Thursday, August 10, 2023

गांधी जी का भारत छोड़ो आन्दोलन और वीर सावरकर

 


 


गांधी जी का भारत छोड़ो आन्दोलन और वीर सावरकर  


#डॉ_विवेक_आर्य 


8 अगस्त 1942 को आज से ठीक 100 वर्ष पहले गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आरम्भ किया था। उनका नाम था अंग्रेजों भारत छोड़ो। 


डॉ० सीतारामैया कांग्रेस का इतिहास में इस विषय में लिखते है कि 


'कांग्रेस ने हाल में अपनी 22 वर्ष की नीति परिवर्तित करके यह कहना प्रारम्भ कर दिया कि आजादी मिलने के बाद साम्प्रदायिक ऐक्य स्वयं ही स्थापित हो जायेगा जबकि इससे पहले वह कहा करती थी कि स्वाधीनता प्राप्ति से पहले साम्प्रदायिक ऐक्य आवश्यक है। 


हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर गांधी जी के करीब 22 वर्षों तक साम्प्रदायिक एकता का प्रयास करने के बावजूद जब एकता स्थापित न हो सकी तब कांग्रेस ने अपना दृष्टिकोण बदला कि भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात हिन्दू-मुस्लिम एकता स्वयं स्थापित हो जायेगी। श्री मुहम्मद अली जिन्ना की 'पाकिस्तान मांग पर ध्यान दिये बिना गांधी जी ने 8 अगस्त को 'भारत छोड़ो' की घोषणा कर दी ।


इस आंदोलन के अनुयायी मुख्य रूप से हिन्दू थे। यह आंदोलन इतनी प्रबल गति से चल पड़ा जैसे कि पूरे भारतवर्ष में एक ही आंदोलन चलाया जा रहा हो । 9 अगस्त को कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया । परिणामस्वरूप पूरे भारतवर्ष में क्रान्ति फैल गयी। जनता की भीड़ चलती हुई रेलों पर पत्थर बरसाने लगी, गाड़ियों और कारों को रोकने लगी, रेलवे स्टेशनों को नुकसान पहुंचाने लगी, तथा उनकी सम्पत्ति को अग्नि की भेंट करने लगी, अनाज की दुकानें लूटी जाने लगीं, टेलीफोन के तार काटे जाने लगे, कारों के टायरों को खोल दिया गया । एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 9 अगस्त रविवार को बम्बई नगर के उपद्रवों में 9 व्यक्ति मारे गये और 169 घायल हुए जिसमें 27 पुलिस के सिपाही भी थे।


 आर सी मजूमदार स्ट्रगलफॉर फ्रीडम में लिखते है कि मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को भारत छोड़ो आंदोलन से पृथक करने के लिए अपील करते हुए कहा कि गहरे दुःख की बात है कि कांग्रेस पार्टी ने सभी के हितों की तिलांजलि देकर मात्र अपने व्यक्तिगत लाभ हेतु सरकार से युद्ध की घोषणा कर दी है। अतः मैं मुसलमानों से यह निवेदन करता हूं कि वे इस आंदोलन से पूर्ण रूप से पृथक रहें ।


20 अगस्त 1942 को मुस्लिम लीग की कार्यकारिणी की बैठक बम्बई में सम्पन्न हुई जिसमें श्री जिन्ना ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत में हिन्दू राज स्थापित करना है । अतः 10 करोड़ मुसलमानों के हितों की सुरक्षा के लिए मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में उनके लिए पुण्य भूमि की स्थापना की जाये ।


हिन्दू महासभा तथा पाकिस्तान योजना के कटु विरोधी नेताओं ने गांधी जी के 'भारत छोड़ो' आंदोलन को अनुचित बतलाया। उनके दृष्टिकोण से इस विकट परिस्थिति में सरकार को सहयोग देकर देश को खण्डित होने से बचाया  जाना चाहिए था । हिन्दू महासभा के नेताओं ने भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल न होते हुए जेल से बाहर रहने का निर्णय किया। उन्हें पता था कि यदि सारे हिन्दू नेता जेल में चले जायेंगे तो श्री जिन्ना अपनी 'पाकिस्तान योजना' को सफल बनाने के लिए अंग्रेज सरकार से समझौता करने में सफल हो जाएगा । मुस्लिम लीग की इस कूटनीति का जायजा लेने के लिए सावरकर जी ने हिन्दू नेताओं से जेलों से बाहर रहने के लिए अनुरोध किया। उन्हें चिन्ता थी कि कहीं भारत छोड़ो, भारत तोड़ो में न बदल जाय ।



डॉ० सीतारामैया के अनुसार 


'यद्यपि कि महासभा ने गांधी जी के 'भारत छोड़ो आंदोलन को समय के प्रतिकूल बतलाया फिर भी देशभक्त नेताओं की गिरफ्तारी पर महासभा ने तथा अन्य धार्मिक एवं राजनैतिक संगठनों ने गहरा दुःख व्यक्त किया, साथ ही उनकी रिहाई की मांग की । यह मांग भारत के प्रमुख उद्योगपतियों की ओर से नहीं की जा रही थी, बल्कि सम्प्रदायवादियों की ओर से की जा रही थी जो युद्ध प्रयत्नों में सक्रिय भाग लेने के समर्थक थे । इसके अलावा यह मांग ट्रेड यूनियन कांग्रेस, नरम दल, मिल मालिकों, सिखों, भारतीय ईसाईयों, एंग्लो इण्डियन ऐसोसिएशनों, स्थानीय बोर्डो, म्यूनिसिपल्टियों, धार्मिक संस्थाओं, हिन्दू महासभा, तथा डॉ० सप्रू और श्री जयकर सरीखे उदारवादी नेताओं की ओर से की जा रही थी। लेकिन सरकार ने इन मांगों, सुझावों और अनुरोधों की कोई परवाह नहीं की और मदान्ध होकर दमन चक्र चलाती रही । '


हिन्दू महासभा के अध्यक्ष श्री सावरकर ने कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी पर गहरा दुःख व्यक्त करते हुए कहा, 'निश्चित रूप से गांधी जी सहित कांग्रेस दल के महान एवं देशभक्त नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में बन्द कर दिया गया है, उनके प्रति हिन्दू महासभा की व्यक्तिगत सहानुभूति है और मुख्य रूप से हिन्दू देशभक्त होने के कारण उन नेताओं के साथ जाकर कष्ट उठा रहे हैं।


मैं सरकार को एक बार पुनः चेतावनी देता हूं कि भारतीय असंतोष को शान्त करने का मात्र एक प्रभावशाली रास्ता है कि ब्रिटिश पार्लियामेंट यह घोषणा करे कि भारत पूर्ण रूप से राजनैतिक तौर पर स्वतंत्र हो गया है। 


वीर सावरकर की सोच उस काल में कितनी दूरदर्शी थीं। इस इतिहास से हमें यह ज्ञात होता है। 


(अनिल कुमार मिश्र, हिन्दू महासभा: एक अध्ययन, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा, दिल्ली, 1988, पृ. 230-232) 


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