दलित उत्थान का प्रेरणादायक संस्मरण
प्रोफेसर शेर सिंह जाने माने राजनीतिज्ञ एवं भारत सरकार के पूर्व मंत्री थे। आप जाट गोत्र से थे। आप भागपुर गांव, तहसील बेरी, जिला झज्जर, हरियाणा प्रान्त के निवासी थे। जब आप आठवीं कक्षा में थे तो उस समय की प्रचलित प्रथा के अनुसार आपका विवाह जाट गोत्र कि कन्या से तय हो गया। आपके पिताजी चौधरी शीश राम आर्य गांव के बड़े जमींदार थे। उस ज़माने में दलितों को सार्वजानिक कुँए से जल भरने की अनुमति न थी। स्वामी दयानंद द्वारा जातिवाद को मिटाने के उद्घोष से प्रभावित होकर आपके पिताजी ने अपने खेत में स्थित कुँए को दलितों के लिए पानी भरने हेतु खोल दिया। यह घटना जनवरी 1926 की है। जब शेर सिंह के ससुराल पक्ष को मालूम चला कि अपने अपने कुओं पर दलितों को चढ़ा दिया हैं तो उन्होंने आपत्ति करी। शेर सिंह जी के पिता पर रिश्ता तोड़ने का दवाब तक बनाया गया। शेर सिंह के पिता जी ने कहा मुझे रिश्ता तोड़ना मंजूर है मगर दलितों के साथ हो रहे अन्याय का समर्थन करना मंजूर नहीं हैं। अंत में शेर सिंह का रिश्ता टूट गया। मगर स्वामी दयानंद के सैनिक जातिवाद को मिटाने में कामयाब हुए। बाद में जनसामान्य ने उनकी चेष्टा को समझा और दलितों को सार्वजानिक कुओं से पानी भरने का किसी ने कोई विरोध नहीं किया।
महार दलित समाज में पैदा होकर दलितों के लिए कुँए खुलवाने वाले डॉ अम्बेडकर का नाम तो सभी राजनीतिक पार्टिया लेती है। मगर सवर्ण समाज में पैदा होकर दलितों के लिए संघर्ष करने वाला आपको कोई स्वामी दयानंद का शिष्य ही मिलेगा। आर्यसमाज के जातिवाद को मिटाने के संकल्प में भागी बने। तभी यह देश बचेगा।
डॉ विवेक आर्य
(चित्र में प्रोफेसर शेर सिंह हरियाणा में आर्यसमाज के अपने समय के शीर्घ नेता स्वामी ओमानन्द जी के साथ)
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