Saturday, August 19, 2017

क्या आपने गोपाल पाठा का नाम सुना है?



क्या आपने गोपाल पाठा का नाम सुना है?

- कुमार आर्य्य

16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में 'डायरेक्ट एक्शन ' के रूप में जाना जाता है। इस दिन अविभाजित बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी के ईशारे पर मुस्लिम लीग के गुंडों ने कोलकाता की गलियों में भयानक नरसंहार आरम्भ कर दिया था। कोलकाता की गलियां शमशान सी दिखने लगी थी। चारों और केवल लाशें और उन पर मंडराते गिद्ध ही दीखते थे।
जब राज्य का मुख्यमंत्री ही इस दंगें के पीछे हो तो फिर राज्य की पुलिस से सहायता की उम्मीद करना भी बेईमानी थी। यह सब कुछ जिन्ना के ईशारे पर हुआ था। वह गाँधी और नेहरू पर विभाजन का दवाब बनाना चाहता तह। हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को देखकर ' गोपाल पाठा' (गोपाल चंद्र मुखोपाध्याय) (1913 – 2005) नामक एक बंगाली युवक का खून खोल उठा। उसका परिवार कसाई का धंधा करता था। उसने अपने साथी एकत्र किये। हथियार और बम इकट्ठे किये। और दंगाइयों को सबक सिखाने निकल पड़ा। वह शठे शाठयम समाचरेत अर्थात जैसे को तैसा की नीति के पक्षधर थे। उन्होंने भारतीय जातीय बाहिनी के नाम से संगठन बनाया। गोपाल के कारण मुस्लिम दंगाइयों में दहशत फैल गई। और जब हिन्दुओ का पलड़ा भारी होने लगा तो सुहरावर्दी ने सेना बुला ली। तब जाकर दंगे रुके। गोपाल ने कोलकाता को बर्बाद होने से बचा लिया। इतिहासकार संदीप बंदोपाध्याय के अनुसार गोपाल कभी भी कट्टरपंथी नहीं थे। उनके विचार मुसलमानों के मजहब के नाम पर अत्याचार करने से बदले।

गाँधी जी ने कोलकाता आकर अनशन प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने खुद गोपाल को दो बार बुलाया। लेकिन गोपाल ने स्पष्ट मना कर दिया। तीसरी बार जब एक कांग्रेस के स्थानीय नेता ने प्रार्थना की "कम से कम कुछ हथियार तो गाँधी जी सामने डाल दो" तब गोपाल ने कहा "जब हिन्दुओ की हत्या हो रही थी तब तुम्हारे गाँधी जी कहाँ थे। मैंने इन हथियारों से अपने इलाके की हिन्दू महिलाओ की रक्षा की है, मै हथियार नहीं डालूँगा।

मेरे विचार से अगर किसी दिन हमारे देश में हिन्दू जाति रक्षकों का स्मृति मंदिर बनाया जायेगा तो महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी और बन्दा बैरागी सरीखों के समान गोपाल का चित्र भी उसमें अवश्य लगेगा।

हिन्दू जाति का भयंकर भ्रम



"हिन्दू जाति का भयंकर भ्रम" --

परस्पर-विरोधी सब विचार सत्य कैसे ?

हिन्दू जाति के अनेक रोगों में से एल भयंकर रोग यह है कि ये लोग संसार के सभी धर्मों को सच्चा मानते हैं । यदि मुसलमानों से पूछों तो वे कहेंगे कि हमारा धर्म अन्य धर्मों‌ की अपेक्षा श्रेष्ठ है और अन्य धर्म इससे निष्कृष्ट हैं । ईसाई लोगों का भी यही विश्वास है कि सच्चा धर्म केवल ईसाई धर्म है । उसके सामने कोई धर्म नहीं ठहर सकता । परन्तु हिन्दू लोगों की ऐसी गति है कि वे अपने धर्म और दूसरे धर्मों में कोई भेदभाव नहीं रखते । यदि तुम एक ईश्वर को मानते हो तो भी सच्चे , अनेक ईश्वरों को मानते हो तो भी सच्चे । यदि ईश्वर को साकार मानो तब भी कुछ हानि नहीं , निराकार मानो तब भी कुछ हानि नहीं । यदि तुम मूर्तिपूजक हो तब भी भला , और यदि तुम मूर्तिपूजा का खण्डन करते हो तो भी भला । जिस धर्म में गाय को बलि देना पुण्य समझा जाता है वह भी इनके लिए श्रेष्ठ धर्म है , और जिस धर्म में गाय को माता के समान पूजा जाता है वह भी श्रेष्ठ धर्म है । जो ईसा को ईश्वर का अवतात मानते हैं उनको भी मुक्ति मिलेगी और जो श्रीकृष्ण को ईश्वर का अवतार मानते हैं उनको भी मुक्ति मिलेगी ।

कोई उत्तर नहीं देते --

यह विचार केवल अशिक्षित पुरुषों के ही नहीं किन्तु शिक्षित पुरुषों का दृष्टिकोण भी ऐसा ही है । जिस प्रकार इनके धर्म में चींटी मारना पाप है , इसी प्रकार किसी दूसरे धर्म की वास्तविक त्रुटियों पर आक्षेप करना भी पाप है । जब कोई ईसाई कहता है कि तुम ईसा मसीह पर ईमान लाओ वह ईश्वर का अवतार था , तो हिन्दू बेचारा इतना ही कह सकता है कि जिस प्रकार ईसा ईश्वर का अवतार था उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी ईश्वर के अवतार थे । परन्तु ईसाई इतना सुनकर चुप नहीं हो जाता ; वह झट कह उठता है , "नहीं श्रीकृष्ण ईश्वर का अवतार नहीं हो सकता । ईश्वर का सच्चा अवतार केवल ईसा मसीह था जिसने हमारे लिए जान दी , जो हमारे लिए सूली पर चढ़ा । श्रीकृष्ण जो गोपियों के साथ विहार करता था , वह ईश्वर का अवतार नहीं हो सकता । ईसा शुद्ध-पवित्र था , श्रीकृष्ण शुद्ध-पवित्र नहीं ।" हिन्दू महाशय इतना सुनकर चुप हो जाते हैं । उनका साहस नहीं पड़ता कि ईसाई धर्म पर कुछ भी आक्षेप करें । आक्षेप करें तो कैसे करें ? उनके धर्म में तो सभी धर्मों को अच्छा मानने का सिद्धान्त है । जब मुसलमान इनके धर्म में दोष बताते हैं तो उनसे भी गिड़गिड़ाकर यह इतना ही कह सकते हैं कि जिस प्रकार तुम‌ नमाज़ पढ़कर ईश्वर की पूजा करते हो वैसे ही अपने मन्दिरों में ईश्वर को पूजते हैं । तुमको नमाज़ पढ़ के मुक्ति मिलेगी और हमको मन्दिर में शिव की पूजा करके । परन्तु मुसलमान झट उनकी बात का खण्डन करके कहता है "नहीं । आदमी की मुक्ति केवल मुसलमान होकर हो सकती है , अन्यथा नहीं ।"
इसका हिन्दू महाशय कुछ भी उत्तर नहीं देते ।

जातीय रक्षा की इच्छा ही नहीं बनी --

इस भावना का सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ कि हिन्दू जाति में अपने धर्म अपने जातित्व की रक्षा के लिए इच्छा और साहस दोनों नहीं रहे और अन्य जातियों तथा धर्म वालों ने शनैः शनैः इनको लगभग मार डाला ।‌ जिस जाति में आत्मरक्षा का भाव न हो उस जाति को परमात्मा भी नहीं बचा सकता , क्योंकि ईश्वर उसी की रक्षा करता है जो स्वयं अपनी रक्षा करता है । प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में आत्मरक्षा का भाव स्वभावतः रक्खा गया है । यदि वह आदमी अपनी रक्षा के लिए हाथ-पैर मारता है तो सृष्टि की प्रत्येक शक्ति उसकी सहायता करती है ; किन्तु जिसने आत्मरक्षा का उद्योग छोड़ दिया वह जाति शीघ्र ही नष्टप्राय हो जाती है ।

हिन्दुओं का यही हाल है !

~ पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय

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पण्डित जी के लेखों‌ के संकलन "गंगा ज्ञान सागर" , प्रथम खण्ड से साभार प्रस्तुत ।
~ सुनीत

Wednesday, August 16, 2017

स्वतंत्रता दिवस, बलूच रेजिमेंट और शरणार्थी !



स्वतंत्रता दिवस, बलूच रेजिमेंट और शरणार्थी !

