Saturday, August 25, 2018

सत्यार्थ प्रकाश में नाम प्रकरण को लेकर शंका



अश्विनी आदि नाम की स्त्रियों से विवाह क्यों न करें?

मनुस्मृति व सत्यार्थप्रकाश पर किये प्रश्न का उत्तर

- कार्तिक अय्यर

यह प्रश्न कुछ लोग करते हैं कि मनुस्मृति में अश्विनी,रोहिणी आदि नक्षत्रवाचक, व गंगा,यमुना,तुलसी आदि नाम रखने का निषेध क्यों है और क्या ऐसी लड़कियों से विवाह ही न करें? इस लेख में इसका समाधान करते हैं-

न र्क्षवृक्षनदीनाम्नीं नान्त्यपर्वतनामिकाम् ।
न पक्ष्यहिप्रेष्यनाम्नीं न च भीषननामिकाम् ।।3/9।।

न ऋक्ष अर्थात् अश्विनी, भरणी, रोहिणीदेई, रेवतीबाई चित्तारि आदि नक्षत्र नाम वाली; तुलसिया, गेंदा, गुलाबा, चंपा, चमेली आदि वृक्ष नाम वाली; गंगा, जमना आदि नदी नाम वाली; चांडाली आदि अन्त्य नाम वाली; विन्ध्या, हिमालया, पार्वती आदि पर्वत नाम वाली; कोकिला, मैना आदि पक्षी नाम वाली; नागी, भुजंगा आदि सर्प नाम वाली; माधोदासी, मीरादासी आदि प्रेष्य नाम वाली और भीमकुंअरि, चण्डिका, काली आदि भीषण नाम वाली कन्या के साथ विवाह न करना चाहिए । क्यों कि ये नाम कुत्सित तथा अन्य पदार्थों के भी हैं ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)

यहां महर्षि ने स्पष्ट कहा हैे,कि ये सारे नाम कुत्सित हैं या दूसरे ही जड़ पदार्थों के हैं। नाम ऐसा होना चाहिए ,जिसे सुनकर व्यक्ति में उत्तम भावनायें जागृत हों।वरना जड़ नाम से पुकार-पुकारकर व्यक्ति में वैसे गुण भी आने लगते हैं। नाम ऐसे हों,जिसके गुणों को व्यक्ति धारण करे। ऐसा न हो कि किसी को अपने ही नाम से घृणा हो जाये!

देखिये, अश्विनी आदि जड़ तारों के नाम हैं। इनकी जगह यदि प्लूटो,नेप्च्यून,सन,मून, आदि नाम भारतीय लोग रखें तो कितने अटपटे लगेंगे,क्यों जी? ये भी तो ग्रह-नक्षत्रों के नाम हैं, बस अंतर है कि इंग्लिश में हैं!? तुलसी,गेंदा आदि जड़ फूल हैं,इन नामों को सुनकर कौन से महान गुण मन में आयेंगे? तोता,मैना आदि भी मानवों के नहीं,पक्षियों के नाम है। गंगा,जमुना आदि नदियों के व पार्वती आदि पर्वतविषयक नाम भी भ्रांति पैदा करते हैं,जैसाकि हम आगे बतायेंगे। यदि कोई स्त्री रेगिस्तानी इलाके में हो, व पर्वतों से दूर हो तो पार्वती नाम व्यर्थ है वा नहीं? नागी,भुजंगा आदि सांपों के नाम है।ऐसी नाम वाली स्त्रियों को सांप-जैसा मानकर चिढ़ाया जा सकता है, व लोग ऐसी महिलाओं को इच्छाधारी नागिन मान लेते हैं!! माधोदासी आदि नाम दासीवाचक है। पत्नी को "ब्रह्मा" यानी गृहस्थ की मुखिया कहा है,उसके नाम दासवाचक क्यों हो? पत्नी स्वामिनी है,नाकि दासी। चंडिका,भीमा, चांडाली,डाकिनी,शाकिनी आदि नाम भयंकर हैं। जबकि महिलायें आमतौर पर शांत,सरल,सुकुमार व मृदु प्रकृति की होती हैं,ये नाम स्वतः ही स्त्री स्वभाव के विपरीत हैं। ऐसे नाम रामायण व महाभारतकाल में राक्षसियों के होते थे, नाकि हमारी शांत-सुंदर शुभाचरण वाली महिलाओं के!! ऐसे नाम अच्छे भी नहीं लगते, न ऐसे नाम सुनकर किसी स्त्री में श्रेष्ठ भावनायें आयेंगी।
मनु जी व दयानंद जी भी स्त्रियों के नाम उत्तम गुणयुक्त रखना मानते हैं-

