Monday, June 25, 2018

अज्ञानियों के कुतर्क का वैदिक उत्तर






अज्ञानियों के कुतर्क का वैदिक उत्तर

आर्यपुत्र निगमेन्द्र
*कुतर्क ― इन्सान ने ही भगवान का निर्माण किया है*
तर्क ― पुत्र कभी पिता का निर्माण कर सकता है क्या ? हम अपने 500- 1000 वर्ष पहले की कुल, परिवार, पूर्वजों की शाखा - श्रृंखला का पता नही कर सकते, और दावा ईश्वर को बारे में जानने का करते हैं। जब अदृश्य वायु, ऊर्जा, शक्ति को मानव समझकर खोज/पाने की आकांक्षा नही की जाती तो अदृश्य ईश्वर को मानव समझकर पाने की मूर्खता क्यों करते हैं लोग ?
*इनके दिये अतार्किक प्रश्नों को वैदिक सत्य के वार से खण्डित करने वाले उत्तर निम्नलिखित है:*
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*1.* मनुष्य के अलावा दुनिया का एक भी प्राणी *भगवान को नहीं मानता।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* ईश्वर ने स्वयं को देखने समझने की आध्यात्मिक शक्ति केवल मनुष्य को प्रदान की है किसी अन्य प्राणियों को नही। जैसे हंसने की शक्ति केवल मनुष्य को प्राप्त है किसी अन्य प्राणी को नही। अतः ईश्वर की अनुभूति करने की विलक्षण योग्यता के कारण ही मनुष्य श्रेष्ठ कृति कही जाती है। इसलिए अन्य प्राणियों से मनुष्य की तुलना करना अज्ञानता है।
*2. जहाँ इन्सान नहीं पहुँचा वहाँ एक भी मंदिर मस्जिद या चर्च नहीं मिला।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* जैसा कि स्पष्ट हो चुका है मनुष्य श्रेष्ठ कृति होने के कारण धरती का सबसे विकसित प्राणी है और मंदिर, चर्च उसके द्वारा सृजित ध्यान, शान्ति के केंद्र स्थल हैं। अतः मनुष्य जहाँ जाएगा तो वहाँ उसके उपयोग हेतु उसकी सर्जन रचना भी जाएगी। क्या मनुष्य के अलावा कोई अन्य प्राणी में मंदिर के उपयोग की क्षमता और बुद्धि ज्ञान है ? जो ऐसे मूर्खतापूर्ण प्रश्न खड़े कर दिए।
*3. अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग देवता है। इसका मतलब इन्सान को जैसी कल्पना सूझी वैसा भगवान बनाया।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* प्रश्न ही मूढ़ता से भरा हुआ है। देवता और भगवान में अंतर है इसलिए देवता को भगवान नही कहा जाता है। ब्राह्मणीय ऊर्जाओं के अज्ञात स्रोत पुंज को ही परमेश्वर कहा जाता है जो एक है। जबकि ब्रह्मांड में लाखों करोड़ों प्रकार की ऊर्जाएं हैं जो अलग अलग कार्य और भूमिका अदा करती हैं। इन्ही मुख्य ऊर्जाओं को वेद ग्रंथ में विभिन्न नाम देकर देवता बताया गया है। जैसे वह ऊर्जा जो अधिक तीव्र ऊष्मा उत्पन्न कर ज्वलनशीलता उत्पन्न करती है उसे *"अग्नि देवता"* से संबोधित किया गया है। देवता अर्थात देने वाला। विज्ञान में भी आज अदृश्य ऊर्जाओं का पता लगाकर उनको नया नाम दिया जाता है जैसे अल्ट्रासोनिक रेज़, बीटा रेज़, एल्फा रेज़, ध्वनि तरंगे इत्यादि।
*4. दुनिया में अनेक धर्म-पंथ और उनके अपने-अपने देवता हैं। इसका अर्थ भगवान भी एक नहीं।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* यह प्रश्न उपरोक्त प्रश्न की भांति विरोधाभाषी है। धर्म अनेक नही होते हैं, धर्म भी परमेश्वर की भांति एक होता है। पंथ अवश्य मानव कृत होने के कारण अनेक होते हैं। बौद्धिष्ट, जैन, कबीर, सिख, हिन्दू पंथियों का कोई प्राकृतिक देवता या ईश्वर नही है। यह सब अपने मार्गदर्शक बुद्ध, महावीर, गुरुनानक, कबीर, श्री राम, श्री कृष्ण जैसे महान मनुष्यो को भ्रमवश भगवान(ईश्वर) मान कर पूजते सम्मान देते हैं। वैदिक धर्म अनुयायी 