अरुण लवनिया

" उन्नीस बीस अगस्त को बलूच फौज आई और हम हिंदुओं को मारना शुरू कर दिया।किसी तरह जान बचाकर हम भारत आ गये।"

विभाजन की पीड़ा याद करते हुये कृष्ण खन्ना ने यह बात पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर जी टी वी पर कही। खन्ना जी के दशकों के प्रयास के बाद उन्हें पाकिस्तान का वीसा मिला था ताकि वो अपने पुश्तैनी घर को देखने की इच्छा पूरी कर सकें। ध्यान दीजिये बलूच फौज जिसे विभाजन के समय हिंदुओं की सुरक्षा करनी थी उसी ने हिंदुओं को मारना शुरू कर दिया था । यही रवैया बलूच रेजिमेंट का हर जगह हिंदू-सिखों के लिये रहा।

देश में पिछले स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी जी के भाषण के पश्चात् देश भर में हिंदी-बलूची भाई-भाई चल रहा है। बलूची भी सोशल मीडिया और अन्य मंचों से हमारा सहयोग पाकिस्तान से आजाद होने के लिये मांग रहे हैं। दोनों पक्षों द्वारा भाईचारे की बात करना प्रशंसनीय है। हो सकता है कि भारत के हित में बलूचिस्तान की आजादी हो या फिर हमारी मदद पाकिस्तान को वहां और उलझा दे ताकि काश्मीर पर दबाव कम हो। वैसे भी जहां अत्याचार हो रहा हो उसके खिलाफ खड़े होना ठीक ही है। भावनाओं से अलग होकर बस राष्ट्र हित में बलूचियों का जितना उपयोग किया जा सके वही उत्तम कूटनीति है।इस प्रयास में साझा हित भी है।

देश के विभाजन के समय बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय नहीं हुआ था।जब पाकिस्तान ने ऐसा बलपूर्वक किया तो बलूचियों ने बगावत की। बगावत कुचल दी गई तो उन्हें भारत याद आने लगा। तो आइये आज देश के स्वतंत्रता दिवस पर हम भी इतिहास की भूली बिसरी स्मृतियों पर प्रामाणिक दस्तावेजों के माध्यम से दृष्टिपात करें जब देश ने 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतंत्र होकर विभाजन का दंश झेला था। इतिहास से सबक सीखकर ही सभी पक्ष आज के इस पावन पर्व पर हिंसा से दूर रहने का संकल्प ले सकते हैं।

विभाजन पश्चात भारत सरकार ने एक तथ्यान्वेषी संगठन बनाया जिसका कार्य था पाकिस्तान छोड़ भारत आये लोगों से उनकी जुबानी अत्याचारों का लेखा जोखा बनाना। इसी लेखा जोखा के आधार पर गांधी हत्याकांड की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के जज जी डी खोसला लिखित, 1949 में प्रकाशित , पुस्तक ' स्टर्न रियलिटी' विभाजन के समय दंगों , कत्लेआम,हताहतों की संख्या और राजनैतिक घटनाओं को दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है। हिंदी में इसका अनुवाद और समीक्षा ' देश विभाजन का खूनी इतिहास (1946-47 की क्रूरतम घठनाओं का संकलन)' नाम से सच्चिदानंद चतुर्वेदी ने किया है। नीचे दी हुयी चंद घटनायें इसी पुस्तक से ली गई हैं जो ऊंट के मुंह में जीरा समान हैं।

* 11 अगस्त 1947 को सिंध से लाहौर स्टेशन पह़ुंचने वाली हिंदुओं से भरी गाड़ियां खून का कुंड बन चुकी थीं।अगले दिन गैर मुसलमानों का रेलवे स्टेशन पहुंचना भी असंभव हो गया।उन्हें रास्ते में ही पकड़कर कत्ल किया जाने लगा।इस नरहत्या में बलूच रेजिमेंट ने प्रमुख भूमिका निभाई।14और 15 अगस्त को रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध नरमेध का दृश्य था।एक गवाह के अनुसार स्टेशन पर गोलियों की लगातार वर्षा हो रही थी। मिलिट्री ने गैर मुसलमानों को स्वतंत्रता पूर्वक गोली मारी और लूटा।

* 19 अगस्त तक लाहौर शहर के तीन लाख गैर मुसलमान घटकर मात्र दस हजार रह गये थे। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी ही बुरी थी।पट्टोकी में 20 अगस्त को धावा बोला गया जिसमें ढाई सौ गैर मुसलमानों की हत्या कर दी गई।गैर मुसलमानों की दुकानों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई।इस आक्रमण में बलूच मिलिट्री ने भाग लिया था।

* 25 अगस्त की रात के दो बजे शेखपुरा शहर जल रहा था। मुख्य बाजार के हिंदू और सिख दुकानों को आग लगा दी गई थी।सेना और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। आग बुझाने के लिये अपने घर से बाहर निकलने वालों को गोली मारी जाने लगी। उपायुक्त घटनास्थल पर बाद में पहुंचा। उसने तुरंत कर्फ्यू हटाने का निर्णय लिया और उसने और पुलिस ने यह निर्णय घोषित भी किया।लोग आग बुझाने के लिये दौड़े।पंजाब सीमा बल के बलूच सैनिक, जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया गया था, लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगे।एक घटनास्थल पर ही मर गया , दूसरे हकीम लक्ष्मण सिंह को रात में ढाई बजे मुख्य गली में जहाँ आग जल रही थी , गोली लगी।अगले दिन सुबह सात बजे तक उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दिया गया।कुछ घंटों में उनकी मौत हो गई।

* गुरुनानक पुरा में 26अगस्त को हिंदू और सिखों की सर्वाधिक व्यवस्थित वध की कार्यवाही हुई।मिलिट्री द्वारा अस्पताल में लाये जाने सभी घायलों ने बताया कि उन्हें बलूच सैनिकों द्वारा गोली मारी गयी या 25 या 26 अगस्त को उनकी उपस्थिति में मुस्लिम झुंड द्वारा छूरा या भाला मारा गया। घायलों ने यह भी बताया कि बलूच सैनिकों ने सुरक्षा के बहाने हिंदू और सिखों को चावल मिलों में इकट्ठा किया।इन लोगों को इन स्थानों में जमा करने के बाद बलूच सैनिकों ने पहले उन्हें अपने कीमती सामान देने को कहा और फिर निर्दयता से उनकी हत्या कर दी।घायलों की संख्या चार सौ भर्ती वाले और लगभग दो सौ चलंत रोगियों की हो गई। इसके अलावा औरतें और सयानी लड़कियाँ भी थीं जो सभी प्रकार से नंगी थीं।सर्वाधिक प्रतिष्ठित घरों की महिलाएं भी इस भयंकर दु:खद अनुभव से गुजरी थीं।एक अधिवक्ता की पत्नी जब अस्पताल में आई तब वस्तुतः उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था।पुरुष और महिला हताहतों की संख्या बराबर थी।हताहतों में एक सौ घायल बच्चे थे।

* शेखपुरा में 26 अगस्त की सुबह सरदार आत्मा सिंह की मिल में करीब सात आठ हजार गैर मुस्लिम शरणार्थी शहर के विभिन्न भागों से भागकर जमा हुये थे। करीब आठ बजे मुस्लिम बलूच मिलिट्री ने मिल को घेर लिया।उनके फायर में मिल के अंदर की एक औरत की मौत हो गयी।उसके बाद कांग्रेस समिति के अध्यक्ष आनंद सिंह मिलिट्री वालों के पास हरा झंडा लेकर गये और पूछा आप क्या चाहते हैं। मिलिट्री वालों ने दो हजार छ: सौ रुपये की मांग की जो उन्हें दे दिया गया।इसके बाद एक और फायर हुआ ओर एक आदमी की मौत हो गई। पुन: आनंद सिंह द्वारा अनुरोध करने पर बारह सौ रुपये की मांग हुयी जो उन्हें दे दिया गया। फिर तलाशी लेने के बहाने सबको बाहर निकाला गया।सभी सात-आठ हजार शरणार्थी बाहर निकल आये।सबसे अपने कीमती सामान एक जगह रखने को कहा गया।थोड़ी ही देर में सात-आठ मन सोने का ढेर और करीब तीस-चालीस लाख जमा हो गये।मिलिट्री द्वारा ये सारी रकम उठा ली गई।फिर वो सुंदर लड़कियों की छंटाई करने लगे।विरोध करने पर आनंद सिंह को गोली मार दी गयी।तभी एक बलूच सैनिक द्वारा सभी के सामने एक लड़की को छेड़ने पर एक शरणार्थी ने सैनिक पर वार किया।इसके बाद सभी बलूच सैनिक शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाने लगे।अगली पांत के शरणार्थी उठकर अपनी ही लड़कियों की इज्जत बचाने के लिये उनकी हत्या करने लगे।

