सिक्ख गुरू और वेद
कुमार आर्य
जैसा कि सब जानते है कि बहुत से सिक्ख युवा पिछले कई दशकों से वैदिक सनातन धर्म से अलगाववाद की भावना को पाले हुए हैं । इसी के चलते ये लोग अपनी ही जड़ों को काटने में बहुत गर्व का अनुभव भी करते हैं । मुख्य कारण ये है कि आज 95 % सिक्ख तो वैसे ही ग्रंथ साहिब की शिक्षा से दूर जा चुके हैं और वे उन्हीं बातों पर अधिक विश्वास रखते हैं जो सिक्खों को वैदिक मार्ग से अलग बताती हैं । इन्हीं निंदायुक्त बातो को मानकर बहुत से अलगाववादी सिक्ख वेद को काल्पनिक पुस्तक कहते है और जी भरकर इनकी निंदा करते है। लेकिन वे लोग ये नहीं समझते कि वेद कोई इतिहास की पुस्तकें नहीं है बल्कि मनुष्यों को जीवन जीने की शिक्षा देने वाले सिद्धांतों का नाम ही वेद है । परंतु भूलकर कोई सिक्ख पाठी या ग्रंथी गुरु ग्रंथ साहिब को ध्यानपूर्वक पढ़ लेता है तो वह स्वयं ही वेद की शिक्षा से अपने आप को जुड़ा हुआ पाता है ।
जैसे कि नीचे लिखे प्रमाणों से सिद्ध है :-
ਉੰਕਾਰ ਬ੍ਰਹਮਾ ਉਤਪੱਤੀ । ਉੰਕਾਰ ਕਿਯਾ ਜਿਨ ਚਿਤਿ ।।
ਉੰਕਾਰ ਸੈਲ ਜੁਗ ਭਏ । ਉੰਕਾਰ ਵੇਦ ਨਿਰਮਾਏ ।।
ਉੰਕਾਰ ਸ਼ਬਦ ਉਧਰੇ । ਉੰਕਾਰ ਗੁਰਮੁੱਖ ਤਰੇ ।।
( ਰਾਗ ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ਉੰਕਾਰ ਸ਼ਬਦ ੧ )
ओंकार ( ओ३म् ) से ही ब्रह्मा ऋषि की उत्पत्ति हुई ओंकार से ही ज्ञान हुआ । ओंकार से शब्द उत्पन्न हुए । ओंकार ही सब युगों में व्याप्त । ओंकार से वेद प्रकटे । ओंकार से ही गुरुमुख तरते हैं ।
ਚਉਥ ਉਪਾਏ ਚਾਰੇ ਵੇਦਾ । ਖਾਣੀ ਚਾਰੇ ਵਾਣੀ ਭੇਦਾ ।।
( ਰਾਗ ਬਿਲਾਵਲ ਮਹਲਾ ੧ ਥਿਤਿ )
चारों ज्ञानों के आधार चार वेद प्रकट हुए हैं । चारों को उनकी वाणी ( विषय ) के आधार पर विभाजित किया गया है ।
ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਹੋਏ ਸਚਿਆਰ । ( ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ਵਾਰ ੧੩ )
चारों वेद सत्य हैं ।
ਚਤੁਰਵੇਦ ਮੁੱਖ ਵਚਨੀ ਉਚਰੇ । ( ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਸ਼ਬਦ ੧੩੪ )
चारों वेद वाणी द्वारा प्रकाशित हुए ।
ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਬ੍ਰਹਮੇ ਕਉ ਪੜ੍ਹ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਵਿਚਾਰੀ । ( ਰਾਗ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਅਸ਼ਟਪਦੀਆਂ ੩ )
चारों वेद पढ़ पढ़ कर ही ब्रह्म ( ईश्वर ) को विचारा जाता है ।
ਅਸੰਥ ਗ੍ਰੰਥ ਮੁੱਖ ਵੇਦ ਪਾਠ ।
ਗੁਰਮੁੱਖ ਪਰਚੇ ਵੇਦ ਵਿਚਾਰੀ ।। ( ਰਾਗ ਰਾਮਕਲੀ ਸਿੱਧ ਗੋਸ਼ਟ ਸ਼ਬਦ ੨੮ )
ग्रंथ तो असंख्य हैं लेकिन सबसे मुख्य वेद पाठ ही है । जो गुरुमुख होता है वह निश्चित रूप से वेद विचार करता है ।
ਨਾਨਕ ਵਿਚਾਰਹਿ ਸੰਤ ਜਨ ਚਾਰ ਵੇਦ ਕਹੰਦੇ ।। ( ਰਾਗ ਗੌੜੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ਵਾਰ ੧੨ )
नानक जी के विचार से संत जन चारों वेदो की बातें कहते हैं ।
ਵੇਦ ਕਤੇਵ ਕਹਹੂ ਮਤ ਝੂਠੇ ਝੂਠੀ ਜੋ ਨਾ ਵਿਚਾਰੇ ।। ( ਰਾਗ ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ਸ਼ਬਦ ੩ )
वेद झूठे नहीं हैं बल्कि झूठा वही है जो न विचारे ।
ਸਮ੍ਰਤੀ ਸਾਸਤਰ ਵੇਦ ਪੁਰਾਣ । ਪਾਰਬ੍ਰਮ੍ਹ ਕਾ ਕਰਿ ਵਖਿਆਨ ।। ( ਗੌੰਡ ਮਹਲਾ ੫ ਸ਼ਬਦ ੧੭ )
स्मृति, शास्त्र ( दर्शन ), वेद, पुराण ( चारो ब्राह्मण ग्रंथ ) ईश्वर का ही व्याख्यान करते हैं ।
ਸਾਮਵੇਦ, ਯਜੁਰ, ਅਖਰਵਣ । ਬ੍ਰਮ੍ਹੇ ਮੁੱਖ ਮਾਇਆ ਹੈ ਤ੍ਰੈਗੁਣ ।
ਤਾਕੀ ਕੀਮਤ ਕਹਿ ਨਾ ਸਕੈ ਕੋ ਤਿਉ ਬੋਲੇ ਜੋ ਬੋਲਇਦਾ ।। ( ਮਾਰੂ ਸੋਲਹੇ ਮਹਲਾ ੧ ਸ਼ਬਦ ੧੭ )
सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म ( ईश्वर ) के मुख में त्रिगुणात्मक माया ( प्रकृति - सत्व, रज, तम ) की भांती हैं । जिसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती कोई कुछ भी बोलता रहे ।
ਵੇਦ ਬਖਿਆਨ ਕਰਤ ਸਾਧੂਜਨ ਭਾਗਹੀਨ ਸਮਝਤ ਨਾਹਿ ਖਲੁ । ( ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਸ਼ਬਦ ੨੬ )
वेद का व्याख्यान तो साधूजन करते हैं परन्तु भाग्यहीन ही उन्हें नहीं समझते ।
ਅਥਰਵ ਵੇਦ ਪਾਠਯਮ । ਸੁਨਿਯੋ ਪਾਪ ਨਾਠਯਮ ।
ਰਹਾ ਰੀਝ ਰਾਜਾ । ਦਿਯਾ ਸਰਭ ਸਾਝਾ । ( ਵਿਚਿਤੱਰ ਨਾਟਕ ਅਧਿਆਯ ੪ )
अथर्ववेद का पाठ करके सारे पाप दूर हो जाते हैं ।
ऐसे ही कई प्रमाण गुरुवाणी में दिए हैं जिनको पढ़कर यही सत्य सामने आता है कि वेद की रक्षा करने में सिक्ख गुरुजन कितने निष्ठावान थे । और वे कदापि वेद से अलग किसी और मत की स्थापना के पक्ष में नहीं थे । अब हम स्वय वेद और अन्य शास्त्रों से वेद के महात्मय में कुछ प्रमाण दिखाते हैं :-
यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन् । सामानि यस्य लोमान्यथर्वाङ्गिरसो मुखम् । स्कंभं तं ब्रूहि कतमः स्विदेवसः ।। ( अथर्ववेद १०/२३/४/२० )
:--- जिस परमात्मा से ऋग्, यजु, साम और अथर्ववेद प्रकाशित हुए हैं वही एक परमात्मा है ।
स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यगधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः । ( यजुर्वेद ४०/८ )
:--- जो स्वयम्भू, सर्वव्यापक, शुद्ध, सनातन, निराकार परमेश्वर है वह जीव रूप प्रजा के कलियाणार्थ यथावत् रीति पूर्वक वेद द्वारा सब विद्याओं का उपदेश करता है ।
अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम् ।
दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुः सामलक्षणम् ।।
( मनुस्मृति १/२३ )
:--- जिस परमात्मा ने सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न करके अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा ऋषियों को चारों वेदों का ज्ञान उनके अंतः करण में दिया और इन ऋषियों से चारों वेदों का ज्ञान ब्रह्मा ने ग्रहण किया ।
स पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् । ( योगसूत्र समाधिपाद २६ )
:--- जैसे मनुष्य लोग अध्यापकों से विद्या पढ़कर ही शीक्षित होते हैं ठीक वैसे ही सृष्टि के आदि में ही परमेश्वर से ही सर्वप्रथम वेद की शिक्षा ग्रहण कर चारों ऋषि शीक्षित हुए और उन्होंने ही गुरु परम्परा से आगे ब्रह्मा आदि ऋषियों को वेद की शिक्षा दी ।
तो ऐसे ही वेद की शिक्षा के महत्व को दर्शाने वाले सैंकड़ों प्रमाण हमें ग्रंथ साहिब से और अन्य शास्त्रों से मिलते हैं। जिन्हें स्वार्थ वश होकर नकारना एक निकृष्ट मानसिकता के अतिरिक्त कुछ और नहीं है । वेद किसी पुस्तक विशेष का नाम नही है बल्कि सिद्धांतों के संकलन का नाम है। जिसे परमात्मा ने मनुष्यों की शारीरिक, आत्मिक, मानसिक, चारीत्रिक, आध्यात्मिक और समाजिक उन्नति करने के सर्वोत्तम उपाय बताए गए हैं जो कि दूसरी किसी मत विशेष की पुस्तक में नहीं है । इसलिए जो सिक्ख मित्र अकारण ही अलगाववादी भावना से त्रस्त होकर वेद का विरोध करते हैं और अपने आप को वैदिक धर्म से अलग बताते हैं। उन्हें गुरुबाणी के शब्दों को पढ़कर विचार करना चाहिए और अपने मूल की ओर लौटना चाहिए।