• The Vedas and Maharshi Dayanand Saraswati •
Saturday, November 28, 2020
The Vedas and Maharshi Dayanand Saraswati
स्व. पंडित कमल देव आर्योपदेशक [मथुरा उत्तरप्रदेश]
स्व. पंडित कमल देव आर्योपदेशक [मथुरा उत्तरप्रदेश]
कृष्णा: श्वेतो अरुषो यामो अस्य ब्रघ्न रुज उत शोणो
यशस्वान्। हिरण्य रुपम् जनिता जजान।।
धार्मिक व अध्यात्मिक दृष्टि से मथुरा जनपद अपनी पहचान के लिए जगत प्रसिद्ध है। इसी ऐतिहासिक नगरी मथुरा जनपद में आर्य समाज में के प्रवर्तक महर्षि दयानंद ने गुरु विरजानंद जी से मथुरा में रहकर व्याकरण आदि आर्ष ग्रंथो का अध्ययन किया था। वेद के रहस्यों को समझा था।
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जन्म
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आर्य समाज के प्रसिद्ध भजनोपदेशक पंडित श्री कमलदेव जी ने इसी ब्रजभूमी मथुरा जनपद के ग्राम गढ़ी महाराम पोस्ट - अकोश (बल्देव) में श्री किशनलाल जी के यहां जनवरी 1920 में जन्म लिया था। पंडित श्री कमलदेव जी के पिता जी का नाम किशनलाल माता का नाम नारायणी देवी था। छोटे भाई प्रताप का 14 वर्ष की अवस्था में विसूचिका रोग से छोटी सी आयु में निधन हो गया था।
श्री किशनलाल जी व श्रीमती नारायणी देवी अत्यंत धार्मिक एवं सरल प्रकृति के थे। श्री किशनलाल जी धार्मिक भक्ति के गीत गाते थे। महाभारत पर आधारित भजन तथा महाभारत की घटनाएं उन्हें कंठस्थ थी। श्री किशनलाल जी उपनाम भगत जी के नाम से भी जाने जाते थे। पंडित श्री कमलदेव जी के भाई छोटी आयु में चले जाने के बाद इकलौती संतान थी। प्रताप का वियोग असहाय था। परिवार पर विपत्ती का पहाड़ टुट पड़ा। श्री किशनलाल जी इसी वियोग में कुछ दिन बाद दीवगंत हो गए। माता नारायणी देवी का पुत्र वियोग में रोते रोते जीवन बीता। पंडित श्री कमलदेव जी का सुखदेवी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। सुखदेवी धार्मिक प्रवृत्ति की गृहणी थी उन्होने गृहस्थी का निर्वाह पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ निभाया।
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मृतक भोज के प्रति घृणा
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छोटे भाई प्रताप का 14 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। पुत्र वियोग में मात पिता ने अन्न जल त्याग दिया था। मृत्यु के बाद मृतक भोज आयोजित किया गया था। मृतक भोज में ब्राह्मणों को भोजन कराया जा रहा था। श्री कमलदेव जी की आंखो से आंसू टप टप गीर रहे थे, जो भोजन कर रहे थे उनकी आंखो में मृतक परिवार के प्रति कोई सहानुभूती नहीं थी। वे कह रहे थे लाला खीर बहुत बढ़िया है साग अच्छौ है नेक खीर में घ्यौ डार दे बूरौ चौखौं सौ डार दे दैखि बढ़िया खवाय पहुंचा। जैसे कि बुद्ध को जरा वृद्धा के देखने तथा स्वामी दयानंद को मूसको की उछल कुद को देखकर वैराग्य भाव प्राप्त हुआ था वैसे ही ब्राह्मण भोज के अवसर पर भोजन करने वालों के शब्दों को सुनकर मन आंदोलित हो उठा कि खिलाने से और बढ़िया घी डालने से मृतक स्वर्ग को चला जाता है। यह बात समझ में नहीं आई। उन्होने निश्चय किया कि यह कुप्रथा है पाखंड है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सही क्या है और गलत क्या है वास्तविकता को जानने की उधेड़ बुन मन में पैदा हो गई। अंत में निश्चय किया कि इस कुप्रथा का बहिष्कार करुंगा।