* 1अक्टूबर की सुबह सरगोधा से पैदल आने वाला गैर मुसलमानों का एक बड़ा काफिला लायलपुर पार कर रहा था।जब इसका कुछ भाग रेलवे फाटक पार कर रहा था अचानक फाटक बंद कर दिया गया।हथियारबंद मुसलमानों का एक झुंड पीछे रह गये काफिले पर टूट पड़ा और बेरहमी से उनका कत्ल करने लगा।रक्षक दल के बलूच सैनिकों ने भी उनपर फायरिंग शुरु कर दी।बैलगाड़ियों पर रखा उनका सारा धन लूट लिया गया।चूंकि आक्रमण दिन में हुआ था , जमीन लाशों से पट गई।उसी रात खालसा कालेज के शरणार्थी शिविर पर हमला किया गया। शिविर की रक्षा में लगी सेना ने खुलकर लूट और हत्या में भाग लिया।गैर मुसलमान भारी संख्या में मारे गये और अनेक युवा लड़कियों को उठा लिया गया।

* अगली रात इसी प्रकार आर्य स्कूल शरणार्थी शिविर पर हमला हुआ। इस शिविर के प्रभार वाले बलूच सैनिक अनेक दिनों से शरणार्थियों को अपमानित और उत्पीड़ित कर रहे थे।नगदी और अन्य कीमती सामानों के लिये वो बार बार तलाशी लेते थे। रात में महिलाओं को उठा ले जाते और बलात्कार करते थे। 2अक्टूबर की रात को विध्वंश अपने असली रूप में प्रकट हुआ।शिविर पर चारों ओर से बार-बार हमले हुये।सेना ने शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाईं। शिविर की सारी संपत्ति लूट ली गई।मारे गये लोगों की सही संख्या का आकलन संभव नहीं था क्योंकि ट्रकों में बड़ी संख्या में लादकर शवों को रात में चेनाब में फेक दिया गया था।

* करोर में गैर मुसलमानों का भयानक नरसंहार हुआ। 70सितंबर को जिला के डेढ़ेलाल गांव पर मुसलमानों के एक बड़े झुंड ने आक्रमण किया।गैर मुसलमानों ने गांव के लंबरदार के घर शरण ले ली। प्रशासन ने मदद के लिये दस बलूच सैनिक भेजे। सैनिकों ने सबको बाहर निकलने के लिये कहा।वो ओरतों को पुरूषों से अलग रखना चाहते थे। परंतु दो सौ रूपये घूस लेने के बाद औरतों को पुरूषों के साथ रहने की अनुमति दे दी। रात मे सैनिकों ने औरतों से बलात्कार किया।9 सितंबर
को सबसे इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया। लोगों ने एक घर में शरण ले ली। बलूच सैनिकों की मदद से मुसलमानों ने घर की छत में छेद कर अंदर किरोसिन डाल आग लगा दी।पैंसठ लोग जिंदा जल गये।

आज स्वतंत्रता दिवस पर बलूचिस्तान की आजादी में भारत का सहयोग चाहने वाले बलूची क्रांतिकारियों से हम आशा करते हैं कि बलूच रेजिमेंट के इन कुकृत्य के लिये वो पीड़ित हिंदू-सिख परिवारों से क्षमा याचना करें। भारत तो सदा से ही अपनी पीड़ा भूलकर मानव मात्र के हित के लिये संघर्ष करता रहा है।

Monday, August 14, 2017

ईश्वर भक्ति कब करे?



ईश्वर भक्ति कब करे?




*(महात्मा आनन्द स्वामी सरस्वती)*




भारतवर्ष में एक बहुत धनाढ्य बनिया रहता था। दिन रात उसे अधिक-से-अधिक धन संग्रह करने की इच्छा रहती थी। इस धन को इकट्ठा करने में वह इतना बुद्धिमान था कि एक कौड़ी भी कहीं इधर-उधर न जाने देता था।क्या शक्ति कोई साधु, संन्यासी, निर्धन इसके घर से कुछ ले-जाए।

एक बार बड़ा कौतुक हुआ। एक कंगाल, लूला-लंगड़ा और बूढ़ा बनिये की स्त्री से जो धर्मात्मा और ईश्वर-भक्त थी, थोड़े से चावल ले गया। बनिये को किसी प्रकार पता चल गया। वह दौड़ा-दौड़ा घर से बाहर निकला।बूढ़ा आगे निकल गया था। बनिया इसके पीछे लपका और अन्ततः उसे जा ही पकड़ा। पकड़ते ही उसे गालियाँ दी और कहा―"अरे ! तू मेरे घर से यह क्या लिये जाता है। ला, कहीं का उचक्का स्त्री को ठग कर चला है।" यह कहकर चावल वापस ले लिये और घर में पहुँचकर अपनी स्त्री को भी दो-चार सुनाई और चावल भण्डार में डाल दिये।

ऐसी ही मनोरञ्जक घटनाएँ प्रायः हो जाती थीं। बनिये की स्त्री उसे बार-बार समझाती थी कि देखिए स्वामिन् ! यह धन साथ जाने वाला नहीं है। इसका अच्छा प्रयोग करो, जिससे परलोक में काम आये। कभी भूले से मुँह से 'ओम्' का नाम ही ले लिया करो, परन्तु बनिये पर इसका कुछ प्रभाव नहीं होता था और दिन-रात पैसे पर पैसा, रुपये पर रुपया जोड़ने में व्यस्त था।

स्त्री ने फिर समझाना आरम्भ किया―'स्वामिन्! यह मनुष्य-शरीर विषय-भोग के लिए नहीं है, अपितु ईश्वरभक्ति करने के लिए है। आप यदि दान न करते तो दो घड़ी भक्ति ही किया करें।' यह सुनकर [क्योंकि इसमें पैसा खर्च नहीं होता था] बनिये ने कहा―"हाँ ! हाँ !! अच्छी बात है, परन्तु अभी जल्दी क्या है? ईश्वर जप भी कर लिया जाएगा।"

समय इसी प्रकार व्यतीत होता गया।बनिये को कभी ईश्वरभक्ति का समय नहीं मिला। मुकदमाबाजी में, धन-प्राप्त करने में और लोगों से लड़ने-झगड़ने में ही समय व्यतीत होता रहा। अचानक यह सेठ बीमार हो गया। बनिये ने अपनी स्त्री से कहा―"कोई वैद्य बुलाना चाहिए।" बस, वैद्य बुलाया गया। उसने नुस्खा लिखा। स्त्री ने दवाई मँगवाई और आले में रख दी। बनिया प्रतिक्षा करता रहा कि अभी दवाई दी जाती है। प्रातः से सायंकाल हो गया, परन्तु बनिये को दवाई नहीं पिलाई गई। अन्ततः बनिये ने स्त्री को आवाज लगाई कि दवाई अभी तक क्यों नहीं पिलाई? स्त्री ने कहा―"दवा मँगवाकर रक्खी हुई है।"

*बनिया―*"तो फिर देती क्यों नहीं? क्या सोचती है?"

*स्त्री―*"सोचती कुछ नहीं।केवल यही विचार है कि जल्दी क्या पड़ी है।दवाई तो है ही पिला दी जाएगी। आज न पिलाई तो कल पिला दी जाएगी। कल न पिलाई तो परसों दे दी जाएगी। कभी-न-कभी तो दी ही जाएगी।

*बनिया―*"और यदि मैं मर गया तो दवाई क्या काम देगी?

*स्त्री―*"हाँ, अब मौत याद आई है। जब आपको ईश्वरभक्ति करने के लिए कहती थी तब तो आप कहते थे कि जल्दी क्या पड़ी है, फिर हो जाएगी। यदि आपको मरना याद होता तो ऐसा कभी न कहते। जिस ओषधि के लिए प्रतिदिन कहती थी, उसे आपने कभी भी पीने की आवश्यकता नहीं समझी। जो सबसे बड़ी दवाई है, जिससे आत्मा शुद्ध और बलवान् होता है, जिसका पान करने से मनुष्य को पशुओं के शरीरों में जाने की आवश्यकता नहीं रहती, उस दवाई के पीने की तो इस जन्म में अत्यन्त आवश्यकता थी। क्या पता अगला जन्म किसी पशुयोनि में हो तो फिर वह महौषधि कैसे पी जा सकती है?"

*बनिया―*इस दवा से शरीर की रक्षा होती है।

*स्त्री―*इस दवाई से आत्मा बचता है।

*बनिया―*इस दवाई से शरीर शक्तिशाली होता है और काम करने की शक्ति आती है।

*स्त्री―*उस ओषधि से शरीर और आत्मा दोनों शक्तिशाली बनते हैं और सब प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं। जिसका आत्मा शुद्ध नहीं, उसका मुख गधों जैसा बन जाता है। जो ईश्वरभक्ति नहीं करता उसके आत्मा को पशुओं के शरीरों में रख दिया जाता है।क्या यह कम दुर्भाग्य है? क्या उन योनियों में आप संसार का कोई काम कर सकते हैं, कुछ सोच सकते हैं, धन-संग्रह कर सकते हैं।

*बनिया―*"मैं जान गया हूँ प्रिय ! आज से ही ईश्वरभक्ति आरम्भ करता हूँ।"


कितने ही मनुष्य हैं, जो इस धनिक बनिया की भाँति आत्मा से अधिक शरीर का ध्यान रखते हैं, उनका आत्मा चाहे निर्बल और भीरु हो, परन्तु वह उसकी और ध्यान नहीं देते। हाँ, निर्बल शरीर के लिए टॉनिक-शक्ति देने वाली ओषधियों का प्रयोग करते हैं। क्या आत्मा की और से असावधान होकर वे सदा रहने वाला सुख प्राप्त कर सकेंगे? कदापि नहीं।

Sunday, August 13, 2017

क्या इस देश में बहुसंख्यक होना अपराध है?



