Thursday, November 23, 2017

बहकावे में न आये। अपना दिमाग लगाये।



बहकावे में न आये। अपना दिमाग लगाये।

एक पुरानी कहानी आज स्मरण हो आई। एक पंडित को एक गौ दान में मिली। वह गौ लेकर अपने घर को चल दिया। रास्ते में चार चोरों ने उस पंडित से वह गौ छीनने की योजना बनाई। चारों अलग अलग कुछ दूरी पर छिप गए। पहला चोर ग्रामीण का वेश बनाकर पंडित जी से नमस्ते करते हुए बोला पंडित जी "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी ने मन में सोचा। कैसा मुर्ख व्यक्ति है। एक गौ और बकरी में अंतर करना भी नहीं जानता। पंडित जी नमस्ते का उत्तर देकर बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए आगे चल दिए। आगे दूसरा चोर उन्हें मिला और वह भी पहले के समान पंडित जी से बोला "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी ने मन में सोचा। पहले वाला भी गौ को बकरी कह रहा था। यह भी गौ को बकरी कह रहा है। दोनों मिलकर मुझे मुर्ख बनाने का प्रयास कर रहे है। मैं इनके बहकावे में नहीं आने वाला। आगे अगला तीसरा चोर उन्हें मिला और वह भी पहले के समान पंडित जी से बोला "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी ने मन में सोचा। अब तो मुझे भी यह लगने लगा है कि यह गौ नहीं बकरी है। मगर मैं अभी इसकी बात पर विश्वास नहीं करूँगा। अगर आगे कोई इस पशु को बकरी कहेगा तो मैं मान लूंगा। आगे अंतिम चोर उन्हें मिला और वह भी पहले के समान पंडित जी से बोला "यह बकरी किधर लेकर जा रहे हो"। पंडित जी से रहा न गया। उन्होंने उदास मन से यह निर्णय लिया की आज उन्हें ठगा गया है। गौ कहकर बकरी दान दे दी गई है। पंडित जी ने भ्रम के चलते उस गौ को बकरी समझकर वही त्याग दिया और खाली हाथ आगे चल दिए। अंतिम चोर गौ को लेकर अपने मित्रों से जा मिला और खूब जोर से सब पंडित की मूर्खता पर खूब हँसे।

मित्रों यह खेल हिन्दू समाज के साथ 1947 के बाद से आज भी निरंतर खेला जा रहा है। 1200 वर्ष के इस्लामिक अत्याचारों, मुग़लों और अंग्रेजों के अत्याचारी राज के पश्चात देश के दो टुकड़े कर हमें आज़ादी मिली। उसके बार भी हिन्दुओं को अपना शासन नहीं मिला। सेकुलरता के नाम पर अल्पसंख्यक मुसलमानों को प्रोत्साहन दिया गया। हिन्दुओं को हिन्दू कोड बिल में बांध दिया गया और मुसलमानों को दर्जन बच्चे करने की खुली छूट दी गई। 100 करोड़ हिन्दुओं के लिए सरकार द्वारा राम-मंदिर बनाना सुलभ नहीं है मगर हज हाउस बनाना सुलभ किया गया। लव जिहाद को सेकुलरता का प्रतीक बताया गया। संविधान ऐसा बनाया गया कि हर गैर हिन्दू अपने मत का प्रचार करे तो किसी को कोई दिक्कत नहीं मगर हिन्दू समाज रक्षात्मक रूप से अपनी मान्यता का प्रचार करे तो उसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों का दमन बताया गया। गौरक्षा करना गुण्डई और गाय की कुर्बानी मज़हबी आस्था बताया गया। हमारे धर्मग्रन्थ वेद और धर्मशास्त्र पिछड़े बताये गए जबकि सेमेटिक मतों के ग्रंथों को वैज्ञानिक और आधुनिक बताया गया। रामायण और महाभारत को मिथक और विदेशियों के ग्रंथों को सत्य बताया गया। हमारे पूर्वजों के महान और प्रेरणादायक इतिहास को भुला दिया गया और अकबर महान, गौरी महान और ग़जनी महान बताया गया। विदेशी सभ्यता, विदेशी पहनावा,विदेशी सोच, विदेशी खान-पान, विदेशी आचार-विचार को सभ्य और स्वदेशी चिंतन, स्वदेशी खान-पान, स्वदेशी पहनावा आदि को असभ्य दिखाया गया।  चोटी-जनेऊ और तिलक को पिछड़ा हुआ जबकि टोपी और क्रॉस पहनने को सभ्य दिखाया गया। संस्कृत भाषा को मृत और हिंदी को गवारों की भाषा बताया गया जबकि अंग्रेजी को सभ्य समाज की भाषा बताया गया। हवन-यज्ञ से लेकर मृतक के दाह संस्कार को प्रदुषण और जमीन में गाड़ने को वैज्ञानिक बताया गया। आयुर्वेद को जादू-टोना बताया गया जबकि ईसाईयों की प्रार्थना से चंगाई और मुस्लिम पीरों की कब्र पूजने को चमत्कार बताया गया।