'आर्य' लोग केवल एक परमेश्वर की उपासना करते हैं, किसी महापुरुष की नही। ईसा, मुहम्मद, मूसा, इब्राहिम ये सब साधारण मनुष्य मात्र थे। इनमे ईसा को छोड़कर बाकियों ने यहूदी और इस्लाम पंथ का गठन किया। इनमे कोई भी प्राकृतिक देवता या ईश्वर नही है। केवल "आर्य" ही ऐसे हैं जो धर्म निर्माता सच्चे परमेश्वर की आराधना, उपासना किया करते हैं। अतः अनेक पंथ के अनुयायी अपने पंथ निर्माताओं को ही देवता तुल्य मानते हैं जो प्राकृतिक देवता अथवा ईश्वर कदापि नही है।
*5. दिन प्रतिदिन नये नये भगवान तैयार हो रहे हैं।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* प्रश्नकर्ता निश्चय ही भगवान के बारे में जानता नही है। अन्यथा जो अजन्मा हो उस ईश्वर/भगवान के तैयार (जन्म) होने की बात ही न उठाता। मूर्खतापूर्ण, काल्पनिक प्रश्नों के उत्तर नही हुआ करते।
*6. अलग-अलग प्रार्थनाएं हैं।*
🔺 *वैदिक उत्तर―* अलग अलग गीत होते हैं, अलग अलग राग, स्वर होते हैं, तो इससे क्या संगीत का महत्व समाप्त हो जाता है या संगीत नही बनता ? अलग अलग रंग मिलकर सफेद प्रकाश बनता है। मनुष्य की अलग अलग भाषा, बोली होती है तब भी जल एक जैसा ही पीते हैं, चावल, रोटी, दाल एक जैसी ही खाते हैं। ऐसे ही एक ईश्वर तक हृदय की भावना पहुंचाने के लिए अलग अलग प्रार्थनाएं भी हो सकती हैं।
*7. "माना तो भगवान, नहीं तो पत्थर "...यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* मनुष्य के भाव, मन, विचार के अनुरूप ही उसकी बुद्धि किसी पदार्थ, वस्तु को साकार रूप में देखती समझती है। यदि किसी को स्वच्छ जल को नाले का मैला जल बताकर पीने को पीने को दें तो वह स्वच्छ जल को मन के भाव अनुसार अस्वच्छ जल के रूप में देखने लगेगा ? जब मात्र विचार, मन मे अस्वच्छता का भाव आने से स्वच्छ जल भी दूषित जल दिखने लगता है तब ठीक ऐसे ही मन मे पत्थर, मिट्टी, वृक्ष, जल, पर्वत आदि में ईश्वर के होने का भाव रखने से ईश्वर की अनुभूति होती है। इसीलिए तो कहा जाता है जहाँ भाव होता है वही ईश्वर दिखाई देता है।
*8. दुनिया में देवताओं के अलग-अलग आकार और उनको प्रसन्न करने की लिए अलग-अलग पूजा।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* देव ऊर्जाओं को मानव शरीर मे चित्रित करना अज्ञानता है। जहां तक अलग अलग आकार की बात है तो प्रत्येक ऊर्जाओं का अपना अलग आयाम, आवृत्ति, शक्ति होती है। ध्वनि ऊर्जा के ही अनेक आयाम(आकार), आवृत्ति होती है। अतः देव ऊर्जाओं के रूप, आकार एक जैसे होने की आशा रखना मूर्खता ही होगी। अरबो मनुष्य के चेहरे समान आकार, बनावट के नही होते तो देवताओ से ऐसी आशा विज्ञान के किस नियम के आधार पर की जाती है ? यहां देवता का अर्थ प्राकृतिक देवता (ब्रह्मांडीय ऊर्जा) से है, काल्पनिक मानव शरीरधारी देवता से नही है, जिनके मंदिर, प्रतिमाएं, चित्र की लोग पूजा करते हैं।
*9. अभी तक किसी इन्सान को भगवान मिलने के कोई प्रमाण नहीं हैं।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* मनुष्य व अन्य प्राणियों का होना ही ईश्वर के होने का प्रमाण है। जैसे तुम्हारे होने का अर्थ ही तुम्हारे माता पिता के होने का प्रमाण है। गाड़ी, महल, सड़क, मशीनें, टीवी, मोबाइल, जहाज का होना ही मनुष्य के होने का प्रमाण है। ईश्वर अनंत ऊर्जा, प्रकाश पुंज का नाम है जिसे ऊर्जा रूपी आत्मा से ही अनुभूत किया और पाया जा सकता है, जो इंद्रियों की पकड़ से बाहर है। अज्ञानी लोग ईश्वर को इंद्रियों के द्वारा प्राप्त करने के चलते आजीवन भटकते रहते हैं।