स्त्रीणां सुखोद्यं अक्रूरं विस्पष्टार्थं मनोहरम् ।
मङ्गल्यं दीर्घवर्णान्तं आशीर्वादाभिधानवत् ।2/33।।
( मनुस्मृति)

"स्त्रीणाम् स्त्रियों का नाम सुखोद्यम् सुखपूर्वक उच्चारण किया जा सकने वाला अक्रूरम् कोमल अर्थ और वर्णों वाला विस्पष्टार्थम् स्पष्ट अर्थ वाला मनोहरम् मन को आकर्षक लगने वाला मंगल्यम् मंगल अर्थात् शुभ - भावयुक्त दीर्घवर्णान्तमहै।अन्त में दीर्घ अक्षर वाला, तथा आशीर्वाद, अभिधान वत् आशीर्वाद का वाचक होना चाहिए । जैसे - कल्याणी, वन्दना, विद्यावती, कमला, विमला सुषमा, सुशीला, भाग्यवती, सावित्री, यशोदा, प्रियंवदा आदि ।"

‘‘जो स्त्री हो तो एक, तीन वा पांच अक्षर का नाम रखे श्री, हृी, यशोदा, सुखदा, सौभाग्यप्रदा इत्यादि ।’’ (सं० वि० नामकरण सं०)
अतः निषिद्ध नाम स्त्रियों के स्वाभाविक गुणों के विपरीत हैं, अतः त्याज्य है।

डॉ सुरेंद्रकुमार आर्य जी, अपने "सत्यार्थप्रकाश" के शुद्ध (वृहद) संस्करण में, इस श्लोक के नीचे टिप्पणी करते हैं कि-

"इस श्लोक के विधान पर प्रश्न उपस्थित होता है कि -'वर्णित नामों के कारण विवाह क्यों न करें'।इसका उत्तर यह है कि इस प्रकार के नाम शास्त्रीय विधि के अनुसार नहीं हैं,जो यह संकेत देते हैं कि इन नामों वाली कन्याएं या वर न तो वैदिक परंपरा से संबंध रखते हैं और न वे सुशिक्षित व सुसंस्कृत परिवारों के हैं। यदि उनके परिवार सुशिक्षित और वैदिक परंपरा के होते विधि-विरुद्ध,अवैदिक अथवा अशिक्षितों के नामकरण नहीं करते।कुत्सित या गंवारू नाम सभ्य समाज में भी वर्जित होते हैं क्योंकि यह शिष्टाचार के विरुद्ध माने जाते हैं। अतः उनके स्थान पर सांकेतिक,प्रतीकात्मक अथवा अन्य अरुण शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे विधिपूर्वक ना किया गया विवाह माननीय या कानून सम्मत नहीं होता,वैसे ही विधि रहित नाम वर्जित है।

