Monday, July 19, 2021

स्टेशन मास्टर लाला गंगाराम


सच्चे आदमी का चरित्र चित्रण 
स्टेशन मास्टर लाला गंगाराम 

लेखक :- स्वामी स्वतंत्रानन्द जी महाराज 


            आचार की दृष्टि से अपने स्वभाव में कट्टरपन की दृष्टि से और अपने नियमों पर अटल रहने की दृष्टि से ला० गंगाराम जी विशेष व्यक्ति थे। इसलिए उनके जीवन की कुछ घटनाएं लिखता हूं। संभव है कोई सज्जन इनसे लाभ प्राप्त करें। 

 ( १ ) लाला गंगाराम जी सहायक स्टेशन मास्टर थे। स्टेशन मास्टर अंग्रेज था। लालाजी जिला गुजरांवाला के कानेवाली ग्राम के निवासी थे। इस समय की यह घटना है। उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। वह स्टेशन मास्टर से पूछ कर अपने ग्राम चले गए। दैवयोग से उसी दिन एक रेलवे का अफसर आ गया। उसने और बातों के साथ - साथ यह भी पूछा कि लाला गंगाराम जी कहां हैं ? स्टेशन मास्टर ने उस दिन उनकी हाजिरी लगा दी थी इसलिए कहा — यहां ही हैं। कहीं इधर उधर होंगे। बात समाप्त हो गई दूसरे दिन अपने ग्राम से आ गए ; तब उस अफसर ने इनसे पूछ लिया ,कि  आप नहीं मिले , कहां गए थे इन्होंने उत्तर दिया , मेरी माता का स्वर्गवास हो गया था , इसलिए मैं ग्राम गया हुआ था ; यहां न था। उसने कहा , स्टेशन मास्टर जी तो कह रहेथे कि आप यहां ही हैं। इन्होंने उत्तर दिया कि, उन्होंने मेरे बचाव के लिए ऐसा कह दिया था ; वास्तव में मैं अपने घर गया हुआ था ।वह अफसर इनका सत्य वचन सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। 


( २ ) एक बार लाला गंगाराम जी से लाइन क्लियर देने में विशेष भूल गई। जब उसका पता लगा , तो लाला जी से वक्तव्य मांगा गया। स्टेशन मास्टर ने इन्हें उत्तर लिखित देने को कहा। इन्होंने चार दिन पीछे लिखकर दिया कि मुझ से भूल हो गई। इस भूल के कारण दुर्घटना हो सकती थी। दुर्घटना नहीं हुई तो रेल यात्रियों के सौभाग्य के कारण नहीं हुई। अतः इस भूल से मुझे जो दण्ड दिया जाये , मैं प्रसन्नता से स्वीकार करूंगा। जब स्टेशन मास्टर ने उसे पढ़ा , तो इनसे कहा कि क्या नौकरी छोड़ने अभिलाषा है ? इन्होंने उत्तर दिया कि नहीं। तब उसने समझाया और -कुछ और लिखकर लाओ। 

        वह कागज ले गये। तीन दिन पश्चात् वही लाकर पुनः दे दिया। स्टेशन मास्टर ने कहा , यह तो पूर्व वाला ही उत्तर है। लालाजी ने कहा कि सत्य यही है ; अतः यही उतर ठीक है। झूठ कैसे लिखू ? स्टेशन मास्टर ने वह उत्तर भेज दिया। ऊपर से आज्ञा मिली कि गंगाराम की चेतावनी दे दो कि आगे ऐसी भूल न करें। स्टेशन मास्टर तथा अन्य रेल कर्मचारी आश्चर्यवन्त थे कि यह क्या हुआ। अपराध स्वीकार करने पर केवल चेतावनी दी गयी। उस अधिकारी से किसी ने पूछा कि आप छोटे - छोटे अपराधों पर अधिक दण्ड दे देते हैं , परन्तु लाला गंगाराम ने अपराध किया और इन्होंने स्वीकार भी कर लिया , तब भी आपने चेतावनी देकर छोड़ दिया। उसने उत्तर दिया कि मुझे ऐसा व्यक्ति कभी मिला ही नहीं। उसने अपराध स्वीकार किया , उसका कारण अपनी भूल बताई और उसका दण्ड लेने के लिए तैयार हो गया। लोग अपराध करते हैं , पुनः उसे न मानकर झूठ बोलते हैं। गंगाराम ने सत्य कहा , अत : उसे कोई विशेष दण्ड न दिया गया भूल सबसे हो सकती है। उससे भी हुई। 

