Wednesday, July 17, 2019

दो ईसाई पादरियों और पं० शान्ति प्रकाश में शास्त्रार्थ



*◼️दो ईसाई पादरियों और पं० शान्ति प्रकाश में शास्त्रार्थ◼️*
(आर्योदय से संङ्कलित)
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*
खबर है कि दिल्ली २२ नवम्बर, रविवार देहली के प्रसिद्ध स्थान गांधी ग्राउण्ड में दोपहर के पश्चात् २ से ५ बजे तक आर्यसमाज और ईसाइयों के मध्य एक बड़ा शास्त्रार्थ होना निश्चित हुआ । ईसाई पादरी समय पर न पहुच सके । उनकी प्रतीक्षा की गई। उनके पधारने पर ३ वजे से ५ बजे तक शास्त्रार्थ हुआ । शास्त्रार्थ की प्रधानता आर्य प्रतिनिधि के कुशल मंत्री श्री पं० रघुवीर सिंह जी शास्त्री ने की । शास्त्रार्थ में स्वामी आनन्द भिक्षुजी, प्रोफेसर रामसिंह जी, पं० जगदेवसिंह जी सिद्धान्ती एम०पी०, पं० भारतेन्द्रनाथ साहित्यालंकार आदि अनेक नेतागण उपस्थित थे ।
दूर-दूर के नगरों के लोग भी शास्त्रार्थ में उपस्थित थे । भूपाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ सज्जन भी शास्त्रार्थ सुनने पहुंचे हुए थे । उपरिथति की संख्या बहुत अधिक थी । मैदान लोगों से खचाखच भरा हुआ था ।
सर्वतः प्रथम पं० रघुवीर सिंहजी शास्त्री ने शास्त्रार्थ के नियम घोषित किये और जनता से प्रार्थना की कि वह जोश में न आएं। धैर्य से दोनों पक्षों को सुनकर सत्य और असत्य का निर्णय करें ।
शास्त्रार्थ के विषय की स्थापना पं० शान्तिप्रकाश ने करते हुए कहा कि वेद में ईश्वर की उपासना के द्वारा अपने मन को शुद्ध करके शुभ कर्मो से मोक्ष प्राप्ति के सिद्धान्तों को स्वीकार किया गया है । इस सृष्टि की रचना का प्रयोजन शास्त्रों में भोग और अपवर्ग बताकर स्पष्ट किया है कि जीवो के कर्मफल भुक्तान और मोक्ष प्राप्ति के लिए शुद्धाचरण और निष्काम कर्मो का संपादन बताया है ।
हम किसी भी मनुष्य को मुक्तिदाता नहीं मानते वेद का आदेश है कि ईश्वर का कोई प्रतिनिधि या नायाब नहीं है । किसी मनुष्य पर ईमान लाना यह मर्दुम परस्ती है । आर्य समाज इसके सख्त विरुद्ध है ।
▪️पादरीजी :- पं० जी ने जो कुछ वेदों में आर्य समाज का पक्ष रखा है वह भी ठीक नहीं, क्योंकि वेदों में अनेक देवतावाद का सिद्धान्त है। अग्नि आदि देवताओं की पूजा वेदों में भरी पड़ी है। अतः ईश्वर की उपासना यह केवल छल और धोखा है । वेद अग्नि आदि देवताओं की पूजा से भरा पड़ा है ।
आर्यसमाज अच्छे काम करता है । इसकी मैं प्रशंसा करता हूँ, किन्तु वेदों में जड़ोपासना है। ईश्वर की उपासना को आर्य लोग नहीं जानते । आर्यो को ईश्वर के भेद ज्ञात नहीं हैं ।
ईश्वर का बलिदान संसार के पापों के बदले में हुआ । यह ईश्वरजी की दया है ।
ईश्वर सर्वशक्तिमान् है । अतः वह ईसामसीह के रूप में संसार में प्रकट हुआ । ताकि संसार का त्राण करे। ईश्वर साकार भी हो सकता है ।
ईश्वर से प्रेम करने में सब का भला है । मसीह ईश्वर का रूप है । उससे प्रेम किये बिना मुक्ति नहीं हो सकती । मुक्तिदाता तो केवल प्रभु ईसामसी हैं ।
🔥 पं० जी :- वेदों में जड़ उपासना का चिन्ह तक भी नहीं, अग्नि के अर्थ प्रकाश स्वरूप हैं । परमात्मा प्रकाशकों का प्रकाशन होने से अग्नि नाम से पुकारा गया । इन्द्र, मित्र, वरुण, यम, मातरिश्वा, अग्नि आदि नामों से विद्वान लोग ईश्वर को पुकारते हैं और ईश्वर एक है। यह वेद में लिखा है ।
पादरीजी ने आर्य समाज के कार्यों की प्रशंसा की है । इसके लिए पादरी जी का धन्यवाद है । ईश्वर के भेद का रहस्य वेदों को ज्ञात नहीं, यह आपकी कोरी कल्पना है । बाइबल में ईश्वर का स्वरूप मनुष्यों जैसा बताया है । जैसे ईश्वर की पीठ, भोजन करना, मांस खाना, दुखी होना, हृदय रखना, आंखे और पलके, मुख, तंबू में रहना, कान, पाऊँ, नाक और नथने, सांस लेना, सोना, जागना, हंसना, ठठा मारना, बगल, बाजू आदि शरीर धारियों जैसे कार्यो का वर्णन भरा पड़ा है ।
पादरी जी ने कहा कि ईश्वर का बलिदान संसार ताप हरणार्थ हुआ तो ईश्वर जी बलिदान देने के लिए जब सूली पर चढ़ाये गये तो वह घबरा क्यों गये और उन्होंने परमात्मा से बार-बार चिल्ला-चिल्लाकर प्रार्थना क्यों की कि ईश्वर उनसे मौत का प्याला टाल दे । किन्तु मौत का प्याला टल नहीं सका तो वह ईश्वर भक्त कैसे सिद्ध हुए ? जब वह बार-बार प्रार्थना करके अपनी मौत नहीं टाल सके तो भक्तों का पापों से त्राण कैसे कर सकेंगे ?
