संत रविदास और श्री राम
डॉ विवेक आर्य
जय भीम, जय मीम का नारा लगाने वाले दलित भाइयों को आज के कुछ राजनेता कठपुतली के समान प्रयोग कर रहे हैं। यह मानसिक गुलामी का लक्षण है। अपनी राजनीतिक हितों को साधने के लिए दलित राजनेता और विचारक श्री राम जी के विषय में असभ्य भाषण तक करने से पीछे नहीं हट रहे है। कोई उन्हें मिथक बताता है, कोई विदेशी आर्य बताता है, कोई शम्बूक शुद्र का हत्यारा बताता है। सत्य यह है कि यह सब भ्रामक एवं असत्य प्रचार है जिसका उद्देश्य अपरिपक्व दलितों को भड़काकर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना है। मगर इस कवायद में सत्य इतिहास को भी दलितों ने जुठला दिया है। अगर श्री रामचंद्र जी मिथक अथवा विदेशी अथवा दलितों पर अत्याचार करने वाले होते तो चमार (चर्मकार) जाति में पैदा हुए संत रविदास श्री राम जी के सम्मान में भक्ति न करते।
प्रमाण देखिये
1. हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरि
हरि सिमरत जन गए निस्तरि तरे।१। रहाउ।।
हरि के नाम कबीर उजागर ।। जनम जनम के काटे कागर ।।१।।
निमत नामदेउ दूधु पिआइआ।। तउ जग जनम संकट नहीं आइआ ।।२।।
जन रविदास राम रंगि राता ।। इउ गुर परसादी नरक नहीं जाता ।।३।।
- आसा बाणी स्त्री रविदास जिउ की, पृष्ठ 487
सन्देश- इस चौपाई में संत रविदास जी कह रहे है कि जो राम के रंग में (भक्ति में) रंग जायेगा वह कभी नरक नहीं जायेगा।
2. जल की भीति पवन का थंभा रकत बुंद का गारा।
हाड मारा नाड़ी को पिंजरु पंखी बसै बिचारा ।।१।।
प्रानी किआ मेरा किआ तेरा।। जेसे तरवर पंखि बसेरा ।।१।। रहाउ।।
राखउ कंध उसारहु नीवां ।। साढे तीनि हाथ तेरी सीवां ।।२।।
बंके वाल पाग सिरि डेरी ।।इहु तनु होइगो भसम की ढेरी ।।३।।
ऊचे मंदर सुंदर नारी ।। राम नाम बिनु बाजी हारी ।।४।।
मेरी जाति कमीनी पांति कमीनी ओछा जनमु हमारा ।।
तुम सरनागति राजा राम चंद कहि रविदास चमारा ।।५।।
- सोरठी बाणी रविदास जी की, पृष्ठ 659
सन्देश- रविदास जी कह रहे है कि राम नाम बिना सब व्यर्थ है।
मध्य काल के दलित संत हिन्दू समाज में व्याप्त छुआछूत एवं धर्म के नाम पर अन्धविश्वास का कड़ा विरोध करते थे मगर श्री राम और श्री कृष्ण को पूरा मान देते थे। उनका प्रयोजन समाज सुधार था। आज के कुछ अम्बेडकरवादी दलित साहित्य के नाम पर ऐसा कूड़ा परोस रहे है जिसका उद्देश्य केवल हिन्दू समाज की सभी मान्यताओं जैसे वेद, गौ माता, तीर्थ, श्री राम, श्री कृष्ण आदि को गाली देना भर होता हैं। इस सुनियोजित षड़यंत्र का उद्देश्य समाज सुधार नहीं अपितु परस्पर वैमनस्य फैला कर आपसी मतभेद को बढ़ावा देना है। हम सभी देशवासियों का जिन्होंने भारत की पवित्र मिटटी में जन्म लिया है, यह कर्त्तव्य बनता है कि इस जातिवाद रूपी बीमारी को जड़ से मिटाकर इस हिन्दू समाज की एकता को तोड़ने का सुनियोजित षड़यंत्र विफल कर दे।
यही इस लेख का उद्देश्य है।
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