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आर्य समाज में प्रवेश
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श्री कमलदेव जी का स्वभाव अत्यंत सरल व धार्मिक था। गाने बजाने वालों से बड़ा प्रेम करते थे। हारमोनियम सीखकर धीरे धीरे गाना आरंभ कर दिया। आगरा में किसी के यहाँ गए हुए थे, वापसी पर जब हारमोनियम की आवाज सुनायी दी रुके और जिधर से आवाज आ रही थी उधर चल दिये। वहां पर आर्य समाज का कार्यक्रम चल रहा था। संयोग से मृतक श्राद्ध का खंडन हो रहा था। पंडित जी की शंका का निराकरण हो गया। वे दो दिन तक आर्य समाज के कार्यक्रम में रुके। आर्य समाज की भजन पुस्तकें खरीदी, सत्यार्थप्रकाश खरीदा, महर्षि का जीवन परिचय खरीदा और खूब पढ़ा तथा सिद्धांतो की अच्छी जानकारी प्राप्त कर ली। कुछ ही समय पश्चात पंडित जी महर्षि के अनुयायी हो गए। सारी उधेड़बुन समाप्त हो गई। इन्हीं दिनों इनकी माता श्रीमती नारायणी देवी का निधन हो गया। मृतक भोज के लिए सामाजिक दबाव था। भाई के वियोग और मृतक भोज की घटना से व्यथित थे। अंत: मन की प्रेरणा ब्राह्मण भोज को अस्वीकार कर चुकी थी। भारी दबाव के बाद भी उन्होने माता का मृतक भोज नहीं कराया। समाज में इनको अपमानित किया गया बहिष्कृत किया गया लेकिन यें अपने निश्चय पर अडिग रहे।
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आर्य समाज को समर्पण और कार्य
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आर्य समाज के सिद्धांतो को गहराई से समझा। पाखंड की गहरी जड़ो को उखाड़ने का काम किया। राम राम की जगह नमस्ते का प्रचार किया। जन विरोध और सामाजिक बहिष्कार हुआ। धूम्रपान, हुक्का, बीड़ी से होने वाली बीमारियों से जन जन को मुक्त कराया। मृतक श्राद्ध अवैदिक है। मूर्तिपूजा अवतार वाद वेद विरुद्ध है। इनका खंडन किया और एक ईश्वर की सत्ता का प्रतिपादन किया। संसार की तीन चीजें अनादि है ईश्वर जीव प्रकृति। ये सृष्टि का आधार हैं।
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करोली राजस्थान में धर्मप्रचार
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राजस्थान के करोली नगर में देवी के नाम पर हजारों की संख्या में प्रतिदिन भैंसे व बकरे काटे जाते थे। घर छोड़ दिया करोली में भैंसे बकरे काटने का घोर विरोध किया, आंदोलन किया वर्षों तक अपने खर्चे पर भैंसे बकरों को काटे जाने से रोकने के लिए प्रचार करते रहे। अंत में जब घर लौटे जब सरकार की ओर से भैंसे काटे जाने पर रोक लगाने का आदेश प्राप्त हो गया।
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छुआछूत का विरोध
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आर्य समाज छुआछूत का विरोध करता है। आर्य समाज द्वारा संचालित गुरुकुलों में छुआछुत रहित बिना किसी भेदभाव के बच्चों को शिक्षा दी जाती है। ऐसे पंडित श्री कमलदेव जी छुआछूत के घोर विरोधी थे। उन्होनें अपने गांव के सवर्ण व हरिजन तथा पिछड़ा वर्ग के बच्चों को गुरुकुल शिक्षा के लिए गुरुकुल साधुआश्रम हरदुआगंज अलीगढ़ भेजा वहां स्वयं अपने घर को छोड़कर उनकी देख रेख में लगे रहे। अपनी बेटी को भी गुरुकुल में पढ़ने को भेजा। गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली के घोर समर्थक व प्रचारक थे।
