Wednesday, July 18, 2018

क्या सैन्ट थॉमस कभी भारत आया ?



क्या सैन्ट थॉमस कभी भारत आया ?

-हिमांशु शुक्ला

ईसायत में थॉमस को लगभग जीसस के जुड़वा भाई की तरह आइडेंटिफाय किया जाता है । Andropolis की यात्रा के दरम्यान जीसस उसे गुलाम के रूप में खरीदता है । आरंभिक काल मे चर्च यही प्रचार करते थे कि थॉमस सीरिया और पर्शिया की यात्रा किया और फारस में एक चर्च स्थापित किया । ईसाई मिशनरियों द्वारा ऐसा कहा जाता है कि , भारत मे
ईसाइयत का आगमन ईसा मसीह के बारह प्रेरितों (शिष्यों) में से एक थॉमस द्वारा अरब की खाड़ी पार कर भारत में आने के साथ ही शुरु हो गया था। सन् 52 ईं. मे केरल के क्रान्गानोर नामक जगह पर पहुँचे; जहाँ से उन्होंने भारत के तटीय इलाकों में सुसमाचार प्रचार किया। सर्वप्रथम मालावार तट के ब्राह्मणों के बीच उसने प्रचार किया और उनके प्रभाव से कई ब्राह्मणों ने इसाईयत को ग्रहण किये।

और जीसस के इंडिया में भी होने वाली बात Nicolas Notovitch नामक एक फ्रॉड रूसी पादरी ने 1894 ईसवी में अपनी पुस्तक ‘The Unknown Life of Jesus' में प्रकाशित किया जिसे ईसाई दुनिया विद्वानो और इतिहासकारो ने काफी पसंद किया ।

ये Nicolas Notovitch बहोत ही चालक किस्म का कहानीकार था । उसके द्वारा जीसस के कश्मीर में अध्ययन और मरने की कहानी गढ़ना उन सैकड़ो कहानियों में से एक है जो जीसस को भारत या कश्मीर से जोड़ती है । ब्रिटिश एजेंट अहमदिया आंदोलन के संस्थापक Mirza Ghulam Ahmad कादियान ने 1899 ई में यह दावा किया Roza Bal श्राइन ही जीसस की कब्र है , जिसे वहां के सुन्नी मौलानाओं ने विरोध किया और इससे इस्लाम निंदा के रूप में जाना ।

वही दूसरी ओर एक सच यह भी है कि सेंट थॉमस के विषय मे कोई भी कुछ भी नही जानता सिवाय उसके कब्रिस्तान के Edessa (मेसोपोटामिया) नामक जगह पर होने के ।

दोनों ही काल्पनिक कथाओं ने यूरोपीय ईसाई मिशनरियों के विद्वानो और पादरियों का ध्यान खींचा ।

भोले भाले हिन्दुओ इस विचार से बहोत खुश होते है कि जीसस भारत आए वे इस बात की ओर ध्यान नही देते कि इन काल्पनिक कथाओं में जीसस को भारत के अध्यात्म , धर्म और संस्कृति के प्रशसंक के रूप में नही बल्कि एक superior गुरु के रूप में प्रचारित किया जाता है । जिसने भारतीय समाज में सुधार किया और बहुजनो को ब्राह्मणों के अत्याचार से बचाया ।

थॉमस के साथ दक्षिण भारत के पालायुर या मालायुर , और जीसस के साथ बनारस , कश्मीर और पूरी में होने की कथा का फैलाई जाती है जिनके साथ एक जैसा शोषण और बलिदान की कथा प्रचारित है ।
जिसमे थॉमस का मद्रास के हिल टॉप पर , दुष्ट ब्राह्मण द्वारा वध करना हो या जीसस का क्रुसिफिक्सन के बाद जीवित हो कर भारत मे आना और कश्मीर की राजकुमारी से विवाह करना और भारतवासियों द्वारा पत्थरबाजी करके जीसस को भारत से भगा देना ।

