Thursday, March 18, 2021

नोआखाली के दंगे और गाँधी जी






 


नोआखाली के दंगे और गाँधी जी 

#डॉ_विवेक_आर्य 

10 अक्टूबर 1946 का दिन है। अविभाजित बंगाल के नोआखाली में 80% मुस्लिम बहुल जनसंख्या वाले प्रान्त में 20 % हिन्दू अल्पसंख्यक जनसंख्या पर मजहबी कहर बरपाना आरम्भ कर दिया। हिन्दुओं की घर संपत्ति लूट ली गई। हज़ारों की संख्या में उन्हें मार डाला गया। महिलाओं की इज्जत लूटी गई। अनेकों का धर्म परिवर्तन कर उन्हें जबरन मुसलमान बनाया गया। हिन्दू भाग कर बंगाल की राजधानी कोलकाता आने लगे। हिन्दुओं की लाश उठाने वाला तक कोई नहीं बचा था। महात्मा गाँधी एक समय कहते थे कि भारत का विभाजन उनकी लाश पर होगा। कोलकाता और नोआखली के दंगों के समय जब हिन्दू समाज द्वारा प्रतिक्रिया होने लगी तो वो अनशन पर बैठ गए। नोआखली का दौरा किया मगर दंगे के मूल कारण जिन्नाह और उसके जिगरी सुहरावर्दी को दो कड़वे बोल भी न बोले। पाकिस्तान से आये हिन्दुओं को खाली मस्जिदों में रुकने का विरोध किया। मुसलमानों को भारत से न जाने के लिए अनुरोध किया। 

6 नवंबर, 1946 को पूर्वी बंगाल के एक राहत शिविर से मिस मयूरील लेस्टर ने लिखा-

'महिलाओं की दशा सबसे दयनीय थी। अनेक महिलाओं की आँखों के सामने उनके पतियों को मौत के घाट उतार दिया गया और उनका निकाह  उनके पति के हत्यारों से कर दिया गया। उन महिलाओं की ऑंखें पथरा गयी थीं। यह नैराश्य नहीं था। यह तो निरी कालिमा थी। ... जीवन रक्षा के लिए हज़ारों लोगों को इस्लाम ग्रहण करना पड़ा और गोमांस खाना पड़ा। ... हिंसा और आगजनी के इस भीषण कुचक्र के बारे में एक बात निश्चयपूर्वक कही जा सकती है कि यह ग्रामीणों का सहज , स्वत:स्फूर्त विपल्व नहीं था।'  

वी पी मेनन ने लिखा कि यह मुस्लिम लीग द्वारा संचालित एक संगठित आक्रमण था और प्रशासी अधिकारीयों ने इसकी अनदेखी की। आक्रमणकारियों के पास बंदूकें तथा अन्य घातक हथियार थे। सड़कों के गड्ढे कर दिये गये थे। संचार के अन्य साधनों को तोड़-फोड़ दिया गया ताकि किसी भी प्रकार का संपर्क स्थापित न हो सके। 

आचार्य कृपलानी अपनी पत्नी सुचेता कृपलानी के साथ उपद्रवों से त्रस्त ग्रामों में गये तो सुचेता कृपलानी अपने साथ पोटैशियम साइनाइड का कैपसूल ले जाना नहीं भूली /वहां से लौटकर वे गवर्नर और हिन्दू महिलाओं के बड़े पैमाने पर अपहरण की चर्चा की तो गवर्नर ने धृष्टता से उत्तर दिया- इसमें अस्वाभाविक क्या है? हिन्दू महिलाऐं मुस्लिम महिलाओं से अधिक सुन्दर होती ही हैं।  यह सुनकर कृपलानी तिलमिला उठे। उनके मन में उठा कि गवर्नर को धुन डाले। 

इस हत्याकांड के विरोध में 26 अक्टूबर , 1946 को हिन्दुओं ने काली दीवाली शोक दिवस के रूप में बनाने का निर्णय किया। 

छपरा में एक स्थानीय मुस्लिम नेता ने अपने अनुगामियों को भड़काया कि वे अपने घरों में  'हर्ष मनायें'। गाँधी जी ने कहा हे भारतवासियों! आज दीपावली की प्रथा मना कर प्रसन्न होने का दिन नहीं है। आज तुम प्रसन्नता मनाने योग्य नहीं रहे। आज मर्यादा पुरुषोत्तम आम के विजय का दिवस नहीं है।  विजय-प्रसन्नता उन्हीं के साथ विदा हो चुकी है।  आज तुम पराजय दिवस मनाओ। गाँधी जी के अनुसार हिन्दू दीवाली  निषेध करके वीरों की भांति मरना सीखे। पर वह यह भूल गये थे कि दुराचारी के दुराचार को मिटाने के लिए दुराचारी को समाप्त करना भी अनिवार्य हो जाता है।  उन्होंने छत्रपति शिवाजी के काल से सीख नहीं ली जब यवन हिन्दू औरतों को उठा ले जाते थे।  तब वीर मराठे मौन रहकर अत्याचार नहीं सहते थे। वे उनके शिविरों पर यम बनकर टूट पड़ते थे।  हिंसा की बाढ़ को रोकने के लिए शस्त्र- अस्त्र की आवश्यकता होती है।  हिंसा को सहना , हिंसा को बढ़ावा देने के समान है। अत: उसका प्रतिकार करना ही अहिंसा का सर्वोत्तम उपाय-सूत्र है। जो क्षत्रीय अपने देश की रक्षा नहीं कर सकते, ईश्वर उनका सहायक कभी नहीं होता। अत्याचार न सहते हुए धर्म पर आरूढ़ क्षत्रिय ही ईश्वर के कृपा के आकांक्षी हैं। आलसी रहकर पिटते हुओं की प्रार्थना वह नहीं सुनता और न वह उन्हें उत्तान भोग प्रदान करता है, क्यों कि दिए गए अपने भोग की भी वे रक्षा नहीं कर सकते। अत: क्षत्रिय अपनी ही सीमा में रहें, ब्राह्मण का रूप , कातर बनकर अहिंसकतत्व को न अपनायें।  गाँधी जी ने यह वेद का सिद्धांत समझ लिया होता तो न मुस्लिम लीगियों का मनोबल बढ़ता और न ही हिन्दुओं की इतनी व्यापक हानि होती। पर वे तो अति अहिंसावाद के स्वपनलोक में जी रहे थे। जिसके अनुसार कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो। इतिहास इस बात का साक्षी है कि गाँधी जी द्वारा चलाया गया एक भी अहिंसक आंदोलन कभी सफल नहीं हुआ। ब्रिटिश सरकार गर्म दाल के नेताओं और वीर क्षत्रिय क्रांतिकारियों से सदा भयभीत रही। वीर नेताजी सुभाष के प्रयासों एवं नौसेना विद्रोह ने मूलत: उसे समझा दिया कि वब उसे देश छोड़ना पड़ेगा। पर अपनी पूरी जिंदगी गद्दी के लिए आतुर कांग्रेस के नेताओं ने यह स्वतंत्रता देश के विभाजन के साथ स्वीकार की। मौत के तांडव, लाखों महिलाओं के बलात्कार और हत्या, हज़ारों को अनाथ बनाकर मिली इस आज़ादी पर उस काल में देशवासी यही सोचते थे कि वे हँसे या रोये। खैर इतिहास से हिन्दुओं ने कुछ नहीं सीखा। यह 1947 से आज तक का इतिहास बता रहा है।  बाकि समझदार को ईशारा ही बहुत होता है।  

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