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गोचर भूमि
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महर्षि दयानंद द्वारा लिखित गोकरुणानिधि वैदिक सम्पति को पढ़ा।उसके अनुसार वैदिक अर्थव्यवस्था का मूल कृषि गऊ पालन और वृक्ष को आधार मानते हुए 30 गायें अपने घर पर रखी। आधी भूमी को गाय को चरने के लिए गोचर भूमि के रुप में छोड़ दिया तथा आधी भूमि कृषि के उपयोग के लिए छोड़ दिया। पूरा जीवन वैदिक सिद्धांतो का पालन करते हुए व्यतीत किया।
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आर्य समाज के उत्सवों का आयोजन
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पंडित श्री कमलदेव जी ने क्षेत्र में व्यापक रुप से आर्य समाज के कार्यों को सफल बनाने के लिए बाहर से उपदेशकों को बुलाकर उत्सवों का आयोजन करना प्रारम्भ किया। क्षेत्र में जहां कहीं भी मेले आदि कार्यक्रम होते थे वहां अपने बल पर वैदिक धर्म के प्रचार हेतु स्वयं पुरुषार्थ कर प्रचार कैम्प लगाये ओर उपदेशकों के माध्यम से प्रचार कराया। जब उपदेशकों को दक्षिणा की बात आई तो अपनी फसल बेचकर उपदेशकों को दक्षिणा दी। आर्य समाज के प्रति लगन और आर्य समाज की उन्नति के लिए सदा संघर्षरत रहे।
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संस्मरण - पंडित श्री कमलदेव जी का कार्यक्षेत्र
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पंडित श्री कमलदेव जी का कार्यक्षेत्र उतरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, बिहार नेपाल रहा। श्री कमलदेव जी ने 65 वर्ष तक भजनोपदेशक के रुप में आर्य समाज का तन मन धन से कार्य किया। अंतिम सांस तक आर्य समाज का कार्य करता रहूं, मैं जब तक जीऊं तक तक आर्य समाज की सेवा करता रहूं उनकी प्रबल इच्छा थी।
1. उत्तर प्रदेश के एक जिले में आर्य समाज का वार्षिकोत्सव आयोजित किया गया था। जिसमें पंडित श्री कमलदेव जी आमंत्रित थे जहां उन्होनें मूर्तिपूजा व अवतारवाद का खंडन किया। दो दिन तक कार्यक्रम चला। उनके पास दो दम्पती आये फल व कपड़े लाये। वे कहने लगे हम आपको गुरु बनाने आये हैं हमें गुरु दीक्षा दीजिए। पूज्य पंडित श्री कमलदेव जी ने कहा मैं गुरु दीक्षा नहीं देता मेरे गुरु स्वामी दयानंद हैं उनके मार्ग व सिद्धांत को स्वीकार कीजिये। दम्पति कहने लगे की हमने आपके उपदेश सुनकर मूर्तिपूजा छोड़ दी है। घंटी और शालीग्राम साथ लाये हैं। ये घंटी ओर मूर्ति शालीग्राम पीढियों पुराने हैं। इनकी लम्बे समय से हमारे यहां पूजा की जाती है। ये फल ओर मूर्ति आपको समर्पित हैं। पंडित जी ने उनको घर बुलाया उनके व्याख्यान व उपदेश का कार्यक्रम रखा। गांव के सम्पन्न और उच्च व्यक्ति थे। उनके मूर्ति पूजा के छोड़ देने पर सैंकड़ो लोगों ने मूर्ति पूजा छोड़ी ओर व्रत लिया की मूर्तिपूजा नहीं करेगें। ऐसा उनका वाणी का प्रभाव था।
