Wednesday, February 17, 2021

हम सब ऋणी


हम सब ऋणी

-डॉ० राजेन्द्रप्रसाद [भारत के प्रथम राष्ट्रपति]

स्वामी दयानन्द की सबसे बड़ी विशेषता उनकी दूरदर्शिता थी। यह देखकर आश्चर्य होता है कि विदेशी शासन के विरोध में सक्रिय संघर्ष के समय जिन बातों पर महात्मा गांधी ने अधिक बल दिया और उन्हें रचनात्मक कार्य की संज्ञा दी, प्रायः वे सभी काम स्वामी दयानन्द के कार्यक्रम में ५० वर्ष पूर्व शामिल थे।

देश भर के लिए एक सामान्य भाषा की आवश्यकता स्वामी दयानन्द ने महसूस की और हिन्दी को ही राष्ट्र अथवा आर्य भाषा होने के योग्य माना।
इसके अतिरिक्त अछूतोद्धार, स्त्री शिक्षा, हाथ के बने कपड़े अथवा स्वदेशी का प्रयोग इत्यादि बातों पर भी उन्होंने काफी बल दिया और वे स्वयं भी जीवन भर इन बातों पर पूरा अमल करते रहे।

उनकी कृतियों और उपदेशों से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि वे विचारों से राष्ट्रवादी थे और विदेशी शासन के स्थान पर स्वराज्य अथवा भारतीयों के ही राज्य का स्वप्न देखते थे।

समाज सेवा के क्षेत्र में स्वामी दयानन्द और आर्यसमाज ने जो कार्य किया उसके महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। उस कार्य के लिए और देश को जो उससे लाभ पहुंचा उसके लिए हम सब स्वामी दयानन्द के ऋणी हैं।

[स्त्रोत- 'सार्वदेशिक' (साप्ताहिक) : सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली का मुख पत्र का ३० अगस्त - ६ सितम्बर, १९६६ का वेद कथा विशेषांक; प्रस्तुति- प्रियांशु सेठ]

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