सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम संस्करण ने स्वामी दयानंद ने नमक पर अंग्रेज सरकार द्वारा जो कर लगाया जाता था उसे निर्धन जनता पर अत्याचार मानते हुए उसे हटाने का प्रस्ताव दिया था। स्वामी जी लिखते है--
नोन (नमक) और पौन रोटी में जो कर लिया जाता है, वह मुझको अच्छा नहीं मालूम देता, क्यूंकि नोन के बिना दरिद्र का भी निर्वाह नहीं होता, क्यूंकि नोन सबको आवश्यक होता है और वे मजूरी मेहनत से जैसे तैसे निर्वाह करते है, उनके ऊपर भी यह नोन का कर दण्डतुल्य रहता है। इससे दरिद्रों को क्लेश पहुँचता है। इससे ऐसा होय कि मद्य, अफीम, गांजा, भांग इनके ऊपर दुगना- चौगुना कर स्थापन होय तो अच्छी बात है, क्यूंकि नशादिकों का छूटना ही अच्छा है और जो मद्य आदि बिलकुल छूट जाएँ तो मनुष्यों का बड़ा भाग्य है, क्यूंकि नशा से किसी का कुछ उपकार नहीं होता। इससे इनके ऊपर ही कर लगाना चाहिए और लवण आदि के ऊपर न चाहिए। (सन्दर्भ- सत्यार्थ प्रकाश, प्रथम संस्करण, 11 समुल्लास पृष्ठ संख्या 384-85)
कुछ पाठक सोच रहे होगे की नमक पर कर साधारण सी बात है एवं स्वामी जी ने इस विषय को इतनी उपयोगिता क्यों दी जो इसे सत्यार्थ प्रकाश में सम्मिलित किया। ध्यान दीजिये नमक कर के विरुद्ध महात्मा गांधी ने कालांतर में दण्डी मार्च के नाम से सम्पूर्ण सत्याग्रह ही किया था। महात्मा गांधी अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में लिखते है की अंग्रेज केवल कर से 7 मिलियन पौंड कर 1880 में राजस्व रूप में प्राप्त किया था। शिकागो विश्वधायालय के पुस्तकालय के अनुसार अंग्रेज सरकार ने 7.3 करोड़ रुपये का राजस्व नमक कर से प्राप्त किया था। अगर सन 1947 से 2014 के मध्य मुद्रा स्फीति की दर 6.5% के हिसाब से माने तो यह राशि आज के समय में केवल 33,600 करोड़ रुपये बनती है। जोकि आज के समय नमक के माध्यम से प्राप्त होने वाले राजस्व 3.85 करोड़ से केवल 10,000 गुना अधिक है। अब आप स्वयं सोचे की नमक कर के माध्यम से अंग्रेज सरकार हमारे देश की जनता पर कितना अत्याचार कर रहे थे। यह आकड़ें उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा है जो अंग्रेजी राज को भारत के लिए कल्याणकारी मानते हैं एवं अंग्रेज सरकार को शांतिप्रिय मानते है। इसलिए स्वामी दयानंद का जनकल्याण हेतु चिंतन भारत को स्वतंत्र करवाने की प्रेरणा अपने लेखन के माध्यम से सदा देता रहा था।
डॉ विवेक आर्य
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