*10. भगवान को मानने वाला और न मानने वाला भी समान जिंदगी जीता है।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* भगवान को मानने या न मानने से किसी के जीवन मे कोई परिवर्तन या अंतर नही पड़ता है। पाप, चोरी, झूठ, दुराचार, पाखण्ड, धोखा, व्यभिचार, मद्यपान दोनो ही तरह के मनुष्य करते हैं। दोनो तरह के मनुष्यों को ईश्वर पर विश्वास करने के कारण नही, बल्कि अपने कर्म फल से कारण लाभ-हानि, सुख-दुख, जीवन-मृत्यु, यश-अपयश, सफलता- असफलता प्राप्त होती है। ईश्वर को मानने की अपेक्षा अपनी मनुष्यता को पहचानना आवश्यक है, जो मनुष्य होने के अर्थो को जान गया वह ईश्वर को भी जान जाता है। केवल ईश्वर प्राप्ति हेतु ध्यान व उपासना के मार्ग पर चलने वाले के जीवन मे ही उत्थान होता है वही असाधारण मनुष्य होकर परम सुख, आनंद को प्राप्त होकर संसारिक चिंताओं, दुखो से मुक्ति पाने का अधिकारी होता है।
*11. भगवान किसी का भी भला या बुरा नहीं कर सकता।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* निश्चय ही यह भ्रम त्यागने वाली बात है कि भगवान /ईश्वर कभी कोई काम नही करता। वेद, उपनिषद यही कहता है। सृष्टि व उसके नियम- सिद्धांत स्वतः ही निर्धारित प्रणाली के अंतर्गत संचालित होते रहते हैं। उसने मनुष्य को अपना भला या बुरा करने हेतु पाँच इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, विचार, विवेक, प्रेम, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, कृपणता, द्वेष, मोह, क्रूरता, हिंसा, निकृष्टता, करुणा, दया, ममता, ध्यान, एकाग्रता आदि गुण अवगुण दिए हैं। जिसका जैसा उपयोग मनुष्य करेगा वैसा ही अच्छा बुरा फल भोगेगा। ईश्वर सीधा कभी कोई हस्ताक्षेप नही करता है किसी के जीवन मे। यदि ऐसा ईश्वर करता भी है तो वह पक्षपात करने का दोषी हो जाएगा क्योंकि जिसका मन अनुसार काम हो गया तो वह ईश्वर को धन्यवाद देगा और जिसका मन अनुसार कार्य नही होगा वो ईश्वर को दोष देगा, उनके ऊपर पक्षपात करने का आरोप लगाएगा, जो सर्वथा अनुचित होगा। अतः ईश्वर ने विधान रचते हुए मनुष्य को अपने कर्मानुसार जीवन संवारने और बिगाड़ने की स्वतंत्रता दे दी है। मनुष्य जैसा चाहे अपना जीवन स्वयं बना सकता है। उसके लिए ईश्वर उत्तरदायी कभी नही होता है और न ऐसा विचार कभी बुद्धि में लाना चाहिए। तभी तो कहावत बनी है जैसा कर्म वैसा फल, आज नही तो मिलेगा कल।
*12. भगवान भ्रष्टाचार अन्याय, चोरी, बलात्कार आतंकवाद, अराजकता रोक नहीं सकता।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* इस प्रश्न का उत्तर उपरोक्त प्रश्न संख्या 10 व 11 के उत्तर में समाहित है।
*13. छोटे मासूम बच्चों पर बंदुक से गोलियाॅ दागने वालों के हाथ भगवान नहीं पकड़ सकता।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न संख्या 10 व 11 के उत्तर में समाहित है।
*14. मंदिर मठ आश्रम प्रार्थना स्थल जहाँ माना जाता है कि भगवान का वास होता है वहाँ भी बच्चे महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* इसका उत्तर प्रश्न 11 के उत्तर में समाहि15. मंदिर, मस्जिद, चर्च को गिराते समय एक भी भगवान ने सामने आकर विरोध नहीं किया।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* ईश्वर क्यों विरोध करेगा ? मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे आदि मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए बनाए हैं, ईश्वर की सुविधा के लिए नही। यह सब साधन मात्र हैं कोई साध्य नही। इन्हें तोड़ो या बनाओ ईश्वर का इससे कुछ लेना देना नही है। ईश्वर से पूँछकर बनाया जाता है क्या मंदिर, चर्च ? मेरे नाम का कोई मंदिर, महल बनाकर कल तोड़ भी दे, उससे मेरी सेहत पर कोई अंतर नही पड़ेगा।
