Tuesday, March 30, 2021

पंडित लेखराम जी के अमृत विचार




 पंडित लेखराम जी के अमृत विचार 


#डॉ_विवेक_आर्य 



आर्यसमाज के अमर बलिदानी पं लेखराम अपने विपक्षी पक्ष को अपनी बुद्धिमत्ता से निरुत्तर कर देते थे। उनकी पुस्तक 'तकज़ीब बुराहिन अहमदिया' अर्थात अहमदी युक्तियों का खंडन जो उन्होंने मिर्जा गुलाम अहमद की आर्यसमाज के विरोध में लिखी गई पुस्तक का प्रति उत्तर था। इस पुस्तक में पंडित जी ने मिर्जा द्वारा उठाये गए आक्षेपों का बहुत खूबी से समाधान किया था। यह पुस्तक मूलतः उर्दू में प्रकाशित हुई थी। इसका हिंदी में अनुवाद मास्टर श्री लक्ष्मण जी आर्योपदेशक ने किया था। पाठकों के ज्ञान अर्जन हेतु इस कालयजी पुस्तक में से कुछ समाधान प्रस्तुत है। 


1. एक दिन कादियान में मिर्जा साहिब के मकान पर पं जी  आर्यसमाज के अन्य सदस्यों के साथ पहुंच गए। प्रकरण  भविष्यवाणी का था।  पं जी ने मिर्जा को खुली चुनौती दी कि वो कादियान में एक वर्ष तक रहेंगे। मिर्जा इस दौरान अपने दावे के अनुसार चमत्कार दिखाकर अपने दावे को सिद्ध करे। इसी दौरान बातचीत करते हुए 'ख्वारीके आदात्' शब्द की व्याख्या होने लगी। पं जी ने कहा की इसका अर्थ स्वाभाव को तोड़ने को कहते हैं। चाकू में काटने का स्वभाव है, और आग में जलाने का, वृक्ष में अचलता और मनुष्य में  चलने का स्वभाव है  इत्यादि। आप यदि उन स्वभावों को ईश्वर की बरकत से तोड़ दें तब मैं मुसलमान हो जाऊँगा। अन्यथा आप आर्य हो जावें और मिथ्या प्रतिज्ञाओं से हट जावें। मिर्जा ने दावा किया कि क़ुरानी परिभाषा में इस शब्द के यह अर्थ नहीं हैं। लेखक ने कहा कि यह शब्द ही क़ुरान में नहीं है अन्यथा दिखाओ कहाँ है। मिर्जा अपनी बात पर अडिग रहे। पं जी ने अपने थैले से क़ुरान निकाल कर उसी समय सामने रख दिया और कहा कि खुदा के वास्ते निकालिये। मिर्जा कुछ देर तक पन्ने पलटता रहा पर वह शब्द क़ुरान में नहीं मिला। मरता क्या न करता।  मिर्जा ने बोला मैं अपनी प्रतिज्ञा वापिस लेता हूँ। पं जी के पांडित्य का इस प्रकरण से हमें पता चलता है। 


2. मिर्जा गुलाम अहमद ने वेदों के ईश्वर पर आक्षेप लगाया कि इस्लाम का अल्लाह दुनिया में छा रहे अंधेरों को बार बार दूर करने के लिए इलहाम (ईश्वरीय वाणी) भेज देता है।  जबकि वेद का ईश्वर एक ही बार ज्ञान प्रकट करके कुछ ऐसा सोया कि फिर ना जागा। कुछ ऐसा खिसका कि फिर ना आया। उसके पास जो ज्ञान था वो वेदों पर ही खर्च कर दिया। फिर हमेशा के लिए खाली हाथ हो गया। इससे तो वेद का ईश्वर अशक्त सिद्ध हुआ। 


