Monday, May 17, 2021

मास्टर अमरसिंह जी का गायत्री मंत्र


अनोखी घटना सोनीपत के रोहणा गांव की 
मास्टर अमरसिंह जी का गायत्री मंत्र 
लेखक :- स्वामी स्वतंत्रानन्द जी 
प्रस्तुति :- सहदेव समर्पित 

        प्रिय पाठकवृन्द!!  वर्षों पुरानी घटना है। जिला सोनीपत में एक सज्जन मास्टर अमरसिंह के नाम से प्रसिद्ध थे। वह ग्राम रोहणा के निवासी थे। सोनीपत से जो सड़क खरखोदा को आती है, खरखोदा से उसकी दो सड़कें होगई हैं, एक रोहतक को जाती है दूसरी सांपला को जाती है। जो सड़क सांपला जाती है। रोहणा उस सड़क पर खरखोदा से लगभग ३ मील की दूरी पर होगा। मास्टर अमरसिंह जी प्रथम पटवारी थे, फिर नार्मल पास करके स्कूल मास्टर हो गये। उनके विषय में मुझे किसी समय एक सज्जन ने कहा,कि उनको एक गायत्री मन्त्र आता है जो इस गायत्री से भिन्न है, और उससे उसे लाभ भी हुआ है। जब मैं पिछली बार जिला रोहतक के ग्रामों में भ्रमण कर रहा था, उस समय मैं रोहणा भी गया। वहां मास्टर अमरसिंह जी भी मिले। मैंने उनसे पूछा, कि मैंने सुना है, आपको कोई गायत्री याद है, जिसका पाठ आप करते हैं, वह क्या है ? उसने गायत्री की सारी घटना सुनाई जो बड़ी मनोरञ्जक है उसने कहा, मेरी मां भूत, प्रेत को बहुत मानती थी। उससे भूत प्रेत के संस्कार मुझे भी मिले, और बाल्य काल में मैं भूतों से खूब डरा करता था। मैं प्रत्येक से यह प्रश्न किया करता था, भूत प्रेत किसे दुःख नहीं देते हैं। किसी ने कोई विशेष उत्तर न दिया। जिस प्रकार ऋषि दयानन्द जी को किसी ने मौत की औषधि का योग बताया था, उसी प्रकार मुझे भूतों की चिकित्सा एक सज्जन ने गायत्री मन्त्र बताया। और उसने कहा पंडितों को गायत्री मन्त्र आता है। आप किसी पंडित से गायत्री मन्त्र सीखलें, जहां गायत्री पढ़ी जाय; भूत प्रेत वहां से भाग जाते हैं। जिसे गायत्री याद हो, उसके पास भूत नहीं आते हैं। मास्टर जी ने बताया कि वह उस समय खरखोदा मिडिल स्कूल में पढ़ाते थे। वहां एक पंडित अध्यापक था, ये उसकी शरण में गये और गायत्री सिखाने की प्रार्थना की। उसने उत्तर दिया आप "जाट" के लड़के हैं, आप को गायत्री कैसे सिखाएं ? मैंने आग्रह पूर्वक पुनः प्रार्थना की, साथ ही भूतों के डर की बात भी कही और अपने पर दया करने की विनय की। तब पण्डित जी ने कहा, अच्छा हमारे घर में छः मास सेवा करो, तब आपको गायत्री सिखा देंगे। इन्होंने प्रसन्नता से मान लिया, और सेवा आरम्भ कर दी। झाडू लगाना , चौंका देना , पानी लाना , इत्यादि सेवा प्रारम्भ की। जब आठ मास व्यतीत हो गये तब प्रार्थना की, किन्तु पण्डित जी अभी पसीजे नहीं। पुनः निवेदन , अनुनय , विनय किया। इस समय उनकी धर्मपत्नी इनके पक्ष में हो गई। उस देवी ने पण्डित जी को गायत्री सिखाने पर बाध्य किया। इस पर पण्डित जी ने यह प्रस्ताव कर दिया, कि अमरसिंह प्रथम ५ ) भेंट दें तब गायत्री सिखायी जायगी।

        अमरसिंह निर्धन परिवार का बालक था, उसके लिये ५ ) देना सुसाध्य न था। इसने झूठ बोलकर कि स्कूल में ५ ) चाहिय, कुछ झगड़ा करके, कुछ रूठ कर माता से ५ ) लिये और प्रसन्नता पूर्वक पण्डित जी के पास जाकर ५ ) भेंट के दे दिये। अब पण्डित जी विवश थे। उनके सब प्रस्ताव पूरे कर दिये गये थे। इसलिए उन्होंने कहा, कल नहा कर आना गायत्री सिखायेंगे। यह दूसरे दिन गये, और पण्डित जी ने गायत्री की दीक्षा दी। जिसका पाठ निम्न प्रकार था। 

   " राम कृष्ण बलदेव दामोदर श्री माधव मधुसूदरना। 
   काली मर्दन कस निकन्दन देवकीनन्दन तव शरना। 
  एते नाम जपेनिज मूला जन्म जन्म के दुःख हरना। " 

