Sunday, October 13, 2013

भूल गये उनको


 

 

मातृभूमि की सेवा में जिन्होंने अर्पण किया अपना शीश 

क्या तुम्हें वे याद हैं जिन्हें भारत माँ देती अपना आशीष

 

भूल गये वीर दाहिर को जब सिंध की छाती पर कासिम का घोड़ा दौड़ा था

स्वाभिमानी राजा दाहिर के परिवार ने बलिदान से उसका मस्तक फोड़ा था

 

भूल गये उन बाप्पा रावल को जो काबुल किले पर चढ़ आया था

जीत के साथ साथ तुर्क स्त्री को अपने घर की शोभा बना लाया था

 

भूल गये उन राजा सुहेलदेव पासी को जिन्होंने गाज़ी मिया को दोज़ख पहुँचाया था

हिन्दू राजाओं ने बाराबंकी के मैदान में तुर्क को मस्तक पर तीर मार गिराया था

 

भूल गये उन सांगा को जिनसे बाबर अन्दर तक थर्राया था

राजपूतों की नंगी तलवार ने रण में ऐसा पराकर्म दिखलाया था

 

भूल गये उन महाराणा प्रताप को जिनके लहू से हल्दी घाटी रंगी थी 

कायर मुगलों की सेना भाग भाग कर पहाड़ों के पार तक दौड़ी थी  

 

भूल गये छत्रसाल को जिन्होंने औरंगजेब का दंभ कुचला था

बुंदेले वीर ने मुग़ल राज की छाती पर अपना झंडा गाड़ा था

 

भूल गये शिवाजी को जिन्होंने औरंगजेब का सपना छीना था

आलमगीर की नाक के नीचे दक्कन का छत्र बड़ा सजीला था

 

भूल गये उन गुरु को जिनका नाम 'हिन्द की चादर' था

स्वप्राण देकर हिन्दू धर्म रक्षा की ऐसा उनका आदर था

 

भूल गये उन गुरु गोविन्द जी को जिन्होंने खालसा बनाया था

अपने चारों पुत्रों का बलिदान देकर हिन्दू धर्म को बचाया था

 

भूल गये उस बन्दे बैरागी को जिसका तुर्क नाम 'भूत' था

जिसकी सरहिंद विजय से सारा हिन्दू समाज अभिभूत था

 

भूल गये हरी सिंह 'नलवा' को जो महाराज रंजित सिंह का दामोदार था

पठानों का दमन करने वाला वो अकेला अफगानिस्तान के किलेदार था

 

भूल गये दीवान गिडूमल की कन्या को जिसे मुस्लिम मीर ने डोला भेजा था

भूखी कन्या ने मीर की जगह अपने पिता की तलवार को अपना वर बोला था 

 

भूल गये उस वीर हकीक़त राय को जो हिन्द का भूषण था

तन दिया मगर अपना धर्म न दिया ऐसा उसका आभूषण था 

 

हिन्दू हैं हम, देश हैं हमारा गौरव और संस्कृति हमारा अभिमान हैं    

वेदों के धर्म मार्ग पर चलना चलाना ही हमारा निज स्वाभिमान हैं

 

डॉ विवेक आर्य 

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