सुचना तंत्र: क्रांति अथवा बंधन
डॉ विवेक आर्य
शिशु रोग विशेषज्ञ, दिल्ली
इस लेख को पढ़ने वाले अधिकांश पाठक 1990 के दशक के पश्चात पैदा हुए हैं। इसलिए उन्होंने अपने जन्म से ही अपने घरों में टेलीविज़न, इंटरनेट, मोबाइल फ़ोन आदि देखा हैं। उन्होंने वह काल नहीं देखा जब घरों में यदा कदा टीवी खोला जाता था, यदा कड़ा फ़ोन की घंटी बजती थी। बिजली जाने पर घर के सदस्य एक दीपक या मोमबत्ती या लालटेन लगाकर इकट्ठे बैठकर वार्तालाप करते थे। उस काल में जीवन में अद्भुत शांति और संतोष था। शारीरिक परिश्रम अधिक और मानसिक शांति उससे भी अधिक थी। समय कैसे बदला देखिये।
1980 के दशक में ब्लैक एंड वाइट टीवी में शुक्रवार को चित्रहार एवं रविवार को हिंदी मूवी मात्र लोग देखते थे। दशक के अंत में रामायण ने तो समस्त देश को रोक दिया। गलियां कर्फ्यू के समान सुनी होती थी। रंगीन टीवी पर रामायण एक चमत्कार सा था। बुनियाद, फौजी , रजनी जैसे दूरदर्शन के कार्यक्रम और दैनिक समाचारों ने रेडियो के एकछत्र राज्य को चुनौती दे दी थी।
1990 के दशक में महाभारत भी रामायण के समान प्रसिद्द हुई। बाद में चाणक्य ने अपनी अमित छाप छोड़ी। केबल टीवी का आगमन हुआ। लोग टीवी से चिपकने लगे। क्रिकेट के लम्बे लम्बे मैच लोग रातों को जाग जाग कर देखने लगे। यह आपकी दिनचर्या में बदलाव का प्रारम्भ था।
2000 आते आते मोबाइल फ़ोन पर बात करना और sms सन्देश भेजना प्रचलित हो गया। इंटरनेट की क्रांति ही तो युवा घंटों जग कर yahoo chat करने लगे ईमेल भेजने लगे। मोबाइल पर बातें करने लगे। पड़ोसी से बात करना शान के विरुद्ध हो गया। टीवी पर सास-बहु और धार्मिक सीरियल और बच्चों के कार्टून की भरमार आ गई। घर का हर सदस्य टीवी या मोबाइल से चिपका रहने लग गया। इससे एक प्राकृतिक दुनिया में उनका प्रवेश हो रहा था। परिवार के सदस्यों का एक साथ बैठना, संवाद करना, खेल-कूद करना, अच्छी पुस्तकें पढ़ना कम होता गया। दूरियां बढ़ती गई। yahoo के पश्चात सोशल मीडिया के माध्यम से orkut आया। जिसने युवाओं का भरपूर समय खींच लिया। कोई खाली ही नहीं रहता था। जब देखों कंप्यूटर से चिपके रहने लगे। कभी क्रिकेट, कभी बॉलीवुड, हॉलीवुड की फिल्में, कभी कंप्यूटर, कभी मोबाइल। अरे इस दिमाग को शांति थी ही नहीं। थी तो बस उत्तेजना और अतिशीघ्रता। इस दशक के अंत आते आते
एक सुचना तंत्र का जाल आपके चारों ओर बुना जा चूका था। आप एक प्रकार से इसके जाल में आ चुके थे।
2010 के दशक में orkut का स्थान फेसबुक और whatsapp ने ले लिया। android फ़ोन और फ्री इंटरनेट ने मनुष्य के मस्तिष्क को ऐसा गुलाम बना लिया कि वह उपभोक्ता बाजार के लिए एक उत्पाद खपाने का माध्यम मात्र बन कर रह गया। खान-पान, कपड़े-जूते, मेकअप का सामान, वाहन, घर का आम सामान बेचने के लिए मानव को गुलाम बना दिया गया। क्रिकेट को एक फ़िल्म की भांति T 20 में बदल दिया गया। फिल्मों में द्वीअर्थ और नंगनता और चरित्रहीनता को बढ़ा दिया गया। अंग्रेजी में अश्लील नोवल पुस्तक अथवा kindle पर पढ़ने में रातें खपा दी गई। यूट्यूब पर वीडियो देखने में रात के 1-2 कब