ऋषि गुणगान का हम आओ मिलकर करे विचार।
उनकी उत्तम शिक्षाओं को आओ जीवन में ले धार।।
सारा वैभव जिसने त्यागा जिससे होवे पर-उपकार।
उस योगी का स्मरण करले फिर करले दलितों का उद्धार ।।
सत्य निष्टा उस योगी कि कहो कहां पाई जाती?
जिसने प्रकट करी सच्चाई निर्भय हो खोली छाती।।
सच्चे शिव का पता लगाने जो वन वन भटका था।
कष्ट हज़ारों आये थे पर नहीं कहीं जो अटका था।।
उस ऋषिवर कि निर्भयता कि नहीं कहीं भी सीमा थी।
जिसने सारे जग के आगे गाई वैदिक महिमा थी।।
जो कुछ समझा सत्य उसे झट बेखटके था कह डाला।
जिसके कारण पिया ख़ुशी से उसने विष तक का प्याला ।।
दयासिन्धु था वह ऋषि जैसे उसका नाम जताता हैं।
दीन- अनाथों कि गौओं कि रक्षा वही कराता हैं ।।
विष देने वाले घातक को भी जिसने था क्षमा किया।
उसके जीवन कि रक्षा हित धन का भी सहाय दिया ।।
क्या ऐसी करुणा पुरुषों में, भाई! पाई जाती हैं?
ऐसी ही गणना तो निश्चय देवों में ही आती हैं ।।
ऐसे देव महात्मा का भी आज हुआ उत्तम बलिदान।
सत्य धर्म कि सुबह वेदी पर किये समर्पण जिसने प्राण ।।
उसका अब सन्देश ही हैं मिल जाओ सब ही भाई।
बिलकुल दूर करो आपस में जो हैं फुट समाई ।।
एकेश्वर के पूजक होओ सभी सत्य को ग्रहण करो।
वैदिक शिक्षा पर चल करके सब उत्तम आचरण करो ।।
छोड़ो रीति रिवाज़ पूरे जो बाल विवाहादिक हैं।
सबको उत्तम शिक्षा देदो जो कन्या बालक हैं ।।
सदा स्वदेशी कपड़े पहनो परदेशी का त्याग करो।
बने जहाँ तक देशी चीजों का ही तुम उपयोग करो।।
भारत माता कि सेवा में तन मन धन सब वारो।
जो अछूत कहलाते उनको तुम सप्रेम उभारो।।
डर को दूर भगाकर तुम सच्चे कर्मवीर बन जाओ।
जाति पाति के किले गिराकर तुम सच्चे आर्य कहाओ ।।
स्वतंत्रता से बढ़के जग में नहीं वस्तु हैं कोई।
उसको प्राप्त करो मिल कर के राष्ट्र धर्म हैं व ही।।
परदेशी उत्तम शासन भी नहीं स्वराज्य के सम हैं।
हैं स्वराज्य का प्रेम न जिसको वह नर अधमाधम हैं ।।
आर्य सभ्यता को अपनाओ जो अत्युत्तम हैं।
नक़ल करो पाश्चात्य सभ्यता कि न जोकि विष सम हैं ।।
प्रेम सहित व्यवहार चलाओ सभी आर्य भाषा में।
जिससे भारत माता प्रभुदित होवे नव आशा में ।।
पंडित धर्मदेव विद्या मार्त्तण्ड
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