शूरता की मिसाल – पंडित लेखराम आर्य मुसाफिर
#डॉ_विवेक_आर्य
[6 मार्च 1897 को पंडित जी का अमर बलिदान हुआ था। इस वर्ष उनके बलिदान की 124वीं वर्षगाँठ है। वर्ष 2022 में पं जी के बलिदान की 125वीं वर्षगांठ पर बृहद रूप से आर्य जगत में बनना चाहिए। ]
पंडित लेखराम इतिहास की उन महान हस्तियों में शामिल हैं जिन्होंने धर्म की बलिवेदी पर प्राण न्योछावर कर दिये। जीवन के अंतिम क्षण तक आप वैदिक धर्म की रक्षा में लगे रहे। आपके पूर्वज महाराजा रंजित सिंह की फौज में थे। इसलिए वीरता आपको विरासत में मिली थी। बचपन से ही आप स्वाभिमानी और दृढ विचारों के थे। एक बार आपको पाठशाला में प्यास लगी। मौलवी से घर जाकर पानी पीने की इजाजत मांगी। मौलवी ने जूठे मटके से पानी पीने को कहा। आपने न दोबारा मौलवी से घर जाने की इजाजत मांगी और न ही जूठा पानी पिया। सारा दिन प्यासा ही बिता दिया। पढने का आपको बहुत शोक था। मुंशी कन्हयालाल अलाख्धारी की पुस्तकों से आपको स्वामी दयानंद जी का पता चला। अब लेखराम जी ने ऋषि दयानंद के सभी ग्रंथों का स्वाध्याय आरंभ कर दिया। पेशावर से चलकर अजमेर स्वामी दयानंद के दर्शनों के लिए पंडित जी पहुँच गए। जयपुर में एक बंगाली सज्जन ने पंडित जी से एक प्रश्न किया था कि आकाश भी व्यापक है और ब्रह्मा भी। दो व्यापक किस प्रकार एक साथ रह सकते हैं ? पंडित जी से उसका उत्तर नहीं बन पाया था। पंडित जी ने स्वामी दयानंद से वही प्रश्न पुछा। स्वामी जी ने एक पत्थर उठाकर कहा की इसमें अग्नि व्यापक है या नहीं? मैंने कहाँ की व्यापक है, फिर कहाँ की क्या मिट्टी व्यापक है? मैंने कहाँ की व्यापक है, फिर कहाँ की क्या जल व्यापक है? मैंने कहाँ की व्यापक है. फिर कहाँ की क्या आकाश और वायु ? मैंने कहाँ की व्यापक है, फिर कहाँ की क्या परमात्मा व्यापक है? मैंने कहाँ की व्यापक है। फिर स्वामी जी बोले कहाँ की देखो- कितनी चीजें हैं परन्तु सभी इसमें व्यापक हैं। वास्तव में बात यहीं हैं की जो जिससे सूक्षम होती है, वह उसमें व्यापक हो जाती है। ब्रह्मा चूंकि सबसे अति सूक्षम है। इसलिए वह सर्वव्यापक है। यह उत्तर सुन कर पंडित जी की जिज्ञासा शांत हो गई।. आगे पंडित जी ने पुछा जीव ब्रह्मा की भिन्नता में कोई वेद प्रमाण बताएँ। स्वामी जी ने कहाँ यजुर्वेद का ४० वां अध्याय सारा जीव ब्रह्मा का भेद बतलाता हैं। इस प्रकार अपनी शंकाओं का समाधान कर पंडित जी वापस आकर वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार में लग गए।
शुद्धि के रण में
कोट छुट्टा डेरा गाजी खान (अब पाकिस्तान ) में कुछ हिन्दू युवक मुसलमान बनने जा रहे थे। पंडित जी के व्याखान सुनने पर ऐसा रंग चड़ा की आर्य बन गए और इस्लाम को तिलांजलि दे दी। इनके नाम थे महाशय चोखानंद, श्री छबीलदास व महाशय खूबचंद जी ,जब तीनों आर्य बन गए तो हिन्दुओं ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया। कुछ समय के बाद महाशय छबीलदास की माता का देहांत हो गया। उनकी अर्थी को उठाने वाले केवल ये तीन ही थे। महाशय खूबचंद की माता उन्हें वापस ले गयी। आप कमरे का ताला तोड़ कर वापिस संस्कार में आ मिले। तीनों युवकों ने वैदिक संस्कार से दाह कर्म किया। पौराणिको ने एक चाल चली यह प्रसिद्ध कर दिया कि आर्यों ने माता के शव को भुन कर खा लिया हैं। यह तीनों युवक मुसलमान बन जाये तो हिन्दुओं को कोई फर्क नहीं पड़ता था। परन्तु पंडित लेखराम की कृपा से वैदिक धर्मी बन गए, तो दुश्मन बन गए। इस प्रकार की मानसिकता के कारण तो हिन्दू आज भी गुलामी की मानसिकता में जी रहे है।
