए ही प्रयुक्त नहीं हुआ। वेदों में सूर्य ईश्वर, राजा, ज्ञानी विद्वान, परिव्राजक सन्यासी, नवविवाहिता वधु आदि के लिए प्रयुक्त हुआ हैं। इसलिए छठ पर्व को केवल भौतिक सूर्य तक न सीमित करे।  वृहद् अर्थों में सूर्य को समझने में सभी का कल्याण हैं। आईये वेद वर्णित सूर्य के कुछ उदहारण अपने ज्ञानवर्धन हेतु पढ़े।

सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ॥३॥ ऋग्वेद मण्डल १०/सूक्तं १०.१९०

इस मंत्र में सूर्य भौतिक सूर्य के लिए प्रयुक्त हुआ है।

अर्थ-परमेश्वर ने पूर्व कल्प में सूर्य, चन्द्र, विद्युत्, पृथिवी, अन्तरिक्ष आदि बनाये। वैसे ही अब बनाये है और आगे भी वैसे ही बनावेगा। इसलिये परमेश्वर के काम विना भूल चूक के होने से सदा एक से ही हुआ करते हैं। जो अल्पज्ञ और जिस का ज्ञान वृद्धि क्षय को प्राप्त होता है उसी के काम में भूल चूक होती है; ईश्वर के काम में नहीं।


विश्व राष्ट्र निर्माण हो जाने पर विद्या के प्रकाश बिना वह नष्ट हो जायेगा। इसलिए वेदों में लिखा है कि सूर्य के समान ऐसी विद्या सब पढ़े जो सत्यपरायणता लावे।

 यदद्य सूर्य ब्रवोऽनागा उद्यन्मित्राय वरुणाय सत्यम्।
वयं देवत्रादिते स्याम तव प्रियासो अर्यमन्गृणन्तः ॥१॥ ऋग्वेद मण्डल ७/सूक्तं ७.६०

 हे मनुष्यों आप सूर्य के समान वर्तमान अविनाशी और न्यायकारी जगदीश्वर की प्रार्थना करो।  जैसे ईश्वर ने मित्र और श्रेष्ठजन (वरुण) के लिए यथार्थ ज्ञान का उपदेश दिया है , वैसा ही उपदेश आपको करे।

एष स्य मित्रावरुणा नृचक्षा उभे उदेति सूर्यो अभि ज्मन् ।
विश्वस्य स्थातुर्जगतश्च गोपा ऋजु मर्तेषु वृजिना च पश्यन् ॥२॥ऋग्वेद मण्डल ७/सूक्तं ७.६०

अर्थात वह सूर्य रूपी ईश्वर/विद्वान/ज्ञानी ऋजुमार्ग अर्थात सरल सच्चा मार्ग और वृजिन मार्ग अर्थात पापमार्ग क्या है यह बताने वाला हैं।

इमे चेतारो अनृतस्य भूरेर्मित्रो अर्यमा वरुणो हि सन्ति ।
इम ऋतस्य वावृधुर्दुरोणे शग्मासः पुत्रा अदितेरदब्धाः ॥५॥ ऋग्वेद मण्डल ७/सूक्तं ७.६०

विद्या के अधिष्ठता की कृपा से अनृत क्या है और ऋत की वृद्धि कैसे हो।  यह जानने वाले अदिति के पुत्र सर्वत्र सत्य का प्रकाश करे।

इमे दिवो अनिमिषा पृथिव्याश्चिकित्वांसो अचेतसं नयन्ति ।
प्रव्राजे चिन्नद्यो गाधमस्ति पारं नो अस्य विष्पितस्य पर्षन् ॥७॥ ऋग्वेद मण्डल ७/सूक्तं ७.६०

अर्थात जो विद्वान जानते है वे अचेतस को अर्थात अनजानों को ठीक मार्ग पर चलाते हैं। अपने कर्तव्यपालन में कभी झपकी नहीं लेते। राष्ट्र को गहरे अन्धकार में नहीं जाने देते।


उत्सूर्यो बृहदर्चींष्यश्रेत्पुरु विश्वा जनिम मानुषाणाम् ।
समो दिवा ददृशे रोचमानः क्रत्वा कृतः सुकृतः कर्तृभिर्भूत् ॥१॥ ऋग्वेद मण्डल ७ सूक्तं ७.६२

अर्थात- वह सूर्य अर्थात विद्वान सत्य का प्रचार करे। विद्वान ज्ञान को इतना आकर्षक बनाकर प्रचार करे कि सब उसकी ओर खींचे चले आवें। धन्य है उन गुरुओं को जिन्होंने ऐसा विद्वान (सूर्य) बनाया।

स सूर्य प्रति पुरो न उद्गा एभि स्तोमेभिरेतशेभिरेवैः ।
प्र नो मित्राय वरुणाय वोचोऽनागसो अर्यम्णे अग्नये च ॥२॥ ऋग्वेद मण्डल ७ सूक्तं ७.६२

अर्थात यह विद्वान रूपी सूर्य सूर्य के सामने खड़ा होकर उससे आगे निकल जाता है क्यूंकि वह सूर्य बोलता नहीं है, किन्तु यह सूर्य तो सबको अर्थात मित्र,वरुण, अर्यमा और अग्नि उपदेश देता हैं। 

 नू मित्रो वरुणो अर्यमा नस्त्मने तोकाय वरिवो दधन्तु ।
सुगा नो विश्वा सुपथानि सन्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥६॥ ऋग्वेद मण्डल ७ सूक्तं ७.६२

ज्ञान प्रचारक सूर्य तथा मित्र, वरुण आदि की कृपा से हमारे सब मार्ग सुपथ सुगम हो जावें।


साधारणः सूर्यो मानुषाणाम् ॥१॥ऋग्वेद - मण्डल ७ सूक्तं ७.६३
अर्थात यह सूर्य मनुष्य का सूर्य है।

उद्वेति प्रसवीता जनानां महान्केतुरर्णवः सूर्यस्य ।
समानं चक्रं पर्याविवृत्सन्यदेतशो वहति धूर्षु युक्तः ॥२॥ऋग्वेद - मण्डल ७ सूक्तं ७.६३

अर्थात इस सूर्य का विशाल झंडा जन जन को उसके कर्त्तव्य का आदेश करता है।

 नूनं जनाः सूर्येण प्रसूता अयन्नर्थानि कृणवन्नपांसि ॥४॥ ऋग्वेद - मण्डल ७ सूक्तं ७.६३

अर्थात देव सविता ने जो नियम बनाये हैं उन्हें सूर्य घर-घर तक पहुँचाता है।

अधि श्रिये दुहिता सूर्यस्य रथं तस्थौ पुरुभुजा शतोतिम् ।
प्र मायाभिर्मायिना भूतमत्र नरा नृतू जनिमन्यज्ञियानाम् ॥५॥ ऋग्वेद मण्डल ६ सूक्तं ६.६३

अर्थात वे हर सूर्या अर्थात पतिलोक को जाने वाली नवविवाहिता कन्या को पुष्टि पहुँचाकर बड़े प्रसन्न होते हैं तथा सैकड़ों उपाय से उसकी सहायता करते हैं।

इस प्रकार से वेदों में सूर्य को भौतिक सूर्य, विद्वान, ज्ञानी, उपदेशक आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया गया हैं। छठ पर्व पर सभी की स्तुति करे। केवल भौतिक सूर्य की स्तुति वेदों की शिक्षा को पूर्ण रूप से पालन नहीं करना हैं। 

No comments:

Post a Comment