झूठ पर झूठ, झूठ पर झूठ इतने बोले गए कि हिन्दू समाज की पिछले 70 सालों में पैदा हुई पीढ़ियां इन्हीं असत्य कथनों को सत्य मानने लग गई। अपने आपको हिन्दू/आर्य कहने से हिचकने लगी जबकि नास्तिक/सेक्युलर या साम्यवादी कहने में गौरव महसूस करने लगी।  किसी ने सत्य कहा है कि झूठ को अगर हज़ार बार चिल्लाये तो वह सत्य लगने लगता हैं।

जैसे उस अपरिपक्व पंडित को चोरों ने बहका दिया था। ठीक वैसे ही हम भी बहक गए है। आज आप निश्चय कीजिये कि क्या आप आज भी बहके रहना चाहते है अथवा सत्य को स्वीकार करना चाहते हैं। निर्णय आपका है।


(राष्ट्रहित में जारी)

डॉ विवेक आर्य


Thursday, November 16, 2017

सैक्युलरवादी और आर्य संवाद



सैक्युलरवादी और आर्य संवाद :-

आर्य :- "अरे भाई सुनो !! कल शाम को मेन बाजार से काँवड़ यात्रा निकालते हुए शिवभक्तों पर पथराव हुआ !"
सैक्युलर :- "अरे !! ये तो बेचारे मुस्लिम भाईयों को जानबूझकर फंसाया जा रहा है "

आर्य :- "महाश्य ! मैने कब ये बोला कि मुस्लिमों ने ये पथराव किया है ? मैने तो किसी का नाम नहीं लिया । केवल यही बोला कि पथराव हुआ है "
सैक्युलर :- "कुछ भी हो जानबूझकर मुस्लिम भाईयों को फँसाया जाता है"

आर्य :- "लेकिन भाईसाहब ! हमने कब बोला कि मुस्लिमों ने पथराव किया है ? आप बार बार ! मुस्लिमों का नाम क्यों ले रहे हैं ? यानी कि आप भी दिल से मानते हैं कि ये पथराव मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं ?"
सैक्युलर :- "नहीं मेरा मतलब है ! कोई भी छोटी मोटी झड़प हो तो उसमें मुस्लिमों को ही दोष दिया जाता है"

आर्य :-" लेकिन ये दोश तो आप स्वयं ही दे रहे हो हमने तो केवल इतना ही बोला कि पथराव हुआ । और आप कूद पड़े मुस्लिम समुदाय की वकालत करने । केवल इतना बता दो कि शिव भक्तों पर जिन्होंने पत्थर मारे उनपर कारवाई होनी चाहिए कि नहीं ?"
सैक्युलर :- "हाँ हाँ ! बिलकुल होनी चाहिए । लेकिन किसी को किसी मज़हब के आधार पर ऐसे ही सज़ा नहीं होनी चाहिए ।"

आर्य :- "तो भाई इसमें मज़हब को क्यों बीच में ला रहे हो ? मैने तो यही बोला कि शिव भक्तों की काँवड़ यात्रा पर कुछ लोगों ने पत्थर मारे और उनपर कारवाई होनी चाहिए । इसमें क्या गलत है ?"
सैक्युलर :- "पता है ! तुम जैसे लोग ही देश में दंगे करवाते हो और नफरत फैलाते हो !"