ये सभी कहानियों केवल ब्राह्मणों और हिन्दुओ को बदनाम करने के लिए गढ़ी गई ।
दूसरी ओर ऐसी कहानियां प्रचारित करने का एक यह भी उद्देश्य था कि ईसायत कोई पाश्चात्य साम्राज्यवादी देशो द्वारा नही लाई गई अपितु भारतीय परंपरा से निकला sect है जैसे बौद्ध आदि मत निकले , जिसमे सेंट थॉमस मालाबार में पहले चर्च की स्थापना की और यही तमिल वासियों और बहुजन (गैर ब्राह्मण हिन्दुओ) का ओरिजनल धर्म है ।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सीरियन चर्च ने भी सेंट थॉमस को पैतृक जमीन भारत पर अपना अधिकार जताता है , क्योकि सेंट थॉमस भारत मे जीसस के लिए क्रुसेड किया और बलिदान दिया ।
रोमन चर्च इस बात से इनकार करता है कि सेंट थॉमस कभी भारत आया यहां तक पोप बेनेडिक्ट 16 वा ने स्पष्ट रूप से इनकार किया था , कि थॉमस कभी भारत यात्रा किया ।
कोंग्रेसी वामपंथियो द्वारा संचालित
The Archaeological Survey of India ने भी कभी भी भारत मे ईसायत के आगमन के इस दावे की कभी जांच नही की ।

सच बताउ तो मित्रो , मुझे इस बात का दुख होता है , कि हिन्दुओ के पास ज्ञान , विज्ञान , अध्यात्म , आयुर्वेद के अगाध मनीषा और विदुषा वाले ग्रन्थ होने के बाद भी कुछ हिन्दू आकर मुझे बताते है कि जीसस भारत मे पढ़े और भारतीय ज्ञानियों की तरह वे रहे । कुछ लोग योगिराज कृष्ण की तुलना जीसस से करते है कहते है कि कृष्ण ने भारत मे गाय चराई और जीसस ने बेथलहम में भेड चराई दोनों ही अपने कौम के रक्षक थे दोनों की शिक्षा एक ही थी न जाने क्या क्या अनगढ़ अप्रमाणिक बाते बताते है । ऐसे भोले मूर्ख हिंदू दया के पात्र है । सीरियन चर्च यह प्रचारित करते है कि सर्वप्रथम मालावार तट के नम्बूदरी ब्राह्मणों के बीच थॉमस ने प्रचार किया और उनके प्रभाव से कई ब्राह्मणों ने पहली शताब्दी में इसाईयत को ग्रहण किये ।

जबकि यह एक झूठ बात है क्योकि पहली शताब्दी में मालाबार में कोई भी नम्बूदरी ब्राह्मण नही रहते थे और न ही भारत मे चौथी शताब्दी से पूर्व कोई क्रिश्चियन हुआ ।

ईसाई शरणार्थी , Thomas of Cana नामक पादरी के नेतृत्व 345 ईसवी में भारत आये और Tiruvanchikulam के आस पास के क्षेत्रों में बस गए धीरे धीरे उन्होंने हिन्दुओ के नैय्यर जाती के बराबर सामाजिक स्थिति को प्राप्त कर लिया ।
इन्हीं लोगो ने ईसायत को the religion of martyrs के रूप में प्रचारित करना शुरू किया था ।

16 वि शताब्दी में इसी को जेसुइट और फ्रांसिस ईसाई मिशनरियों ने Mylapore में हिन्दुओ के नरसंघार और मन्दिर विध्वंश को ढकने के लिए कथाओ को और भी ज्यादा मिर्च मसाला लगाकर प्रचारित करना शुरू किया ।

सेंट थॉमस भारत या पूर्व का धर्मोपदेशक है वाली बात को 1953 ई में रोम द्वारा गढ़ा गया था ।

दुख की बात यह है कि कोंग्रेस समर्थित The Archaeological Survey of India ने कभी भी वहां के चर्चो पर शोध नही कराया कि कैसे वहां चर्च आये जबकि उसी समकालीन की मस्जिदों और इस्लामिक स्मारकों पर शोध किया गया । लेकिन यह काम जर्मन आर्कियोलॉजिस्टो और इतिहासकारो ने किया ।
और कहा , most sixteenth and seventeenth century churches in India contain temple rubble and are built on temple sites.

