दिवान गिदुमल और उनकी बहादुर बेटी
सिंध की धरती पर सदैव अजेय रहने वाले हिन्दुओं को बुद्धों के विश्वासघात के कारण पहली हार मुहम्मद बिन कासिम से राजा दाहिर को मिली। अपने पिता की हार और अपने राज्य की तबाही का बदला राजा दाहिर की वीर बेटियों ने उसी के बादशाह से अपने ही सेनापति को मरवा कर लिया था। राजा दाहिर की पुत्रियां इतिहास में इस अमर बलिदान के लिए अमर हो गई। सिंध का अंतिम शासक मीर था। मीर को पता चला की उसके हिन्दू दीवान गिदुमल की बेटी बहुत खुबसूरत है। मीर ने गुदुमल के घर पर उसकी बेटी को लेने की लिए डोलियाँ भेज दी। बेटी खाना खाने बैठ रही थी तो उसके पिता ने बताया की यह डोलियाँ मीर ने तुम्हे अपने हरम में बुलाने के लिए भेजी है। तुम्हे अभी निर्णय करना है। यदि तुम तैयार हो तो जाओ। पिता के शब्दों में निराशा और गुस्सा स्पष्ट झलक रहा था। परन्तु स्वाभिमान और धर्मरक्षा से सुशोभित दिवान की बेटी न डरी न घबराई। उसने फौरन अपना निर्णय सुना दिया “आप अभी तलवार लेकर मेरा सर काट दीजिये! जाने का ही नहीं उठता।” पिता को अपनी संस्कारी लड़की से ऐसा ही उत्तर मिलने का पूरा विश्वास था।बिना किसी संकोच के पिता ने तलवार उठाई, भूखी बेटी ने सर झुकाया और बाप की तलवार ने अपना काम कर दिया। वह पिता जिसने बड़े लाड़ प्यार से अपनी बेटी को जवान किया था। एक क्षण के लिए भी न रुका। परिणाम यह हुआ की मीरों ने दीवान गिदुमल को बर्बाद कर दिया। दिवान गिदुमल और उनका परिवार इतिहास में अपने धर्म और स्वाभिमान कि रक्षा के लिए राजा दाहिर के बलिदानी परिवार के समान अमर हो गया।
1200 वर्षों में न जाने कितने घर आक्रमणकारियों ने बर्बाद कर दिए। आज भी उनकी अमर गाथा ठंडी रगों में लहू को उबाल देने वाली है। मातृभूमि और स्वाभिमान के लिए अमर बलिदान देने वाले वीरों को कोटि कोटि प्रणाम।
डॉ विवेक आर्य
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