आर्य :- " अजीब व्यक्ति हो आप भी !! अरे मैं तो केवल ये बोल रहा हूँ कि शिव भक्तों पर जो पत्थराव हुआ उन दोषीयों पर कारवाई होनी चाहिए । बस इतनी सी बात है । इसमें नफरत फैलाने और दंगा करवाने वाली बात कहाँ से और कैसे आ गई ?"
सैक्युलर :- "तुम लोग ऐसे ही करते हो बेचारे अल्पसंख्यको को झूठे मामलों में फँसाकर उनके खिलाफ नफरत उगलते हो ।"

आर्य :- "अरे हद है यार !! बात को कहाँ से कहाँ पहुँचा रहे हो ? हम इतना कह रहे हैं जिसने जो अपराध किया है उसे उसकी सज़ा मिले । अब यदि पत्थराव करने वाले मुस्लिम समुदाय से हैं तो क्या हम उनके द्वारा किए अपराध को छुपा दें या खारिज कर दें ? और किसी को अपराध की सज़ा देना कहाँ से नफरत फैलाना हो गया ?"
सैक्युलर :- "देखो आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ।"

आर्य :- "बिल्कुल सही कहा जी आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन, मज़हब होता है । एक शांतीप्रिय मज़हब !"
सैक्युलर :- "क्या मतलब है आपका ?"

आर्य :-"आतंकवाद केवल हाथ में बंदूक उठाकर लोगों को मारने का नाम ही नहीं है बल्कि अपने मज़हब से अलग सोच रखने वाले लोगों को हर तरह से प्रताड़ित करने का प्रयास करना, उनके धार्मिक कार्यक्रमों में उपद्रव करना, पत्थर मारना, उनकी लड़कियों से छेड़छाड़ करना, अपने जैसे लोगों की भीड़ के द्वारा दंगे करके उनके घरों को आग लगाना, उनकी जमीनों पर अवैध कब्जा करना, बेवजह उनसे नफरत करना, उनके पूजा करने वाले स्थानों पर हमले करना, उनकी औरतों पर नज़र रखना आदि ये सब आतंकवाद ही है और इन अमानवीय कृत्यों में जो लिप्त है वो आतंकवादी ही है ।"
सैक्युलर :- "कोई भी धर्म हमें आपस में लड़ना नहीं सिखाता "

आर्य :-"मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना । परन्तु धर्म नहीं सिखाता । क्योंकि धर्म तो सत्यभाषण, परोपकार, सेवा, दान, तप, विद्या आदि को बोला जाता है । तो धर्म कैसे फूट डाल सकता है ? मज़हब ही कहता है कि मेरे पीर पैगंबर को न मानने वालों को जीने का अधिकार नही है ।"

To be continued........!

Tuesday, November 14, 2017

सेकुलरिज्म का नशा



सेकुलरिज्म का नशा

डॉ विवेक आर्य

कश्मीर। कभी शैव विचारधारा की पवित्र भूमि कही जाने वाले कश्मीर में आज अज़ान और आतंवादियों की गोलियां सुनाई देती हैं। कश्मीर के इस्लामीकरण में सबसे पहला नाम बुलबुल शाह का आता है।  बुलबुल शाह के बाद दूसरा बड़ा नाम मीर सैय्यद अली हमदानी का आता है। हमदानी कहने को सूफी संत था मगर कश्मीर में कट्टर इस्लाम का उसे पहला प्रचारक कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। श्रीनगर में हमदानी की ख़ानख़ा-ए -मौला के नाम से स्मारक बना हुआ है। पुराने कश्मीरी इतिहासकारों के अनुसार यह काली देवी का मंदिर था। इस पर कब्ज़ा कर इसे इस्लामिक  ख़ानख़ा में जबरन परिवर्तित किया गया था। सबसे खेदजनक बात यह है कि वर्तमान में कश्मीरी हिन्दुओं की एक पूरी पीढ़ी हमदानी के इतिहास से पूरी प्रकार से अनभिज्ञ है। कुछ को सेक्युलर नशा चढ़ा है। उनके लिए मंदिर और ख़ानख़ा में कोई अंतर नहीं है।  कुछ को सूफियाना नशा चढ़ा है।  वे सूफियों को हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक समझते है।  सारा दोष हिन्दुओं का है जो अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा न के बराबर देते है। इसलिए श्रीनगर में रहने वाला अल्पसंख्यक हिन्दू इतिहास की जानकारी न होने के कारण हमदानी की ख़ानख़ा में माथा टेकने जाता है।