2. एक व्यक्ति उनके व्याख्यान से प्रभावित हुआ और उन्हें अपने घर बुलाने का निमंत्रण दिया। पंडित जी ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। निर्धारित तिथि पर 8 मील पैदल चलकर उसके गांव पहुंचे। उस गांव के अधिकांश लोग शराबी व मांसाहारी थे। उसने शराब और मांस पर बोलने की प्रार्थना की। दो घंटे कार्यक्रम चला जिसमें शराब और मांस का खंडन किया। शराबियों में खलबली मच गई।पंडित जी पर जानलेवा हमला कर दिया। उनका हारमोनियम जला दिया। जिसने आमंत्रित किया था उसने हाथ खड़े कर दिये और कहा आपका जीवन खतरे में है, मैं आपकी रक्षा नहीं कर पाऊंगा। रात में ही पैदल चलकर पंडित जी घर पहुंचे ऐसा था उनका संघर्षमय जीवन।
3. पंडित प्रकाशवीर शास्त्री ने हरियाणा से प्रथम बार लोकसभा चुनाव लड़ा था, तब पंडित श्री कमलदेव जी उनके प्रचार में गए थे। उनसे परिचय था। बहुत दिनों बाद शास्त्री जी किसी वार्षिक उत्सव में मिले। शास्त्री जी ने कहा कि आप प्रतिनिधि सभा उत्तरप्रदेश में आ जाये और काम करें। उन्हें मेरठ में बुलाया और कहा हम आपकी सेवाएं आर्य प्रतिनिधि लखनऊ में चाहते हैं। उनके कहने पर कुछ दिन सभा में कार्य किया। पंडित जी बहराइंच के वार्षिकोत्सव पर गए थे। लौटते समय सभा कार्यालय में भी गए। सभा कार्यालय के मुख्य द्वार पर एक युवक बीड़ी पी रहा था। अंदर गए तो बाबू मुख्य सीट पर बैठ कर तम्बाकू व पान चबा रहा था। सुबह सभा के अधिकारी मूर्तियों की पूजा कर रहे थे। ये दृश्य देखकर पंडित जी ने सभा छोड़ दी। पंडित जी एक बार हाथरस आर्यसमाज के उत्सव पर गए हुए थे। वहां पर मंत्री प्रेमचंद जी ने पूछा आपने सभा क्यों छोड़ दी। पंडित जी ने कहा मैं बाहर मूर्ति पूजा का खंडन करता हूं, सभा वाले मंडन कर रहे हैं। एक ही स्थान पर मंडन ओर खंडन नहीं चल सकते। इस लिए मैने सभा छोड़ दी। फिर कभी भी सभा में नहीं गए।
4.किसी समाज का वार्षिकोत्सव था। कई उपदेशक बुलाये गए थे। वहां पंडित जी को बुलाया गया था। उत्सव में किसी उपदेशक ने आर्य समाज आयोजकों पर टिप्पणी की। उपदेशक बोले सूखी रोटी दूध घी भी नहीं देते। पंडित जी उपदेशक महोदय से कहा - उपदेशक जी! आर्य समाज के सिद्धांत ही दूध घी हैं, इससे बढ़ चढ़कर और कोई दूध और घी नहीं है। लोगों को सिद्धांत रुपी घी और दूध पिलाओ और खूद पियो कभी बिमार नहीं होओगे 100 वर्ष तक जिओगे। टिप्पणी मत करो। ईंट ओर पत्थर खाने वाले महर्षि हमारे गुरु हैं। गुरु की आज्ञा का पालन करो। टिप्पणी करने से कुछ नहीं होगा। दूध ओर घी खाना है तो मेरे घर आओ। ऐसा था उनका संतोष ओर धैर्य
5. पंडित जी ने निस्वार्थ भाव से आर्य समाज की सेवा की। अपना भरा पूरा जीवन परिवार छोड़कर गए हैं। परिवार में 6 पुत्र, 6 पुत्रवधु, 1 पुत्री, 11 पौत्र, 9 पौत्री हैं तथा 4 परपौत्र, 3परपौत्री, दोहित्र व दोहित्रों से भरा पूरा परिवार ह। पंडित जी निरोग रहे। उन्हें कोई बिमारी नहीं थी। अंतिम समय तक रक्तचाप 80-120 था। मानसिक स्थिति बिल्कुल ठीक थी। स्मरणशक्ति पूरी तरह स्वस्थ जीवेम् शरद: शतम् - भूयश्च शरद: शतात्। सौ वर्ष जीने का संकल्प पूरा अंतिम सांस ली। जीवन में कोई दवाई नहीं खाई। न ही किसी चिकित्सालय में भर्ती हुए। आहार पर नियंत्रण था। अंतिम सांस छोड़ते समय कोई उपद्रव नहीं था।
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देह त्याग
