महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२५-१८८३) का महान चरित्र
इतिहासचार्य निरंजनदेव केसरी ने कहा था -
कोई प्रभु-भक्त है तो विद्वान् नहीं,...
कोई विद्वान् है तो योगी नहीं,
कोई योगी है तो सुधारक नहीं,
कोई सुधारक है तो दिलेर नहीं,
कोई दिलेर है तो ब्रह्मचारी नहीं,
कोई ब्रह्मचारी है तो वक्ता नहीं,
कोई वक्ता है तो लेखक नहीं,
कोई लेखक है तो सदाचारी नहीं,
कोई सदाचारी है तो परोपकारी नहीं,
कोई परोपकारी है तो कर्मठ नहीं,
कोई कर्मठ है तो त्यागी नहीं,
कोई त्यागी है तो देशभक्त नहीं,
कोई देशभक्त है तो वेदभक्त नहीं,
कोई वेदभक्त है तो उदार नहीं,
कोई उदार है तो शुद्धाहारी नहीं,
कोई शुद्धाहारी है तो योद्धा नहीं,
कोई योद्धा है तो सरल नहीं,
कोई सरल है तो सुन्दर नहीं,
कोई सुन्दर है तो बलिष्ठ नहीं,
कोई बलिष्ठ है तो दयालु नहीं,
कोई दयालु है तो संयमी नहीं ।
परंतु यदि आप ये सभी गुण एक ही स्थान पर देखना चाहें तो महर्षि दयानन्द को देखो - निष्पक्ष होकर देखो ।
(सन्दर्भ ग्रन्थः दिवंगत प्रो० डॉ० कुशलदेव शास्त्री रचित "महर्षि दयानन्दः काल और कृतित्व",पृष्ठ ४२३)
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