Wednesday, December 13, 2017

लव जिहाद बनाम अत्याचार



लव जिहाद बनाम अत्याचार

डॉ विवेक आर्य

शम्भुलाल रैगर की घटना सम्पूर्ण देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। सेक्युलर मीडिया इस घटना के लिए दोष सोशल मीडिया पर लव जिहाद के विरोध में चल रही मुहीम को दे रहा हैं। सत्य यह है कि यह जब से सोशल मीडिया प्रभावशाली हुआ है। तब से उसने प्रिंट मीडिया, टीवी मीडिया आदि के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया हैं। यह कटु सत्य है कि प्रिंट मीडिया और टीवी मीडिया पर साम्यवादी, हिन्दू विरोधी मीडिया का प्रभुत्व हैं। इसलिए लोकतंत्र के इस स्तम्भ को निष्पक्ष कहना बेईमानी होगी। लगातार अपने अधिकारों का दमन होते देख , हिन्दू अस्मिता का बलात्कार होते देख हिन्दू युवाओं ने सोशल मीडिया में ऐसा प्रतिकार किया कि अब उसकी आलोचना करने के अतिरिक्त सेक्युलर खेमे के पास और कुछ बचा भी नहीं हैं। कभी आप हुसैन की हिन्दू देवी-देवताओं की अश्लील पेंटिंग्स को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताते हैं। कभी आप काली देवी को धोखा देखर महिषासुर का हत्यारा बताते है। कभी आप कश्मीरी अलगाववादियों और आतंवादियों को आज़ादी का सिपाही बताते है। कभी आप दीवाली-होली को प्रदुषण से जोड़ते है, मगर बकरीद पर कुर्बानी को लेकर मौन धारण कर जाते हैं। पहले हिन्दू समाज इस बौद्धिक अत्याचार को देखकर केवल अपना मन मसोस कर रह जाता था। अब वह सोशल मीडिया के माध्यम से सेक्युलर खेमे को चुनौती देता है। यह चुनौती भी एक या दो नहीं अपितु लाखों की संख्या में होती है। जिसे देख कर सेकुलरों के दिल अंदर तक हिल गए। NDTV के प्राइम टाइम में भी रविश ने भी अपनी एकतरफा सोच को दिखा कर अपनी सेक्युलर भक्ति को सिद्ध किया है। मगर सच्चाई चाहे कड़वी हो वह सच्चाई ही रहेगी।

लव जिहाद कहो या हिन्दुओं की अबलाओं का अपहरण कहो। यह कोई आज से थोड़े ही चल रहा है। यह तो 1200 सालों से अलग अलग रूपों में चल रहा है। मुस्लिम आक्रांता पहले हिन्दू लड़कियों को उठा लेते थे। सिंध की देवल नगरी के राजा दाहिर की पुत्रियों परिमल और सूर्य देवी का अपहरण कर उन्हें मुस्लिम शासक के समीप भेज दिया गया। यह इतिहास में दर्ज किया गया सबसे पहला उदहारण है। बाद के आक्रांता भी यही खेल खेलते रहे। काबुल और बगदाद में गुलामों के बाजार लगे। हिन्दू घरों की शान एक एक दीनार में बिकी। यह इतिहास किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं पढ़ाया जाता। कभी अकबर जैसे शासक अपने सैन्य बल के प्रभाव से जोधाबाई को अपने पिता से छीनकर अपने हरम भरते थे। कभी मुस्लिम नवाब अपने रियासत की सबसे खूबसूरत लड़कियों से बड़े से बड़ा हरम भरना अपनी शान समझते थे। कारण यह था कि मुस्लिम आक्रांताओं का यह मानना था कि शत्रुओं का मनोबल तोड़ने के लिए उससे दो सबसे प्रिय चीज छीन लो। एक उसका उपासना स्थल और दूसरी उसकी बेटियां। 1947 में यही नंगा खेल लाहौर से लेकर मुल्तान की गलियों में खेला गया। उस वीभत्स दरिंदगी को अपनी आँखों से देखने वाले तो आज भी हमारे देश में जीवित है। यही खेल 1990 में कश्मीर में भी खेला गया। जब मस्जिदों के माइक से यह ऐलान किया गया कि कश्मीरी हिन्दुओं यहाँ से चले जाओ परन्तु अपनी बेटियों को छोड़ जाओ। यही खेल आज मुस्लिम क्रिकेट खिलाडी और बॉलीवुड के अभिनेता खेल रहे हैं। केरल के लव जिहाद में हिन्दुओं के साथ साथ ईसाई लड़कियों को भी शिकार बनाया गया। इन लड़कियों का धर्मपरिवर्तन कर उन्हें ISIS में भर्ती के लिए भेजा गया। ऐसी रिपोर्ट सरकारी एजेंसियों द्वारा तैयार की गई हैं। विदेश में भी यही खेल जारी है। ब्रिटेन में पैदा और पली बढ़ी हिन्दू/सिख लड़कियों को पाकिस्तानी मूल के साथ पढ़ने वाले मुस्लिम लड़के अपना शिकार बनाते हैं। इस कार्य के लिए उन्हें स्थानीय मुस्लिम समाज से भरपूर सहयोग मिलता है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की लड़कियों को उठाकर उसे धमकी देकर इस्लाम स्वीकार करवा विवाह करना कोई पुरानी खबर नहीं हैं। आज भी टायर पंक्चर वाला, दर्जी, मिस्त्री, नाई, धोबी, कंप्यूटर सिखाने वाला, टूशन मास्टर आदि के रूप में मुस्लिम लड़के अपने असली नाम को छिपाकर, राजू-राजा आदि नाम रखकर, हाथ में कलावा बांधकर हिन्दू लड़कियों को भ्रमित कर। उन्हें बर्बाद कर रहे हैं। हाल में केरल में होमियोपैथी की हिन्दू छात्रा को उसकी सहेली द्वारा धर्मपरिवर्तन करवाकर, उसका निकाह एक मुस्लिम लड़के से करवाने की खबर प्रचारित हो रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया।