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पूज्य पंडित जी आर्य समाज के प्रखर प्रचारक थे। आर्य समाज के कागजी इतिहास के पन्नों में उनका नाम अंकित हो या न हो किंतु उनकी पहचान स्वतंत्रता आंदोलनकारियों की तरह अमर रहेगी। आर्य समाज में पंडित जी का योगदान था उनका नाम सैदव चिरस्मरणीय रहेगा। उनके कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। पंडित जी 1920 में जन्म लेकर अंतिम सांस 21 सितम्बर 2020 सायं 7 बजे ली। ईश्वर उनकी आत्मा को सदगति और परिवार को उनके दिखाये मार्ग पर चलने की शक्ति प्रदान करें। पंडित जी शत शत नमन। वैदिक धर्म की जय
लेखक :- श्री देवेन्द्र विद्याभास्कर
प्रस्तुति:- अमित सिवाहा
Friday, November 13, 2020
दिव्य दीपावली
Thursday, November 12, 2020
हैदराबाद सत्याग्रह में फिल्ड मार्शल "भजनोपदेशक"
हैदराबाद सत्याग्रह में फिल्ड मार्शल "भजनोपदेशक"
अमित सिवाहा
वर्ष 1938-39 में हैदराबाद निजाम के विरुद्ध आर्य समाज के सत्याग्रह में भजनोपदेशकों का योगदान चिरस्मरणीय रहेगा। हमारे भजनोपदेशकों ने हरियाणा प्रदेश में फिल्ड मार्शल की भुमिका निभाई। आज कुछ भजनोपदेशकों द्वारा भोगी यातनाओं का विवरण प्रस्तुत कर रहे है। हमारे भजनीकों ने आर्य समाज का प्रचार बेहद विकट परिस्थितियों में करके मिशाल कायम की है। अपने जीवन की सारी तमन्नाएं देश धर्म को अर्पित कर दी।
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महाशय हीरालाल आर्योपदेशक
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आर्यों का हैदराबाद में साधना और संघर्ष अपने आप में बेजोड़ रहा। इस धर्म की लड़ाई में देश का कोई भी भाग ऐसा नही था जहां से जाकर आर्यो ने भाग ने लिया हो। इतने विशाल स्तर का था आंदोलन। इस आंदोलन न्यायोचित कारण भी था। हैदराबाद का नवाब धर्मांध मुसलमान था। वह हिंदुवों को जीवन का अधिकार देना पसंद नही करता था। इस बारे सबसे दुखी सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने निजाम की निरंकुशता को विराम देने के लिए आंदोलन की रुपरेखा तय की। आंदोलन समाप्ती के बाद सरकार ने इसे "धर्म युद्ध " तथा सत्याग्रहियों को ""स्वतंत्रता सेनानी "" का दर्जा दिया।
हैदराबाद सत्याग्रह में महाशय जी का एक जत्था 15अगस्त 1938 को रवाना हूआ। निजाम की जेल में बंदी रहे। वहां की जेल नरक का दृश्य पेश करती थी। जेल का गंदा भोजन व दूषित जलवायु तो परेशान किए ही हुए थे, उपर से अधिकारियों ने भी खूब सख्ती कर दी थी। अधिकारियों की कठोरता और न ही उदारता उन्हें अपने किये निश्चय से गिरा सकी। जेल से दिनांक 27 सितंबर 1939 को घर आए । जेल की यातनाएं, अशुद्ध भोजन, के चलते इनको ह्रदय रोग हो गया ओर इनके साथ ही चला गया। जब सरकार ने ऐसे सत्याग्रहियों को पैंशन देना चाही तो ये संसार छोडकर जा चूके थे।
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स्वामी जगतमुनी सरस्वती
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हैदराबाद सत्याग्रह में श्री जगतराम जी ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। सर्वप्रथम सत्याग्रहियों की सहायता हेतू दान किया तथा खूद स्वामी ओमानंद सरस्वती जी के साथ हैदराबाद की गुलबर्गा जेल में 6 महिने तक यातनाएं सही। इनके साथ जेल में पंडित जगदेव सिंह सिद्धांति जी, महाशय रामपत वानप्रस्थी जी इत्यादि आर्य समाज के दीवाने थे। स्वामी जी वहां जेल में भी भजन सुनाकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाते थे।
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स्वामी विद्यानन्द सरस्वती झांसवा