(भारत में 16 वीं और 17 वीं सदी के चर्च , हिन्दू मन्दिरो के मलबों पर और मन्दिर के स्थानों पर बने है । )

जिसके प्रमाण में वह कपिलेश्वर मन्दिर ,Mylapore beach का प्रमाण देते है ।

Dr. J.N. Farquhar जिन्होंने इस विषय पर दो पुस्तके लिखी है : - ‘The Apostle Thomas in North India’ दूसरी ‘The Apostle Thomas in South India’ . जितमे उन्होंने यह स्वीकार किया है कि हम यह सिद्ध नही कर सकते कि सेंट थॉमस कोई ऐतिहासिक पत्र है ।

Dr. A. Mingana ने भी दो पुस्तके लिखी है : -
‘The Early Spread of Christianity in Asia And the Far East’ और दूसरी ‘The Early Spread of Christianity in India’ जिसमे उन्होंने सेंट थॉमस के विषय मे निर्बद्ध रवैया अपनाया है। उसमें उन्होंने यह कहते हुए उद्धृत किया है :-

"भारत वास्तव इन कथाओं के बीच में ईसाई धर्म के बारे में हमें क्या देता है , यह वास्तव में सिवाय दन्तकथाओ के कुछ नही है । "

A.D. Burnell ने मई 1875 ई में भारतीय पुरातत्व के अपने एक आर्टिकल में लिखा ,

"प्रेरित थॉमस को दक्षिण भारतीय ईसाई धर्म के मूल के रूप में लोगो द्वारा कुछ धार्मिक राय धारण करना बहुत ही आकर्षक है , लेकिन असली सवाल यह है कि, इसके क्या प्रमाण है ? बिना पर्याप्त प्रमाणों के यह असम्भव नही है , कि इसे किसी के द्वारा रद्द कर दिया जाय । दंतकथाओं के लिए इतिहास में कोई जगह नही है । "

Prof. Jarl Charpentier , St. Thomas the Apostle and India में लिखते है कि , " इस बात का कोई भी स्पष्ट प्रमाण नही है कि जीसस के अनुयायी थॉमस या कुछ भी , ने कभी भी दक्षिण भारत या श्रीलंका का भ्रमण किया हो ।

Rev. J. Hough, Christianity in India में लिखते है कि यह कहना सही नही है कि हमारे लॉर्ड जीसस के कोई भी उपदेशक /शिष्य कभी भारत की यात्रा पर आये ।

कुछ आर्कियोलॉजीकल एविडेन्स भी इस ओर इशारा करती है कि मालाबार में बने चर्च 9 वि शताब्दी में पर्सिया से आये Nestorian शरणार्थियों द्वारा निर्मित है ।

इसी तरह न जाने कितने फ्रोड्स इन चर्च द्वारा किये गए यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि बेथलेहम से जीसस का कभी कोई लेना देना नही था , यहां तक बेथलेहम चर्च 4 थी शताब्दी में जबरन पैगन देवता Tammuz-Adonis को हटाकर बनाई गई थी । बेथलेहम को कई बार क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा जीसस का जन्मस्थान के रूप में प्रचारित किया जाता है , जो कि एक निराधार कल्पना मात्र है । Cambridge के historian Michael Arnheim के अनुसार , यह विरोधाभासों और त्रुटिपूर्ण तथ्यों से भरी बात है कि जीसस का जन्म बेथलेहम में हुआ , ओल्ड टेस्टामेंट में उद्धरित यहुदियों के भविष्यवक्ता को जीसस सिद्ध करने के लिए जबरन इस कथा को गढा गया ।

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