Thursday, January 7, 2021

स्वामी श्रद्धानन्द का एक विस्मृत भाषण





स्वामी श्रद्धानन्द का एक विस्मृत भाषण

राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली में स्वामी श्रद्धानन्द जी का 17 अगस्त 1923 को आर्यसमाज कोलकाता में दिया गया अंग्रेजी भाषण प्राप्त हुआ। यह भाषण अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। प्रस्तुत लेख उस भाषण के प्रमुख अशों का सारांशतः हिन्दी अनुवाद है।

-डाॅ0 विवेक आर्य

स्वामीजी को सुनने के लिये कोलकाता का अपार जनसमूह उपस्थित हुआ था जिसमें प्रबुद्ध मारवाड़ी, जैन, सिख और बंगाली आदि सज्जन सम्मिलित थे। आयोजन की अध्यक्षता आर्यसमाज कोलकाता के तात्कालीन प्रधान पं0 शंकरनाथ जी ने की थी।

स्वामी जी ने वेद-मन्त्रों के साथ अपने भाषण को आरम्भ किया। उसके कुछ सारांश में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। स्वामी जी कहते हैं कि 5000 वर्ष पहले हमारा देश विश्व गुरु था। यह एक चमत्कार से कम नहीं है कि 5000 वर्षों के थपेड़े खाकर भी यह सभ्यता अपनी मान्यताओं और रीति-रिवाजों को जीवित रखे हुए है। विश्व सभ्यताएं काल ग्रसित हो चुकी हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि ईश्वर के मन में हमारी सभ्यता को लेकर विशेष उद्देश्य है क्योंकि यह विश्व का सबसे महान राष्ट्र है। स्वामीजी अपने भाषण में लार्ड क्लाइव का उदाहरण देते हैं जो चर्च की वेदी पर जाकर रिवाल्वर द्वारा अपनी हत्या करने का प्रयास करता है पर गोली नहीं चला पाता। उससे वह यही निष्कर्ष निकालता है कि ईश्वर ने मुझे किसी विशेष कार्य के लिए चुना है।
हिन्दू संगठन विषय पर बोलते हुए स्वामीजी ने कहा कि भिन्न-भिन्न लोग इसके भिन्न-2 निष्कर्ष निकालते हैं। मुसलमान इसे संग=गला, ठन=मरोड़ना और मुसलमानों को इस देश से बाहर निकालने की मुहिम कहते हैं। कांग्रेस उदासीनता और विरुद्ध भाव से देखती है। कांग्रेस नेता सी0 राजगोपालाचारी कहते हैं कि अगर सभी हिन्दुओं को मुसलमान बनना पड़े तो भी हिन्दू-मुस्लिम एकता पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए।

