Tuesday, February 12, 2019

चौधरी ईश्वर सिंह गहलोत:स्वामी दयानन्द के अनन्य भक्त



चौधरी ईश्वर सिंह गहलोत:स्वामी दयानन्द के अनन्य भक्त

दीपक पर जलने का मजा ये दीपक के परवाने से पुछ, ओर क्या मजा ईश्वर भक्ति में है ये ईश्वर के दीवाने से पुछ, कौन कहता है मुलाकात नहीं होती है रोज मिलता है पर बात नहीं होती है।


आर्य समाज के दिवानों की हम बात करें तो एक से बढ़कर एक इस हरियाणा प्रदेश में है। ऐसे ही आज बात करेगें "चौधरी ईश्वर सिंह गहलोत" जी के बारे में।

चौधरी ईश्वर सिंह गहलोत जी का जन्म दिल्ली के प्रमुख नगर नजफगढ़ के पूर्व में उत्तमनगर मार्ग पर 5किलोमीटर दूरी पर छोटा सा गांव है काकरोला। पहले नजफगढ़ भी एक छोटा सा कस्बा था और काकरोला दिल्ली का देहाती गांव था, जहां गहलोत गोती जाट किसान खेती बाड़ी करके अपना निर्वाह करते थे।

इसी गांव में किसान श्री रामकिशन के घर में सन् १८८५ ई० में चौधरी ईश्वर सिंह जी का जन्म हूआ।

दिल्ली में ज्यादा समय तक मूगल सल्तनत रहने के कारण यहां पढ़ाई लिखाई उर्दू फारसी की थी बाद में अंग्रेजी वगैरह में होने लगी। चौधरी ईश्वर सिंह जी ने नजफगढ़ के स्कूल में अंग्रेजी व उर्दू के साथ सातवीं तक पढ़ाई की।

दुर्भाग्यवश उसी काल में इनके पिता श्री रामकिशन जी का देहांत हो गया। स्कूल की पढ़ाई छोड़कर बाल उम्र में ही पैतृक व्यवसाय को संभालने के लिए हल चलाना पड़ा। इनके दो भाई ओर थे बलराम और भीम सिंह। बड़ा होने पर इन्होनें खेती बाड़ी का ही काम किया। इनकी एक बहन झज्झर बादली के मध्य स्थित गांव कूकड़ोला में ब्याही थी।

कृषि के साथ साथ ईश्वर सिंह जी स्वाध्याय के द्वारा अपना ज्ञान बढ़ाते रहते थे। यह आर्य समाज के लिए नवयुग का प्रारम्भिक सुनहरी काल था। चौधरी साहब एक दिन नजफगढ़ आर्य समाज के उत्सव में प्रचार सुनने चले गए। वहां पर मास्टर नत्थू सिंह जी के भजन सुनकर वे बहुत प्रभावित हूए। और अगले ही वर्ष आर्य समाज के उत्सव पर तीन भजन चौधरी ईश्वर सिंह जी ने जनता को सुनाए। इनकी इतनी सुरीली आवाज सुनकर श्रोतागण बहुत ज्यादा प्रभावित हूए।

एक श्रोता ने तो यह तक कह दिया नत्थू सिंह यह लड़का तुमसे आगे निकलेगा। आगे चलकर ऐसा ही हूआ। उन्होने अपने गुरु रहमान से पिंगल संगीत की शिक्षा ली। वो दिल्ली के पालम गांव के थे। जो की नीलगर (मुसलमान) थे और नजफगढ़ के उर्दू मिडल स्कूल में अध्यापक थे। उर्दू फारसी के शायर थे। उनके शेर समय समय पर "रिसाला" नामक अखबार में छपते रहते थे। इन्हीं से ईश्वर सिंह जी ने पिंगल संगीत का विशेष ज्ञान प्राप्त करके अनेको दंगल जीते। जो की काव्य सम्राट कहलाये।

कुछ वर्ष बाद ईश्वर सिंह जी का विवाह श्रीमती फूलकोर से हूआ। समय आने पर ईश्वर सिंह जी एवं फूलकौर के गृहांगन में दो फूल खिले - रामस्वरुप और ओमस्वरुप। चौधरी साहब के दोनो पुत्रों ने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की और भारत सरकार के अधीन सेवा करके सेंक्शन आफिशर के पद से सेवानिवृत्त हूए।

चौधरी ईश्वर सिंह जी की एक पुत्री मोहम्मद पुर गोहाना के चौधरी राजसिंह मान से ब्याही थी जो पंचायत ऑफिसर थे।