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गांव लुखी व रेवासा ओर निकटवर्ती क्षेत्रों में स्वामी जी अपनी ओजस्वी वाणी व्याख्यानो का जलवा बिखेर चुके थे। उनके ओजस्वी व्याख्यानो का जिक्र कांग्रेस मुख्यालय में भी होने लगा, पंडित श्री राम शर्मा ने भी लोगो को जागरुक करने के लिए स्वामी जी के उपदेश करवाए। तत्पश्चात हैदराबाद का बिगुल बज गया। स्वामी जी निसंकोच हैदराबाद सत्याग्रह में जत्था लेकर गए और सत्याग्रह जीत कर लोटे। वापिस आए तो संस्कृत पाठशाला बंद हो चूकी थी। लेकिन उसके बाद स्वामी जी स्वतंत्र रुप से आर्य समाज के प्रचार में आ गए।
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स्वामी हीरानंद बेधड़क धमतान साहिब जींद
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देश की आजादी के लिए मर मिटने वालो में स्वामी जी का नाम भी अग्रिम पंक्तियों में लिखा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं, क्योंकि स्वामी जी पहले अंग्रेजी फौज में थे, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के व्याख्यान सुनकर अंग्रेजी फौज छोड़ दी। कई वर्षों तक नेता जी के विचारो का प्रचार भी करते रहे, वर्ष १९३८,३९ के हैदराबाद सत्याग्रह में स्वयं का जत्था लेकर गए। जेल काटी, निजाम की यातनाएं सही। हैदराबाद के सफल सत्याग्रह के बाद आर्यों में खुशी का माहौल था, स्वामी जी ने सम्पूर्ण जीवन में नौ बार जेले काटी थी।
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महाशय बलबीर झाबर अलेवा
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वर्ष १९३८/३९ के हैदराबाद सत्याग्रह में महाशय बलवीर जी भी पीछे नही रहे। सत्याग्रहियों को प्रचार के द्वारा तैयार कर खुद जत्था लेकर गए, महाशय जी के साथ प्रमुख अलेवा के श्री दलीप सिंह, श्री दीप सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहां पर महाशय जी को अमानवीय यातनाएं दी गई। निजाम की जेल में बंद रहने के बाद भी आप अविचलित रहे। ज्वार की कच्ची ,जली रोटी, कई -कई दिन सप्ताह बिना स्नान के रहे। मिट्टी के बर्तनों में खाना खाया। कोड़े खाए, लाठियां सहीं, चक्की ओर कोल्हू चलाए, परंतु अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ा। समझौता होने के बाद आप अपने प्रांत, गांव में पहुंचे।
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चौधरी पृथ्वी सिंह बेधड़क
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सन् १९३८,३९ में आर्य समाज ने हैदराबाद निजाम के हिंदुजाति के पूजा पाठ के पर प्रतिबंध के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाया। उस समय महाशय जी ने युवावस्था में कदम रखा ही था। जोश उनकी रग रग में भरा था। उस सत्याग्रह में इनका योगदान अग्रणी था। जहां जेल की यातनाओं का सहवन भी किया ओर अपनी ओजस्वी वाणी से सबका मन हर लिया। यहां सब इन्हें पिता जी के नाम से बुलाते। निजाम उनसे क्रोधित थे। ओर कैदियों को सीमेंट मिले आटे की रोटियां देते
तब महाशय जी ने ललकार कर कहा - देखी हमने निजाम, तेरी निजामी, हैदराबाद जेल में। निजाम भी उनके तर्क एवं संगत पूर्ण विचारों से प्रभावित हूए बीना रह न सके। ओजस्वी गाने की पक्तिं के आधार पर भोजन व्यवस्था में सुधार कर दिया ओर पुजा पाठ पर से प्रतिबंध हटा दिया।