बज गए। पता ही नहीं चला। एक सर्वे के अनुसार सनी लियॉन देश में सबसे अधिक मोबाइल द्वारा खोजी जाने वाली हस्ती बन गई। छोटे छोटे बच्चें मोबाइल पर कार्टून देखते रह गए। खेलना ही भूल गए। यह इतना मीठा जहर था, जो इतने धीमे धीमे मगर इतनी तीव्रता से असर करता गया कि आप कब मानसिक गुलाम बन गए। आपको ज्ञात ही नहीं हुआ। इसकी अगली सीढ़ी तो उससे भी अधिक आक्रामक है। Amazon, Netflix जैसी अफीम से भी अधिक लत देने वाला विष का कोई सानी नहीं। रात को आठ बजे इन्हें देखना शुरू करते हैं। रात के 3-4 बजे तक पूरी श्रृंखला देखते हैं। इसके कार्यक्रमों में हिंसा, मार-धाड़, आक्रोश, क्रोध, अश्लीलता, नंग्नता और न जाने क्या क्या परोसा जा रहा हैं। इससे कोई बच गया तो tiktok और Pubg के चक्कर में आ जायेगा। अरे कहाँ तक बचोंगे। अपने चारों और देखिये। आप केवल 30 वर्षों में एक बनावटी दुनिया के गुलाम बन चुकें हैं। पैसा कमाना और इन साधनों में लिप्त होकर अपने आपको मानसिक गुलाम बना देना। यही जीवन का अंग बन गया हैं।
आईये इस जेल से बाहर अपने आपको निकाले।
मैं आपको कुछ महत्वपूर्ण सुझाव देता हूँ। इनका प्रयोग कर आप इस अदृश्य जेल से बाहर निकल सकते हैं।
1. बच्चों को माता-पिता का android फ़ोन पर कार्टून देखने के लिए न दे।
2. टीवी पर कार्टून चैनल हमेशा के लिए हटा दे।
3. अपने फ़ोन पर अलार्म लगाकर फेसबुक और व्हाट्सप्प को एक-दिन में 30 मिनट से अधिक न देखने का निश्चय कीजिये।
4. प्रात: उठने एवं सोते समय मोबाइल को न देखे।
5. यूट्यूब, tiktok, Pubg, Amazon, Netflix को अपने जीवन में से बाहर निकाल दे।
6. छात्रावस्था में 12 कक्षा तक के विद्यार्थियों को सामान्य फ़ोन ही दीजिये। android और इंटरनेट वाला फ़ोन मत दीजिये।
7. अपनी दिनचर्या में योग, प्राणायाम एवं ध्यान, ओमकार जाप को अनिवार्य स्थान दीजिये।
8. कोई एक खेल जिससे आपका मस्तिष्क केंद्रित हो एवं झुंझलाहट दूर हो। उसे अपने जीवन में अपनाये।
9. अच्छी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने की आदत डाले। इससे आपकी स्वाध्याय में रूचि बढ़ेगी। शुद्ध
10 . सप्ताह में प्राकृतिक स्थान जहाँ हरियाली हो उसमें अवश्य जाये। सिनेमा/होटल के स्थान पर परिवार को पार्क, बाग़ आदि स्थानों पर लेकर जाये।
11. निरामिष भोजन अर्थात शाकाहार खाये। इससे चित शांत और मन प्रसन्न रहता हैं।
12. रात के खाने और सोने में 2 घंटे का अंतर कम से कम रखे। ताकि सोते समय तक पेट हल्का हो जाये।
13. एक दिन में 5 अलग अलग रंगों के मौसमी फल-सब्जी खाये। इससे आपके शरीर को आवश्यक पोषण मिलेगा जो आपकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा।
14. छात्रावस्था में 12 कक्षा तक के विद्यार्थियों को सामान्य फ़ोन ही दीजिये। android और इंटरनेट वाला फ़ोन मत दीजिये।
15. जल्दी सोना, जल्दी उठने के प्राकृतिक सिद्धांत का पालन कीजिये।
16 . मनुष्य जन्म देने के लिए ईश्वर को धन्यवाद दीजिये। सदा सत्कर्म करने और अन्यों की सेवा करने का संकल्प लीजिये।
सुचना तंत्र के बंधन के लिए यह सुझाव बहुत कारगर है। एक बार अपना कर तो देखें।