चौधरी छोटूराम जी की धर्म निष्ठा और दृढ़ता
प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की बात है। रोहतक की जाट सभा का साप्ताहिक उर्दू अखबार जाट गजट के नाम से निकलता था। चौधरी छोटूराम और चौधरी लालचंद ने इस गजट के संपादक के रूप में आर्यसमाज के प्रसिद्द संपादक एवं लेखक कहानीकार सुदर्शन जी को नियुक्त किया था। सुदर्शन जी उस काल में रोहतक में ही रहने लगे। एक दिन कहानीकार सुदर्शन जी रोहतक में सड़क से जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक ईसाई पादरी सड़क पर खुलेआम खड़े होकर ईसाई मत का प्रचार कर रहा है और हिन्दू पुराणों की धज्जियाँ उड़ा रहा है। सुदर्शन जी को यह देखकर जोश आ गया। वो उस पादरी से कुछ दूरी पर खड़े होकर वैदिक धर्म की श्रेष्ठता एवं बाइबिल की तर्कपूर्ण समीक्षा करने लगे। अपने छात्र जीवन में सुदर्शन जी मिशनरी स्कूल में पढ़े थे। इसलिए उन्हें बाइबिल की गहराई से जानकारी थी। सुदर्शन जी के व्याख्यान को सुनने के लिए भारी भीड़ एकत्र हो गई। पादरी के पांव उखाड़ गये। उसने उसकी दुकान बंद होने का कभी सोचा भी नहीं था। उसे किसी प्रकार से पता चल गया कि सुदर्शन जी जाट गजट के आर्यसमाजी संपादक है। रोहतक का उन दिनों डिप्टी कमिश्नर एक अंग्रेज अधिकारी था। पादरी ने अंग्रेज कमिश्नर को सुदर्शन जी की शिकायत कर दी। कमिश्नर ने पक्षपात रूपी कार्यवाही करते हुए जाट गजट से भारी प्रतिभूति राशि मांग ली। अभियोग चलाया गया। मामला चौधरी छोटूराम तक गया। उन्होंने अंग्रेज अधिकारी को स्पष्ट रूप से कह दिया। एक ओर आप हमसे विश्व युद्ध में लड़ने जाट जवान मांगते है दूसरी ओर आप हमारी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में विघ्न डालते है। ये दोनों बातें कैसे चल सकती हैं। चौधरी साहिब को अंग्रेज कमिश्नर ने आश्वाशन दिया कि आपको पत्रिका के प्रकाशन में कोई अड़चन नहीं आएगी। कोई प्रतिभूति नहीं मांगी जाएगी। केवल आप लोग अपना संपादक बदल दीजिये। सुदर्शन को हटा दीजिये। चौधरी साहिब ने बड़े स्वाभिमान, धर्म निष्ठा और दृढ़ता का परिचय दिया। उन्होंने अंग्रेज कमिश्नर को सुदर्शन जी को हटाने से स्पष्ट इंकार कर दिया।
आजकल कुछ राजनीतिक लोग चौधरी साहिब के नाम का प्रयोग कर अपने राजनीतिक हित साधना चाहते है। मगर वैदिक सिद्धांतों के लिए उन जैसी धर्म निष्ठा और दृढ़ता लाना भी अत्यंत आवश्यक है।
सन्दर्भ- तड़पवाले तड़पाती जिनकी कहानी- राजेंदर जिज्ञासु
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