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पंडित भूराराम आर्योपदेशक
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पंडित भूराराम जी इनके बेटे, वैद्य हरिसिंह व इनके बेटे अपने पूरे परिवार सहित हैदराबाद सत्याग्रह में कूच कर गए। इनको हैदराबाद की जेलों में बंदी बनाकर रखा गया। भूराराम जी स्वयं का जत्था लेकर रोहतक से रवाना हुए थे। इनको हैदराबाद के निजाम ने सीमेंट मिली आटे की रोटी मिलती। निजाम की क्रूरता आर्य समाजियों के प्रति ज्यादा थी। हैदराबाद सत्याग्रह समाप्त होने के बाद ये गांव लौेटे। हैदराबाद सत्याग्रह की पैंशन भी लेने से मना कर दिया था। इसके थोड़े दिन बाद लोहारु कांड में भी भूराराम जी गए। आजादी के बाद भूराराम जी जालंधर प्रतिनिधि सभा के उपदेशक रहे।
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स्वामी नित्यानंद सरस्वती
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स्वामी नित्यानंद जी ने हैदराबाद सत्याग्रह को सफल बनाने के लिए तन मन धन से सहयोग किया। उन्होने प्रचार करके सत्याग्रह को जन जन तक पहूंचा दिया। ओर भगत फूल सिंह जी रोहतक जत्थे को लेकर प्रधानता कर रहे थे। स्वामी नित्यानंद जी २५ सत्याग्रहियों के साथ निकल पड़े जिनको तिलक खूद बहन सुभीषिणि व यशोदा ने किया। जत्था हैदराबाद पहूंचा तो निजाम के सामने स्वामी नित्यानंद जी भजन गा रहे थे वो चौंकन्ने होकर बोले ये आदमी आ रहे हैं या हाथी। हरेक आर्य विद्वज्जन ने इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। कुंवर जौहरी सिंह जसराणा भी इस सत्याग्रह में स्वयं ही पहुंच गए। भक्त फुल सिंह जी ने इनका विरोध किया ओर कहा आपकी यहां जरुरत नहीं है। अपितु आप वहां रहकर जत्थे भेजने का कार्य करे। कुंवर जौहरी सिंह जी ने ऐसा उचित समझा।
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कवि रतन सिंह चौहान मितरौल
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हैदराबाद सत्याग्रह में कवि रतन सिंह जी औरंगाबाद जत्थे में सम्मिलित हुए ओर गिरफ्तार देकर करीबन ढेड वर्ष के बाद वापस आए। आपके साथ, जसवंत आर्य,स्वामी रघुवर दास जी व अन्य सत्याग्रही (नाम ज्ञात नहीं) सम्मिलित थे। आपने पैंशन लेने के लिए भी मना कर दिया। ये जानकारी आपके शिष्य महाशय भजनलाल जी ने बताई। आपने आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन में भी भाग लिया।
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पंडित प्रभुदयाल आर्य प्रभाकर पौली जींद
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इस आंदोलन में अनेको जगह से आर्यों ने इकट्टे होकर निजाम का विरोध किया ओर आर्य समाज की विजय हूई।इस आंदोलन में आर्य प्रादेशिक सभा दिल्ली के अंतर्गत पंडित जी भी गए। ओर सक्रिय भूमिका निभाई। इसी दौरान इनको सात महिने की जेल हूई। हैदराबाद के निजाम उस्मान ने इनको इतनी यातनाएं दी की दिन में भुखे पेट चार चार किलो ज्वार का आटा पिसना, सोने के लिए भी कंकरों के उपर बीना बिस्तर के सोना, ओर खाने में दो ज्वार के आटे की रोटी। भुख प्यास से व्याकुल हूए लेकिन फिर भी अपने पथ पर रहे। हैदराबाद जेल में पंडित जी 22/1/1939से 18/8/1939तक रहें। अंग्रेजो