क्या इस देश में बहुसंख्यक होना अपराध है?

डॉ विवेक आर्य

आजकल हामिद अंसारी, पूर्व उपराष्ट्रपति का आपने विदाई भाषण में दिया गया बयान कि भारत में मुस्लिम भयभीत है चर्चा में है। उनका यह बयान कांग्रेस की अल्पसंख्यक के नाम पर बरगलाने की पुरानी नीति का अनुसरण मात्र है। भारत के मुसलमानों को इतना भयभीत करो की वह सेकुलरता के नाम पर कांग्रेस को वोट करे। उनकी इसी नीति का परिणाम यह निकला की देश के हिन्दुओं ने संगठित होकर भाजपा को वोट दिया। जिससे कांग्रेस की बूरी दशा हो गई। इस लेख का उद्देश्य राजनीती नहीं अपितु यह दर्शना है कि मुसलमानों को रिझाने के नाम पर हमारे राजनेताओं ने क्या क्या किया। पढ़ने वालों की ऑंखें खुल जाएगी। हमारे संविधान में मुसलमान, ईसाई , सिख, जैन , बौद्ध और पारसी को मुख्य रूप से अल्पसंख्यक माना गया है। यह परिभाषा गलत है। कश्मीर और उत्तरपूर्वी राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। फिर भी उसे कोई अल्पसंख्यक वाली सुविधा नहीं मिलती। जबकि एक मुसलमान को कश्मीर में और एक ईसाई को नागालैंड में बहुसंख्यक होते हुए भी सभी अल्पसंख्यक वाली सुविधाएँ मिलती है। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि अल्पसंख्यक के नाम पर मलाई केवल गैर हिन्दुओं के लिए है। पाठक सोच रहे होंगे कि मैं इसे मलाई क्यों बोल रहा हूँ। आप पढ़ेंगे तो आपकी ऑंखें खुली की खुली रह जाएगी।

अल्पसंख्यक के नाम पर सुविधा की सूची

1. एक हिन्दू अगर कोई शिक्षण संस्थान खोलता है तो उसे उस संस्थान की 25% सीटों को अल्पसंख्यक वर्ग के लिए आरक्षित रखना होता है। जहाँ पर अल्पसंख्यक वर्ग को नाम मात्र की फीस देनी होती है। जबकि हिन्दू छात्रों को भारी भरकम फीस देनी पड़ती है। अर्थात अल्पसंख्यक को हिन्दू अपने जेब से पढ़ाता हैं।

2. किसी भी अल्पसंख्यक को शिक्षण संस्थान खोलने के लिए सरकार 95% तक आर्थिक सहयोग करती है। जबकि किसी हिन्दू को अपने संस्थान को खोलने के लिए आसानी से लोन तक नहीं मिलता। अल्पसंख्यक संस्थान sc/st/obc के अनुपात में शिक्षकों की भर्ती के लिए किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं है। जबकि एक हिन्दू संस्थान को सरकारी नियम के अनुसार अध्यापकों की भर्ती इसी अनुपात में करनी होती है। अर्थात किसी भी मुस्लिम या ईसाई संस्थान के 100% शिक्षक मुस्लिम या ईसाई हो सकते है। वहां पर कोई भी हिन्दू शिक्षक कभी नौकरी पर रखने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। यह सरकारी सुविधा National Commission for Minority Education Institutions (NCMEI) के अंतर्गत सरकार द्वारा दी जाती है। UPA सरकार के कार्यकाल में हज़ारों मुस्लिम या ईसाई संस्थानों को अनुमति दी। जबकि हिन्दू संस्थाओं को अनुमति के लिए दफ्तरों के चक्कर के चक्कर काटने पढ़े।

3. 2014-2015 में 7,500,000 अल्पसंख्यक छात्रों को कक्षा पहली से दसवीं तक 1100 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गया।

4. इसी काल में 11वीं से पीएचडी तक 905,620 अल्पसंख्यक छात्रों को को 501 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गया।

5. इसी काल में टेक्निकल शिक्षा के लिए 138,770 अल्पसंख्यक छात्रों को 381 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गया।

6. अल्पसंख्यक छात्रों को प्रोफेशनल कोर्स की कोचिंग के लिए 1500 से 3000 रुपये का अनुदान दिया गया। वर्तमान सरकार ने यह अनुदान दुगुना कर दिया है।

7. 2015-2016 में मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फ़ेलोशिप के नाम पर 7,500,000 अल्पसंख्यक छात्रों को पीएचडी और Mphil के लिए 55 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गया।

8. UPSE और SPSC के prelim में प्रवेश पाने पर 50000 से 250000 रुपये तक का सहयोग अल्पसंख्यक छात्रों को दिया गया।

9. पढ़ो-पढ़ाओ अभियान के अंतर्गत विदेश में शिक्षा के लिए पीएचडी और Mphil के लिए 55 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गये।

10. नई मंजिल अभियान के अंतर्गत मोदी सरकार ने मदरसों में पढ़ने वाले 25000 बच्चों की शिक्षा के लिए 155 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गये।

11. बेगम हजरत महल छात्रवृति योजना के अंतर्गत कक्षा 11 वीं और 12 वीं की 48000 छात्राओं को 57 करोड़ रुपये छात्रवृति के रूप में दिया गये।

12. बैंक से लोन व्यवस्था में भी अल्पसंख्यक को विशेष अधिकार प्राप्त है। रोजगार के लिए 30 लाख तक लोन केवल 8% (पुरुषों के लिए) और 6% (महिलाओं के लिए) दिया जाता है।

13. शिक्षा लोन व्यवस्था में भी अल्पसंख्यक को विशेष अधिकार प्राप्त है। प्रोफेशनल शिक्षा के लिए देश में 20 लाख और विदेश में 30 लाख का लोन केवल 4% (छात्रों के लिए) और 2% (छात्राओं के लिए) दिया जाता है।

14. इसके अतिरिक्त अल्पसंख्यक युवाओं को Vocational Training Scheme, Marketing Assistance Scheme, Mahila Samridhi Yojana and Grant in Aid Assistance scheme आदि योजनाओं के अंतर्गत विशेष लाभ दिया जाता है।

15. जिन जिलों में अल्पसंख्यक की जनसंख्या 20% से ऊपर है। उन्हें विशेष रूप से धन दिया जा रहा है। एक जिले में अगर कोई ब्लॉक ऐसा है जिसमें 25% से अधिक अल्पसंख्यक की जनसंख्या है। तो वे भी इस सुविधा के अंतर्गत आते है। ऐसे देश में 710 ब्लॉक और 196 जिलों का चयन केंद्र सरकार द्वारा 12 वीं पञ्च वर्षीय योजना के अंतर्गत किया गया हैं। इन जिलों पर सरकार अल्प संख्यक विकास के नाम पर हर वर्ष 1000 करोड़ रुपये खर्च करती है। सोचिये अगर हिन्दू बहुल गरीब पिछड़ा हुआ जिला या ब्लॉक है तो उसे केवल हिन्दू होने के कारण यह लाभ नहीं मिलेगा।

16. सीखो सिखाओ, उस्ताद, नई रोशनी, हमारी धरोहर अल्पसंख्यक महिलाओं और वक्फ बोर्ड के लिए विशेष रूप से चलाई गई योजनाएं है।

17. हिन्दुओं को इस प्रकार की किसी योजना का कोई लाभ नहीं मिलता। इसके विपरीत सरकार द्वारा हर समृद्ध और बड़े हिन्दू मंदिरों का अधिग्रहण कर लिया गया हैं। वहां से प्राप्त होने वाला धन और दान सरकार अपने कोष में पहले जमा करती है। फिर उसी धन को ईसाई चर्च और मस्जिद-मदरसों के विकास पर खर्च करती है। ईसाई चर्च और मदरसों को विदेशों से मिलने वाले धन पर सरकार का कोई हक नहीं है। क्यूंकि अल्पसंख्यक से जुड़े मामलों में सरकार हस्तक्षेप नहीं करती।

18. हिन्दुओं के मनोबल को तोड़ने के लिए जल्लिकट्टु, दही-हांडी, होली, दिवाली आदि पर सरकार अपना हस्तक्षेप करना हक समझती है। जबकि बकरीद पर लम्बी चुप्पी धारण कर लेती हैं। क्यूंकि अल्पसंख्यक से जुड़े मामलों में सरकार हस्तक्षेप नहीं करती।

19. हज़ यात्रा पर दी जाने वाले सब्सिडी पहले 500 करोड़ थी। जिसे अटल बिहारी जी की सरकार से 1000 करोड़ कर दिया था। जबकि अमरनाथ आदि यात्रा पर विशेष कर सुविधा के नाम पर लगाया जाता है।

20. इसके अतिरिक्त सच्चर आयोग के नाम पर मुस्लिम सांसद चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी के हो। सरकार पर सदा दबाव बनाने का कार्य करते है।

हम यह भी भूल गए की 1947 में देश के ही मुसलमानों ने पाकिस्तान और बांग्लादेश इसी मानसिकता के चलते लिए थे कि मुसलमान कभी हिन्दू बहुल देश में नहीं रह सकता। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे देश के मुसलमानों की सेवा घर के जमाई के समान देश के हिन्दू कर रहे हैं। फिर भी 10 वर्ष तक उपराष्ट्रपति के पद पर बैठकर मलाई खाने के बाद भी देश का उपराष्ट्रपति का बयान यही दर्शाता है कि वे उसी मानसिकता के पोषक है। जिसने इस देश का विभाजन करवाया था।

यह लेख पढ़कर मेरे मन में एक ही विचार आता है कि क्या इस देश में बहुसंख्यक होना अपराध है?