ऐसा नहीं था कि हिन्दू समाज ने इस अत्याचार का प्रतिकार नहीं किया। इतिहास में अनेक उदहारण मिलते है। हिन्दू समाज ने अपनी लड़कियों को बलिदान कर दिया, मगर शत्रु के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया। सिंध के दिवान गिददुमल को जब मुस्लिम शासक मीर ने उनकी बेटी को हरम में भेजने का प्रस्ताव भेजा। तो दिवान गिददुमल ने अपनी लड़की के कहने पर उसका सर काट कर अपने आपको बर्बाद करना स्वीकार किया था। मगर मीर के घर अपनी लड़की को भेजना स्वीकार नहीं किया था। हरियाणा के कलनौर, रोहतक में मुस्लिम नवाब उसके राज्य में विवाह करके आई नई दुलहन को सुहागरात से पहले अपने किले में बुला कर उसे पतित करता था। इस अत्याचार के विरुद्ध सांघी खाप के जाटवीर एकत्र होकर नवाब की ऐसी दुर्गत बनाकर आये थे कि उसे किला छोड़कर भागना पड़ा था। सिरोंज, विदिशा के महेश्वरी समाज के एक सेठ की बेटी को उसके विवाह के दिन टोंक के मुस्लिम नवाब ने जब माँगा तो सम्पूर्ण महेश्वरी समाज ने एक रात में सिरोंज छोड़कर कर दूसरे राज्य में चला गया। मगर अपनी बेटी को नवाब को देना अस्वीकार किया। हिन्दुओं पर इसी इस्लामिक अत्याचार के कारण राजस्थान में जन्म लेते ही बेटी की हत्या करने की कुरीति भी चल पड़ी थी।
इतिहास की इन घटनाओं से हिन्दू समाज आज भी प्रेरणा ले रहा है। इन अत्याचार का विरोध कर रहा है। खेद है कि बहुसंख्यक हिन्दुओं की न तो सरकार सुनती है। न ही प्रशासन सुनता है। देश का कानून बनाने वालों ने भी एकतरफा कानून बनाकर हिन्दुओं का कोई साथ नहीं दिया। लड़की को बालिग बनाकर उसके विधर्मी बनने का पूरा अवसर दिया। रही सही कसर मीडिया का सेक्युलर खेमा और NGO धंधे वाले पूरी कर देते है। क्या आपने कभी सुना की कोई मुस्लिम संस्था मुस्लिम लड़कियों का हिन्दू लड़कों से विवाह करवाने के लिए कार्य कर रही है? नहीं। पर आपने यह अवश्य सुना होगा कि अनेक सेक्युलर हिन्दुओं द्वारा संचालित संस्थायें इसके विपरीत हिन्दू लड़कियों का मुस्लिम लड़कों से निकाह करवाने के लिए प्रयासरत है। ऐसे परिवेश में जब आपका कोई साथ नहीं देता। आप कुंठित हो जाते हो। तब ऐसी घटना का सामने आना जो शम्भुनाथ ने जो कोई असामान्य बात नहीं है। मैं जानता हूँ कि भारतीय संविधान के अनुसार किसी की हत्या करना अपराध है। मगर संविधान के अनुसार तो हिन्दू लड़कियों की रक्षा करना भी सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी बनती हैं। जब सरकार अपने कर्त्तव्य का निर्वाहन न करे। तो जनता सड़कों पर उतारकर अपना विरोध दर्ज करवाती है। शम्भुनाथ की घटना उसी पीड़ित मानसिकता का एक प्रारूप है। जिसने संविधान की धारा का तो अतिक्रमण कर दिया मगर सामाजिक अत्याचार के विरोध में अपनी प्रतिक्रिया को सोशल मीडिया के माध्यम से दर्ज करवाया। अगर आप लगातार अत्याचार करेंगे तो विरोध के स्वर तो सुनेगे ही। इस समस्या का समाधान संविधान परिवर्तन से हो सकता है। संविधान के अनुसार बिना माता-पिता की अनुमति के चाहे लड़की बालिग हो हिन्दू लड़की का मुस्लिम लड़के से विवाह का अधिकार नहीं होना चाहिये। यही इस समस्या का मूल समाधान है। अन्यथा शम्भुनाथ जैसी अनेक घटनाएं सामने आएगी और आती रहेगी।

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