Monday, October 30, 2017

फिर दिवाली आ गई



फिर दिवाली आ गई
रचियता-सतपाल पथिक
यह आ गई आ गई फिर दिवाली आ गई, दिल पर ऋषि की याद फिर बनकर घटा सी छा गई।
जिस दिन हुए संसार में दर्शन ऋषि के आखिरी,सुन लो कथा उस दिन की ओ पत्थर को भी पिंघला गई।
अजमेर की भूमि थी वह और वक्त था शाम का, इक जोत जब बुझने लगी हर जिंदगी घबरा गई।
पिए दूध में कांचों-जहर पूरा महीना हो गया, सारा जिस्म जख़्मी हुआ नस-नस चुभन तड़पा गई।
अंदर से जिसकी नाड़ियां उस कांच ने थी काट दी, और झर की तासीर भी अपना असर दिखला गई।
वेदों में जितने मंत्र हैं उतने ही छाले देह पर, प्यारे ऋषि की यह दशा भक्तों के दिल दहला गई।
सारे बदन में दर्द था दुःखता था चाहे रोम रोम, पर मुस्कराहट अंत तक चेहरे का साथ निभा गई।
यह तो वही काया है जो रखती थी ताकत शेर की, पर अब पड़ी मजबूर है गुल की तरह कुम्हला गई।
उसने कहा अब खोल दो दरवाजे और सब खिड़कियां, यह बात ही अब कुछ का बस वक्त है समझा गई।
और फिर कहा आकर मेरे पीछे खड़े होवो सभी, खुद ही समाधी की दशा जो अपूर्व दृश्य बन गई।
मन्त्रों का उच्चारण किया और प्रेम की संध्या करी, फिर लेट गए आराम से जिव्हा यह बोल सुना गई।
अच्छी करी लीला प्रभु इच्छा तुम्हारी पूर्ण हो, यह कह के ऑंखें मूंद लीं बिजली सी इकलहरा गई।
फिर श्वास खिंचा जोर से और तन से बाहर कर दिया, बस यह हवा जाती हुई परलोक में पंहुचा गई।
लो देखते ही देखते पिंजरे का पंछी उड़ गया, हर दिल की धड़कन रुक गई हर एक नजर पथरा गई।
यह आ गई आ गई फिर दिवाली आ गई, दिल पर ऋषि की याद फिर बनकर घटा सी छा गई।

1 comment:

  1. Meditation karne walon ka haal?
    स्वामी जी ने एक महीना घोर कष्ट भोगा, समाधि क्यों नहीं चढाई? इससे सिद्ध हुआ की स्वामी दयानंद जी ने अन्य महापुरुषों की केवल मिथ्या आलोचना की है.पुस्तक श्रीमद दयानंद प्रकाश में स्वामी दयानंद जी की जीवनी में पेज 437 से 451 तक लिखा है की 59 वर्ष की आयु में स्वामी दयानंद जी बीमार पड़ गए. उनका स्वास्थ्य कई दिनों से ढीला चल रहा था. प्रतिदिन की तरह अपने रसोइए से दूध ले, पी कर सो गए. रात्रि में तबियत अत्यधिक ख़राब हो गई. सुबह वैद्य बुलाया, दवाई खाई, औषधि ने विपरीत काम किया. कोई दवाई लाभ नहीं दे पाई. स्वामी दयानंद जी के पूरे शरीर पर छाले पड़ गए.जीभ पर छाले, मुहं में छाले, माथे पर छाले, मुख पर छाले, पूरा शरीर गल गया. कुछ भी खाया पिया नहीं जा रहा था. बुरी तरह तड़फते थे. स्वांस-प्रस्वांस की क्रिया भी तेज हो गई थी. स्वामी दयानंद जी का मल-मूत्र भी समय-कुसमय वस्त्रों में निकल जाता था. इस प्रकार एक महीने तक तड़फ-२ कर स्वामी दयानंद जी महाकष्ट पाए और 59 वर्ष की आयु में अकाल मृत्यु हुई.

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