जम्मू के श्री ठाकुर दास मुसलमान होने जा रहे थे। पंडित जी उनसे जम्मू जाकर मिले और उन्हें मुसलमान होने से बचा लिया।
१८९१ में हैदराबाद सिंध के श्रीमंत सूर्यमल की संतान ने इस्लाम मत स्वीकार करने का मन बना लिया। पं पूर्णानंद जी को लेकर आप हैदराबाद पहुंचे। उस धनी परिवार के लड़के पंडित जी से मिलने के लिए तैयार नहीं थे। पर आप कहाँ मानने वाले थे। चार बार सेठ जी के पुत्र मेवाराम जी से मिलकर यह आग्रह किया की मौलवियों से उनका शास्त्रार्थ करवा दे। मौलवी सय्यद मुहम्मद अली शाह को तो प्रथम बार में ही निरुत्तर कर दिया। उसके बाद चार और मौलवियों से पत्रों से विचार किया। आपने उनके सम्मुख मुसलमान मौलवियों को हराकर उनकी धर्म रक्षा की।
वही सिंध में पंडित जी को पता चला की कुछ युवक ईसाई बनने वाले हैं। आप वहाँ पहुँच गए और अपने भाषण से वैदिक धर्म के विषय में प्रकाश डाला। एक पुस्तक आदम और इव पर लिख कर बांटी जिससे कई युवक ईसाई होने से बच गए।
गंगोह जिला सहारनपुर की आर्यसमाज की स्थापना पंडित जी से दीक्षा लेकर कुछ आर्यों ने १८८५ में की थी। कुछ वर्ष पहले तीन अग्रवाल भाई पतित होकर मुसलमान बन गए थे। आर्य समाज ने १८९४ में उन्हें शुद्ध करके वापिस वैदिक धर्मी बना दिया। आर्य समाज के विरुद्ध गंगोह में तूफान ही आ गया। श्री रेह्तूलाल जी भी आर्यसमाज के सदस्य थे। उनके पिता ने उनके शुद्धि में शामिल होने से मन किया पर वे नहीं माने। पिता ने बिरादरी का साथ दिया। उनकी पुत्र से बातचीत बंद हो गई पर रेह्तुलाल जी कहाँ मानने वाले थे। उनका कहना था गृह त्याग कर सकता हूँ पर आर्यसमाज नहीं छोड़ सकता। इस प्रकार पंडित लेखराम के तप का प्रभाव था कि उनके शिष्यों में भी वैदिक सिद्धांत की रक्षा हेतु भावना कूट-कूट कर भरी थी।
घासीपुर जिला मुज्जफरनगर में कुछ चौधरी मुसलमान बनने जा रहे थे। पंडित जी वह एक तय की गई तिथि को पहुँच गए। उनकी दाड़ी बढ़ी हुई थी और साथ में मूछें भी थी। एक मौलाना ने उन्हें मुसलमान समझा और पूछा क्यों जी यह दाढ़ी तो ठीक है पर इन मुछो का क्या राज है? पंडित जी बोले दाढ़ी तो बकरे की होती है और मूछें तो शेर की होती है। मौलाना समाज गया की यह व्यक्ति मुसलमान नहीं है। तब पंडित जी ने अपना परिचय देकर शास्त्रार्थ के लिए ललकारा। सभी मौलानाओ को परास्त करने के बाद पंडित जी ने वैदिक धर्म पर भाषण देकर सभी चौधरियों को मुसलमान बनने से बचा लिया।
१८९६ की एक घटना पंडित लेखराम के जीवन से हमें सर्वदा प्रेरणा देने वाली बनी रहेगी। पंडित जी प्रचार से वापिस आये तो उन्हें पता चला की उनका पुत्र बीमार है। तभी उन्हें पता चला की मुस्तफाबाद में पाँच हिन्दू मुसलमान होने वाले हैं। आप घर जाकर दो घंटे में वापिस आ गए और मुस्तफाबाद के लिए निकल गए। अपने कहाँ की मुझे अपने एक पुत्र से जाति के पाँच पुत्र अधिक प्यारे हैं। पीछे से आपका सवा साल का इकलोता पुत्र चल बसा। पंडित जी के पास शोक करने का समय कहाँ था। आप वापिस आकर वेद प्रचार के लिए वजीराबाद चले गए।
