Sunday, July 8, 2018

हमारे इतिहास का एक विस्मृत पृष्ठ:अरबों की असफलता का काल



(सलंग्न चित्र- वीर राजा दाहिर जिनके सम्पूर्ण परिवार ने अपना बलिदान धर्मरक्षा हेतु दिया था)

हमारे इतिहास का एक विस्मृत पृष्ठ:अरबों की असफलता का काल

(636-711)

डॉ विवेक आर्य

हमारी इतिहास पुस्तक में यह पढ़ाया जाता है कि मुहम्मद गौरी, मुहम्मद ग़जनी, तैमूर लंग, ख़िलजी , लोधी, बाबर , नादिर शाह, अब्दाली जिस जिस ने इस देश पर आक्रमण किया। वह विजेता था और इसलिए महान था। परन्तु हमारे इतिहास का एक विस्मृत पृष्ठ इन अरबों की हार का भी हैं। यह हमारे महान पूर्वजों का बलिदान और तप था जिससे उन्होंने हमारे देश की सुरक्षा की थी।

इस्लाम के दूसरे , तीसरे और चौथे खलीफाओ - उमर (634-643 ईस्वी) , उस्मान (643-654) , अली (655-660) - को भारत पर आक्रमण में विफलता ही हाथ लगी । हिन्दुओं ने बहादुरी से लडते हुये उन्हें वापस लौटनेपर मजबूर कर दिया । उस्मान ने तो पूर्व की विफलता से सबक लेकर भारतीय प्रदेश पर आक्रमण करने की हिम्मत ही नही की । खलीफा अली ने 659 ईस्वी में हारिस की अगुवाई में सिंध के अग्रिम भाग कोरमान पर आक्रमण किया जहाँ 20000 हजार हिंदुओं ने उसका मुकाबला किया । जोरदार संघर्ष के बाद मुसलमानों को विजय प्राप्त हुयी । अरबों की भारतीय क्षेत्र में यह पहली सफलता अस्थाई ही साबित हुयी । अनुकूल अवसर पाते ही हिंदुओं ने 662 ईस्वी में एक जोरदार हमला कर हारिस और उसकी फौज को मारकर कोरनाम पर पुन: अधिकार कर लिया ।

खलीफा मुआविया (661-679) ने भी अनेक बार आक्रमण किया लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पडी । उसके सेनापतियों अब्दुल्ला, राशीद और मुनजिर को लडाई में मौत का सामना करना पडा । यह हिंदुओं की वीरता की मिसाल थी कि बंटे हुये होने के बावजूद भी उन्होंने रसूल के सहाबाओं , अली और अन्य खलीफाओं को छठी का दूध याद दिला दिया ।

अब्दुल मलिक ने (684-705 ईस्वी) में खलीफा बनने के बाद हज्जाज को ईराक का गवर्नर बनाकर हिद और सिंध की सारी जिम्मेदारी सौंपी । हज्जाज ने सैद को मकरान की तरफ भेजा जहां वह अल्लाफियों द्वारा मार डाला गया । इससे नाराज होकर हज्जाज ने मुन्जाह को अल्लाफियों से बदला लेने भेजा । सिंध इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक चचनामा के अनुसार मुन्जिर के आने के पहले ही अल्लाफियों ने राजा दाहिर के यहां शरण ले ली थी । इसप्रकार राजा दाहिर ने हज्जाज के दुश्मनों को शरण देकर धर्माचरण के साथ मुसलमानों को खुले रूप से चुनौती दी । बेबस हज्जाज कुछ न कर सका ।

इसी समय वलीद खलीफा ( 705-715 ) बना । तभी लंका या सुमात्रा के राजा द्वारा खलीफा और हज्जाज को भेजे जा रहे उपहार , गुलाम और मुस्लिम औरतों को देवल के पास समुद्री डाकुओं द्वारा लूट लिया गया । समुद्री लुटेरों का यह कार्य खलीफा और हज्जाज के लिये दूसरी चुनौती था । हज्जाज ने तुरन्त सिंध के शासक दाहर को पत्र लिख गुजारिश की कि वो लूट का माल लोटाने में मदद करे। दाहर ने लिख दिया कि समुद्री लुटेरे उनके बस में नहीं हैं। यह जवाब हज्जाज को तीसरी चुनौती थी । क्रोधित हज्जाज ने खलीफा से सिंध पर हमला करने की अनुमति मांगी । शुरू में खलीफा ने हिंदुओं के शौर्य और एवं पूर्व की विफलताओं को याद कर आनाकानी की । परन्तु बार बार निवेदन किये जाने पर हाँ कर दी ।

अब हज्जाज ने देवल पर आक्रमण के लिये उबैदुल्ला को भेजा जिसे हिंदुओं ने मार डाला। फिर उसने बुजिल को भेजा। तब देवल निवासियों ने अपने शासक दाहर को यह खबर दी । दाहर ने अपने सुयोग्य तथा साहसी पुत्र जैसिया को 4,000 घुडसवारों व ऊंट के साथ भेजा । देवल में जैसिया और बुजिल के बीच सुबह से शाम तक भीषण युध्द हुआ जिसमें बुजिल मारा गया और पराजित मुस्लिम सेना भाग खडी हुयी ।

अपने दो सेनापतियों की शर्मनाक पराजय के बाद हज्जाज ने पुन: आक्रमण की इजाजत मांगी । तब खलीफा ने आक्रमण पर हुये सम्पूर्ण खर्च का दूना राजकोष में जमाकर देने की शर्त पर हिंद विजय की इजाजत दे दी ।इस बार हज्जाज ने इस कार्य की जिममेदारी अपने 17 वर्षीय भतीजे मुहम्मद बिन कासिम को सौंपी । इसप्रकार मुहम्मद बिन कासिम की नियुक्ति से ही अरबों के आक्रमण का प्रथम 75 सालों का असफल चरण समाप्त हुआ ।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आज मुसलमान कहते हैं कि जो समुद्र मे लूट हूयी उसी के चलते मुसलमानों ने भारत पर आक्रमण किया । जबकि यहां साफ हो जाता है कि इस्लाम के दूसरे खलीफा के समय से ही 70 साल से आक्रमण का सिलसिला जारी था जिसे हिंदुओं ने लगातार विफल किया ।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि 8वीं शताब्दी से लेकर 10वीं शताब्दी तक पश्चिम की यह इस्लामिक लहर पूरे 200 वर्षों तक सिंध से आगे न बढ़ सकी। यह काल भी अरबी असफलता का काल माना जायेगा। फिर यह कहना कि हिन्दुओं की सदा पराजय हुई हमारे वीर पूर्वजों का अपमान नहीं तो क्या हैं?

स्रोत्र- सल्तनत काल में हिदू प्रतिरोध ' लेखक:अशोक कुमार सिंह





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