पं जी ने मिर्जा के आक्षेप का उतर देते हुए लिखा कि  परमात्मा शुद्ध और एकरस है। उसी प्रकार से उनका दिया हुआ ज्ञान भी शुद्ध और परिवर्तन रहित होना चाहिए। न कि त्रुटिपूर्ण और परिवर्तनशील। पूर्ण और शुद्ध को बदलने की आवश्यकता होती है। अपूर्ण और दोषयुक्त का पूर्ण और सर्वज्ञ से प्रकट होना असंभव है। सृष्टि के आदि काल में चार ऋषियों से लेकर श्री राम , श्री कृष्ण से लेकर मूसा, मसीह के समय से लेकर वह ज्ञान आज भी वही है। सूर्य सदा विद्यमान रहता है, मगर आंखें खोलना और पक्षपात या आवरण रहित होकर देखना और विचार करना तथा लाभ उठाना योग्यता पर निर्भर है। 

   जो आक्षेप तुमने वेद पर लगाया है वो क़ुरान पर भी लागु होता है। क़ुरान के खुदा के पास जो ज्ञान की पूंजी थी।  वह क़ुरान में बाँट चूका। और फिर कयामत अर्थात प्रलय तक खाली रह गया और उसके मुख पर मुहर लग गई। मुहम्मद के पश्चात किसी रसूल को भेजने की उसमें शक्ति न रही।  परिवर्तन की आवश्यकता भूल में होती है और बढ़ाने की आवश्यकता अपूर्ण में, जहाँ अशुद्धि हो वहां से दूर रहना पड़ता है और जहाँ भूल हो वहां से सावधान होना। फिर इलहाम के बारबार परस्पर विरुद्ध और अपूर्ण भेजने की क्या आवश्यकता थी? यह ईश्वरीय नियम है या सरकार के नियम। पर ऐसा प्रतीत होता है कि बार बार इलहाम भेजने से आपको इलहामी (ईश्वर द्वारा प्रेरित), मुजदद (सुधारक), मसीह सानी (ईश्वर दूत), मुरशिद (पीर), छोटा नबी आदि कौन कहे और चढ़ावे किस को चढ़े। 


 3. मिर्जा ने वेदों के तीन या चार होने पर पंडितों के ऐसा कथन होने का आक्षेप किया।  तो पं जी ने बड़ी विद्वता से उसका उत्तर दिया।  पं जी लिखते है कि पंडित चार प्रकार के  होते हैं-


1) वह अनपढ़ पंडित जो शनिवार को तेल एकत्र कर लोगों को लुटता है और खुद मौज करता है।  ये लोग मूर्खों के समाने पंडित है और किसी भी दशा में विश्वास के योग्य नहीं है। 


2) ब्राह्मणों के वो बेटे-पोते जिनके बाप दादा किसी समय पूर्ण विद्वान थे। कितनी खुद नौकरी, दुकानदारी आदि कार्य करते है पर संस्कृत से शून्य हैं। इनके पूर्वजों के कारण मुर्ख लोग इनको पंडित समझते है जो सर्वथा भूल और अज्ञान है। इनका प्रयोग कोई भी धन आदि प्रलोभन देकर अपने पक्ष में साक्षी के लिए करता हैं।  जैसे मिर्जा साहिब संस्कृत से अनभिज्ञ ऐसे लोगों की गवाही की ओर संकेत करते है। मिर्जा ऐसे लोगों से अपने आपको कादियानी परमेश्वर सिद्ध करने में लगे है। 


3) वे लोग जो विद्या की योग्यता तो रखते हैं, किन्तु उदर पूर्ति के लिए गलत पक्ष का साथ देते हैं। पंडित होने पर भी महामूर्ख के काम करते हैं।  जैसे अकबर के समय  पंडितों ने धन लेकर 'अकबर सहस्त्र नाम' और 'अल्लोपनिषद' या 'अल्लाह सूक्त' रचकर अकबर को पैगम्बरी की बधाई पहुंचाई थी। अँधा पिसे धोये धान की कहावत को चरित्रार्थ करते हुए बादशाह हुए उसके खुशामदी वजीरों ने इन्हें मालामाल कर दिया। अकबर के समय यह कलमा भी बनाया गया था कि लाइला इल्लिल्लाह अकबर ख़लीफ़तुल्लाह।  सलाम अलेकुम के स्थान पर अल्लाह अकबर तथा जल्ल जलालहु प्रचलित किया गया। 


