Monday, June 5, 2017

वैदिक पर्यावरण चिंतन के संरक्षण से ही संभव है विश्व पर्यावरण की सुरक्षा।



💐‘विश्व पर्यावरण दिवस’ 5 जून पर विशेष रूप से प्रकाशित  💐
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वैदिक पर्यावरण चिंतन के संरक्षण से ही संभव है विश्व पर्यावरण की सुरक्षा।
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आज ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ है। ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले इस पर्यावरण संकट की समस्या के समाधान का कोई उपाय आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पास भी नहीं है क्योंकि इसी प्रौद्योगिकी ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के इस संकट को गहराया है। चिन्ता का विषय यह भी है कि पर्यावरण विज्ञान का एक गौरवशाली इतिहास रखने वाला भारत जैसा देश भी विश्व पर्यावरण सम्मेलनों में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का सही मायने में निदान और समाधान रखने में असमर्थ रहा है।

 वेदों में पर्यावरण रक्षा का सन्देश दिया गया है। ऋग्वेद’के अनुसार भारत के प्राचीन पर्यावरण चिंतक वैदिक कालीन मंत्रद्रष्टा ऋषि मुनियों का विश्व के तमाम देशों को यह सन्देश है कि कोई भी राष्ट्र यदि अपना भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास चाहता है तो उसे सर्वप्रथम ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाले ‘ऋत’ एवं ‘सत्य’ नामक प्रकृति के नियमों तथा संसाधनों की रक्षा को अपना प्रधान ‘धर्म’ मानना होगा-

‘तानि धर्माणि प्रथमान्यासन’ -ऋग्वेद‚10.90.16

वेद हमें प्रकृति के साथ जीने तथा उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने की पर्यावरण दृष्टि प्रदान करता है इसी कारण से अथर्ववेद (12.1.12) में भूमि को माता तथा वहां के निवासी को उसका पुत्र बताया गया है - ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’।

यजुर्वेद में भी सर्वाधिक चिन्ता प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति प्रकट की गई है जिसमें कहा गया है कि हमारे राष्ट्र में समय समय पर आवश्यकता के अनुसार मेघों की वर्षा होती रहे। हमारा राष्ट्र फल‚ औषधि एवं अन्न से भरपूर होकर ‘योगक्षेम’ से सम्पन्न रहे -


“निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो नः ओषधयः। पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ।”-यजुर्वेद‚ 22.22


 यजुर्वेद के एक मन्त्र में विश्व पर्यावरण की रक्षा हेतु द्युलोक,अन्तरिक्षलोक,पृथिवीलोक और समस्त वनस्पति जगत की शान्ति हेतु प्रार्थना की गई है-

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“द्यौः शान्तिः अन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिः‚ओषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिः विश्वेदेवाः शान्तिः‚ ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।” -यजुर्वेद‚ 36.17
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विश्व पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर पर्यावरण विकृति के इन खतरनाक संकेतों के समाधान में वैदिक यज्ञ प्रदुषण की समस्या से समाधान का एक सशक्त विकल्प है। यज्ञ-हवन को आध्यात्मिक बताकर तमाम नास्तिकों द्वारा सिरे से खारिज कर देने वालों को अब स्वस्थ जीवन और प्रदूषणमुक्त वातावरण के लिए यज्ञ और हवन की शरण में जाना ही पड़ेगा। यह अब केवल ऋग्वेद में उल्लिखित प्राचीन सत्य ही नहीं है बल्कि आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसे 21वीं शताब्दी में परिक्षण की कसौटी पर कस कर फायदेमंद साबित कर दिखाया है।

एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने इस सत्य के पक्ष में वर्ष 2007 में तथ्य और प्रमाण जुटाए पर अग्निहोत्र के नाम पर बीते छह दशक से आहुतियों के असर का प्रयोग अनवरत जारी है। दूसरी ओर सिद्धार्थनगर जनपद में वेद विद्यापीठ चला रहे तेजमणि त्रिपाठी एक दशक से लोगों को यज्ञ और हवन से लाभ तो दिला ही रहे हैं साथ ही साथ आहुतियों और हवन के असर का अहसास कराने में जुटे हुए हैं ।

लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में काफी काम किया है । हरिद्वार के गुरुकुल काँगड़ी फार्मेसी के सहयोग से उन्होंने बीते साल हरिद्वार में हवन कार्य की सहायता से यह निष्कर्ष जुटाने में कामयाबी पाई है कि वायुमंडल में व्याप्त 94 फीसदी जीवाणुओं को सिर्फ हवन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। इतना ही नहीं एक बार हवन करने के बाद तीस दिन तक उसका असर रहता है।

एनबीआरआई के वैज्ञानिक चंद्रशेखर नौटियाल कहते हैं, 'हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है। करीब दस हजार साल पहले से भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी हवन की परंपरा चली आ रही है जिसके माध्यम से वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है।'

एनबीआरआई के दो अन्य वैज्ञानिक पुनीत सिंह चौहान और यशवंत लक्ष्मण नेने ने भी डॉ. नौटियाल के साथ हवन के स्वास्थ्य और वातावरण पर प्रभाव पर शोध किया है। इनके लंबे-चौड़े शोध प्रबंध का छह पेज का सार यह बताता है कि हवन में बेल, नीम और आम की लकड़ी, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानि कपूर, लौंग, चावल, जौ, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे के साथ-साथ तमाम औषधीय और सुगंधित वनस्पतियों को डालकर बंद कमरे में हवन करने से 94 फीसदी जीवाणु मर जाते हैं।

एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने हवन का प्रभाव भले ही दो वर्ष पहले साबित करने में कामयाबी पाई हो लेकिन तकरीबन छह दशकों से अधिक समय से महाराष्ट्र के शिवपुर जिले के वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान के लोग अग्निहोत्र पात्र में हवन को वातावरण को प्रदूषणमुक्त बनाने के साथ-साथ अच्छी सेहत के लिए जरूरी बताते चले आ रहे हैं।
संस्थान के निदेशक डा. पुरुषोत्तम राजिम वाले ने विशेष बातचीत में कहा, 'साठ-सत्तर देशों में हम लोग हवन के फायदे का प्रचार कर चुके हैं। परमसदगुरु श्री गजानन महाराज ने विश्व भर में हवन का महत्व बताने के लिए यह अभियान शुरू किया था लेकिन अब माइक्रोबायलॉजी से जुड़े तमाम वैज्ञानिक ही नहीं कृषि वैज्ञानिक भी अपने शोधों के माध्यम से यह साबित करने में कामयाब हुए हैं कि हवन से सेहत और वातावरण के साथ-साथ कृषि की उपज को भी बढ़ाया जा सकता है।'

NDNDमाइक्रोबायलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. मोनकर ने हवन के प्रभावों के अध्ययन के बाद यह साबित करने में कामयाबी पाई है कि हवन के बाद जो वातावरण निर्मित होता है उसमें विषैले जीवाणु बहुगुणित नहीं हो पाते और बेअसर हो जाते हैं। एसटाईपी नामक प्राणघातक बैक्टीरिया हवन के बाद के वातावरण में सक्रिय ही नहीं रह पाता।
इतना ही नहीं, वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान के लोगों की मानें तो दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के शोध एवं विकास विंग के कर्नल गोनोचा और डॉ. सेलवराज ने भी साबित किया है कि हवन में शामिल लोगों के नशे की लत भी दूर की जा सकती है। मन-मस्तिष्क में सकारात्मक भाव और विचारों का प्रादुर्भाव होता है। पूना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिक डॉ. भुजबल का कहना है, 'अग्निहोत्र देने से जैविक खेती की उपज बढ़ने के भी प्रमाण मिले हैं।

यज्ञ पर शोध पर वैज्ञानिक यह सिद्ध करने में लगे हुए है कि यज्ञ हवन द्वाराहमारी धरती को प्रदुषण मुक्त किया जा सकता है। आईये ऋषि मुनियों के प्राचीन विज्ञान को अपनाये।

आईये विश्व पर्यावरण दिवस पर यह संकल्प ले कि हम दैनिक यज्ञ करेंगे। वृक्षारोपण कर अपनी धरती को रहने लायक बनायेगे।

Source- facebook

  

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