          अमरसिंह ने यह कंठस्थ कर लिया, जहां कहीं भूतों का भय हो, ये इसी का पाठ मुख में करते। और पण्डित जी ने किसी को बताने और सुनाने का निषेध किया था, अतः किसी को न बताते। अब इनको भूत प्रेत का भय कहीं भी न था। इन्होंने बालकों को कहना आरम्भ किया, कि वह भूत प्रेत से नहीं डरते हैं। तब साथियों ने परीक्षा का अवसर ढूँढना प्रारम्भ किया। एक दिन भेड़ वालों की एक भेड़ ने बाहर बच्चा जना। जिस का उनको पता न लगा। भेड़ तो भेड़ों के साथ ग्राम में आगई। किंतु बच्चा बाहर ही रह गया, रात होने पर बच्चा ममयाने लगा। किसी ने वह शब्द सुना। उसनेकहा भूत बोलता है। उसने ग्राम में बात की। बालकों ने अमरसिंह को कहा, कि चल बाहर भूत है। यह वहां जाने को तैय्यार हो गया। बालक ग्राम के बाहर तक इसके साथ गये, किन्तु जब भेड़ के बच्चे का स्वर सुना तो सब वहां ठहर गए। अब आगे यह अकेला बढ़ा और गायत्री का पाठ प्रारम्भ कर दिया। जहां से आवाज आती थी, वहां जा पहुँचा। देखा तो भेड़ का बच्चा है। गायत्री का जाप करते २ उसके पास जाकर उसे उठा लिया और गोद में लेकर लौटा। जब साथियों के पास आया, उन्होंने सम्मति दी, फैंक दे अन्यथा यह मार देगा, इसे अपनी गायत्री पर विश्वास था, गायत्री पढ़ता रहा और उसे उठाए हुए भेड़ वालों के गृह पर पहुँचा। उन्होंने कहा यह तो हमारी भेड़ का बच्चा है, इससे इसका उत्साह बढ़ा और भूत भागने लगे। 

         एक बार फिर पड्यन्त्र हुआ। कुछ लोगों ने अमावस्या की रात को जंगल में एक वृक्ष पर कुछ वस्तु बांधी। जिससे थोड़ी २ देर पश्चात आग गिरे और एक मनुष्य को लोह पात्र में आग देकर वृक्ष पर बिठाया। यह प्रबन्ध ' करके इसे कहा गया कि जंगल में अमुक वृक्ष पर भूत आग बरसाते हैं। यह जाने को उद्यत होगया। लोग इसके साथ गये। जब समीप पहुँचे तब सब रुक गये। यह अपनी गायत्री पढ़ता हुआ आगे बढ़ा। वृक्ष से आग गिरती है, मन में भय है और गायत्री पर विश्वास है। वृक्ष के नीचे जाकर ऊपर को इंटें मारनी प्रारम्भ की। एक ईंट आग के बर्तन में लगी, वह नीचे आ गिरा। यह आग देखकर डरा, किन्तु गायत्री के भरोसे फिर ईंटें मारी। एक दो उस पुरुष के भी लगी जो ऊपर बैठा था। वह बोल पड़ा। यह उसे पकड़ कर ग्राम में लाया। अब तो इसने भूतों पर पूर्ण विजय प्राप्त करली, और अपनी गायत्री का महत्व समझा।

          पंडित शम्भूदत्त जी और पं० बाल मुकुन्दजी रोहणा प्रचारार्थ गये। भाषण के पश्चात् घोषणा की। यदि ब्राह्मण गायत्री सुनाये तो १ ), बनिया सुनाये तो २ ) , जाट सुनाये ३ ), अन्य कोई सुनाये ४ ) देंगे। कोई न उठा। यह उठा और कहा गायत्री तो कंठस्थ है गुरु की आज्ञा है, किसी को सुनानी नहीं। शम्भूदत्त जी ने कहा सुनादे, जो पाप होगा मुझे होगा। इसने अपनी गायत्री पढ़ कर सुना दी। शम्भूदत्त जी ने इसे ४ ) दिये और कुछ नहीं कहा। इसने वह ४ ) अपनी मां को दे दिये। उसने पूछा कहां से लाया ? इसने सारी बात बतादी। मां ने कहा पंडित जी को कल के लिए निमन्त्रण दे आओ। यह निमन्त्रण कहने गया। पंडित जी ने कहा, -आप जाट हैं, अपनी माता से कहें वह भोजन बनादे हम खालेंगे। ऐसा ही हुआ। जब पंडित जी भोजन खा चुके तो इसकी माता ने इसके हाथ से ५ ) दक्षिणा दो, और कहा हम ब्राह्मण के रुपये नहीं लेते हैं। तब पंडित जी ने इसे समझाया , जो तू पढ़ता है यह गायत्री तो नहीं यह पंडित का अपना मनघड़न्त पाठ है। तब इसको

 " रामकृष्ण बलदेव दामोदर श्री माधव मधुसूदरना।
 काली मर्दन कंसनिकन्दन देवकी नन्दन तव शरना। 
एते नाम जपे निज मूला जन्मजन्म के दुःख हरना। " 

      के स्थान पर ' ओ ३ म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ' यह सच्चा गायत्री मन्त्र सिखाया। मास्टर अमरसिंह ने मुझे कहा, भूत प्रेत तो उस मनघड़न्त गायत्री ने भगा दिये थे, और सब डर भी उतर गया था, किन्तु तब पण्डित शम्भूदत्त जी ने असली गायत्री नहीं बताई थी, और जब ठीक २ समझाया न था, तब तक तो उस असत्य गायत्री को सत्य गायत्री मानकर ही सब व्यवहार किया करता था। सच्ची गायत्री के ज्ञान से जो रस आया है, वह वर्णनातीत है। वह उस कल्पित से कभी न मिला था। इसी प्रकार संसार में अनेक बातें अब भी ऐसी ही हैं। भगवान् इस अविद्या को दूर करें और जनता सत् को सत् और असत् को असत् जानें।

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