Monday, December 1, 2014

गुरुडम और अन्धविश्वास



रामपाल, आशाराम बापू, डेरा सच्चा सौदा, साईं बाबा, आशुतोष महाराज वगैरह वगैरह इस प्रकार से कभी न ख़त्म होने वाली इस सूची में अनेक बाबा, अनेक स्वघोषित भगवान, अनेक कल्कि अवतार इस समय भारत देश में घूम रहे हैं। बहुत लोग यह सोचते हैं की इन गुरुओं ने इतने व्यापक स्तर पर पाखंड को फैला रखा हैं फिर भी लोग सब कुछ जानते हुए भी इन गुरुओं के चक्कर में क्यों फँस रहे हैं। इस रहस्य को जानने के लिए हमें यह जानना आवश्यक हैं कि इन गुरुओं से उनके भक्तों को क्या मिलता हैं जिसके कारण वे गुरु के डेरे पर खींचे चले जाते हैं। हम रामपाल के उदहारण से यह समझने का प्रयास करेंगे की कोई भी सवघोषित गुरु कैसे अपनी दुकानदारी चलाता हैं।

1. रामपाल हर सत्संग में प्रसाद में खीर खिलाता था :   रामपाल की खीर को लेकर कई कहावतें प्रचलित थी। सतलोक आश्रम में हर महीने की अमावस्या पर तीन दिन तक सत्संग होता था। तीनों दिन साधकों को खीर जरूर मिलती थी। दूसरे व्यंजन भी परोसे जाते थे। साधकों का मानना था कि बाबा की खीर की मिठास से जीवन में भी मिठास आती थी। गौरतलब यह हैं की यह खीर उस दूध से बनती थी जिस दूध से रामपाल  को नहलाया जाता था। पाठक स्वयं सोच सकते हैं की उस दूध में पसीना एवं शरीर से निकलने वाले अन्य मल भी होते थे।


2. रामपाल 10 हजार में आशीर्वाद देता था:  रामपाल कई लाइलाज बीमारियों का निदान महज आशीर्वाद से करने का दावा करता था। इसके लिए साधक को स्पेशल पाठ कराना पड़ता था । इस पाठ पर 10 हजार रुपए खर्च आता था। कैंसर जैसे अंतिम अवस्था के असाध्य रोग से पीड़ित कई लोग भी आश्रम में  आते थे। आश्रम के प्रबंधक पहले उन्हें गुरु दीक्षा लेने और फिर आशीर्वाद मिलने की बात करते थे।


3.रामपाल भूत-प्रेतों के साये से छुटकारा दिलाने का दावा करता था : ऐसा प्रचार किया गया कि रामपाल का सत्संग सुनने से भूत-प्रेत का साया चला जाता था।

4. मृतप्राय को जिंदा करने की ताकत :  रामपाल के आश्रम में कई ऐसे लोग भी आते हैं, जो मृत्यु शैया पर होते हैं। प्रबंधन कमेटी कई ऐसे किस्से सुनाती थी  जिसमें बाबा के दर्शन मात्र से मृत प्राय: व्यक्ति भी जिंदा हो उठा।



5.  स्वर्ग में सीट पक्की :  रामपाल अपने साधकों को दीक्षा देकर सतलोक यानी स्वर्ग की प्राप्ति का दावा करता था। पहले दीक्षा दिलाता , फिर चार महीने लगातार सत्संग में आने में सत्यनाम देन और अंत में सारनाम मिलता था। जिसे सारनाम मिल जाता उसकी स्वर्ग में सीट पक्की हो जाती थी।


6. गधा, कुत्ता, बिल्ली बनने से बचने का आशीर्वाद : रामपाल मोक्षप्राप्ति की भी गारंटी देता था। रामपाल कहता था कि गधे, कुत्ते बिल्ली नहीं बनना चाहते हो तो मेरा आशीर्वाद ले लो। इसके अलावा यह गारंटी दी जाती थी कि एक बार रामपाल का सत्संग जिसने सुन लिया, उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे।

ले देकर सभी पाखंडी गुरुओं की यही सब बातें हैं जो अलग अलग रूप में  मुर्ख बनाने के लिए प्रचारित कर दी जाती हैं। प्राय: सभी पाखंडी गुरु यह प्रचलित कर देते हैं की जीवन में जितने भी दुःख, जितनी भी विपत्तियाँ, जितने भी कष्ट, जितनी भी कठिनाइयाँ, जितनी भी दिक्कते जैसे बीमारी, बेरोजगारी, घरेलु झगड़े, असफलता, व्यापार में घाटा, संतान उत्पन्न न होना आदि हैं उन सभी का निवारण गुरुओं की कृपा से हो सकता हैं।
        सबसे पहले तो यह जानने की आवश्यकता हैं की जीवन में दुःख का कारण मनुष्य द्वारा किये गए स्वयं के कर्म हैं। जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा के वैदिक सिद्धांत की अनदेखी कर मनुष्य न तो अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करना चाहता हैं, न ही पाप कर्मों में लिप्त होने से बचना चाहता हैं परन्तु उस पाप के फल को भोगने से बचने के लिए अनेक अनैतिक एवं असत्य मान्यताओं को स्वीकार कर लेता हैं जिन्हें हम अन्धविश्वास कहते हैं। जिस दिन हम यह जान लेंगे की प्रारब्ध (भाग्य) से बड़ा पुरुषार्थ हैं उस दिन हम भाग्यवादी के स्थान पर कर्मशील बन जायेंगे। जिस दिन हम यह जान लेंगे की कर्म करने से मनुष्य जीवन की समस्त समस्यायों को सुलझाया सकता हैं उस दिन हम चमत्कार जैसी मिथक अवधारणा का त्याग कर देंगे। जिस दिन मनुष्य निराकार एवं सर्वव्यापक ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने लगेगा और यह मानने लगेगा की ईश्वर हमें हर कर्म करते हुए देख रहा हैं इसलिए पापकर्म करने से बचो उस दिन वह सुखी हो जायेगा। जिस दिन मनुष्य ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था में विश्वास रखने लगेगा उस दिन वह पापकर्म से विमुख हो जायेगा। पूर्व में किये हुए कर्म का फल भोगना निश्चित हैं मगर वर्तमान एवं  भविष्य के कर्मों को करना हमारे हाथ में हैं। मनुष्य के इसी कर्म से मिलने वाले फल की अनदेखी कर शॉर्टकट ढूंढने की आदत का फायदा रामपाल जैसे पाखंडी उठाते हैं। इसलिए अंधविश्वास का त्याग करे, ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था को समझे एवं पुरुषार्थी बने। इसी में मानव जाति का हित हैं।

डॉ विवेक आर्य

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