इजील के प्रमाण देखो बार-बार मौत से डर कर उससे बचने की प्रार्थना कर रहे हैं। यदि वह ईश्वर थे और स्वयं बलिदान देने की इच्छा से ही उनका अवतार हुआ तो मौत से डरने का क्या अभिप्राय है ?
सर्वशक्तिमान का अर्थ यह नहीं है कि ईश्वर शरीरधारी बन जाये । सर्व शक्तिमान का अर्थ यह है कि ईश्वर अपने कार्यों में किसी दूसरे की सहायता का मोहताज नहीं ? सर्व व्यापक परमात्मा एक छोटे से शरीर में नहीं समा सकता । ईश्वर जब सृष्टि की रचना बिना शरीर के कर सकता है तो वह संसार का प्रबंध करने में भी शरीर का मोहताज नहीं हो सकता। निराकार परमात्मा कभी साकार नहीं हो सकता ।
ईसा मसीह मुक्ति दाता नहीं । वह स्वयं कहते हैं कि जो मुझे हे-प्रभु हे-प्रभु कहेगा वह ईश्वर के राज्य में कभी प्रविष्ट न होगा ।
▪️ पादरीजी :- प्रभु ईसा पूर्ण परमेश्वर और पूर्ण मनुष्य थे । आज वैज्ञानिक युग है अतः अमरीका के कुछ ईसाइयों ने ईसा को प्रभु और निष्पाप तथा मुक्ति दाता मानने से इनकार कर दिया है तो उनकी बुद्धि को विज्ञान के चमत्कार ने हर लिया है ।
कितनी ही पुस्तकों में ईसा के निष्पाप उत्पन्न होने की भविष्य वाणी लिखी हुई है । लक्षणों से यह सिद्धान्त निश्चित है।
आर्य लोग प्रेम और मुहब्बत को छोड़कर केवल निराधार को पकड़े हुए हैं ।
🔥 पं० जी :- ईसा मसीह परमेश्वर नहीं थे । उन्होंने स्वयं भी ऐसा ही माना है । इञ्जील में तो स्पष्ट लिखा है कि हजरत ईसामसीह ने कहा है कि हे मनुष्य ! तू मुझे नेक क्यों कहता है ? नेक कोई नहीं है । नेक केवल परमेश्वर है ।
इस इञ्जील की आदत से सिद्ध हो गया कि हजरत ईसामसीह अपने आपको पूर्ण परमेश्वर और पूर्ण तथा मुक्तिदाता नहीं मानते थे। वह साधु स्वभाव के थे । मैं उनका आदर करता हूं, किन्तु उनको मुक्तिदाता नहीं मानता। मुक्तिदाता तो केवल परमेश्वर है । वह माता-पिता के बिना उत्पन्न नहीं हुए थे । लूका की इञ्जील में उनकी वंशावली में स्पष्ट लिखा है कि उनके पिता यूसुफ थे ।
अमरीका में एक पुस्तक छपी है जिसमें त्रिनेटी के सिद्धान्त को इञ्जील में प्रक्षिप्त माना है । अतः विज्ञान के इस युग में अन्धविश्वास के सिद्धान्त अधिक समय तक नहीं चल सकते ।
भविष्य वाणियां भी बुद्धिवाद के विरुद्ध हैं और यह भी सिद्ध है कि किसी भी पुस्तक की किसी भविष्य वाणी में ईसामसीह का नाम स्पष्ट नहीं लिखा । लक्षणों का अभिप्राय पादरी जी को स्वयं ज्ञात नहीं । जब पादरी जी ईश्वर के स्वरूप को ही नहीं समझते तो उसके साथ प्रेम करना केवल उपहास मात्र है ।
▪️ पादरीजी :- पं० जी गलत कहते हैं। वह मौत से नहीं हुए। क्राइष्ट पर ईमान लाने वाले लोग सच्चे क्रिश्चन हैं । ईमान लाने वालों पर बड़े-बड़े चमत्कार प्रकट होते हैं ।
🔥 पं०जी :- मैंने इञ्जीलों के प्रमाणों से डरना सिद्ध कर दिया है। किसी मनुष्य पर ईमान लाना यह मर्दुम परस्ती है । यदि ईमान लाने वालो पर चमत्कार प्रकट होते हैं । तो इजील में लिखा है कि जिस व्यक्ति में ईसामसीह पर राई दाने के बराबर ईमान भी हो तो वह पहाड़ को सरका सकता है । नई-नई भाषाएं बोल सकता है । विष पीकर भी नहीं मरता । मुर्दे को जिन्दा कर सकता है ।