पंडित जी की तर्क शक्ति गज़ब थीं। आपसे एक बार किसी ने प्रश्न किया कि हिन्दू इतनी बड़ी संख्या में मुसलमान कैसे हो गए? अपने सात कारण बताये-
१. मुसलमान आक्रमण में बलात पूर्वक मुसलमान बनाया गया २. मुसलमानी राज में जर, जोरू व जमीन देकर कई प्रतिष्ठित हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया ३. इस्लामी कल में उर्दू, फारसी की शिक्षा एवं संस्कृत की दुर्गति के कारण बने ४. हिन्दुओं में पुनर्विवाह न होने के कारण व सती प्रथा पर रोक लगने के बाद हिन्दू औरतो ने मुसलमान के घर की शोभा बढाई तथा अगर किसी हिन्दू युवक का मुसलमान स्त्री से सम्बन्ध हुआ तो उसे जाति से निकाल कर मुसलमान बना दिया गया. ५. मूर्तिपूजा की कुरीति के कारण कई हिन्दू विधर्मी बने ६. मुसलमानी वेशयायों ने कई हिन्दुओं को फंसा कर मुसलमान बना दिया ७. वैदिक धर्म का प्रचार न होने के कारण मुसलमान बने।
अगर गहराई से सोचा जाये तो पंडित जी ने हिन्दुओं को जाति रक्षा के लिए उपाय बता दिए हैं, अगर अब भी नहीं सुधरे तो हिन्दू कब सुधरेंगे?
पंडित जी और गुलाम मिर्जा अहमद
पंडित जी के काल में कादियान , जिला गुरुदासपुर पंजाब में इस्लाम के एक नए मत की वृद्धि हुई जिसकी स्थापना मिर्जा गुलाम अहमद ने की की थी. इस्लाम के मानने वाले मुहम्मद साहिब को आखिरी पैगम्बर मानते है, मिर्जा ने अपने आपको कभी कृष्ण, कभी नानक, कभी ईसा मसीह कभी इस्लाम का आखिरी पैगम्बर घोषित कर दिया तथा अपने नवीन मत को चलने के लिए नई नई भविष्यवाणियाँ और इल्हामो का ढोल पीटने लगा।
एक उदाहरण मिर्जा द्वारा लिखित पुस्तक “वही हमारा कृष्ण ” से लेते हैं इस पुस्तक में लिखा है – उसने (ईश्वर ने) हिन्दुओं की उन्नति और सुधर के लिए निश्कलंकी अवतार को भेज दिया है। जो ठीक उस युग में आया है जिस युग की कृष्ण जी ने पहिले से सुचना दे रखी है। उस निष्कलंक अवतार का नाम मिर्जा गुलाम अहमद है। जो कादियान जिला गुरु दासपुर में प्रकट हुए है। खुदा ने उनके हाथ पर सहस्त्रो निशान दिखाये है। जो लोग उन पर ईमान लाते है। उनको खुदा ताला बड़ा नूर बख्शता है। उनकी प्रार्थनाएँ सुनता हैं। और उनकी सिफारिश पर लोगों के कष्ट दूर करता हैं। प्रतिष्ठा देता है। आपको चाहिए कि उनकी शिक्षाओं को पढ़ कर नूर प्राप्त करे। यदि कोई संदेह हो तो परमात्मा से प्रार्थना करे की हे परमेश्वर? यदि यह व्यक्ति जो तेरी और से होने की घोषणा करता है और अपने आपको निष्कलंक अवतार कहता है। अपनी घोषणा में सच्चा है तो उसके मानने की हमें शक्ति प्रदान कर और हमारे मन को इस पर ईमान लेन को खोल दे। पुन: आप देखेंगे कि परमात्मा अवश्य आपको परोक्ष निशानों से उसकी सत्यता पर निश्चय दिलवाएगा। तो आप सत्य हृदय से मेरी और प्रेरित हो और अपनी कठिनाइयों के लिए प्रार्थना करावे अल्लाह ताला आपकी कठिनाइयों को दूर करेगा और मुराद पूरी करेगा। अल्लाह आपके साथ हो। पृ. ६,७.८ वही हमारा कृष्ण.
