Tuesday, November 3, 2015

राजा का उत्तराधिकारी कौन?



राजा का उत्तराधिकारी कौन?

एक न्यायप्रिय राजा था। उसके राज्य में प्रजा अत्यंत सुखी थी। दुर्भाग्य से उन्हें कोई संतान उत्पन्न न हुई। राजा को यह चिंता हुई की उनके पश्चात उनका राजपाठ कौन संभालेगा। उन्होंने अपने मंत्री को बुलाया और यह घोषणा करने को कहा की अगली पूर्णिमा को जो नवयुवक राजमहल में पहुँच जायेगा उसे राज्य का राजा बना दिया जायेगा। राजा के इस निर्णय को सुनकर मंत्री जी ने आश्चर्यचकित होते हुए बोले। राजन अगर बहुत सारे युवक राजमहल पहुंच गए तो आप निर्णय कैसे करेंगे। राजा ने मंत्री जो को पूर्णिमा तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा.ठीक पूर्णिमा की रात को अनेक युवक राजमहल को जाने के लिए घर से निकले। रास्ते में अनेक स्थानों पर उनके मनोरंजन के लिए अनेक साधन उपलब्ध थे। कहीं उत्तम उत्तम पकवान खिलाये जा रहे थे। कहीं सुन्दर नर्तकियां नृत्य कर रही थी। कहीं पर अनेक प्रकार के खेलों का प्रबंध था। सभी युवक किसी न किसी स्थान पर रुक कर उन्हें देखने के लिए रुक गए। अंत में केवल एक युवक राजमहल पंहुचा। राजा ने उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। मंत्री ने राजा जी से केवल एक युवक के राजमहल पहुँचने का कारण पूछा। राजा ने बताया कि मैंने सभी रास्तों पर भोग के लिए अनेक साधन उपलब्ध करवा दिए थे। कोई सूरा का भोगी निकला, कोई सुन्दरी का भोगी निकला। उस नाच तमाशे को देखने में इतना मग्न हुए की जिस कार्य को करने हेतु घर से निकले थे। उन्हें वही स्मरण नहीं रहा। वे सभी भोगों के दास निकले। केवल एक युवक जिसे अपना उद्देश्य स्मरण रहा। जिसे कोई भी भोग अपने पथ से डिगा न सका यहाँ पहुंच सका। वही युवक इस राज्य का राजा बनने लायक है क्यूंकि राज्य के असीम संसाधनों का स्वामी होते हुए भी वह इनका दास नहीं है। ऐसा ही व्यक्ति राज्य करने योग्य है। राजा की बात सुनकर मंत्री को राजा के निर्णय पर गर्व एवं सही उत्तराधिकारी मिलने का संतोष प्राप्त हुआ।

वेदों में इसी सिद्धांत को बड़े सुन्दर शब्दों में बताया गया है। यजुर्वेद 35:10 में संसार को एक नदी के रूप में चित्रित किया गया है। इस नदी के तल में अनेक नुकीले पत्थर विद्यमान हैं एवं इसका वेग भी अति तीव्र है। इस वही पार कर सकता है जिसका वेग एक समान हो अर्थात वह अपने लक्ष्य से हटे नहीं। जिसकी जेबों में भारी पत्थर न हो जो उसका आगे चलना दुर्भर कर दे। अर्थात जो काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि बुराइयों से विरक्त हो। जो अन्य को साथ लेकर चलने की क्षमता भी रखता हो। ईश्वर अपने अप्रतीम सुख अर्थात मोक्ष का राजा उसी को बनाता है जो सांसारिक भोगों को पार कर अपने लक्ष्य तक बिना रुके, बिना डिगे एक वेग से आगे बढ़ने की योग्यता रखता हो। इसलिए मित्रों आये सभी मोक्ष पथ के गामी बने।

डॉ विवेक आर्य          

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