Monday, September 4, 2017

महात्मा बुद्ध V/S भीमराव अम्बेडकर



महात्मा बुद्ध V/S भीमराव अम्बेडकर

जिस प्रकार कोई सैनिक की वर्दी पहनकर सैनिक नहीं बन जाता जब तक कि वो नियमानुसार सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर लेता | ठीक उसी प्रकार यह कह देने मात्र से कोई बौद्ध नहीं हो जाता कि ‘मैं अब हिन्दू नहीं बौद्ध हूँ’ | क्योंकि बौद्ध बनने के लिए भगवान बुद्ध के उपदेशों को धारण करना अनिवार्य है | १४ अक्टूबर १९५६ को भीमराव अम्बेडकर ने यह घोषणा की कि मैं अब हिन्दू नहीं बौद्ध हूँ ; जबकि वास्तविकता यह है कि भीमराव जीवन भर बौद्ध नहीं बन पाए क्योंकि उनकी विचारधारा महात्मा बुद्ध से बिलकुल विपरीत रही | केवल यह कह देने मात्र से कि मैं हिन्दू नहीं बौद्ध हूँ भीमराव को बौद्ध नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को व्यवहारिक जीवन में कभी धारण नहीं किया | भीमराव बौद्ध थे या नहीं यह समझने के लिए भीमराव अम्बेडकर के विचार और महात्मा बुद्ध के उपदेशों का तुलनात्मक अध्ययन करना आवश्यक है |

भीमराव अम्बेडकर के वेदों पर विचार ( निम्नलिखित उद्धरण अम्बेडकर वांग्मय से लिए हैं ) –

वेद बेकार की रचनाएँ हैं उन्हें पवित्र या संदेह से परे बताने में कोई तुक नहीं | ( खण्ड १३ प्र. १११ )

ऐसे वेद शास्त्रों के धर्म को निर्मूल करना अनिवार्य है | ( खण्ड १ प्र. १५ )
वेदों और शास्त्रों में डायनामाईट लगाना होगा , आपको श्रुति और स्मृति के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए | ( खण्ड १ प्र. ९९ )

जहाँ तक नैतिकता का प्रश्न है ऋग्वेद में प्रायः कुछ है ही नहीं, न ही ऋग्वेद नैतिकता का आदर्श प्रस्तुत करता है | ( खण्ड ८ प्र. ४७, ५१ )

ऋग्वेद आदिम जीवन की प्रतिछाया है जिनमें जिज्ञासा अधिक है, भविष्य की कल्पना नहीं है | इनमें दुराचार अधिक गुण मुट्ठी भर हैं | ( खण्ड ८ प्र. ५१ )
अथर्ववेद मात्र जादू टोनो, इंद्रजाल और जड़ी बूटियों की विद्या है | इसका चौथाई जादू टोनों और इंद्रजाल से युक्त है | ( खण्ड ८ प्र. ६० )

वेदों में ऐसा कुछ नहीं है जिससे आध्यात्मिक अथवा नैतिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त हो | ( खण्ड ८ प्र. ६२ )

महात्मा बुद्ध के वेदों पर उपदेश –

विद्वा च वेदेहि समेच्च धम्मम | न उच्चावच्चं गच्छति भूरिपज्जो || ( सुत्तनिपात श्लोक २९२ )

अर्थात महात्मा बुद्ध कहते हैं – जो विद्वान वेदों से धर्म का ज्ञान प्राप्त करता है, वह कभी विचलित नहीं होता |

विद्वा च सो वेदगु नरो इध भवाभावे संगम इमं विसज्जा | सो वीततन्हो अनिघो निरासो अतारि सो जाति जरान्ति ब्रूमिति || ( सुत्तनिपात श्लोक १०६० )

अर्थात वेद को जानने वाला विद्वान इस संसार में जन्म या मृत्यु में आसक्ति का परित्याग करके और तृष्णा तथा पापरहित होकर जन्म और वृद्धावस्थादि से पार हो जाता है ऐसा मैं कहता हूँ |

ने वेदगु दिठिया न मुतिया स मानं एति नहि तन्मयो सो | न कम्मुना नोपि सुतेन नेयो अनुपनीतो सो निवेसनूसू || ( सुत्तनिपात श्लोक ८४६ )

अर्थात वेद को जानने वाला सांसारिक दृष्टि और असत्य विचारादि से कभी अहंकार को प्राप्त नही होता | केवल कर्म और श्रवण आदि किसी से भी वह प्रेरित नहीं होता | वह किसी प्रकार के भ्रम में नहीं पड़ता |

यो वेदगु ज्ञानरतो सतीमा सम्बोधि पत्तो सरनम बहूनां | कालेन तं हि हव्यं पवेच्छे यो ब्राह्मणो पुण्यपेक्षो यजेथ || ( सुत्तनिपात श्लोक ५०३ )

अर्थात जो वेद को जानने वाला,ध्यानपरायण, उत्तम स्मृति वाला, ज्ञानी, बहुतों को शरण देने वाला हो जो पुण्य की कामना वाला यग्य करे वह उसी को भोजनादि खिलाये |

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भीमराव अम्बेडकर भगवान बुद्ध के उपदेशों के विरोधी थे | अब बुद्धजीवी यह विचार करें कि भगवान बुद्ध के उपदेशों का विरोध करने वाला व्यक्ति बौद्ध कैसे हो सकता है ??? भगवान बुद्ध के नाम से दलाली करने वालों ! अगर साहस है तो खुलकर कहो तुम किसके अनुयायी हो – वैदिक धर्म का पालन करने वाले भगवान बुद्ध के अथवा भीमराव अम्बेडकर के ???

9 comments:

  1. वेद हि भेद हैं! वर्ण्यव्यवस्था का मूलस्त्रोत !
    वेद मुर्ख लोगों की विद्या!
    वेद निर्जल रेगिस्तान !!!

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    1. Matlb gautam budh jhuthe hai or ap sahi ho?

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    2. भाई वेदों में कर्म के आधार पर चीजों को बांटा गया है लेकिन समय के साथ यह गलत तरीके से हमारे साथ जुड़ गई है इसलिए पूरी बात को जानो और समझदार बनो और आप और हम मिलकर इस कुरीति को मिटा सकते हैं (क्योंकि ना तो वेद और ना ही गौतम बुद्ध हिंसा का मार्ग बताते हैं और कुछ लोग राजनीति चमकाने के लिए जातिगत भेद रखना चाहते हैं)

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  2. त्रिपिटक में अथर्ववेद के वहुतो मंत्र है जिसे संस्कृत से पालि भाषा में अनुवाद कर लिया गया था।

    अगर वेद अच्छा नही है तो वेद मंत्र को चुराया क्यो?

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    1. Are o pahlesehi pali bhasha ka tha brahmno no ne o churaya buddha ki tripitak re

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  3. Babasaheb ke bare mai murkh hi yh bat krte he manuvadio

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    1. Babasaheb dhokhebaj tha manuvadi raja Or manuvadi shikshak k paise or Proshahan se bahar padha or phir unhe hi gali dene lag gya

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  4. Murk aurat sach our zut tuze nahi pta

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