Friday, January 26, 2018

संसारभर के विकासवादियों से प्रश्न



संसारभर के विकासवादियों से प्रश्न
अभी हाल में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री माननीय डाॅ. सत्यपालसिंहजी के इस कथन कि मनुष्य की उत्पत्ति बन्दर से नहीं हुई, सम्पूर्ण भारत के बुद्धिजीवियों में हलचल मच रही है। कुछ वैज्ञानिक सोच के महानुभाव इसे साम्प्रदायिक संकीर्णताजन्य रूढ़िवादी सोच की संज्ञा दे रहे हैं। मैं उन महानुभावों से निवेदन करता हूँ कि मंत्रीजी का यह विचार रूढ़िवादी नहीं बल्कि सुदृढ़ तर्कों पर आधारित वैदिक विज्ञान का ही पक्ष है। ऐसा नहीं है कि विकासवाद का विरोध कुछ भारतीय विद्वान् ही करते हैं अपितु अनेक यूरोपियन वैज्ञानिक भी इसे नकारते आये हैं। मैं इसका विरोध करने वाले संसारभर के विकासवादियों से प्रश्न करना चाहता हूँ। ये प्रश्न प्रारम्भिक हैं, इनका उत्तर मिलने पर और प्रश्न किये जायेंगे :-
शारीरिक विकास
१. विकासवादी अमीबा से लेकर विकसित होकर बन्दर पुनः शनैः-२ मनुष्य की उत्पत्ति मानते हैं। वे बताएं कि अमीबा की उत्पत्ति कैसे हुई?
२. यदि किसी अन्य ग्रह से जीवन आया, तो वहाँ उत्पत्ति कैसे हुई? जब वहाँ उत्पत्ति हो सकती है, तब इस पृथ्वी पर क्यों नहीं हो सकती?
३. यदि अमीबा की उत्पत्ति रासायनिक क्रियाओं से किसी ग्रह पर हुई, तब मनुष्य के शुक्राणु व अण्डाणु की उत्पत्ति इसी प्रकार क्यों नहीं हो सकती?
४. उड़ने की आवश्यकता होने पर प्राणियों के पंख आने की बात कही जाती है परन्तु मनुष्य जब से उत्पन्न हुआ, उड़ने हेतु हवाई जहाज बनाने का प्रयत्न करता रहा है, परन्तु उसके पंख क्यों नहीं उगे? यदि ऐसा होता, तो हवाई जहाज के अविष्कार की आवश्यकता नहीं होती।
५. शीत प्रदेशों में शरीर पर लम्बे बाल विकसित होने की बात कही जाती है, तब शीत प्रधान देशों में होने वाले मनुष्यों के रीछ जैसे बाल क्यों नहीं उगे? उसे कम्बल आदि की आवश्यकता क्यों पड़ी?
६. जिराफ की गर्दन इसलिए लम्बी हुई कि वह धरती पर घास सूख जाने पर ऊपर पेड़ों की पत्तियां गर्दन ऊँची करके खाता था। जरा बताएं कि कितने वर्ष तक नीचे सूखा और पेड़ों की पत्तियां हरी रहीं? फिर बकरी आज भी पेड़ों पर दो पैर रखकर पत्तियां खाती है, उसकी गर्दन लम्बी क्यों नहीं हुई?
७. बंदर के पूंछ गायब होकर मनुष्य बन गया। जरा कोई बताये कि बंदर की पूंछ कैसे गायब हुई? क्या उसने पूंछ का उपयोग करना बंद कर दिया? कोई बताये कि बन्दर पूंछ का क्या उपयोग करता है और वह उपयोग उसने क्यों बंद किया? यदि ऐसा ही है तो मनुष्य के भी नाक, कान गायब होकर छिद्र ही रह सकते थे। मनुष्य लाखों वर्षोंसे से बाल और नाखून काटता आ रहा है, तब भी बराबर वापिस उगते आ रहे हैं, ऐसा क्यों?
८. सभी बंदरों का विकास होकर मानव क्यों नहीं बने? कुछ तो अमीबा के रूप में ही अब तक चले आ रहे हैं, और हम मनुष्य बन गये, यह क्या है?