*16. बिना अभ्यास किये एक भी छात्र को भगवान ने पास किया हो ऐसा एक भी उदाहरण आज तक सुनने को नहीं मिला।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* ऐसा एक भी उदाहरण दिया है किसी ने की ईश्वर ने किसी को परीक्षा में बैठने को कहा हो? जब ईश्वर को परीक्षा में बैठने को कहते देखा नही तो ऐसा पागलपन वाला प्रश्न कैसे कर सकते हो ? किसी के उत्तीर्ण (pass) या अनुत्तीर्ण (fail) होने से ईश्वर का कुछ बनता बिगड़ता ही कहाँ है जो ईश्वर पास कराएगा।
*17. बहुत सारे भगवान ऐसे हैं जिनको 25 साल पहले कोई नही जानता था । वह अब प्रख्यात भगवान हो गये। जैसे- सांई बाबा, सत्य सांई आदि।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* अकर्मण्य, काहिल, कामचोर, मुफ्तखोर, अंधबुद्धि लोग मनुष्य को भगवान बनाकर पूजते हैं। ईश्वर न जन्म लेता है और न मरता है। साईं बाबा, सत्य साईं जन्म लेकर मरने वाले मनुष्य मात्र थे। ईश्वर को समझने, पहचानने के लिए *"वेद ग्रंथ"* का ज्ञान होना आवश्यक है अन्यथा आसाराम, रामरहीम, सत्य साईं जैसे ठग लोग स्वयं भगवान बनकर दूसरों की अज्ञानता का लाभ उठाते रहेंगे।
*18. खुद को भगवान समझने वाले अब जेल की हवा खा रहे हैं।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न 11 के उत्तर में सम्मिलित है।
*19. दुनिया में करोडों लोग हैं जो भगवान को नहीं मानते फिर भी वह सुख चैन से रह रहे हैं।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न 10 व 11 के उत्तर में सम्मिलित है।
*20. हिन्दू अल्लाह को नहीं मानते। मुस्लिम भगवान को नहीं मानते। ईसाई भगवान और अल्लाह को नहीं मानते। हिन्दू मुस्लिम गाॅड(christ) को नहीं मानते। फिर भी सब भगवानों ने एक दूसरे को नही पूछा ऐसा क्यों ?*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* इसका कारण है हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि सबने मन गढ़ंत ईश्वर, अल्लाह, God के बारे में अलग अलग कल्पनाएं बनाई हुई हैं। हदीस कहती है अल्लाह की पहचान है उसकी जांघ है, उसके दो हाँथ हैं, वह सातवें आसमान पर सिंहासन पर बैठा है। ईसाई कहते हैं ईसा ईश्वर के पुत्र हैं। हिन्दू कहता है महापुरुष श्री राम, श्री कृष्ण,श्री हनुमान ही ईश्वर हैं। सब ईश्वर के बारे में, अल्लाह के बारे में, God के बारे में गलत धारणाएं बनाये बैठे हैं। जो स्वयं गलत मान्यता पाले बैठा हो वो दूसरों के गलत सही होने का पता कैसे कर सकता है। ईश्वर जब एक है तो उसका स्वभाव, चरित्र, गुण, विशेषता भी एक जैसी होगी। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्धों के अनुसार उसका चरित्र, स्वभाव, गुण अलग अलग नही हो सकता। यह अज्ञानता ही आपसी विद्वेषता का कारण है। ईश्वर कैसा है? क्या उसका गुण, स्वभाव, चरित्र है....ईश्वर ने स्वयं वेदों में इसका संपूर्ण ज्ञान दिया है। अतः हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख लोग वेद जीवन मे एक बार अवश्य पढ़ें, सारा अज्ञान का अंधकार मिट जाएगा। सारे झगड़े, विरोध मिट जाएंगे।
*21. एक धर्म कहता है कि भगवान का आकार नहीं।*
● *दूसरा धर्म भगवान को आकार देकर फैन्सी कपड़े पहनाता है।*
● *तीसरा धर्म अलग ही बताता है। मतलब सच क्या है* ?