आईये पहले हमदानी के इतिहास को जान ले।

हमदानी का जन्म हमदान में हुआ था। वह तीन बार कश्मीर यात्रा पर आया। यह सूफियों के कुबराविया सम्प्रदाय से था।  यह मीर सैय्यद अली हमदानी ही था जिसने कश्मीर के सुलतान को हिन्दुओं के सम्बन्ध में राजाज्ञा लागु करने का परामर्श दिया गया था। इस परामर्श में हिन्दुओं के साथ कैसा बर्ताव करे। यह बताया गया था। हमदानी के परामर्श को पढ़िए।

-हिन्दुओं को नए मंदिर बनाने की कोई इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को पुराने मंदिर की मरम्मत की कोई इजाजत न हो।

-मुसलमान यात्रियों को हिन्दू मंदिरों में रुकने की इजाज़त हो।

- मुसलमान यात्रियों को हिन्दू अपने घर में कम से कम तीन दिन रुकवा कर उनकी सेवा करे।

-हिन्दुओं को जासूसी करने और जासूसों को अपने घर में रुकवाने का कोई अधिकार न हो।

-कोई हिन्दू इस्लाम ग्रहण करना चाहे तो उसे कोई रोकटोक न हो।

-हिन्दू मुसलमानों को सम्मान दे एवं अपने विवाह में आने का उन्हें निमंत्रण दे।

-हिन्दुओं को मुसलमानों जैसे वस्त्र पहनने और नाम रखने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को काठी वाले घोड़े और अस्त्र-शस्त्र रखने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को रत्न जड़ित अंगूठी पहनने का अधिकार न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम बस्ती में मकान बनाने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम कब्रिस्तान के नजदीक से शव यात्रा लेकर जाने और मुसलमानों के कब्रिस्तान में शव गाड़ने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को ऊँची आवाज़ में मृत्यु पर विलाप करने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम गुलाम खरीदने की इजाजत न हो।

मेरे विचार से इससे आगे कुछ कहने की आवश्यता ही नहीं है।

(सन्दर्भ- Zakhiratul-muluk, pp. 117-118)

मेरे विचार से अगर कोई हिन्दू हमदानी के विचार को जान लेगा तो वह कभी हमदानी की ख़ानख़ा जाने का विचार नहीं करेगा। यह सेकुलरिज्म का नशा है।  इसे उतारना ही होगा।

(सलंग्न चित्र में एक हिन्दू भाई हमदानी की ख़ानख़ा में माथा टेकते हुए। यह चित्र एक कश्मीर के अख़बार के संपादक ने अपने ट्विटर अकाउंट पर हमदानी की खँखा को  हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बताते हुए प्रकाशित किया है। )