Friday, August 11, 2017

डॉ अम्बेडकर और यज्ञोपवीत



सलंग्न चित्र- तमिलनाडु में सूअर को जनेऊ पहनाये जाने का पोस्टर।


डॉ अम्बेडकर और यज्ञोपवीत

डॉ विवेक आर्य

तमिलनाडु में पेरियार के शिष्यों ने ने एक नया तमाशा रचा है। वैसे पहले भी इस विकृत मानसिकता वाले लोगों ने सेलम,तमिलनाडु में भगवान राम की प्रतिमा को जूते की माला पहनाकर उनका जुलुस निकाला था। उनका कहना था कि भगवान राम दलित विरोधी थे। इस बार की हरकत में उन्होंने सूअर को यज्ञोपवीत पहनाकर अपनी कुंठा का प्रदर्शन किया है। ऐसी हरकते करने वाले मुख्य रूप से धर्मपरिवर्तित ईसाई या मुसलमान होते है। जो अपनी राजनीतिक महत्वकांशा को पूरा करने के लिए ऐसी हरकतें करते हैं। दलित नाम का परिवेश धारण कर दलितों को भ्रमित करते है। गौर करने लायक बात यह है कि इस हरकत की खबर पर सबसे अधिक वो दलित उछल रहे हैं, जो अपने आपको डॉ अम्बेडकर का शिष्य बताते हैं।  वे यह भी भूल जाते हैं कि डॉ अम्बेडकर ने स्वयं से महारों (दलितों) का यज्ञोपवीत संस्कार करवाते थे। प्रमाण देखिये-

अम्बेडकर जी ने बम्बई में "समाज समता संघ" की स्थापना कि जिसका मुख्य कार्य अछूतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना तथा उनको अपने अधिकारोंके प्रति सचेत करना था। यह संघ बड़ा सक्रिय था। इसी समाज के तत्वाधान में 500 महारों को जनौउ धारण करवाया गया ताकि सामाजिक समता स्थापित की जा सके। यह सभा बम्बई में मार्च 1928 में संपन्न हुई जिसमें डॉ अम्बेडकर भी मौजूद थे।
(डॉ बी आर अम्बेडकर- व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृष्ठ 116-117)

डॉ0 अम्बेडकर जी के 6, सितम्बर-1929 के ’बहिष्कृत भारत‘ में यह समाचार प्रकाशित हुआ था कि ’मनमाड़ के महारों (दलितों) ने श्रावणी मनायी।‘ 26 व्यक्तियों ने यज्ञोपवीत धारण किये। यह समारोह मनमाड़ रेल्वे स्टेशन के पास डॉ0 अम्बेडकरजी के मित्र श्री रामचन्द्र राणोजी पवार नांदगांवकर के घर में सम्पन्न हुआ था।

डॉ अम्बेडकर ने जिस कार्य में अपनी श्रद्धा दिखाई। उसी कार्य का ये लोग परिहास कर रहे है।  ये लोग एक और तथ्य भूल जाते है। जिसका वर्णन डॉ अम्बेडकर ने अपनी लेखनी में किया है। डॉ जी लिखते है कि  शूद्र राजाओं और ब्राह्मणों के बीच अनवरत संघर्ष होते रहते थे और ब्राह्मणों को शूद्रों के हाथों अनेक कष्ट और अपमान सहने पड़े। शूद्रों द्वारा किये गये उत्पीड़न और पीड़ाओं से त्रस्त होकर ब्राह्मणों ने फलस्वरूप शूद्रों का उपनयन संस्कार सम्पन्न करवाना बंद कर दिया। उपनयन संस्कार से वंचित होने पर शूद्र जो क्षत्रिय थे उनका सामाजिक ह्रास हो गया। ('शूद्र कौन थे' के सातवें संस्करण-2013 के प्राक्कथन का पृष्ठ 3 और 4)।

संस्कारों के न होने से कितनी हानि होती है।  इसे डॉ अम्बेडकर भी स्वीकार करते है।

ब्राह्मण यज्ञोपवीत किस लिए रखते हैं ? यज्ञोपवीत केवल विद्या का एक चिह्न है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये तीन वर्ण शिक्षित वर्ण है।  इसलिए ये तीनों जनेऊ धारण करते है। शूद्र अशिक्षित वर्ण का नाम है।  इसलिए वह जनेऊ धारण नहीं करता। मगर चारों वर्ण ब्राह्मण से लेकर शूद्र आर्य कहलाते है। यज्ञोपवीत में तीन सूत्र होते है।  तीनों सूत्र ऋषिऋण, पितृऋण और देवऋण। ऋषिऋण ब्रह्मचर्य धारण कर वेद विद्या के अध्ययन से, गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर उत्तम संतानोत्पत्ति से और देवऋण मातृभूमि की सेवा से निवृत होता हैं। संक्षेप में तीनों ऋणों से व्यक्ति को उसके कर्त्तव्य का बोध करवाया जाता है। इस प्रकार से यज्ञोपवीत कर्त्तव्य बोध का नाम है। वर्ण व्यवस्था के अनुसार कोई भी शूद्र ब्राह्मण बन सकता है और कोई भी ब्राह्मण शूद्र बन सकता है। इसलिए शूद्र शब्द को दलित कहना भी गलत है। यज्ञोपवीत संस्कार को जानकर ब्राह्मणवाद, मनुवाद के जुमले के साथ नत्थी कर अपनी हताशा ,निराशा का प्रदर्शन किया जा रहा हैं। अंत में मैं यही कहना चाहुँगा कि प्राचीन संस्कारों के उद्देश्य, प्रयोजन, लाभ आदि को न जानकर व्यर्थ के तमाशे करने से किसी का हित नहीं होगा।


Tuesday, August 8, 2017

रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला



रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला

डॉ विवेक आर्य

बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहने अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदहारण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब  चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता  तोर पर पढ़ाया जाता हैं।

अब सेक्युलर खोटाला पढ़िए

हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के नेहरू ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये।  उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलावरों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं को जबरन धर्मान्तरित किया, उन पर अनेक अत्याचार किये। मौलाना ने नेहरू की सलाह को मानते हुए न केवल सत्य इतिहास को छुपाया अपितु उसे विकृत भी कर दिया।


रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ भी यही अत्याचार हुआ। जब रानी को पता चला की बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र तो लिखा। मगर हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिख कर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका।

 मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है-

 सुल्तान के पत्र का हुमायूँ पर बुरा प्रभाव हुआ। वह आगरे से चित्तोड़ के लिए निकल गया था। अभी वह गवालियर ही पहुंचा था। उसे विचार आया, "सुलतान चित्तोड़ पर हमला करने जा रहा है। अगर मैंने चित्तोड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा। " यह विचार कर हुमायूँ गवालियर में ही रुक गया और आगे नहीं सरका।

इधर बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ को घेर लिया।  रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का फैसला हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया।  ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।

बहादुर शाह किले में लूटपाट कर वापिस चला गया। हुमायूँ चित्तोड़ आया। मगर पुरे एक वर्ष के बाद आया।परन्तु किसलिए आया? अपने वार्षिक लगान को इकठ्ठा करने आया। ध्यान दीजिये यही हुमायूँ जब शेरशाह सूरी के डर से रेगिस्तान की धूल छानता फिर रहा था। तब उमरकोट सिंध के हिन्दू राजपूत राणा ने हुमायूँ को आश्रय दिया था। यही उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ था। एक काफ़िर का आश्रय लेते हुमायूँ को कभी इस्लाम याद नहीं आया। और धिक्कार है ऐसे राणा पर जिसने अपने हिन्दू राजपूत रियासत चित्तोड़ से दगा करने वाले हुमायूँ को आश्रय दिया। अगर हुमायूँ यही रेगिस्तान में मर जाता। तो भारत से मुग़लों का अंत तभी हो जाता। न आगे चलकर अकबर से लेकर औरंगज़ेब के अत्याचार हिन्दुओं को सहने पड़ते।
 
