Tuesday, May 5, 2020

आर्यसमाज के 'करुणा वारियर्स' का अभिनन्दन कीजिये




आर्यसमाज के 'करुणा वारियर्स' का अभिनन्दन कीजिये

डॉ विवेक आर्य

आजकल 'कोरोना वारियर्स' के अभिनन्दन की चर्चा मीडिया में छायी हुई है। विषम परिस्थितियों में कार्य करने वाले सभी राष्ट्रसेवकों को नमन। आर्यसमाज रूपी महान संस्था को जनहित से करते 140 वर्ष से अधिक हो गए हैं। इस दीर्घकाल में आर्यों ने अनेकों कष्ट सहते हुए समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपने पुरुषार्थ से अनेक कीर्तिमान स्थापित किये। उत्तर भारत में शिक्षा, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में महान क्रान्ति में आर्यसमाज का विशेष योगदान हैं। इस लेख में मैं अनेक ऐसे महान व्यक्तियों के कार्यों का संक्षिप्त परिचय दूंगा जो इतिहास में विस्मृत हो चुकें हैं।

-पंजाब में प्लेग ने पिछली सदी के आरम्भ में अनेक बार दस्तक दी। आर्य सेवक रुलियाराम गांव गांव जाकर प्लेग के उन मरीजों की सेवा करते जिन्हें स्वयं उनके घरवाले छोड़कर चले जाते। उनकी से देखकर ईसाई मिशनरियों के पांव उखड गए। वे बोलते रुलियाराम के होते हमारी दाल यहाँ नहीं गलेगी। उनके अथक प्रयासों का परिणाम था कि अमरीकन ईसाई मिशनरी स्कॉट जो भारत को ईसाई बनाने आया था वह स्वयं आर्यसमाज शिमला में शुद्ध होकर आर्य बन गया।

- महात्मा हंसराज एक बार भूकम्प पीड़ित की सहायता करने निकले। उनके कन्धों पर राहत सामग्री का इतना भार था की वो गिर पड़े। घायल हो गए। मगर धूल झाड़ आगे बढ़ गए। देखने वाले उनके समर्पण को देखते रह गए।

-कांगड़ा में भूकंप आया। लाला लाजपत राय अनाथ बच्चों को लेने पहुंच गए। ईसाई मिशनरी ने जब देखा कि शिकार हाथ से निकल रहा हैं। तो लाला जी पर बच्चा चोरी का आरोप लगाकर कोर्ट में घसीट लिया। लाला जी ने कोर्ट केस लड़ा और गैर ईसाई संस्थाओं को अनाथ बच्चों और विधवाओं की से करने का क़ानूनी हक दिलवाया। पहले यह अधिकार केवल ईसाई संस्थाओं को ही था। आर्यसमाज ने अनेकों अनाथालय बरेली, भिवानी आदि में स्थापित किये। 

-उत्तराखंड की नायक जाति में वेश्यावृति की कुप्रथा थी। लाला लाजपत राय गए और उनकी पंचायत को समझाया। उन्होंने अपने बेटियों को घृणित काम से हटा लिया। उन्हें कामगार कारखाना लगाकर शिल्प कार्य करना सिखाया गया। ऐसे इस कुप्रथा से मुक्ति मिली।

-जम्मू में मेघ समाज अशिक्षित और अनपढ़ था। उसका शोषण होता था। आर्यसमाज के महाशय रामचंद्र ने उन्हें पढ़ाना और धर्मशिक्षा देना आरम्भ कर दिया। उनकी की स्वजाति के लोगों ने उनका विरोध किया। वे नहीं माने। उन पर लाठियों की बरसात कर उन्हें अधमरा कर दिया। जिससे उनकी मृत्यु हो गई। बाद में उनके कार्य की महत्ता जानकर उन्हीं के समाज ने इस कार्य को अपने हाथ में ले लिया।