यदि पादरी जी अपने ईमान के जोर से मुर्दा जीवित कर दे तो मैं ईसामसीह पर ईमान लाने को तत्पर हूं । अन्यथा वह वैदिक धर्म की शरण में आ जाये ।
पादरीजी तीन बारियों में ही थक गये । उनके भाषण में आर्यो को कुछ गालियों का प्रयोग भी हुआ जिस पर जनता में कुछ शोर मचा किन्तु प्रधान सभा ने तुरन्त कहा कि पादरीजी हमारे अतिथि हैं । उनकी गालियों को सहन किया जाये । जनता में कोई क्षोभ नहीं होना चाहिए। आर्य समाज की ओर से सभ्यतापूर्वक उत्तर दिये जा रहे हैं । कोई ताली आदि न बजाये क्योंकि पादरियों को चिढ़ाना हमारा प्रयोजन नहीं है । केवल सत्यासत्य निर्णय के लिए ही यह शास्त्रार्थ रखा गया है ।
पादरीजी चौथी बारी में उठने का साहस न कर सके । वह पराजित होकर बैठ गये । एक और पादरी उठे और बोले ।
▪️ पादरीजी :- हम भारत के लोगों को पैसे से नहीं फिसलाते । प्रत्युत प्रभु की भक्ति करते हैं। जब खुदा ने देखा कि मनुष्य बिगड़ गये हैं तो तूफान भेजकर संसार को नष्ट किया । नूह ने संसार को बचा लिया । सद्दूम के लोग बिगड़ गये तब भी ऐसे हुआ ।
राईकी दाने बराबर पर ईमान रखने वाला शाम को सूरज को गिर जाकर गिरा देता है । बड़े शोक की बात है कि आर्य लोग हमारी बातों को नहीं समझते ।
🔥 पं०जी :- प्रभु की भक्ति में आपने एक मनुष्य को प्रभु मान रखा है । जो अपने आपको मौत से नहीं बचा सके । वह जीवित आसमान पर नहीं गये । देखो नोटो विव की यह पुस्तक तूफाने नूह से पहले खुदा पछताया उसके पश्चात् भी पछताया । पछताने वाला खुदा नहीं हो सकता । हजरत संसार को क्या दुष्कर्मों से बचा सकते थे जबकि बाईबल में उनके शराब पीने का वर्णन है । सद्दूम के लोगों को बचाने वाले की जीवन बाईबल में पढ़िये ।
सूर्य तो ईश्वरीय नियमों के आधीन सायंकाल को अस्त होता है। ईसाई के कहने से अस्त नहीं होता । ईसाई कह द कि वह अस्त न हो । यदि ऐसा हो जाये तो यह चमत्कार समझा जायेगा । किन्तु ईसाई ऐसा नहीं कर सकता ।
आर्य लोगों ने आपकी सारी बातों को परखा है। इञ्जील में कई स्थानो पर स्पष्ट लिखा है कि जो शुभ कर्म करता है, वह शुभ फल पायेगा । केवल ईमान लाने से मुक्ति नहीं मिल सकती है।
हजरत ईसामसीह के उत्पन्न होने से पूर्व करोड़ों खरबों लोग उत्पन्न होकर मर गये । यदि उनकी मुक्ति शुभ कर्मो से बिना ईसाई पर ईमान लाये हो गई तो आज भी हो सकती है । अन्यथा मुक्ति दाता आरम्भ सृष्टि से आना चाहिए था जिससे ईश्वर पर पक्षपात का दोष न आता।
जो बच्चे आज पैदा होकर मर जाते हैं वह ईसामसीह पर ईमान नहीं लाये तो ईश्वर ने उनको मुक्तिदाता पर ईमान लाने का अवसर क्यों नहीं दिया। यह पक्षपात का दोष ईसाई के माने हुए खुदा से हट नहीं सकता ।
शास्त्रार्थ के प्रधान पं० रघुवीर सिंहजी शास्त्री ने सब का धन्यवाद किया कि शास्त्रार्थ को पूरे ध्यान से सुना गया है । अब शास्त्रार्थ की कार्यवाही विसर्जित की जाती है । इस शास्त्रार्थ में आर्य समाज का अपूर्व प्रभाव पड़ा ।
साभार - आर्य संसार (पत्रिका)
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*

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