Saturday, May 14, 2016

धर्म के सत्य मार्ग का कौन अनुसरण कर रहा है?



एक मित्र ने मुझसे प्रस्न पूछा पौराणिक और आर्यसमाजी में से धर्म के सत्य मार्ग का कौन अनुसरण कर रहा हैं?


इस सुन्दर प्रस्न का उत्तर एक उदहारण के माध्यम से देना चाहता हूँ। एक नगर में दो व्यक्तियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना था। पहला व्यक्ति सही मार्ग नहीं जानता था। इसलिए वह कभी अपने गंतव्य तक पहुंच नहीं पाया। जबकि दूसरा व्यक्ति अपने गंतव्य स्थान तक जाने का मार्ग तो जानता था मगर जानकर दूसरे मार्ग पर चलने लग जाता। अंतत दोनों अपने गंतव्य स्थान पर नहीं पहुंच पाए। पहला व्यक्ति पौराणिक भाई है जो योग साधना से समाधी अवस्था में ईश्वर साक्षात्कार कर ईश्वर प्राप्ति के विषय में कुछ भी नहीं जानता अपितु मूर्ति पूजा, पिंडदान-तीर्थ स्नान, भोज-भंडारा और भागवत कथा श्रवण से ही ईश्वर प्राप्ति का होना जानता हैं। उस बेचारे को वेद विदित सत्य मार्ग का बोध ही नहीं है। दूसरा व्यक्ति आर्यसमाजी है। वह वेद मार्ग द्वारा मोक्ष प्राप्ति होना यह अटल सत्य को जानता तो है। मगर वह न तो नियमित संध्या करता है, न ही पंच महायज्ञों का पालन करता हैं। न ही वह वेद का स्वाध्याय करता है। न ही स्वामी दयानन्द की आज्ञानुसार आचरण करता है। वह ज्ञान और कर्म दोनों में सामंजस्य बैठाकर जीवन में उन्नति करने में पीछे रहता हैं। उल्टा इसके ठीक विपरीत वह परनिंदा, लोकेषणा, पद और धन लोलुपता में अपना जीवन समाप्त कर देता हैं। इसलिए दूसरा व्यक्ति भी कभी अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाएगा। क्यूंकि वह सत्य मार्ग पर चलने के लिए जीवन में कभी तप नहीं करता।

आये आज हम प्रण करें। हम जीवन में सत्यमार्ग का पालन कर जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।

डॉ विवेक आर्य  

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