-सियालकोट के मेघ निर्धन थे।  इसलिए ईसाई मिशनरी के शिकार हो जाते थे। आर्यसमाज के लाला गंगाराम और उनके मित्रों ने मिलकर सियालकोट के बाहर एक बंजर जमीन पर आर्यनगर बसाया। उसमें उन परिवारों को बसाया। उन्हें शिल्प आदि कार्य सिखाया। वे सब उन्नति के मार्ग पर चले।

-रोपड़ के पंडित सोमनाथ जी दलितों के उद्धार कार्य में लग गए। उनके समाज के लोगों ने उन पर कुएं से जल लेने से प्रतिबंधित कर दिया। वो नदी से अशुद्ध जल लेने लगे। उससे उनकी माताजी बीमार हो गई। वैद्य ने कहा शुद्ध जल चाहिए अन्यथा वह नहीं बचेगी। सोमनाथ जी परेशान। दलितों का उद्धार करे या माता के प्राण बचाये। माताजी समझ गई। उन्होंने बुलाकर कहा कि मैं वृद्ध हूँ। एक न एक दिन तो जाना ही है। तुम मेरे प्राणों की चिंता मर करो। अपना कार्य करते रहो। माता जी चल बसी। मगर दलितोद्धार का कार्य नहीं रुका।

- मास्टर आत्माराम अमृतसरी लाहौर से गुजरात दलित बच्चों के लिए आवासीय विद्यालयों को खोलने के लिए गए। उन्होंने विद्यालय खोलने के लिए घर देखना आरम्भ किया। जब मकान मालिक को मालूम पड़ता कि वो दलितों के बच्चों के लिए आवास लेना चाहते हैं। तो वे मना कर देते। अंत में उन्होंने एक भूत बंगले के नाम से प्रसिद्द खण्डर मकान का पुनरुद्धार कर उसमें विद्यालय खोला। उनके इन प्रयासों से गुजरात में हज़ारों दलितों के बच्चों का जीवन बदल गया।

-लाला देवराज ने कन्याओं की शिक्षा के लिए जालंधर में विद्यालय खोलना चाहा। कोई उन्हें अपनी लड़की पढ़ाने के लिए ही नहीं देता था। एक बार तो उनकी धोती पकड़कर उन्हें सड़कों पर घसीटा तक गया। पर वे अडिग रहे। अंत में उत्तर भारत की पहली कन्या पाठशाला जालंधर में उनके प्रयासों से स्थापित हुई।

-दिल्ली के दलितों की मांग थी कि उन्हें सार्वजानिक कुओं से पानी भरने दिया जाये। स्वामी श्रद्धानन्द ने यह घोषणा कर दी कि वो जुलुस के माध्यम से दलितों को सार्वजानिक कुओं से पानी भरने का अधिकार दिलाएंगे। दिल्ली के मुसलमानों ने घोषणा कर दी कि वो दलितों को पानी नहीं भरने देंगे क्यूंकि वे सूअरों का मांस खाते है और इस्लाम में सूअर हराम हैं। स्वामी जी ने प्रतिउत्तर दिया कि मांस तो मुसलमान भी खाते हैं। क्या वे उन पर भी पाबन्दी लगाएंगे? आर्यसमाज के प्रभाव से दलितों ने मांसाहार त्याग दिया हैं। तय दिन स्वामी जी के नेतृत्व में जुलुस निकला। मुसलमानों ने पथरबाजी की। पुलिस ने आकर बीचबचाव किया। स्वामी जी ने सार्वजानिक कुँए से सभी को पानी पिलाया। (महाड़ में डॉ अम्बेडकर द्वारा जलाशय से पानी पिलाने की बात तो सभी करते हैं पर देश की राजधानी में ऐसा महान कार्य हुआ। यह कोई नहीं कहता।)