इरफ़ान हबीब, रोमिला थापर सरीखे इतिहासकारों ने इतिहास का केवल विकृतिकरण ही नहीं किया अपितु उसका पूरा बलात्कार ही कर दिया। हुमायूँ द्वारा इस्लाम के नाम पर की गई दगाबाजी को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और रक्षाबंधन का नाम दे दिया। हमारे पाठयक्रम में पढ़ा पढ़ा कर हिन्दू बच्चों को इतना भ्रमित  किया गया कि उन्हें कभी सत्य का ज्ञान ही न हो। इसीलिए आज हिन्दुओं के बच्चे दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ पर गाइड उन्हें हुमायूँ को हिन्दूमुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के रूप में बताते हैं।

इस लेख को आज रक्षाबंधन के दिन इतना फैलाये कि इन सेक्युलर घोटालेबाजों तक यह अवश्य पहुंच जाये।


सिक्ख गुरु और ब्राह्मण



सिक्ख गुरु और ब्राह्मण 

कुमार आर्य्य 

हमारे बहुत से सिक्ख मित्र अकारण ही आवेश में आकर ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद जैसे शब्दों का यदा कदा प्रयोग करते हैं। वे इन शब्दों के लिये निंदायुक्त बातें भी कहते हैं ।  इसका मुख्य कारण मध्यकाल में आयी विकृति है।  कुछ पाखंडियों ने अवैदिक कार्य कर करके ब्राह्मण शब्द की गरिमा को भयंकर ठेस पहुँचाई है । जिस कारण ब्राह्मण शब्द बदनाम हुआ। इन्हीं पाखंडियों ने अपने अधार्मिक कृत्यों को धर्म की चादर पहनाकर श्राध, तर्पण, देवदासी प्रथा, सती प्रथा, छुआछूत, जातिवाद, पशु बली, लम्पटता आदि धार्मिक भ्रष्टाचार से समाज का अहित किया। 

 अनेक सिक्ख विचारक भी ब्राह्मणों की निंदा और प्रत्येक वैदिक परम्परा को उसी ब्राह्मणवाद से जोड़ते हैं । वास्ताविक सत्य वे या तो नकारते है, या सुनकर भी उसे स्वीकार नहीं करना चाहते । परन्तु गुरुबाणी का अध्ययन करने पर हमें पता लगता है कि सिक्ख गुरू ब्राह्मणों की सत्य परिभाषा के प्रति जागरूक थे । और उन्होंने अपने उपदेशों में सत्य बताने का यत्न भी किया । उन्हीं गुरुबाणी के कुछ प्रमाणों से हम ब्राह्मण शब्द के बारे में फैली भ्रांतियों का निराकरण करने का यत्न करेंगे :- 

ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਜੋ ਬ੍ਰਹਮ ਵਿਚਾਰੈ । ਆਪ ਤਰੈ ਸਗਲ ਕੁਲਤਾਰੈ ।। 
( ਧਨਾਸਰੀ ਮਹੱਲਾ ੧ ਸ਼ਬਦ ੭ ) 

ब्राह्मण वही जो ब्रह्म ( ईश्वर ) का विचार करता है । स्वयं तरता है और पूरे कुल को तार लेता है । 

ਮਨ ਕੀ ਪਤੱਰੀ ਵਾਚਈ ਸੁਖੀ ਹੂੰ ਸੁੱਖ ਸਾਗਰ । 
ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਭਲ ਆਖੀਐ ਜੇ ਬੁਝੇ ਬ੍ਰਹਮ ਵਿਚਾਰ ।
ਹਰਿ ਸਾਲਾਹੇ ਹਰਿ ਪੜੈ ਗੁਰੂ ਕੇ ਸ਼ਬਦ ਵਿਚਾਰ । 
ਆਇਆ ਓਹ ਪਰਵਾਣ ਹੈ ਜਿ ਕੁਲ ਕਾ ਕਰੇ ਉਧਾਰ ।
ਅਗੈ ਜਾਤਿ ਨਾ ਪੂਛੀਐ ਕਰਣੀ ਸਵਦ ਹੈ ਸਾਰ । 
( ਮਾਰੂ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ਵਾਰ ੨੨ ) 

मन के द्वार खोलकर देखें तो मन में अपार सुख लिए वही ब्राह्मण जो ब्रह्म विचार में लीन रहता है । ईश्वरेच्छा से ही वो गुरु के शब्द बार बार विचारता है और अपने कुल का उद्धार करता है । ऐसे ब्रह्मवित् की जाती नहीं पूछनी चाहिए । इसका यही सार निकलता है । 

ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਜੋ ਵਿੰਦੇ ਬ੍ਰਹਮ । ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਕਮਾਵੈ ਕਰਮ ।।
ਸੀਲ ਸੰਤੋਸ਼ ਕਾ ਰਖੇ ਧਰਮੁ । ਬੰਦਨ ਤੋੜੇ ਹੋਵੇ ਮੁਕਤਿ ।।
ਸੋਈ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਪੂਜਨ ਜੁਗਤਿ । ਸਲੋਕ ਵਾਰਾਂ ਤੇ ਵਧੀਕ ।। 
( ਰਾਗ ਵਿਲਾਵਲਾ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੨ ਵਾਰ ੩ ਸਲੋਕ ੧੬ ) 

वही ब्राह्मण है जो ब्रह्म को विचारता है , जप तर के द्वारा कर्म करता है । शीलता और संतोष को धारण करता है । बंधन तोड़कर मुक्त होता है । वही ब्राह्मण जग में पूजनीय है । 

अब हम कुछ प्रमाण वैदिक मनुस्मृति से देते हैं :- 

अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा ।
दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राह्मणानामकल्पयत् ।।
( मनुस्मृति १/८८ )

पढ़ना पढ़ाना, यज्ञ करना कराना, दान देना लेना, ब्राह्मण के कर्म हैं । 

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च ।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ।। 
( मनुस्मृति १८/४२ ) 

शम, दम, तप, शौच, शान्ति, आर्जव, ज्ञान, विज्ञान, आस्तिकता ये सब ब्राह्मण के गुण कर्म हैं । 

जैसा कि ऊपर लिखे प्रमाणों से ब्राह्मणों के कर्म सिद्ध हैं वैसे ही सबको मानने चाहिएँ । मात्र चोटी रखकर, माथे पर टीका लगाकर, और मंदिरों में बैठकर घंटी बजाने से कोई ब्राह्मण नहीं होता । ब्राह्मण तो तपस्वी व्यक्ति को मानना चाहिए । जैसा कि सिक्ख गुरु भी मानते थे ।

गुरु नानक के जीवन का एक उदहारण हमें बहुत प्रेरणा देने वाला है। एक बार गुरु नानक हरिद्वार गए।  गुरु जी ने हरिद्वार पहुंचकर देखा कि लोग स्नान करते हुए नवोदित सूर्य की ओर पानी हाथों से अर्पित कर रहे है तो आप ने पश्चिम की ओर मुंह करके दोनों हाथों से पानी अर्पित करना शुरू कर दिया| ऐसा देखकर ब्राह्मणों ने पूछा आप पश्चिम की और पानी क्यों अर्पित कर रहे हो? गुरु जी ने उनसे ही पूछ लिया कि आप पूर्व दिशा की ओर क्यों कर रहे हो? उन्होंने ने उत्तर दिया हम तो सूर्य को पानी दे रहे हैं| 

गुरु जी ने भी हंस कर कहा कि हम भी अपने खेतों को पानी दे रहे हैं| ब्राह्मणों ने कहा आपकी खेती जो बहुत दूर तीन सौ कोस है वहां पानी कैसे पहुंचेगा? गुरु जी ने उत्तर दिया अगर करोड़ों कोसो दूर आपका पानी सूर्य तक पहुंच सकता है तो तीन सौ कोस दूर हमारे खेत में क्यों नहीं पहुंच सकता| ब्राह्मण उनकी ये बात सुनकर चुप हो गए| 

इसी प्रकार से गुरु साहिबान न केवल ब्राह्मण के कर्तव्यों को भली भांति जानते थे अपितु जो ब्राह्मण नाम रखकर अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करता था।  उसे सत्यमार्ग का उपदेश भी करते थे। 