९. कहते हैं कि सांपों के पहले पैर होते थे, धीरे-२ वे घिस कर गायब हो गये। जरा विचारों कि पैर कैसे गायब हुए, जबकि अन्य सभी पैर वाले प्राणियों के पैर बिल्कुल नहीं घिसे।
१०. बिना अस्थि वाले जानवरों से अस्थि वाले जानवर कैसे बने? उन्हें अस्थियों की क्या आवश्यकता पड़ी?
११. बंदर व मनुष्य के बीच बनने वाले प्राणियों की श्रंखला कहाँ गई?
१२. विकास मनुष्य पर जाकर क्यों रुक गया? किसने इसे विराम दिया? क्या उसे विकास की कोई
आवश्यकता नहीं है?
बौद्धिक व भाषा सम्बन्धी विकास
1. कहते हैं कि मानव ने धीरे-2 बुद्धि का विकास कर लिया, तब प्रश्न है कि बन्दर व अन्य प्राणियों में बौद्धिक विकास क्यों नहीं हुआ?
2. मानव के जन्म के समय इस धरती पर केवल पशु पक्षी ही थे, तब उसने उनका ही व्यवहार क्यों नहीं सीखा? मानवीय व्यवहार का विकास कैसे हुआ? करोड़ों वनवासियों में अब तक विशेष बौद्धिक विकास क्यों नहीं हुआ?
3. गाय, भैंस, घोड़ा, भेड़, बकरी, ऊंट, हाथी करोड़ों वर्षों से मनुष्य के पालतू पशु रहे हैं पुनरपि उन्होंने न मानवीय भाषा सीखी और न मानवीय व्यवहार, तब मनुष्य में ही यह विकास कहाँ से हुआ?
4. दीपक से जलता पतंगा करोड़ों वर्षों में इतना भी बौद्धिक विकास नहीं कर सका कि स्वयं को जलने से रोक ले, और मानव बन्दर से इतना बुद्धिमान् बन गया कि मंगल की यात्रा करने को तैयार है? क्या इतना जानने की बुद्धि भी विकासवादियों में विकसित नहीं हुई ? पहले सपेरा सांप को बीन बजाकर पकड़ लेता था और आज भी वैसा ही करता है परन्तु सांप में इतने ज्ञान का विकास भी नहीं हुआ कि वह सपेरे की पकड़ में नहीं आये।
5. पहले मनुष्य बल, स्मरण शक्ति एवं शारीरिक प्रतिरोधी क्षमता की दृष्टी से वर्तमान की अपेक्षा बहुत अधिक समृद्ध था, आज यह ह्रास क्यों हुआ, जबकि विकास होना चाहिए था?
6. संस्कृत भाषा, जो सर्वाधिक प्राचीन भाषा है, उस का व्याकरण वर्तमान विश्व की सभी भाषाओं की अपेक्षा अतीव समृद्ध व व्यवस्थित है, तब भाषा की दृष्टी से विकास के स्थान पर ह्रास क्यों हुआ?
7. प्राचीन ऋषियों के ग्रन्थों में भरे विज्ञान के सम्मुख वर्तमान विज्ञान अनेक दृष्टी से पीछे है, यह मैं अभी सिद्ध करने वाला हूँ, तब यह विज्ञान का ह्रास कैसे हुआ? पहले केवल अन्तःप्रज्ञा से सृष्टि का ज्ञान ऋषि कर लेते थे, तब आज वह ज्ञान अनेकों संसाधनों के द्वारा भी नहीं होता। यह यह उलटा क्रम कैसे हुआ?
भला विचारें कि यदि पशु पक्षियों में बौद्धिक विकास हो जाता, तो एक भी पशु पक्षी मनष्य के वश में नहीं आता। यह कैसी अज्ञानता भरी सोच है, जो यह मानती है कि पशु पक्षियों में बौद्धिक विकास नहीं होता परन्तु शारीरिक विकास होकर उन्हें मनुष्य में बदल देता है और मनुष्यों में शारीरिक विकास नहीं होकर केवल भाषा व बौद्धिक विकास ही होता है। इसका कारण क्या विकासवादी मुझे बताएंगे।
आज विकासवाद की भाषा बोलने वाले अथवा पौराणिक बन्धु श्री हनुमान् जी को बन्दर बताएं, उन्हें वाल्मीकीय रामायण का गम्भीर ज्ञान नहीं है। वस्तुतः वानर, ऋक्ष, गृध, किन्नर, असुर, देव, नाग आदि मनुष्य जाति के ही नाना वर्ग थे। ऐतिहासिक ग्रन्थों में प्रक्षेपों (मिलावट) को पहचानना परिश्रम साध्य व बुद्धिगम्य कार्य है।