पाठक गन स्वयं समझ गए होंगे कि किस प्रकार मिर्जा अपनी कुटिल नीतिओ से मासूम हिन्दुओं को बेवकूफ बनाने की चेष्टा कर रहा था पर पंडित लेखराज जैसे रणवीर के रहते उसकी दाल नहीं गली।
पंडित जी सत्य असत्य का निर्णय करने के लिए मिर्जा के आगे तीन प्रश्न रखे-
१. पहले मिर्जा जी अपने इस्लामी खुदा से धारा वाही संस्कृत बोलना सीख कर आर्यसमाज के दो सुयोग्य विद्वानों पंडित देवदूत शास्त्री व पंडित श्याम जी कृष्ण वर्मा का संस्कृत वार्तालाप में नाक में दम कर दे।
२. ६ दर्शनों में से सिर्फ तीन के आर्ष भाष्य मिलते है। शेष तीन के अनुवाद मिर्जा जी अपने खुदा से मंगवा ले तो मैं मिर्जा के मत को स्वीकार कर लूँगा।
३. मुझे २० वर्ष से बवासीर का रोग है। यदि तीन मास में मिर्जा अपनी प्रार्थना शक्ति से उन्हें ठीक कर दे तो में मिर्जा के पक्ष को स्वीकार कर लूँगा।
पंडित जी ने उससे पत्र लिखना जारी रखा। तंग आकर मिर्जा ने लिखा की यहीं कादियान आकर क्यों नहीं चमत्कार देख लेते। सोचा था की न पंडित जी का कादियान आना होगा और बला भी टल जाएगी पर पंडित जी अपनी धुन के पक्के थे। मिर्जा गुलाम अहमद की कोठी पर कादियान पहुँच गए। दो मास तक पंडित जी क़ादियन में रहे पर मिर्जा गुलाम अहमद कोई भी चमत्कार नहीं दिखा सका।
इस खीज से आर्यसमाज और पंडित लेखराम को अपना कट्टर दुश्मन मानकर मिर्जा ने आर्यसमाज के विरुद्ध दुष्प्रचार आरंभ कर दिया।
मिर्जा ने ब्राहिने अहमदिया नामक पुस्तक चंदा मांग कर छपवाई। पंडित जी ने उसका उत्तर तकज़ीब ब्राहिने अहमदिया लिखकर दिया।
मिर्जा ने सुरमाये चश्मे आर्या (आर्यों की आंख का सुरमा) लिखा जिसका पंडित जी ने उत्तर नुस्खाये खब्ते अहमदिया (अहमदी खब्त का ईलाज) लिख कर दिया. मिर्जा ने सुरमाये चश्मे आर्या में यह भविष्यवाणी करी की एक वर्ष के भीतर पंडित जी की मौत हो जाएगी. मिर्जा की यह भविष्यवाणी गलत निकली और पंडित इस बात के ११ वर्ष बाद तक जीवित रहे.
पंडित जी की तपस्या से लाखों हिन्दू युवक मुसलमान होने से बच गए. उनका हिन्दू जाति पर सदा उपकार रहेगा.
पंडित जी का अमर बलिदान
मार्च १८९७ में एक व्यक्ति पंडित लेखराम के पास आया. उसका कहना था की वो पहले हिन्दू था बाद में मुसलमान हो गयाI अब फिर से शुद्ध होकर हिन्दू बनना चाहता हैं. वह पंडित जी के घर में ही रहने लगा और वही भोजन करने लगा। 6 मार्च 1897 को पंडित जी घर में स्वामी दयानंद के जीवन चरित्र पर कार्य कर रहे थे। तभी उन्होंने एक अंगराई ली की उस दुष्ट ने पंडित जी को छुरा मार दिया और भाग गया। पंडित जी को अस्पताल लेकर जाया गया जहाँ रात को दो बजे उन्होंने प्राण त्याग दिए। पंडित जी को अपने प्राणों की चिंता नहीं थी उन्हें चिंता थी तो वैदिक धर्म की थी। उनका आखिरी सन्देश भी यही थे कि “तहरीर (लेखन) और तकरीर (शास्त्रार्थ) का काम बंद नहीं होना चाहिए ” । पंडित जी का जीवन आज के हिन्दू युवकों के लिए प्रेरणा दायक है कि कभी विधर्मियो से डरे नहीं और जो निशक्त है उनका सदा साथ देवे।