Sunday, July 21, 2019

दयानन्द आनन्द सागर के कुछ फड़कते पद्य

◼️दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला◼️


(दयानन्द आनन्द सागर के कुछ फड़कते पद्य)
✍🏻 लेखक - पंडित चमूपति एम॰ए॰
प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’
[ पण्डित चमूपतिजी ने ऋषि जीवन की मुख्य घटनायें भक्ति भावों में डूबकर लिखीं। इसकी भूमिका में ऋषि की शान में प्रयुक्त एक शब्द को मतांध मुसलमानी राज्य बहावलपुर सहन न कर सका। ऋषि-भक्ति को पण्डितजी न छोड़ सके। राज्य- जन्मभूमि ही छोड़ दी। स्वयं पूज्य पण्डित जी ने इस घटना पर TL VASWANI जी (ट०ल० वासवानी) को एक पत्र में यह भावपूर्ण पंक्तियां लिखीं, “The Sind brought me up and then disowned me ..... in that whole affair my consuming love of Dayananda-the writing of an Urdu biography of the Rishi in verse. ...... was my sole crime.” अर्थात् सिन्धु नदी की गोदी में मेरा पालन पोषण हुआ फिर इसने मुझे तज दिया । इस सारे घटनाक्रम में मेरा अपराध केवल महर्षि दयानन्द के प्रति मेरा अपार प्यार ही तो था । मैंने उर्दू कविता में ऋषि-जीवन रचा। बस यही मेरा अपराध था। फिर आगे लिखा, “My love of home I seem to have sacrificed.” जन्म-भू का प्यार लगता है मैंने वार दिया । इस सारे काव्य को तो हम यहाँ दे नहीं सकते। प्रत्येक घटना का शीर्षक देकर नीचे घटना का केलव अन्तिम पद्य देंगे। कहीं कहीं कुछ घटनाओं की और पंक्तियाँ भी दी गई हैं। इनमें क्या रस है, इसका वर्णन किसी की लेखनी नहीं कर सकती। गूंगा गुड़ का स्वाद कैसे बताय वाली ही बात है। आइए ! सब मिलकर झूम झूमकर सस्वर ये पद्य गायें, मन को रिझायें और आकाश को गुञ्जायें।]
▪️ वेद वाले का जन्म
वोह आया ज़मीं पर ऋषि वेद वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ शिवरात्री
किया जिसने शिवरात्रि में उजाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ जंगल को
ज़माने की आँखों में घर करने वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ संन्यास
किया जिसने संन्यास का रुतबा आला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ जोगी की मौज
हुआ पस्त चरणों में तेरे हिमाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ सच झूठ की परख
किताबों का सच्च झूठ जिसने कंगाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ गुरु का वचन
गुरु का वचन जिसने जी जाँ से पाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ ऋषि ऋण
ऋषि ऋण का जिसने फ़ना मूल डाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ वेद की झण्डी
जो देखा नहीं पाप की रुकता गंगा।
जति राज लाचार चुप साध बैठा॥
यकायक जो दण्डी हुआ मौनधारी।
तो लहरा के झण्डी पुकारी मैं वारी॥
तु उपदेश की अपने कर गंग जारी।
अभी तेरे पीछे लगी खल्क सारी॥
तुझे कहते हैं वेद की झण्डी वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ बे तलवार का बुत शिकन
बुतों को सिंघासन से ढा देने वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ पान का बीड़ा
असीरों को जिंदाँ से जिसने निकाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
न शमशीर चलती है जिस पै न भाला।
दयानन्द स्वामी! तिरा बोल बाला॥
▪️ बुढ़िया को गायत्री उपदेश
दिया वेद का सुरस्ती का नवाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ बिलखतों की चीखें
पसीने पै भारत के खूँ रोने वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ काशी-विजय
दलीलों पै काशी को जिसने उछाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ कीचड़ में कँमल
सिसकतों को दलदल से जिसने निकाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ जोगी का जलाल (तेजस्वी योगी)
कहा-माई! क्या लाई जोगी के डेरे ।
वोह बोली कि बाबा ! यह हैं पाप मेरे॥
है मुँह जिसकी इसमत से नसियाँ का काला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ ताला टूटा
वोह टूटा जो था वेद विद्या तै ताला
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ पूने का स्वाँग
किसी ने कहा दूसरे दिन ऋषि से
जलूस आज एक और निकला गली से
गधे पर चढ़ा था कोई दिल लगी से
‘दयानन्द' कहते थे उसको हँसी से
कहा इसमें इज़्ज़त है दूनी हमारी।
है नकली दयानन्द की खर सवारी॥
इवज़ गालियों के दुआ देने वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ पराए और अपने
हुए जिस पै बेगाने शैदा दवाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ लंगोट वाला
नहीं हम में तुझ जैसा लंगोट वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ हँसी
हँसी में है रंगे हिदायत निराला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ अमर आत्मा
तू है आत्मा तू नहीं मरने वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️फूलों की बर्खा
इवज़ धूल के फूल बरसाने वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ मातृ शक्ति
है नजरों में माँ जिसकी मासूम बाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ करोड़ की गद्दी
तिरी खाके पा सीमो ज़र से है आला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ यूँ ही बुत परस्ती की है नींव पड़ती
है मर कर भी जीतों के काम आने वाला।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ अमृत का प्याला
मुझे ज़हर अपने लिए अंगबी है,
मगर गम में भारत के खातिर हुजीं है।
कहा मिल के तारों ने हाँ हाँ यकीं है,
दयावान तुझ सा ज़मीं पर नहीं है॥
जो दे जहर के मूल अमृत का प्याला ।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
▪️ अमर जोत
किया जोत ने तेरी हर सू उजाला ।
दयानन्द स्वामी ! तिरा बोल बाला॥
📖 पुस्तक - विचार वाटिका (खंड - २)
✍🏻 लेखक - पंडित चमूपति एम॰ए॰
साभार - प्रो० राजेन्द्र ‘जिज्ञासु'
🔥वैचारिक क्रांति के लिए “सत्यार्थ प्रकाश” पढ़े🔥
🌻वेदों की ओर लौटें🌻
प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’

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