शंका- नवरात्र में देवियों की पूजा की जाति है। क्या यह वेद संगत है। वेदों के अनुसार ईश्वर के निराकार रूप की देवी स्वरूप में उपासना कैसे संभव है?
समाधान-
वेदों में ईश्वर को एक और निराकार बताया गया है। ईश्वर के अनगिनत गुण है। ईश्वर का प्रत्येक नाम उसके प्रत्येक गुण का दर्शन करवाता है। ईश्वर के अनगिनत गुण होने के कारण अनगिनत नाम है। देवी, लक्ष्मी, सरस्वती आदि एक ईश्वर के अनेक नामों से कुछ नाम हैं। स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में देवी, शक्ति, श्री, लक्ष्मी, सरस्वती आदि ईश्वर के नामों की व्याख्या दी हैं।
१. – जितने ‘देव’ शब्द के अर्थ लिखे हैं उतने ही ‘देवी’ शब्द के भी हैं। परमेश्वर के तीनों लिंगों में नाम हैं। जैसे-‘ब्रह्म चितिरीश्वरश्चेति’। जब ईश्वर का विशेषण होगा तब ‘देव’ जब चिति का होगा तब ‘देवी’, इससे ईश्वर का नाम ‘देवी’ है।
२.– (शक्लृ शक्तौ) इस धातु से ‘शक्ति’ शब्द बनता है। ‘यः सर्वं जगत् कर्तुं शक्नोति स शक्तिः’ जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शक्ति’ है।
३.– (श्रिञ् सेवायाम्) इस धातु से ‘श्री’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यः श्रीयते सेव्यते सर्वेण जगता विद्वद्भिर्योगिभिश्च स श्रीरीश्वरः’। जिस का सेवन सब जगत्, विद्वान् और योगीजन करते हैं, उस परमात्मा का नाम ‘श्री’ है।
४.– (लक्ष दर्शनांकनयोः) इस धातु से ‘लक्ष्मी’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो लक्षयति पश्यत्यंकते चिह्नयति चराचरं जगदथवा वेदैराप्तैर्योगिभिश्च यो लक्ष्यते स लक्ष्मीः सर्वप्रियेश्वरः’ जो सब चराचर जगत् को देखता, चिह्नित अर्थात् दृश्य बनाता, जैसे शरीर के नेत्र, नासिकादि और वृक्ष के पत्र, पुष्प, फल, मूल, पृथिवी, जल के कृष्ण, रक्त, श्वेत, मृत्तिका, पाषाण, चन्द्र, सूर्यादि चिह्न बनाता तथा सब को देखता, सब शोभाओं की शोभा और जो वेदादिशास्त्र वा धार्मिक विद्वान् योगियों का लक्ष्य अर्थात् देखने योग्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘लक्ष्मी’ है।
५.– (सृ गतौ) इस धातु से ‘सरस्’ उस से मतुप् और ङीप् प्रत्यय होने से ‘सरस्वती’ शब्द सिद्ध होता है। ‘सरो विविधं ज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ सा सरस्वती’ जिस को विविध विज्ञान अर्थात् शब्द, अर्थ, सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान यथावत् होवे, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘सरस्वती’ है।
वैदिक काल में ईश्वर के निराकार रूप की पूजा होती थी। कालांतर में ईश्वर के शक्ति रूप की पूजा बंगाल आदि प्रांतों में आरम्भ हुई। जो बाद में दुर्गा पूजा के रूप में प्रचलित हुई।वर्तमान स्वरुप प्राचीन काल का विकृत रूप मात्र हैं।
नवरात्र मुख्य रूप से यह क्षत्रियों का त्यौहार है।
जो देश पर आयी हुई विपत्ति के लिए शास्त्र पूजा दुष्टों को दंड देने के लिए प्रेरित करने के समान हैं। आज बंगाल पर बंगलादेशी मुसलमानों, नास्तिक कम्युनिष्टों, भोगवादियों का खतरा मंडरा रहा हैं। नवरात्रों में हिन्दू समाज जातिगत भेदभाव त्यागकर , संगठित होकर इस खतरे के लिए संकल्प ले। ऐसी ईश्वर कृपा करे।
डॉ विवेक आर्य
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