4) वे लोग हैं, जो ज्ञान और महत्व से पूर्ण, सच्चाई और सत्य भाषण में अद्वितीय हैं।  लोभ और लालच से परे ईर्ष्या और द्वेष से किनारे, जुठ से घृणा करने वाले और सत्य से प्रेम रखने वाले हो। सत्य शास्त्रों में इन्हीं को पंडित बताया गया है। जिसको आत्मज्ञान आलस्य से रहित हो, सुख-दुःख, मान-अपमान, लाभ हानि, स्तुति निंदा, हर्ष-शोक कभी न करे। धर्म में ही नित्य निश्चित रहे। जिस के मन को विषय सम्बन्धित वस्तु खींच न सके। वह पंडित कहलाता है। 



4. मिर्जा ने आक्षेप किया कि आज वेद संसार में कहाँ प्रचलित है? वेद के नाम पर तो जड़ पूजा जैसे मूर्तिपूजा, गृह पूजा, सूर्य आदि की पूजा आदि बहुदेवता पूजा नजर आती हैं। सारा हिन्दू समाज इसी में डूबा हुआ है। 


पं जी ने उत्तर दिया कि वेदों से समस्त संसार में एकेश्वरवाद फैला। जो मिर्जा ने आक्षेप किये है वः वेद की शिक्षा न होने का परिणाम हैं और वेद विरुद्ध चलने के कारण। हिन्दू मुसलमानों की अपेक्षा की अपेक्षा कहीं अधिक अच्छे है। मुसलमानों में देखो कहीं कोई मुहम्मद पूजा, अली पूजा, गौस आजम की पूजा, पीर पूजा, कब्र पूजा, सरवरपरस्ती, मदीना परस्ती, काबा परस्ती, करबला परस्ती, तक़लीद परस्ती, किताब परस्ती, संग अस्वद परस्ती, जमजम परस्ती, मुइनुद्दीन परस्ती, ताजियां परस्ती, आदम परस्ती, भूत -जिन्न परस्ती करता दिखता है। सारांश यह है कि मुसलमानों में अज्ञान और अविद्या क़ुरान के होते हुए कहाँ से फैली?  मिर्जा साहिब पहले अपनी चारपाई के नीचे लाठी फेर लो फिर किसी पर उँगली उठाना। 


5. पं जी को पंजाब के एक प्रसिद्ध रईस रेल में यात्रा करते हुए मिले। उन्होंने पं जी को कहा कि स्वामी जी बड़े ऊँचे दर्जे के महात्मा और सत्य कर्म परायण थे। उन्होंने स्वामी जी के उपदेश से ये 3 लाभ बताये-


1) मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि ईश्वरीय न्याय के आगे सिफारिश ठग विद्या है , वहां न कोई सिफारिश है और न ही कोई वकील। अब में सच्चे हृदय से मानता हूँ कि सत्य कर्मों के बिना किसी भी प्रकार से मुक्ति नहीं हो सकती। 


2) आत्मा का अनादि होना भी उन्हीं की कृपा से मेरे मनोगत हुआ। और मेरा पूर्ण विश्वास हुआ कि यदि आत्मा का अनादि होना न माना जावे, तो खुदा पर उनके उत्पन्न  करने की आवश्यकता अनिवार्य है, जो परमेश्वर को जीव का मोहताज बनाती है। उत्पन्न करने से उसके सारे गुणों की अनादिता हाथ से जाती रहती है और न कारण उत्पन्न करने की आवश्यकता को सिद्ध करता है। 