-रिवाड़ी के खेतों में आर्यसमाज से प्रभावित होकर जाट जमींदारों ने दलितों के लिए कुआँ खुदवा दिया। इससे नाराज़ होकर बेटे की ससुराल वालों ने रिश्ता तोड़ दिया। पर वे जमीन्दार समाज सेवा का संकल्प लिए हुए थे। जिस बालक का रिश्ता टुटा था वो आगे चलकर केंद्रीय मंत्री प्रो शेर सिंह बने।

- स्वामी दयानन्द के उपदेशों से प्रभावित होकर इंदौर के मेघराज जाट अपने यहाँ के दलितों को पढ़ाने और धार्मिक संस्कारों की शिक्षा देने लगे। उनकी बिरादरी वालों ने उन पर जंगल में हमला कर दिया। उनकी मृत्यु हो गई। क्या कभी ऐसा उदहारण आपने पढ़ा है। जब एक सवर्ण ने दलितों के उद्धार के लिए अपने प्राण दिए हो?

-लोहारू के नवाब ने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार आरम्भ कर दिए। आर्यसमाज ने उसका प्रतिकार किया। स्वामी स्वतन्त्रानन्द के नेतृत्व में आर्यसमाज ने जुलुस निकाला।जुलुस पर नवाब के गुंडों ने हमला कर दिया। स्वामी जी के सर पर कुल्हाड़े से हमला हुआ। स्वामी जी घायल हो गए मगर झुकें नहीं। अंत में आर्यसमाज को सफलता मिली।

-केरल में 1921 में मालाबार में भयानक दंगे हुए। हज़ारों हिन्दुओं को बलात मुसलमान बना दिया गया। कई सौ की लाशें मारकर कुओं में फेंक दी गई। आर्यसमाज लाहौर से उठकर सुदूर केरल गया। महीनों तक रहत शिविर चलाये। हज़ारों को वापिस शुद्ध किया। अनेकों कष्ट सहकर यह कार्य किया। यह मानव सेवा नहीं तो क्या था?   

-हैदराबाद में निज़ाम ने हिन्दुओं पर मज़हबी अत्याचार करने आरम्भ कर दिए। हिन्दुओं को मंदिरों के निर्माण, पुनरुद्धार करने, धार्मिक उत्सव बनाने, जुलुस निकालने पर पाबन्दी लगा दी। अनेकों हिन्दुओं को प्रताड़ित या प्रलोभन से मुसलमान बनाया जाने लगा। आर्यसमाज ने इस मजहबी अत्याचार के विरोध में 1939 में जेल भरो अहिंसात्मक आंदोलन प्रारम्भ किया।गाँधी ने इस आंदोलन का विरोध किया। निज़ाम की जेल में अत्याचारों से आर्यसमाज के दो दर्जन कार्यकर्ताओं का बलिदान हुआ। अंत में निज़ाम को झुकना पड़ा।

-हिन्दू लोग भूतों में अन्धविश्वास के चलते भोजन बनाकर सड़कों पर डाल देते थे। उनका विश्वास था कि जो इस भोजन को खायेगा। भूत उसे चिपक जायेगा और उनके बच्चें ठीक हो जायेंगे। आर्य विचारों के श्री रामकिशन आर्य से यह अन्धविश्वास देखा नहीं गया। वो अपने दो पुत्रों को लेकर चौंक पर गए। उस भोजन को उन्हें करवाया और कहा-देखो! मेरे पुत्रों को कुछ नहीं हुआ। आप यह भूतप्रेत अंधविश्वास को छोड़ो। पाठकों को जानकार अच्छा लगेगा कि रामकिशन जी मेरे परदादा जी थे। मेरे स्वर्गीय दादा जी 85 वर्ष तक जिए और उनके बड़े भ्राता 98 वर्ष तक जिए।

यह कुछ संस्मरण हैं। आर्यसमाज के इतिहास में ऐसे हज़ारों महान कार्य उसके 'करुणा वारियर्स' ने मानव सेवा के लिए किये। उन सभी महान आत्माओं को नमन। 

No comments:

Post a Comment