Wednesday, November 1, 2017

राजा राममोहन राय और ईसाई मत




राजा राममोहन राय और ईसाई म

डॉ विवेक आर्य

राजा राममोहन राय अपने काल के प्रसिद्द समाज सुधारकों में से थे। वे हिन्दू समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों के विरोध में आवाज़ उठाते थे। वे अंग्रेजी शिक्षा और अंग्रेजी भाषा के बड़े समर्थक भी थे। इसलिए अंगरेज उन्हें अपना आदमी समझते थे। सती प्रथा पर प्रतिबन्ध के लिए भी अंग्रेजों ने उन्हें सहयोग दिया था। राममोहन राय ने ग्रीक और हिब्रू भाषा का विस्तृत अध्ययन कर ईसाई मत के इतिहास और मान्यतायों का गहरा अध्ययन भी किया था।
उसी काल में ईसाईयों ने बंगाल के ईसाईकरण करण की योजना बनाई। यूरोप और अमेरिका से ईसाई मिशनरियों के जत्थे के जत्थे भर भर कर बंगाल आने लगे। ईसाइयत के प्रचार के लिए ईसाईयों ने ऐसे ऐसे तरीके अपनाये जो कोई मतान्ध व्यक्ति ही अपना सकता हैं। ईसाई पादरियों ने बड़ी संख्या में ऐसे साहित्य को प्रकाशित किया जिनमें हिन्दू देवी देवताओं के विषय में भद्दी भद्दी टिप्पणीयों की भरमार थी और ईसाइयत की भर भर का प्रशंसा थी। इस साहित्य को ईसाई पादरी गली-मोहल्लों, हिन्दू मंदिरों-मठों, चौराओं पर खड़े होकर जोर जोर से पढ़ते। अत्यंत गरीब और पिछड़े हुए हिन्दू ईसाईयों के विशेष निशाने पर होते थे। अंग्रेजी राज होने के कारण हिन्दू समाज केवल रोष प्रकट करने के अतिरिक्त कुछ न कर पाता था। राजाराममोहन राय पादरियों की इस करतूत से अत्यंत क्षुब्ध हुए। उन्होंने ईसाईयों की ऐसी कुटिल नीतियों का अपनी कलम से विरोध करना आरम्भ कर दिया। जो अंग्रेज उनके कभी प्रगाढ़ साथी थे वे उनके मुखर विरोधी हो गए। राजा जी ने अनेक पुस्तकें ईसाइयत के विरोध में प्रकाशित की थीं। उन्होंने बांग्ला और अंग्रेजी भाषा में द ब्राह्मणीकल मैगज़ीन (The Brahmanical Magazine) के नाम से पत्रिका भी प्रकाशित करनी आरम्भ की थी। इस पत्रिका के पहले अंक में ही उन्होंने ईसाई मिशनरियों के हिन्दुओं और मुसलमानों को ईसाई बनाने के तोर-तरीकों का पर्दाफाश किया था। राजा जी लिखते है कि अगर ईसाई मिशनरी में दम हो तो जिन देशों में अंग्रेजों का राज्य नहीं है जैसे इस्लामिक तुर्की आदि में इसी विधि से अपना प्रचार करके दिखाए। अंग्रेजी राज में ऐसा करना बड़ा सरल है। एक ताकतवर सत्ता का एक कमजोर प्रजा पर ऐसी गुंडागर्दी करना कौन सा बड़ा कार्य है।

राजा जी ने ईसाईयों के विभिन्न मतों में विभाजित होने और एक दूसरे का घोर विरोधी होने का विषय भी उठाया। उन्होंने लिखा की ईसाईयों में ही यूनिटेरियन (Unitarian) और फ्रीथिंकर (Free Thinker) जैसे अनेक समूह है जो ट्रिनिटी के सिद्धांत को बाइबिल सिद्धांत ही नहीं मानते। जैसा बाकि ईसाई समाज मानता है। रोमन कथोलिक, प्रोटोस्टेंट, यूनिटेरियन आदि एक दूसरे को कुफ्र और अपना विरोधी बताते हैं। यह कहां की ईसाइयत है?