Saturday, August 5, 2017

सिक्ख गुरू और वेद



सिक्ख गुरू और वेद

कुमार आर्य

जैसा कि सब जानते है कि बहुत से सिक्ख युवा पिछले कई दशकों से वैदिक सनातन धर्म से अलगाववाद की भावना को पाले हुए हैं । इसी के चलते ये लोग अपनी ही जड़ों को काटने में बहुत गर्व का अनुभव भी करते हैं । मुख्य कारण ये है कि आज 95 % सिक्ख तो वैसे ही ग्रंथ साहिब की शिक्षा से दूर जा चुके हैं और वे उन्हीं बातों पर अधिक विश्वास रखते हैं जो सिक्खों को वैदिक मार्ग से अलग बताती हैं । इन्हीं निंदायुक्त बातो को मानकर बहुत से अलगाववादी सिक्ख वेद को काल्पनिक पुस्तक कहते है और जी भरकर इनकी निंदा करते है। लेकिन वे लोग ये नहीं समझते कि वेद कोई इतिहास की पुस्तकें नहीं है बल्कि मनुष्यों को जीवन जीने की शिक्षा देने वाले सिद्धांतों का नाम ही वेद है । परंतु भूलकर कोई सिक्ख पाठी या ग्रंथी गुरु ग्रंथ साहिब को ध्यानपूर्वक पढ़ लेता है तो वह स्वयं ही वेद की शिक्षा से अपने आप को जुड़ा हुआ पाता है ।

जैसे कि नीचे लिखे प्रमाणों से सिद्ध है :-

ਉੰਕਾਰ ਬ੍ਰਹਮਾ ਉਤਪੱਤੀ । ਉੰਕਾਰ ਕਿਯਾ ਜਿਨ ਚਿਤਿ ।।
ਉੰਕਾਰ ਸੈਲ ਜੁਗ ਭਏ । ਉੰਕਾਰ ਵੇਦ ਨਿਰਮਾਏ ।।
ਉੰਕਾਰ ਸ਼ਬਦ ਉਧਰੇ । ਉੰਕਾਰ ਗੁਰਮੁੱਖ ਤਰੇ ।।
( ਰਾਗ ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ਉੰਕਾਰ ਸ਼ਬਦ ੧ )

ओंकार ( ओ३म् ) से ही ब्रह्मा ऋषि की उत्पत्ति हुई ओंकार से ही ज्ञान हुआ । ओंकार से शब्द उत्पन्न हुए  । ओंकार ही सब युगों में व्याप्त । ओंकार से वेद प्रकटे । ओंकार से ही गुरुमुख तरते हैं ।

ਚਉਥ ਉਪਾਏ ਚਾਰੇ ਵੇਦਾ । ਖਾਣੀ ਚਾਰੇ ਵਾਣੀ ਭੇਦਾ ।।
( ਰਾਗ ਬਿਲਾਵਲ ਮਹਲਾ ੧ ਥਿਤਿ )

चारों ज्ञानों के आधार चार वेद प्रकट हुए हैं । चारों को उनकी वाणी ( विषय ) के आधार पर विभाजित किया गया है ।

ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਹੋਏ ਸਚਿਆਰ । ( ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ਵਾਰ ੧੩ )

चारों वेद सत्य हैं ।

ਚਤੁਰਵੇਦ ਮੁੱਖ ਵਚਨੀ ਉਚਰੇ । ( ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਸ਼ਬਦ ੧੩੪ )
चारों वेद वाणी द्वारा प्रकाशित हुए ।

ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਬ੍ਰਹਮੇ ਕਉ ਪੜ੍ਹ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਵਿਚਾਰੀ । ( ਰਾਗ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਅਸ਼ਟਪਦੀਆਂ ੩ )
चारों वेद पढ़ पढ़ कर ही ब्रह्म ( ईश्वर ) को विचारा जाता है ।

ਅਸੰਥ ਗ੍ਰੰਥ ਮੁੱਖ ਵੇਦ ਪਾਠ ।
ਗੁਰਮੁੱਖ ਪਰਚੇ ਵੇਦ ਵਿਚਾਰੀ ।। ( ਰਾਗ ਰਾਮਕਲੀ ਸਿੱਧ ਗੋਸ਼ਟ ਸ਼ਬਦ ੨੮ )

ग्रंथ तो असंख्य हैं लेकिन सबसे मुख्य वेद पाठ ही है । जो गुरुमुख होता है वह निश्चित रूप से वेद विचार करता है ।

ਨਾਨਕ ਵਿਚਾਰਹਿ ਸੰਤ ਜਨ ਚਾਰ ਵੇਦ ਕਹੰਦੇ ।। ( ਰਾਗ ਗੌੜੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ਵਾਰ ੧੨ )

नानक जी के विचार से संत जन चारों वेदो की बातें कहते हैं ।

ਵੇਦ ਕਤੇਵ ਕਹਹੂ ਮਤ ਝੂਠੇ ਝੂਠੀ ਜੋ ਨਾ ਵਿਚਾਰੇ ।। ( ਰਾਗ ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ਸ਼ਬਦ ੩ )
वेद झूठे नहीं हैं बल्कि झूठा वही है जो न विचारे ।

ਸਮ੍ਰਤੀ ਸਾਸਤਰ ਵੇਦ ਪੁਰਾਣ । ਪਾਰਬ੍ਰਮ੍ਹ ਕਾ ਕਰਿ ਵਖਿਆਨ ।। ( ਗੌੰਡ ਮਹਲਾ ੫ ਸ਼ਬਦ ੧੭ )

स्मृति, शास्त्र ( दर्शन ), वेद, पुराण ( चारो ब्राह्मण ग्रंथ ) ईश्वर का ही व्याख्यान करते हैं ।

ਸਾਮਵੇਦ, ਯਜੁਰ, ਅਖਰਵਣ । ਬ੍ਰਮ੍ਹੇ ਮੁੱਖ ਮਾਇਆ ਹੈ ਤ੍ਰੈਗੁਣ ।
ਤਾਕੀ ਕੀਮਤ ਕਹਿ ਨਾ ਸਕੈ ਕੋ ਤਿਉ ਬੋਲੇ ਜੋ ਬੋਲਇਦਾ ।। ( ਮਾਰੂ ਸੋਲਹੇ ਮਹਲਾ ੧ ਸ਼ਬਦ ੧੭ )

सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म ( ईश्वर ) के मुख में त्रिगुणात्मक माया ( प्रकृति - सत्व, रज, तम ) की भांती हैं । जिसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती कोई कुछ भी बोलता रहे ।

ਵੇਦ ਬਖਿਆਨ ਕਰਤ ਸਾਧੂਜਨ ਭਾਗਹੀਨ ਸਮਝਤ ਨਾਹਿ ਖਲੁ । ( ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਸ਼ਬਦ ੨੬ )

वेद का व्याख्यान तो साधूजन करते हैं परन्तु भाग्यहीन ही उन्हें नहीं समझते ।

ਅਥਰਵ ਵੇਦ ਪਾਠਯਮ । ਸੁਨਿਯੋ ਪਾਪ ਨਾਠਯਮ ।
ਰਹਾ ਰੀਝ ਰਾਜਾ । ਦਿਯਾ ਸਰਭ ਸਾਝਾ । ( ਵਿਚਿਤੱਰ ਨਾਟਕ ਅਧਿਆਯ ੪ )

अथर्ववेद का पाठ करके सारे पाप दूर हो जाते हैं ।

ऐसे ही कई प्रमाण गुरुवाणी में दिए हैं जिनको पढ़कर यही सत्य सामने आता है कि वेद की रक्षा करने में सिक्ख गुरुजन कितने निष्ठावान थे । और वे कदापि वेद से अलग किसी और मत की स्थापना के पक्ष में नहीं थे । अब हम स्वय वेद और अन्य शास्त्रों से वेद के महात्मय में कुछ प्रमाण दिखाते हैं :-

यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन् । सामानि यस्य लोमान्यथर्वाङ्गिरसो मुखम् । स्कंभं तं ब्रूहि कतमः स्विदेवसः ।। ( अथर्ववेद १०/२३/४/२० )
:--- जिस परमात्मा से ऋग्, यजु, साम और अथर्ववेद प्रकाशित हुए हैं वही एक परमात्मा है ।

स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यगधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः । ( यजुर्वेद ४०/८ )
:--- जो स्वयम्भू, सर्वव्यापक, शुद्ध, सनातन, निराकार परमेश्वर है वह जीव रूप प्रजा के कलियाणार्थ यथावत् रीति पूर्वक वेद द्वारा सब विद्याओं का उपदेश करता है ।

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम् ।
दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुः सामलक्षणम् ।।
( मनुस्मृति १/२३ )

:--- जिस परमात्मा ने सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न करके अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा ऋषियों को चारों वेदों का ज्ञान उनके अंतः करण में दिया और इन ऋषियों से चारों वेदों का ज्ञान ब्रह्मा ने ग्रहण किया ।

स पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् । ( योगसूत्र समाधिपाद २६ )

:--- जैसे मनुष्य लोग अध्यापकों से विद्या पढ़कर ही शीक्षित होते हैं ठीक वैसे ही सृष्टि के आदि में ही परमेश्वर से ही सर्वप्रथम वेद की शिक्षा ग्रहण कर चारों ऋषि शीक्षित हुए और उन्होंने ही गुरु परम्परा से आगे ब्रह्मा आदि ऋषियों को वेद की शिक्षा दी ।