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सद्व्यवहार
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 ( ३ ) लाला गंगाराम जी की बदली किला अबदुल्लापुर ( बिलोचिस्तान ) हो गई। वहां से फलों के टोकरे बाहर भेजे जाते थे। दस्तूरी का चलन वहां भी था, फलों वाले जब दस्तूरी देना चाहें तो यह न लें। प्रथम तो उनको सन्देह हुआ कि ये अधिक लेना चाहते हैं । परन्तु जब इन्होंने कहा , मुझे रेलवे से वेतन मिलता है उसी से मुझे वह काम करना होता है। आप जिसे दस्तूरी कहते हैं , वह रिश्वत है। तब वह चुप हो गए। एक बार स्वर्गीय पडित विश्वम्भरनाथ आदि वहां आ गए। इनके पास ठहरे। एक दिन वे एक ग्राम में फल खाने चले गए। बागबान से फल लेकर खाते रहे। उस बिलोच ने इनसे पूछा , आप यहां कैसे आए हैं ? इन्होंने उत्तर दिया — लाला गंगाराम जी स्टेशन मास्टर के पास आये हुए हैं। जब फलों से पेट भरकर ये उसे फलों का दाम देने लगे तो उसने दाम लेने से इन्कार कर दिया और बलपूर्वक कहा , जब स्टेशन मास्टर दस्तूरी तक भी नहीं लेता , तो मैं उसके मित्रों से फलों का दाम लूं , यह उचित बात नहीं। आप प्रतिदिन इस बाग से जो फल चाहें , आकर खाया करें , आप से कुछ दाम न लिया जाएगा। आप जैसे गंगाराम के मित्र हैं , वैसे ही हमारे भी मित्र हैं। 

( ४ ) उसी स्टेशन पर एक बार एक अंग्रेज रेलवे अफसर आया हुआ था, और वह प्रतीक्षा - गृह ( Wating room ) में ठहरा हुआ था। दैवयोग से उस समय एक पुरुष ओर एक स्त्री अर्थात् पति पत्नि जो बिलोच थे। वो सैकंड क्लास का टिकट लेकर जब प्रतीक्षा गृह में गए तो अंग्रेज ने उन्हें वहां घुसने न दिया। गंगाराम ने उस अंग्रेज से कहा कि यह प्रतीक्षा गृह है और प्रथम और द्वितीय दर्जे के यात्रियों के लिए है। आप इसे खाली कर दें। वह न माना। इन्होंने पुलिस द्वारा उसका सामान बाहर रखवा कर उस दम्पत्ति को ठहराया। उसके पश्चात् एक बार इन्हें सूचना मिली कि इधर डाकू आए हुए हैं , आप सावधान रहें। उस दिन किला अब्दुल्ला पर कुछ न हुआ , एक और स्टेशन को डाकुओं ने लूटा। तदनन्तर गाजियों का एक नेता पकड़ा गया। जब उसे रेल में ले जा रहे थे उसने इच्छा प्रकट की कि मैं किला अब्दुल्ला के स्टेशन मास्टर से मिलना चाहता हूं। पुलिस वालों ने स्टेशन आने पर लालाजी से कहा , वे आ गए। वह पठान बड़ी श्रद्ध से मिला और कहा कि लालाजी , आप निश्चिन्त रहें। जहां आप होंगें , वहां कोई गाजी या डाकू , जो पठान है , आपको कुछ न कहेगा। उस दिन हम आपके पास अमुक स्थान पर बैठे रहे। पुलिस वालों ने कहा , खान साहिब , लालाजी में क्या बात है ? उसने कहा कि ये देवता हैं। इन्होंने सैकण्ड क्लास टिकट वाले पठान को स्थान दिलाया। ये गरीबों के सहायक हैं , इसलिए हमने निश्चय कर लिया है कि जहां ये होंगे ; इनकी रक्षा की जायेगी। सब पठान इनके दोस्त हैं। 

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मित्रता
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 ( ५ ) जब लाला जी वजीराबाद में थे , उस समय गुजरांवाला में धर्मपाल जी आर्य बने। उस समय कालेज में पढ़ने वाले कई विद्यार्थियों ने उस शुद्धि में भाग लिया था। उनमें से एक के पिता ने रुष्ट होकर उससे कहा कि आप हरिद्वार जाकर प्रायश्चित्त करें। अन्यथा हम व्यय नहीं देंगे और आप गृह पर न आवें। इस बात की सूचना इनको दी गई , इन्होने उस विद्यार्थी से कहा कि आप पढ़ते रहें , आपका सारा व्यय मैं दूंगा। जब इस प्रकार कई मास व्यतीत हो गए , तब उसके पिता ने पता लिया कि लड़का निर्वाह कैसे करता है। जब उन्हें पता चला तो वह गंगाराम जी के पास आया और कि आप लड़के को कहें कि वह गृह पर आजाये। आर्यसमाजी अच्छे होते हैं , हमारा लड़का आर्यसमाजी हो गया तो ठीक ही है। तब उनके पिता और उस विद्यार्थी का पूर्ववत् मिलाप हो गया और अपनी इच्छानुसार पढ़ते रहे। 

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दृढ़ता 
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( ६ ) क - जब वह पठानकोट स्टेशन पर थे , उस समय आर्यसमाज मन्दिर बनवाया। जस स्थान पर जो थानेदार थे , वो बिना टिकट रेल पर आए , लाला जी ने उनसे टिकट के पैसे प्राप्त किये जब कि वो जानते थे कि यह थानेदार है। 