चौधरी ईश्वर सिंह जी के समय आर्य समाज के उत्थान का सुनहरा काल था। देश की आजादी संघर्ष और बलिदान का समय था। उस समय दिल्ली लाहौर जैसे बड़े नगरों में उच्च शिक्षा का प्रबन्ध था। चौधरी बलदेव जी धनखड़ ने अपनी साथी स्व चौधरी भानीराम जी को दिये वचनानुसार रोहतक में सन् १९१३ई० में आर्य वैदिक संस्कृत वर्नाक्यूलर हाई स्कूल के चलाने का प्रबंध किया। उस समय आर्य समाज के नाम से अंग्रेज सरकार चिड़ती थी। और चौधरी छोटूराम, चौधरी लालचंद आदि ने भी स्कूल के नाम पर एतराज किया। इसीलिये सन् १९१४ में स्कूल का नाम जाट संस्कृत वर्नाक्यूलर हाई स्कूल रखा गया। इससे आर्य समाजी जाटों में मतभेद हो गया। खासतौर पर आर्य समाजी नेता चौधरी पीरुसिंह मटिंडू,चौधरी भीमसिंह कादीपुर, चौधरी गंगाराम गढ़ी कुंडल आदि ने स्कूल के नाम बदलने पर विरोध किया। अगले वर्ष चौधरी पीरुसिंह मटिंडू ने स्वामी श्रद्धानंद जी को बुलाकर गुरुकुल की स्थापना की।

स्कूल के निर्माण के लिये चौधरी ईश्वर सिंह जी ने अपने भजनो द्वारा जनता में जागृति पैदा करके पर्याप्त आर्थिक सहायता दिलवाई। इस संबंध में जानकारी बलदेव भेंट पुस्तक से पढ़ सकते हैं।

आर्य समाज के प्रचार के लिए वह युग भजनोपदेशको का था। साधारण जनता साधु महात्मा विद्वानों के उपदेश सुनने की अपेक्षा भजन सुनने रुचि रखते थे। गुरुकुल भैंसवाल में स्वामी स्वतंत्रानंद जी का उपदेश हो रहा था। कुछ काल उपदेश सुनने के बाद पश्चात जनता की आवाज आई ` बाबा बैठ ज्या चौधरी ईश्वर सिंह के भजन होण दे, तन्नै बी हलवा मांडे मिल ज्यागें'।

चौधरी साहब अपने समय के बहुत अच्छे कवि और उपदेशक थे। एक बार की बात है गांव मुंडलाणा गोहाना के पास वहां पर सांगियो का ज्यादा प्रचार होता था। एक बार दोनों ही आ गए, सांगी भी चौधरी साहब भी। सांगी बोले इन समाजियों को तो हम वैसे ही भगा देते हैं। तब तेरह दिन तक मुकाबला हूआ, चौधरी साहब ने सांगियो के ठुमके फेल कर दिये तेहरवें दिन सारे सांगी भाग खड़े हूए। और चौधरी साहब चोहदवें दिन भी प्रचार करके व विजय पताका फहराकर आए। तो यें थे आर्य समाज के दिवाने ।

चौधरी ईश्वर सिंह जी ने सत्यार्थ प्रकाश के ६ समुल्लासों का सार अपनी कविता के द्वारा सत्यार्थप्रकाश दिग्दर्शन में संग्रहीत किया है।

संध्या के शन्नो देवी, वाक् वाक् आदि मंत्रो के भावार्थ को भी आपने अपनी कविता द्वारा प्रकट किया। आपकी तर्ज पर भजन गाने वाले आपके शिष्य चौधरी रत्न सिंह जी, चौधरी सूरत सिंह जी, कूंवर जौहरी सिंह जी, जो आदि सभी स्वर्ग वासी हो चुके हैं। आप अपने समय के काव्यसम्राट थे। आपका जन्म पौराणिक परिवार में हूआ था, आपने स्वंय लिखा है -' पहले ईश्वर सिंह भी पोप था, अब वैदिक धर्म लिया है धार ' ।आपने अपने भजनो द्वारा सांगी और सत्संगियो का जमकर खंडन किया है। आप आर्य समाज के प्रारम्भिक उत्थान काल एवं आजादी संग्राम के २०शताब्दी के कवि थे। आर्य सिद्धांत, नारी शिक्षा, बाल विवाह निषेध, विधवा विवाह, गोरक्षा आदि के प्रचार में आपका विशेष योगदान रहा है।देश आजाद होने के बाद आपने एक गीत लिखा था

टेक:- हूआ राज हमारा हे सखी रंग बरसेगा।।
अंग्रेजी जाने जोगी, संस्कृत पढ़ाई होगी। हूआ वेद उजियारा हे सखी रंग बरसेगा। बन जावें आर्य असली, मिट जावें नकली फसली। दयानंद ललकारा हे सखी रंग बरसेगा।

आप ने बहनो के गीत भी गजब के लिखे हैं जिसको वर्तमान भजनोपदेशक रामनिवास आर्य जी भी बड़े चाव से गाते हैं :- वेदों का नाद बजावै हे मेरा बण्या आर्य भाई। ओर एक :- इस फैसन नै जुल्म गुजारे कर दिया देश खराब मेरे भगवान दया करिये।

सन् १९५८ई० में मात्र ७३वर्ष की आयु मै चौधरी ईश्वर सिंह जी का देहांत हो गया।

श्री चन्द्रभान जी आर्य भजनोपदेशक जींद के द्वारा बहुत ही पुरानी पुस्तक "ईश्वर सिंह की तोप" इन्होने आभुषणों की तरह संभाले रखी। वाकई धन्यवाद के पात्र हैं।

आर्य समाज के ऐसे विद्वन्मण्डलियों के द्वारा आर्य समाज चलता व फलता फूलता आया है। मैं नमन् करता हूँ ऐसे निर्भीक कवियों व उपदेशकों को। वैदिक धर्म की जय।

No comments:

Post a Comment