का दमन चक्र भी सहा, आजादी के लिए भी पंडित जी ने जमकर प्रचार किया। अप्रैल 1939 में रोहतक जत्थे पर मुसलमानों ने हमला कर दिया जिससे गुरुकुल भैंसवाल के ब्रह्मचारी बुरी तरह घायल हो गए, इस हमले से पंडित जी को बहुत चोटें आई। ऐसे ही जून में निजाम के सिपाहियों ने जत्थे पर हमला किया वहां भी पंडित जो अनेको चोटें आई। कड़कति धूप में पंडित घास खोदते तब जाकर वहां का निजाम रुखी सुखी रोटी देता। लेकिन अंतत: आर्यो के सामने निजाम ने घुटने टेक दिये।
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महाशय रामपत वानप्रस्थी आसन रोहतक
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१९३९ के हैदराबाद आंदोलन में आर्यों ने अपनी ताकत लोहा मनवाया जिसका श्रेय उपदेशको, भजनोपदेशकों, विद्वानों को जाता है। महाशय रामपत जी ने इस आंदोलन में आसन्न गांव के आसपास पाक्कसमां, भालौट, बोहर इत्यादि गांवो से दो महिने तक जत्थे तैयार करते रहे, वहां से सत्याग्रही तैयार कर उन्होनें अपनी अपनी गिरफ्तारी दी। हैदराबाद के निजाम द्वारा दी गई अनेकों यातनाएं वहन की। भक्त फूल सिंह जी से महाशय रामपत जी भी आज्ञा पाकर खूद सत्याग्रह के लिए निकल पड़े, आचार्य भगवान देव,जगदेव सिंह सिद्धांति जी के साथ इनको गुलबर्गा जेल में रखा, वहां भी महाशय जी जोशीले भजन सुनाकर सत्याग्रहियों में जोश भरते थे। निजाम हैदराबाद से समझौता होने पर घर लौटे, ओर आर्य समाज के प्रचार में लगे रहे।
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चौधरी नर सिंह भापड़ोदा
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हैदराबाद सत्याग्रह में भापड़ोदा गांव का विशेष योगदान था। गांव की गली गली से सत्याग्रही तैयार हो गए। क्रांतिकारियों ने सीधा निजाम से टक्कर जा ली। चौधरी नरसिंह जी व प्यारेलाल जी ने पैदल कूच करते हुए सत्याग्रह का नाद अपने क्षेत्र में गुंजा दिया। चौधरी नरसिंह जी व अन्य उपदेशक इस दृष्टिकोण से सत्याग्रह के लिये सबसे उपयुक्त थे। वे जनसाधारण में उन्हीं की भाषा में और उन्हीं की निजाम की बुराई करते और सत्याग्रह के लिए वातावरण तैयार किया। इस प्रकार के गीत की एक पंक्ति देखिए, जो नरसिंह जी व अन्य उपदेशक गाया करते ---
"कान शेर के थ्यागे धोके में, निजाम कै"
इस प्रकार के गीत गाकर सत्याग्रहियों में जोश फुंक देते थे। चौधरी नरसिंह जी खूद सत्याग्रह में गांव वालो के साथ चले गए और हैदराबाद की जेलों में कैद हो गए। इनके साथ भापड़ोदा के कन्हैयालाल, जयदेव सिंह, देशराज, मांगेराम, मातूराम, लालचंद,मनफुल,सिद्धराम,सूरजभान,हेतराम, हिरदे, ज्ञानचन्द्र, ज्ञानीराम इत्यादि सत्याग्रहियों को औरंगाबाद निजामाबाद की जेलों में रखा गया। वहां पर सभी सत्याग्रहियों को खाने पीने, नहाने इत्यादि की यातनाएं दी गई। सत्याग्रहियों को निजाम के सैनिक कोड़े बैंत इत्यादि भी मारते। निजाम के साथ समझोता होने पर सभी सत्याग्रही घर वापिस लौटे।
नोट :- वर्तमान समय में कुछ मतिभ्रष्ट, तुच्छ प्राणी आर्य समाज के भजनोपदेशकों को चटोरा लिखते हैं। जबकि खुद का चरित्र हरियाणा जानता है। इन्हीं भजनोपदेशक की वजह से सभी सत्याग्रह सफल रहे। जिसका आज हरियाणा की जनता आनंद ले रही है। हमारा अगला लेखन हिंदी आंदोलन में भजनोपदेशकों के समर्पण पर होगा।