*◼️एक श्वेत वस्त्रधारी संन्यासी◼️*
✍🏻 लेखक - अमर स्वामी जी महाराज
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*
✍🏻 लेखक - अमर स्वामी जी महाराज
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*
(आर्य संसार - १९६९ से संकलित)
श्री पं० देवप्रकाशजी अमृतसरी अरबी फाजिल की आयु इस समय ९० वर्ष के लगभग हैं, मैं उनको सन् १९१८ ई० से जानता हूँ । उस समय भी वह आर्य सिद्धान्तों के मर्मज्ञ थे। आर्य समाज लोहगढ़ अमृतसर में उन्होंने एक आर्य युवक सभा बनाई थी। उसके वार्षिक उत्सव बड़ी धूमधाम से होते थे । देश भर के चुने हुए विद्वान इस समाज के उत्सव पर आया करते थे। वर्ष में कई बार इस युवक सभा की ओर से पौराणिकों ईसाईयों और मुसलमानों के साथ शास्त्रार्थ तथा मुबाहिसे बड़ी शान के होते थे ।
श्री पं० देवप्रकाशजी अमृतसरी अरबी फाजिल की आयु इस समय ९० वर्ष के लगभग हैं, मैं उनको सन् १९१८ ई० से जानता हूँ । उस समय भी वह आर्य सिद्धान्तों के मर्मज्ञ थे। आर्य समाज लोहगढ़ अमृतसर में उन्होंने एक आर्य युवक सभा बनाई थी। उसके वार्षिक उत्सव बड़ी धूमधाम से होते थे । देश भर के चुने हुए विद्वान इस समाज के उत्सव पर आया करते थे। वर्ष में कई बार इस युवक सभा की ओर से पौराणिकों ईसाईयों और मुसलमानों के साथ शास्त्रार्थ तथा मुबाहिसे बड़ी शान के होते थे ।
इस आर्य युवक सभा की ओर से एक वाक्वर्धिनी सभा बना रखी थी, जिसमें सप्ताह में एक बार प्रति सप्ताह पौराणिक, ईसाईयों, मुसलमानों आदि को शंकाएं करने का अवसर दिया जाता था । सबकी शंकाओं का समाधान बड़ी योग्यता और गंभीरता से श्री पं० देव प्रकाश जी ही करते थे।
पं० जी के परम मित्र और परम सहयोगी श्री पं० पिण्डीदास जी ज्ञानी इनकी भी आयु इस समय लगभग ९० वर्ष की होगी थे । ये परमेश्वर की कृपा से अभी मौजूद हैं।
*अरबी संस्कृत विद्यालय* :- अमृतसर में श्री पं० देवप्रकाशजी ने अरबी-संस्कृत विद्यालय खोला था । श्री पं० जी ही उसके आचार्य थे, कई वर्षों तक वह चला । कई विद्वान उस ही विद्यालय से बने ।
*मलिकानों की शुद्धि* :- आगरा में भारत शुद्धि सभा बनी । उसने दो लाख से अधिक मलिकाने राजपूतों की शुद्धि करके हिन्दू राजपूतो में मिलाया, श्री पं० देवप्रकाशजी भी कुछ समय उस सभा के मन्त्री रहे।
*मध्यप्रदेश में ईसाई निरोध का कार्य* :- भीलों में ईसाइयों का बड़ा प्रचार था । श्री पं० देवप्रकाश जी ने वहाँ डेरा डाल दिया, कितने ही हजार ईसाइयों को शुद्ध करके हिन्दुओं में मिला दिया, कई स्थानों से ईसाइयों के अड्डे उखाड़ दिये। ईसाई मत के विरुद्ध पुस्तकें लिखी। कितने ही भील बालकों को उच्च शिक्षा दिलाकर योग्य बना दिया, उनमें से कई तो मिनिस्टर भी बने।
*बहाई मत* :- मध्य प्रदेश में ही बहाई मत (एक गुप्त मुसलमानी फिर्का) का बड़ा प्रचार बढ़ा । उसके विरुद्ध भी पं० जी ने बड़ा काम किया । उनमें फँसे हजारों लोगों को वापिस लिया, उनके भी अड्डे उखाड़े।