🔺 *वैदिक उत्तर ―* सर्वप्रथम धर्म एक ही है वैदिक धर्म, जो ईश्वर को ऊर्जा, प्रकाश पुंज होने के कारण निराकार कहता है जो अकाट्य सत्य है, ऊर्जा शक्ति का कोई रूप, रंग, आकार नही होता। इसी कारण वैदिक धर्म अनुयायी आर्य निराकार ईश्वर को निराकार रूप में ध्यान, साधना के माध्यम से उपासना करते हैं।
जबकि मुसलमान मक्का में काले पत्थर को अल्लाह मानकर पूजते हैं। हिन्दू प्रतिमाओं को ईश्वर मानकर श्रंगार कर पूजते हैं। ईसाई ईसा मरियम की प्रतिमाओं को पूजते हैं।
सच वही है जो वेद में स्वयं ईश्वर ने मनुष्यो को बताया है। बाकी अंध विश्वासी मान्यताओं का बोझ है।
*22. भगवान है तो लोगों में उसका डर क्यों नहीं ?*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* ईश्वर भय में नही, प्रेम में बसता है। ईश्वर कोई अन्यायी, अत्याचारी है जो उससे डरा जाय। ईश्वर से बस प्रेम ही किया जा सकता है। प्रेम की उपस्थिति ही ईश्वर के होने का आभाष कराती है।
*23. मांस भक्षण करने वाला भी जी रहा है और नहीं करने वाला भी जी रहा है । और जो दोनों खाता है वह भी जी रहा है।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न 10 के उत्तर में समाहित है।
*24. रूस, अमेरिका भगवान को नहीं मानते फिर भी वे त है।🔺 *वैदिक उत्तर ―* इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न 10 व 11 में समाहित है।
*25. जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो फिर चार वर्ण की व्यवस्था सिर्फ भारत में क्यों पाई जाती है ? अन्य देशों में क्यों नही पाई जाती है ?*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* चार वर्ण का ज्ञान सर्वप्रथम धरती पर आर्यावर्त (भारत) भूमि पर वेद द्वारा आया था। जब धरती में कहीं भी कोई अन्य देश, नगर नही हुआ करते थे। जहाँ कुछ मनुष्य जाति थी भी, तो वह अशिक्षित, असभ्य थी। इस कारण वर्ण व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त करने वाले आर्यवर्त वासी ही थे और कोई नही।
*26 जब पिछले जन्म के कर्म के आधार पर जातियों का निर्माण किया गया है तो भारतीय जातियां अन्य देशों में क्यों नहीं पाई जाति है।*
🔺 *वैदिक उत्तर ―* सर्वप्रथम जाति (जातियां) ईश्वर बनाता है मनुष्य कदापि नही। जैसे मनुष्य जाति, बन्दर जाति, अश्व जाति, सर्प जाति, हाँथी जाति इत्यादि। जो जिस जाति का प्राणी है वह अपने जैसे अन्य प्राणियों को ही पैदा करेगा। पैदा करने की शक्ति ईश्वर के हाँथ में है। उसी ने हाँथी, घोड़े, कुत्ता, शेर, मनुष्य, पक्षी आदि जातियाँ बनाई है। मनुष्य अपने गर्भ से घोड़े जाति को पैदा नही कर सकता कभी। ईश्वर के काम मे मनुष्य दखल नही दे सकता।
प्रश्नकर्ता जात के बारे में कहना चाह रहे हैं। तो जात का अर्थ उसके पहचान करने से होता है। यह जात व्यवस्था ईसा के जन्म से 4 हज़ार वर्ष पूर्व सर्वप्रथम यहूदियों ने शुरू की, उसके बाद ईसाई पंथ ने शुरू किया फिर इस्लाम पंथ बनने पर मुसलमानो ने शुरू किया इसे। और भारत मे मुस्लिम शासन स्थापित होने के बाद मुगलो द्वारा हिन्दू नाम दिए जाने के बाद हिन्दू समुदाय बना और हिन्दू पंथ के निर्माण के बाद हिन्दुओ ने इस्लाम की भांति जातवाद व्यवस्था अपना ली। और भारत की प्राचीन वर्ण व्यवस्था को त्याग दिया। इसी जातवाद ने मनुष्यो को मनुष्यो का शोषण करना सिखाया, अत्याचार सिखाया।
अतः ये कहना जातवाद भारत मे ही है सफेद झूठ है।
*क्या आप सच्चाई के साथ हैं?*
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✍🏼 *उत्तरदाता ― आर्यपुत्र निगमेंद्र*
*अन्धविश्वास और पाखंडवाद को मिटाने में सहयोग करे।*
 *आर्य सत्य विचार* 

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