राजा जी ने ईसाईयों के ट्रिनिटी सिद्धांत (Theory of Trinity) पर भी कटाक्ष किया। इस सिद्धांत के अनुसार एक ईश्वर, एक ईश्वर का दूत और एक पवित्र आत्मा। यह तीन भिन्न भिन्न सता हैं। जो एक भी है और अलग भी हैं। राजा जी का कहना था कि यह कैसे संभव है कि एक ईश्वर अपना ही सन्देश देने के लिए अपना ही दूत बन जायेगा ? अपना ही नौकर बनकर सूली पर चढ़ जायेगा? राजा जी ने इस विषय से सम्बंधित एक व्यंग भी प्रकाशित था। इस व्यंग के अनुसार एक यूरोपियन मिशनरी अपने तीन चीनी शिष्यों से पूछता है कि बाइबिल के अनुसार ईश्वर एक है अथवा अनेक। पहला शिष्य कहता है ईश्वर तीन हैं। दूसरा कहता है कि ईश्वर दो है और तीसरा कहता है कि कोई ईश्वर नहीं है। ईसाई मिशनरी उनसे इस उत्तर को समझाने का आग्रह करता है। पहला शिष्य कहता है कि एक ईश्वर, एक ईश्वर का दूत और एक पवित्र आत्मा के आधार पर ईश्वर तीन हुए। दूसरा कहता है कि ईश्वर का दूत अर्थात ईसा मसीह तो सूली पर चढ़ाकर मार दिया गया। इसलिए तीन में से दो रह गए। तीसरा शिष्य कहता है कि ईसाईयों का एक ईश्वर ईसा मसीह था। जिसे 1800 वर्ष पहले सूली पर चढ़ाकर मार दिया गया। इसलिए ईसाईयों का अब कोई ईश्वर नहीं है। प्रश्न पूछने वाला ईसाई मिशनरी हक्का बक्का रह गया।

राजा जी ईसाईयों के पाप क्षमा होने के सिद्धांत के भी बड़े आलोचक थे। उनका कहना था कि यह कैसे संभव है कि करोड़ो लोगों द्वारा किया गया पाप अकेले ईसा मसीह कैसे भुगत सकता है? पाप करे कोई अन्य और भुगते कोई अन्य। ईसा मसीह ने जब कोई पापकर्म ही नहीं किया तो वह क्यों अन्यों का पाप कर्म भुगते? क्या यह किसी निरपराध को भयंकर सजा देना और पापी को अपराध मुक्त करने के समान नहीं हैं? पापियों को पाप का दंड न मिलना और किसी अन्य को उसके पापों की सजा मिलना अव्यवाहरिक एवं असंभव है। इस खिचड़ी से अच्छा तो हिन्दुओं का कर्म फल सिद्धांत है कि जो जैसा करेगा वैसा भरेगा।

राजा जी ने बाइबिल में वर्णित चमत्कार की कहानियों की भी समीक्षा लिखी। बाइबिल में वर्णित चमत्कार की कहानियों को गपोड़े सिद्ध करते हुए राजा जी लिखते है कि जिन काल्पनिक कहानियों से ईसाई मिशनरी हिन्दुओं को प्रभावित करना चाहते है। उन कहानियों से कहीं अधिक विश्वसनीय एवं प्रभाव वाली कहानियां तो ऋषि अगस्तय, ऋषि वशिष्ठ , ऋषि गौतम से लेकर श्री राम, श्री कृष्ण और नरसिंघ अवतार के विषय में मिलती हैं। आखिर ईसाई मिशनरी ऐसा क्या प्रस्तुत करना चाहते हैं जो हमारे पास पहले से ही नहीं हैं?

राजा जी का वर्षों तक ईसाई पादरियों से संवाद चला। उनके प्रयासों से बंगाल के सैकड़ों कुलीन परिवारों से लेकर निर्धन परिवारों के हिन्दू ईसाई बनने से बच गए। राजा जी की इंग्लैंड में असमय मृत्यु से उनका मिशन अधूरा रह गया। ब्रह्मसमाज के बाद के केशवचन्द्र सेन जैसे नेता ईसाइयत, अंग्रेजीयत और आधुनिकता के प्रभाव में आकर हमारी ही संस्कृति के विरोधी बन गए। मगर राजा जी अपनी विद्वता और ज्ञान का सारा श्रेय अपने प्राचीन धर्मग्रंथों जैसे दर्शन-उपनिषद् आदि को ही आजीवन देते रहे।

इतिहास की पाठय-पुस्तकों में राजा जी को केवल सती प्रथा के विरोध में आंदोलन चलाने वाले के रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं। मगर उनका हिन्दू समाज की ईसाइयत से रक्षा करने वाले बुद्दिजीवी के रूप में योगदान को साम्यवादी इतिहासकारों ने जानकार भुला दिया। राजा जी के योगदान को हम सदा स्मरण कर उनसे प्रेरणा लेते रहेंगे।