3) आवागमन अर्थात पुनर्जन्म पर भी मेरा स्वामी जी  विश्वास हो गया। बिना आवागमन के सैकड़ों प्रकार के आक्षेपों से जो तर्क उठते हैं किसी भी प्रकार से परमेश्वर की सत्ता को शुद्ध और पवित्र सिद्ध नहीं करते। इसलिए पुनर्जन्म का सिद्धांत ठीक है और उसको न मानने वाला ईश्वर को अत्याचारी ठहराता है।  इसके अतिरिक्त मैंने मांस भक्षण भी छोड़ दिया। 


यह था स्वामी दयानन्द के धर्मोपदेश और तर्कों का प्रभाव। 


6. मिर्जा गुलाम अहमद चमत्कारी होने का दावा किया करता था। पं लेखराम ने अपनी पुस्तक में उनके चमत्कारों के दावों की बखूबी पोल खोली है। घटना 2 दिसंबर 1885 की है। कादियान निवासी बिशनदास को बुलाकर कहा कि मुझे तुम्हारे विषय में इलहाम हुआ है कि तू लड़के पढ़ाता है और नाम तेरा अजीज उद्दीन है, परिणाम यह है कि तू एक वर्ष तक मुसलमान हो जायेगा। नहीं तो मर जायेगा। बिशनदास ने पूछा कि यदि यह बात अवश्य होने वाली है, तो मेरा क्या वश है।  किन्तु मैं आप से परामर्श करता हूँ कि मेरा मरना अच्छा है या मुसलमान होना। मिर्जा ने इलहामी भाषा में कहा कि मुसलमान होना। एक दो दिन बाद बिशनदास का मिर्जा से मिलना हुआ तो मिर्जा ने फिर कहा कि मुझे स्वप्न आया था और स्वप्न पत्र निकाल कर दिखाया जिसमें लिखा था 'जूद बमीरद या मुसलमान शूअद' अर्थात कि जल्दी ही मुसलमान होगा या मरेगा। इसलिए तुम अपना प्रबंध करो अन्यथा मेरा स्वप्न अवश्य सत्य होगा। बिशनदास यह सुनकर खूब घबराया। संयोग से उसकी मुलाकात पं लेखराम जी से हो गई। उन्होंने उसे समझाया कि यह केवल धोखेबाजी और चालाकी है और उसे आर्यसमाज के सिद्धांत समझाये। वह आर्यसमाज का सदस्य बन गया और खुलम-खुला मिर्जा का मुकाबला करने लग गया। मिर्जा हाथ मलता रह गया क्योंकि चिड़िया उसके हाथ से निकल गई। एक वर्ष ऐसे ही निकल गया। मिर्जा ने अनेक पत्र बिशनदास को भेजे पर वो उनके काबू में नहीं आया। पाठक इससे अनुमान लगा सकते है कि मिर्जा के कार्य करने की शैली क्या थी?


7.  पं लेखराम आर्यसमाज के सदस्यों के साथ मिर्जा के मकान पर गए। मिर्जा ने उन दिनों अपने चमत्कारों के अनेक दावे किये थे। मिर्जा ने शेखी बघारते हुए कहा कि मुझे फरिश्ते दिखाई देते है। पं जी ने कहा कि क्या सच कहते हो? मिर्जा ने कहा-हाँ। पं जी ने कागज़ पर पेंसिल से ओ३म् अक्षर लिखकर अपने हाथ में रख लिया कि कृपा करके फरिश्तों  पूछ कर बताओ कि मैंने कौन सा अक्षर लिखा है। कुछ समय तक मुंह में मिर्जा गुनगुनाता रहा। फिर बोला इसे किसी और स्थान पर रखो। पं जी ने अपनी जेब में रख लिया। मिर्जा कुछ काल तक बनावटी हरकतें करता रहा। पर कुछ बतला न सका और लज्जित हुआ। मिर्जा के ऐसे कल्पित दावों की पं जी ने बहुत पोल खोली थी। 


पं जी कि पुस्तक में अनेक ऐसे संदर्भ है।  स्वाध्याशील पाठक उन्हें पढ़कर अपना ज्ञानार्जन कर सकते है। 

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