अन्य कारण है ,पर्वत, नदी,नक्षत्र आदि नाम रखने से कालांतर में और विचारशील होने अनेक भ्रांतियां भी जन्म ले लिया है ।जैसे "गंगा" नाम के कारण गंगा नदी और भीष्म की माता गंगा को एक रूप मानकर नदी में ही स्त्री का आरोप कर लिया गया। "सीता" हल की रेखा को भी कहते हैं नाम सामने से सीता को हल चलाते समय पृथिवी से उत्पन्न मान लिया गया। "कार्तिकेय" को कृत्तिका नक्षत्र से उत्पन्न दिखाया गया है। "दशानन" नाम के कारण रावण के असंभव दस शिर कल्पित कर लिए । "ऋक्षवान" मानव को रीछ (भालू) का रूप दे दिया आदि -आदि । *नाम विवाह में बाधक नहीं है केवल विधि ही नाम रखने के निषेध पर बल देने के लिए यह कथन है।*

[महर्षि दयानंद ने भी संस्कार विधि में इस तरह के नाम रखने का निषेध किया है। यही नियम ऋषिवर पुरुषों पर भी लागू करते हैं। क्योंकि संविधान की धारायें भले एक ही लिंगवाचक शब्द से कही हो,पर लागू सब पर होती है। इससे पता चलता है कि ऋषि-परंपरा को ज्ञान था कि ऐसे नाम अन्य पदार्थों के, व अयोग्य हैं। इनका उच्चारण करने पर व्यक्ति में उदात्त भावनायें नहीं आ सकतीं।यही नहीं,आगे मूर्ख लोग इससे गपोड़े बनाकर वैदिक धर्म का ही मजाक उड़वायेंगे। इसलिये उन्होंने पहले से ये चेतावनी दे दी कि ऐसे नाम नामकरण संस्कार के ही बाहर कर दो!]

वैदिक परंपरा में गुरुकुल में प्रवेश के समय,वानप्रस्थ,सन्यास के समय नाम परिवर्तन कर दिया जाता है।ऐसे ही विवाह में अनेक क्षेत्रों में आज भी नाम बदला जाता है।यदि कोई कन्या गुणवती है तो उसका उपयुक्त नामकरण करके पुनः उससे विवाह किया जा सकता है। जैसे कि पंजाब के कुछ समुदायों में आज भी विवाह के अवसर पर उपयुक्त नाम परिवर्तन किया जाता है,पुनः विवाह होता है।

[ पं गंगाप्रसाद उपाध्याय भी इस श्लोक पर कुछ ऐसी ही टिप्पणी अपने मनुस्मृति भाष्य में करते हैं-
"नोट-लोग प्रश्न करते हैं कि क्या ऐसे नाम वाली स्त्रियाँ बिन ब्याही रह जाएँ ? यह व्यर्थ प्रश्न हैं। नाम सुगमता से बदला जा सकता है।"]

महर्षि मनु का कथन है,- "स्त्रियो .... सामदेयानि" " अपने गुण कर्म स्वभाव के अनुकूल उत्तम स्त्रियां सभी परिवारों और देशों से स्वीकार कर लें"-( मनुस्मृति २/२४०)। महाभारत काल में विदेशों में अनेक विवाह हुए थे।

( सत्यार्थप्रकाश पृष्ठ ४८६ पर विवरण)।"

इस नामकरण या नामपरिवर्तन से समाज में कोई भी अव्यवस्था देखी नहीं गई। आज भी सभ्य,पढ़े-लिखे लोग "अश्विनी,रोहिणी आदि" नामवाली कन्याओं से विवाह कर लेते हैं। ऐसा कभी सुना नहीं गया कि मनु के अनुसार ऐसी नामवाली औरतें बिना शादी के कुंवारी ही रह गई हों! जब तक इस नियम से समाज में कुछ अव्यवस्था नहीं होती,तब तक इसे गलत नहीं कहा जा सकता। और जैसाकि ऊपर स्पष्ट है, यह नाम मूर्ख,अशिक्षित या वैदिक परंपरा से वंचित लोग ही रखते हैं। इनका परिवर्तन करके भी विवाह हुये हैं, कोई अव्यवस्था नहीं हुई।

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