स्वामीजी ने 1857 में हिन्दुओं और मुसलमानों के सम्बन्द्दों पर अपने विचार प्रकट किये। 1857 के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों के प्रति कड़ा रुख अपनाया। मुसलमानों में सर सैय्यद अहमद खान ने अंग्रेजों की राजभक्ति सिद्ध करने के लिए अंग्रेजी में पत्रक प्रकाशित किये। उन्हें भारत के वाइसराय और इंग्लैंड भेजा। परिणाम यह निकला कि अंग्रेज मुसलमानों के हमदर्द हो गये और हिन्दुओं के प्रति बेरुखी दिखाने लगे। सर सय्यद जो कभी हिन्दू और मुस्लिम को अपनी दो आंख कहते थे, अब हिन्दुओं के हितों की अनदेखी कर सांप्रदायिक रुख अपनाने लगे। इस पर हिन्दुओं में चेतना उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास आरम्भ किये। 1866 में उन्होंने अलीगढ में उर्दू माध्यम से काॅलेज खोलने का प्रस्ताव पेश किया जिसमें हिन्दुओं से कोई सहयोग नहीं मिला। अंत में उन्होंने मुहम्मदन एंग्लो ओरिएण्टल काॅलेज (वर्तमान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) की स्थापना की जो आज इस्लामिक संस्कृति और विचारों के प्रचार प्रसार का गढ़ बन गया है। 1898 में सर सय्यद का देहांत हो गया और 1901 में मौलवी अल्ताफ हुसैन ने उनके ऊपर लिखी जीवनी में उनके जीवन के दोनों पहलुओं पर प्रकाश डाला।
इसके बाद स्वामीजी ने मुहम्मद बिन कासिम के सिंध आक्रमण का वर्णन किया। उस समय सिंध में हिन्दुओं की जनसंख्या 99 प्रतिशत थी जो 1881 में 74 प्रतिशत और 1911 में 69 प्रतिशत हो गई। जिसके आधार पर हिन्दू एक विलुप्त हो रही प्रजाति है। उसके बाद स्वामीजी ने हिन्दू संगठन का उद्देश्य और शारदापीठ के शंकराचार्य आदि के सहयोग पर चर्चा की। स्वामीजी ने कहा कि 1921 में मालाबार और मुल्तान में हुए दंगों के कारण हिन्दू संगठन को चलाने की आवश्यकता पड़ी। मालाबार में हुए अत्याचार को सी0 एफ0 एंड्रूज, हकीम अजमल खान, डाॅ0 अंसारी ने स्वीकार किया पर हसरत मोहानी ने उपेक्षा के रूप में देखा। पंजाब के शिक्षा मंत्री मौलवी तजले हुसैन की सांप्रदायिक नीति को पंजाब के जमींदारों ने खुले मन से स्वीकार किया।
उससे बाद स्वामीजी ने शुद्धि विषय पर अपने विचार रखे। आगरा के समीप रहने वाले मलकाना राजपूत पिछले 25 वर्षों से हिन्दू समाज का अंग बनना चाहते हैं। राजपूत शुद्धि सभा के अंतर्गत मल्कानों में से 1132 पवित्र आत्माओं को शुद्ध किया गया। जनवरी 1923 में लाहौर के अक्सबानी में समाचार प्रकाशित हुआ कि साढ़े चार लाख मुसलमान शुद्ध होने वाले हैं। इससे मुसलमानों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। लाहौर के पट्टी में हिन्दुओं की सभा हुई और भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा की स्थापना हुई। स्वामीजी ने जोर देकर कहा कि मलकाना विशुद्ध रूप से हिन्दू हैं और शाकाहारी हैं, वे चोटी तक रखते हैं।
स्वामीजी ने धन के विषय में बोलते हुए कहा कि उन्होंने पाँच लाख रुपये की अपील की थी पर उन्हें केवल डेढ़ लाख ही प्राप्त हुए जबकि मुसलमानों ने 10 लाख की अपील निकाली और उन्हें 12 लाख प्राप्त हुए। हिन्दुओं को अपने लंगोट कसकर मैदान में उतर जाना चाहिए और तन-मन और धन से सहयोग करना चाहिए। धर्म रक्षा में उनका सहयोग और संग अनिवार्य है। मुस्लिम समाज हिन्दुओं से अधिक संगठित है। जहाँ तक स्वराज का प्रश्न है 24 करोड़ हिन्दू और 7 करोड़ मुसलमान मिल जायें तो पृथ्वी पर उन्हें स्वराज मिलने से कोई रोक नहीं सकता। अंत में स्वामी जी ने तीन विशेष अपील निकालीं।
-गौरक्षा और गोचर भूमि के लिए हर हिन्दू सहयोग करे। हर मंदिर में गौ पालन किया जाये। उसे माता के समान पूजा जाये।
-बनारस में होने वाले हिन्दू महासभा के अधिवेशन में समाज के हर वर्ग से प्रतिनिधि शामिल हो।

-शुद्धि का कार्य आरम्भ हो गया है। बंगाल में भी शुद्धि सभा की शाखा खोली जानी चाहिए। स्वामीजी ने कहा की उन्हें बंगाल से अनेक पत्र शुद्धि के समर्थन में प्राप्त हुए हैं, अतः यहाँ शुद्धि का कार्य हो सकता है।

भाषण के बाद सभापति ने स्वामीजी अपील पर सहयोग देने के लिए प्रेरित किया और बनारस जाने वाले सज्जनों के नामों की घोषणा हुई।
(शांतिधर्मी मासिक पत्रिका दिसम्बर 2020 में प्रकाशित)


(पाठक विचार करें कि लगभग 100 वर्ष के पश्चात् हम उसी मोड़ पर खड़े हैं। अन्तर इतना है कि उस समय हमारे पास स्वामी श्रद्धानन्द जैसे चमत्कारी व्यक्तित्व के धनी नेता थे। आज परिस्थिति पहले से भी विकट है, इसमें कोई दो राय नहीं है।)












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