*तहरीर - लेखन का काम* :- कुरान परिचय नामक एक अद्भुत और अनुपम ग्रन्थ तीन बड़े-बड़े भागों में लिखा, अपूर्व खोजपूर्ण ग्रन्थ है। पं० जी ने बहाई मत दर्पण, आदि बड़ी खोज की पुस्तकें लिखी जो इस समय नहीं मिलती, “महापुरुषों के जीवन'', एक बहुत बड़ा ग्रन्थ पं० जी ने लिखा था वह भी इस समय प्राप्त नहीं है । कयामत, जनत,दोजख नामक पुस्तक तथा इन्जीलों में परस्पर विरोधी कल्पनाएं एवं कुरान परिचय (३ भाग) यह तीन पुस्तकें पं० जी को इस समय मिलती हैं । ये ग्रन्थ उन्होंने ही प्रेरणा से लिखे थे, यह ग्रन्थ हर पुस्तकालय ही में नहीं बल्कि हर घर में रखने योग्य है । यह ग्रन्थ आप लोग श्री लाजपतराय शास्त्री अमर स्वामी प्रकाशन विभाग, दयानन्द नगर गाजियाबाद उ० प्र० को पत्र लिख कर प्राप्त कर सकते हैं । इससे भी पं० जी को सहायता मिलता है ।
*गुप्त वाम मार्ग* :- रजनीश नामक एक व्यक्ति ने गुप्त रूप से घोर वाम मार्ग का प्रचार किया, उसका मत है कि सम्भोग के बिना समाधि लग ही नहीं सकती और मैथुन (व्यभिचार) पर प्रतिबन्ध लगाना पाप है । वह पहले रजनीश से आचार्य रजनीश बना, अब आचार्य रजनीश से भगवान रजनीश बन गया है । उसके मत पर भी पं० जी ने एक पुस्तक लिखी।
*मन्दिरों की लूट* :- मुसलमानों ने किस-किस मन्दिर को तोड़ा, किस-किस मन्दिर से कितना-कितना धन लूटा यह खोज पूर्ण ग्रन्थ लिखा रक्खा है । मैं उसकी छापने की योजना बनवा रहा हूँ ।
*चोरी* :- अभी पिछले मास में एक महाधूर्त श्री पण्डित जी के पास आया, बहुत मीठी-मीठी बातें करता रहा, पण्डित जी शौचालय में गये, उस पापी ने उनको बाहर से कुन्डी लगा कर उनको शौचालय में ही बन्द कर दिया , और जो खर्च के लिए उनके पास पैसे थे, तथा गर्म कपड़े आदि लेकर भाग गया।
*तप और त्याग* :- सारी आयु भर श्री पं० जी ने धन संग्रह कभी नहीं किया । कोई उनका मकान नहीं है । बैंक में कुछ जमा नहीं कोई आय का अन्य साधन नहीं, फिर भी किसी से मांगते नहीं है । जिसने जो कुछ खिला दिया, वह खा लिया न खिलाया तो भूखे ही बैठे रहे।
मैं १५ जुलाई को अमृतसर आर्य समाज लोह गढ़ में उनसे मिलने के लिए गया था । मैंने देखा एक कमरे में पुराने कपड़े पहने हुए केवल हड्डियों का ढाँचा लिए हुए, भूमि पर बिछी चटाई पर बैठे हैं। चारों ओर ढेर की ढेर पुस्तकें रखी हुई हैं । और एक पुस्तक लिखी जा रही है । कानों से कम सुनने लगे है । आंखों से कम दीखता है । फिर भी रात दिन समाज का ही कार्य करने की लगन है।
*वह पुस्तक क्या है ?* :- मैंने पूछा-पण्डित जी यह क्या पुस्तक लिखी जा रही है । तो श्री पं० जी ने बतलाया कि एक मौलवी ने सत्यार्थ प्रकाश के विरुद्ध एक पुस्तक लिखी है । उसका जवाब लिख रहा हूँ। मैं देख और सुन कर हैरान रह गया । जिस व्यक्ति के भोजन को कोई निश्चित व्यवस्था नहीं है, आज किसी घर में है तो कल किसी घर में । जिसके शरीर में मांस नहीं है, केवल हड्डियों के ढाँचे पर सूखी सी खाल है । कानो से कम सुनना, आंखों से कम दीखना वह व्यक्ति एक-एक प्रमाण के लिये १०-१० पुस्तकें देखता है। फिर लिखता है । यह उसका घोर तप और त्याग है।
✍🏻 लेखक - अमर स्वामी जी महाराज
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*
॥ओ३म्॥
No comments:
Post a Comment