ऊधर जो प्रबुद्धजन किसी वैज्ञानिक पत्रिका में पेपर प्रकाशित होने को ही प्रामाणिकता की कसौटी मानते हैं, उनसे मेरा अति संक्षिप्त विनम्र निवेदन है-
1. बिग बैंग थ्योरी व इसके विरुद्ध अनादि ब्रह्माण्ड थ्योरी, दोनों ही पक्षों के पत्र इन पत्रिकाओं में छपते हैं, तब कौनसी थ्योरी को सत्य मानें?
2. ब्लैक होल व इसके विरुद्ध ब्लैक होल न होने की थ्योरीज् इन पत्रिकाओं में प्रकाषित हैं, तब किसे सत्य मानें?
3. ब्रह्माण्ड का प्रसार व इसके प्रसार न होने की थ्योरीज् दोनों ही प्रकाषित हैं, तब किसे सत्य मानें?
ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। इस कारण यह आवश्यक नहीं है कि हमें एक वर्गविषेश से सत्यता का प्रमाण लेना अनिवार्य हो? हमारी वैदिक एवं भारतीय दृष्टी में उचित तर्क, पवित्र गम्भीर ऊहा एवं योगसाधना (व्यायाम नहीं) से प्राप्त निष्कर्ष वर्तमान संसाधनों के द्वारा किये गये प्रयोगों, प्रक्षेपणों व गणित से अधिक प्रामाणिक होते हैं। यदि प्रयोग, प्रेक्षण व गणित के साथ सुतर्क, ऊहा का साथ न हो, तो वैज्ञानिकों का सम्पूर्ण श्रम व्यर्थ हो सकता है। यही कारण है कि प्रयोग, परीक्षणों, प्रेक्षणों व गणित को आधार मानने वाले तथा इन संसाधनों पर प्रतिवर्ष खरबों डाॅलर खर्च करने वाले विज्ञान के क्षेत्र में नाना विरोधी थ्योरीज् मनमाने ढंग से फूल-फल रही हैं और सभी अपने को ही सत्य कह रही हैं। यदि विज्ञान सर्वत्र गणित व प्रयोगों को आधार मानता है, तब क्या कोई विकासवाद पर गणित व प्रयोगों का आश्रय लेकर दिखाएगा?
इस कारण मेरा सम्मान के योग्य वैज्ञानिकों एवं देश व संसार के प्रबुद्ध जनों से अनुरोध है कि प्रत्येक प्राचीन ज्ञान का अन्धविरोध तथा वर्तमान पद्धति का अन्धानुकरण कर बौद्धिक दासत्व का परिचय न दें। तार्किक दृष्टी का सहारा लेकर ही सत्य का ग्रहण व असत्य का परित्याग करने का प्रयास करें। हाँ, अपने साम्प्रदायिक रूढ़िवादी सोच को विज्ञान के समक्ष खड़े करने का प्रयास करना अवश्य आपत्तिजनक है।
- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक, वैदिक वैज्ञानिक
अध्यक्ष, श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास

1 comment:

  1. Kitna Sundar tarike se samjaya hai lekin murkho ko to ab bhi samaj Aaye jaroori Nahi kyonki vo andh dhun me viswas rakhte hai. Vo mante hai ki Mai insano ki santan kaise ho Sakta hu doubt hota hai vo Kido makodo ko hi apni santan manta hai rishi muniyo ko Nahi kyonki vo sochta hai ki itne mahan logo se Mai nich kaise paida ho Sakta hu Khair Kabhi to Satya swikarna hi Hoga
    Thanks acharya ji
    Koti koti naman

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