तो ऐसे ही वेद की शिक्षा के महत्व को दर्शाने वाले सैंकड़ों प्रमाण हमें ग्रंथ साहिब से और अन्य शास्त्रों से मिलते हैं। जिन्हें स्वार्थ वश होकर नकारना एक निकृष्ट मानसिकता के अतिरिक्त कुछ और नहीं है । वेद किसी पुस्तक विशेष का नाम नही है बल्कि सिद्धांतों के संकलन का नाम है। जिसे परमात्मा ने मनुष्यों की शारीरिक, आत्मिक, मानसिक, चारीत्रिक, आध्यात्मिक और समाजिक उन्नति करने के सर्वोत्तम उपाय बताए गए हैं जो कि दूसरी किसी मत विशेष की पुस्तक में नहीं है । इसलिए जो सिक्ख मित्र अकारण ही अलगाववादी भावना से त्रस्त होकर वेद का विरोध करते हैं और अपने आप को वैदिक धर्म से अलग बताते हैं। उन्हें गुरुबाणी के शब्दों को पढ़कर विचार करना चाहिए और अपने मूल की ओर लौटना चाहिए।

सिख गुरू और यज्ञ



सिख गुरू और यज्ञ

कुमार आर्य

सृष्टि के आदिकाल से ही वैदिक रीति से यज्ञ करने की परम्परा रही है । प्रत्येक पुण्य कार्य में हवन करने का विधान ऋषियों ने वेद के आधार पर किया है क्योंकि पवित्र करने के लिए अग्नि से उत्तम कोई भी अन्य साधन नहीं है । अग्नि ही है जो प्रत्येक द्रव्य को सूक्ष्म बनाकर वायु में बिखेर देती है । जैसे कि जल हर पदार्थ की शुद्धि बाहर से करता है परन्तु अग्नि प्रत्येक छोटे से कण को भी शुद्ध कर देती है । तभी ऋषियों ने अग्नि में मनुष्य मात्र का कल्याण करने वाली औषधियों को डालकर गौघृत के साथ हवन करने की परम्परा चलाई थी जिससे कि उत्तम औषधीयाँ सूक्ष्म होकर वायुमण्डल को शुद्ध करें और समय पर वृष्टि होकर सारी वनस्पति हरी भरी होकर मनुष्य को उत्तम फल फूल आदि उत्पन्न करवाएँ । लेकिन समय के साथ जब वैदिक धर्म में विकृतियाँ आने लगी।  वाममार्ग के कारण वैदिक धर्म में अन्धविश्वास का समावेश हुआ। अनेक कुप्रथाएं प्रचलित हो गई। यज्ञाग्नि में निर्दोष पशुओं की बली दी जाने लगी । इन अंधविश्वासों को देखकर  लोग वैदिक धर्म और यज्ञ की निंदा करने लगे । परंतु शुद्ध यज्ञ परम्परा अक्षुण रूप में कहीं न कहीं चलती ही रही । इसी परम्परा का पालन करने वाले हमारे सिख गुरु थे।  सिख गुरुओं ने वैदिक रीति से सभी यज्ञ संस्कार करवाए थे।

इसका  जिनका प्रमाण नीचे दिया जा रहा है :-

ਤਿਤੁ ਘਿਅ ਹੋਮ ਜਗ ਸਦ ਪੂਜਾ ਕਾਰਜ ਸੋਹੇ ।
( ਮਾਝ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੧/ ੨੬ )
जिस घी से होम ( हवन ) को जग करता है उसके कार्य सिद्ध होते हैं ।

ਹੋਮ ਜਗ ਉਰਧ ਤਪ ਪੂਜਾ । ਕੋਟੀ ਤੀਰਥ ਇਸਨਾਨ ਕੀਜਾ ।।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਿਮਿਸ਼ਰਿਦੇ ਧਾਰੇ । ਗੋਵਿੰਦ ਜਪਤ ਸਭ ਕਾਰਜ ਸਾਰੇ ।।
( ਰਾਗ ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸ਼ਟਪਦੀਆਂ ੩ )
होम के द्वारा जग तप करता है । वो कोटी तीरथों और स्नानो के बराबार है । ईश्वर के चरण कमलों में वसता है और उसी गोविंद ( ईश्वर ) के जाप से सब कार्य सिद्ध होते हैं ।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने जो हवन किया था उसके विषय में ज्ञानी ज्ञानसिंह जी पंथ प्रकाश में लिखते हैं :-

ਇਹ ਤੋ ਧਰਮ ਹਮਾਰਾ ਸਾਰ । ਕਰਤ ਰਹੇ ਨ੍ਰਿਪੁ ਮੁਨਿ ਅਵਤਾਰ ।।
ਸੋ ਤੋ ਹਮ ਭੀ ਕਰਨਾ ਚੈਹੈਂ । ਜਿਸਸੇ ਸਭ ਸ੍ਰਸ਼ਟੀ ਸੁੱਖ ਪੈਹੈਂ ।।
ਇੱਕ ਤੋ ਅਬ ਦੁਰਭਿੱਖ ਅਤਿ ਭਾਰੀ । ਹੈ ਪੜ ਰਹਿਉ ਨਾ ਵਰਸਤ ਵਾਰੀ ।।
ਦੂਸਰ ਭਾਰਤਵਰਸ਼ ਮਝਾਰੇ । ਮਹਾਮਰੀ ਪੜ ਰਹੀ ਅਪਾਰੇ ।।
ਤ੍ਰਿਤੀਯ ਜੋ ਨਰ ਨਾਰੀ ਆਏਂ । ਹੋਈ ਰਹੇ ਨਿੱਤ ਧਰਮੋਂ ਖਾਰਜ ।।
ਪਾਪ ਕੁਕਰਮਨ ਮੇਂ ਸਭ ਲਾਗੇ । ਇਸੀ ਹੇਤ ਬਨ ਰਹੇ ਅਭਾਗੇ ।।
ਜਗਯ ਹਵਨ ਲੋਂ ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਜੇ ਹੈਂ, ਹਾਕਮ ਤੁਰਕ ਕਰਨ ਨਾ ਦੈਹੈਂ ।।
ਹਮ ਜਬ ਹਵਨ ਜਗਯ ਕਰਵੈ ਹੈਂ । ਖੁਸ਼ ਹੋਈ ਧਨ ਜੱਲ ਬਹੁ ਵਰਸੈਹੈਂ ।।
ਦੁਰਭਿੱਖ ਨਾਸੇ ਅੰਨ ਬਹੁ ਪੈਹੈਂ । ਧਰਨੀ ਰਸ ਸਭ ਵਿਧੀ ਪ੍ਰਗਟੈਹੈ ।।
ਬੁੱਧੀ ਸ਼ੁੱਧ ਨਰ ਨਾਰਿਨ ਲੈਹੈਂ । ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਸਬ ਕਰਨੇ ਲਗ ਜੈਹੈਂ ।।
ਨਸੇ ਅਵਿਦਿਆ ਵਿਦਿਆ ਐ ਹੈਂ । ਸੂਰਵੀਰਤਾ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ ਪ੍ਰਕਟੈਹੈਂ ।।
( ਪੰਸ਼ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪੰਜਾਬੀ ਯੁਨਿਵਰਸਿਟੀ ਪਟਿਆਲਾ ਨਿਵਾਸ ੨੫ ਪ੍ਰਸ਼ਠ ੨੦੧,੨੦੨ )

गुरु गोबिंद सिंह जी कहते है कि हमारे धर्म ( वैदिक ) का सार यही है कि जिस पुण्य कर्म को सभी मनुष्य, ऋषि और अवतार कहे जाने वाले करते हैं सो हमें भी करना चाहिए । जिसे न करने के कारण पूरे भारतवर्ष में महामारी जैसी स्थिति है । नर नारी सभी धर्म से खारिज होते जा रहे हैं । पाप कुकर्मों में लगकर सभी अभागे बन रहे हैं । यज्ञ हवन जो सुकृत कर्म हैं उन्हें तुर्क शासक करने नहीं दे रहे हैं । परंतु जब हम हवन करते हैं तो अन्न जल प्रसन्न होकर बरसता है । दुर्भाग्य का नाश होता है । बुद्धि शुद्ध हो जाती है जिसके कारण सुकृत कर्मों में मन लगता है । अविद्या नष्ट होकर विद्या प्रकट होती है और शूरवीरता में वृद्धि होती है ।

ऐसे ही गुरुवाणी में अनेकों प्रमाण यज्ञ के समर्थन में मिलते हैं । लेकिन यज्ञ की शुद्ध परम्परा को स्थापित करने हेतु पूरा यत्न करना पड़ेगा। सभी सिख भाइयों को गुरुओं के समान यज्ञ में पूर्ण आस्था रखनी चाहिए।