ख – एक बार एक अंग्रेज रेलवे अफसर आया उसके पास एक कुत्ता था , गंगाराम जी ने कहा कि कुत्ते का पास वा टिकट दो। उसने कहा कि मैं रेलवे में ही काम करता हूं। लाला जी ने कहा मैं जानता हूं कि आपके पास पास है , किन्तु मैं कुत्ते का किराया मांगता हूं , आपका नहीं। अन्त में उसे कुत्ते का किराया देना ही पड़ा। पहले थानेदार ने शिकायत कर दी कि यह आर्यसमाजी है , लाला लाजपतराय जी का साथी है। इन सब कारणों से बिलोचिस्तान बदल दिये गए। 

ग — किला अब्दुल्ला में एक बार सीनीयर सुपरिन्टेडैन्ट की धर्मपत्नी अपनी सहेलियों सहित आ गई। इन्होंने टिकट मांगा उसने कहा - जाते समय दे जाऊंगी , वह सायंकाल बिना टिकट दिये चली गई। इन्होने रिपोर्ट करदी। उस समय श्री ज्ञानचन्द मेहता और श्री गणेशदास जी विज वहां पुलिस में थे। ईन्होंने गंगाराम से कहा , आपको बदल कर यहां भेजा , यहां भी आप वैसे ही काम करते हैं। इन्होंने उत्तर दिया - आप लिखकर दिला दें , इनसे टिकट न लिया जाये , मैं न माँगूगा यह धन मेरी जेब में तो जाता नहीं , रेलवे कोष में जाता है। 

घ – एक इनके परिचित अंग्रेज ने ( जो किसी काम पर आगे जा रहा था ) इन्हे समाचार - पत्र चिह्न , कर से दिया , जहां आर्यसमाज के विरुद्ध लेख था। इन्होंने उसे पढ़ा और जब वह लौटकर आया तो अंग्रेज को आर्य पत्रिका के कुछ अंक चिह्न लगाकर दिये , आर्यसमाज की सत्यता प्रकट करते थे। इन्हें पढ़कर वह लाला जी का भक्त बन गया। इनके असली रूप को समझ गया। 

इ - एक स्पेशल ट्रैन में रेलवे अफसर उधर गए। जब रेल गाड़ी किला अब्दुल्ला ठहरी तो एजेन्ट साहिब ने पूछा , गंगाराम क्या हाल हैं ? इन्होंने उत्तर दिया , ठीक है। उसने कहा , कहां जाना चाहते हो ? इन्होंने कहा , कंधार में लाइन बना दो वहां जाऊंगा। उसने कहा हम तुम्हें पंजाब  भेजना चाहता है । ये बोले , आर्यसमाजी होने से मुझे , पजाब से यहां भेजा था, अब तोमैं पहले से भी अधिक आर्यसमाजी हूँ। पर आप मानते हैं ( Yes , we want Arya Samajist for that placc) ( हाँ हम उस स्थानक लिए आर्यसमाजी ही चाहते हैं। ) तब वो अमृतसर स्टेशन पर बदल दिये गए। 
इनके काम से प्रसन्न होकर अमृतसर का माल उतारने और चढाने का ठेका भी इन्हें ही दिया गया था। 

( ७ ) एक बार लाहौर के आर्यसमाजी , जिन में इनके सुपुत्र लाला फकीरचन्द जी स्वर्गीय पं० भूमानन्द जी , पं० परमानन्द जी आदि अनेक सज्जन थे , गुरुकुल कांगड़ी जा रहे थे। अमृतसर स्टेशन पर एक अंग्रेज रेल अफसर उस डिब्बे में और आदमी बिठाने लगा। वहां प्रथम ही भीड़ थी। भूमानन्द जी ने विरोध किया उसने भूमानन्द को उतार दिया। लाला जी को सूचना दी गई ये आगए। यह गाड़ी तो चली गई , इन्होंने भूमानन्द जी की जमानत करवाकर फ्रंटियर मेल से उन्हें भेज दिया , वो सहारनपुर अपने साथियों से जा मिले। दोनों पक्षो ने अभियोग किया जिस समय उस अफसर को पता लगा कि इस अभियोग में लाला गंगाराम जी साक्षी होंगे , वह इनके पास आया और कहा कि मेरा उनसे समझौता करा दो क्योंकि अमृतसर में सब आपको सत्यवक्ता जानते हैं आपकी साक्षी से वह दोषी सिद्ध न होकर मै ही दोषी बनूंगा। इन्होंने समझौता करबा दिया। देश वासियों को स्वर्गीय ला० गंगाराम जी की जीवन की घटनाएं पढ़कर उन पर विचार करना चाहिए। जैसे की वो थे वैसे ही दृढ़ आर्य , सत्यवक्ता तथा कर्त्तव्यपालक बनने का प्रयन्न करना चाहिए।

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