Tuesday, October 17, 2017

सत्यार्थ प्रकाश क्यों पढे ?



सत्यार्थ प्रकाश क्यों पढे ?

रोहिताश आर्य

महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखित ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश एक अनुपम ग्रंथ है। इसमें ऋषि ने 377 ग्रंथो के प्रमाण दिये है।और 1542 वेद मन्त्र व श्लोक लिखे है,इसमें कुल प्रमाणो की संख्या 1886 है। ऋषि ने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा वे ऋग्वेद से लेकर पूर्व मीमांसा तक लगभग 3000 संस्कृत ग्रंथो को प्रमाणिक मानते थे और इन्ही ग्रंथो का निचोड़ सत्यार्थ प्रकाश मे है।  ऋषि ने इसे मात्र साढ़े तीन माह मे मौखिक रुप से बोलकर लिखवाया।इससे उनके विशाल शास्त्र ज्ञान ,व्यापक अनुभव और दिव्य प्रतिभा का परिचय मिलता है।इसमे 14 समुल्लास व पांच भूमिका है। पहले दस समुल्लास मे ऋषि ने सत्य का मंडन किया है,और अन्तिम चार मे संसार मे फैले विभिन्न मत मतान्तरो का वेद के आधार पर निष्पक्ष रुप से खण्डन किया है।चारो समुलासो से पहले भूमिका से यह प्रकट होता है।अंधेरे मे सोये लोगोको जगाने की आवश्यकता है।  जिससे वे सूर्य का प्रकाश देख सके।गलत रास्ते पर चलने वाले पथिक को पहले ऊंचे स्वर मे यह बताने की जरुरतहै कि तू उल्टे मार्ग पर जा रहा है।  वहाँ से वापस आ और इधर चल। सत्यार्थ प्रकाश विभिन्न मतो की अविद्या मे सोये लोगो को जगाकर वेद रुपी सूर्य के दर्शन करने की प्रेरणा देता है।सत्यार्थ प्रकाश उस मनुष्य के समान है, जो सोते लोगो के सामने अपनी एक उंगली से सूर्योदय को बतला रहा है।  जबकि दूसरे हाथ से आलस्य को त्यागकर उठने के लिए झिझोड रहा है। इसके दो भागो मे पहला वेदसूर्य की ओर अगुली कर रहा है और दूसरा मतो के आलस्य त्यागने के लिए गति दे रहा है। यदि मनुष्य को केवल गति ही देते जाओ कि उठो तो उठने वाला करवट बदलता रहता है और कहता है कहीं सूर्य दिखाई नहीं देता अभी रात है और वह नहीं उठता। सत्यार्थ प्रकाश उस मनुष्य के समान है जिसके एक हाथ मे दवाई व दूसरे मे पौष्टिक भोजन है। पहला भाग पौष्टिक भोजन है तो दूसरा कडवी दवाई। स्वस्थ मनुष्य को केवल पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है।  जबकि बीमार को भोजन व दवा दोनों चाहिए। जागते हुए मनुष्य के लिए मंडन हुआ करता है, परन्तु सोये हुओ के लिए मंडन व खण्डन दोनों आवश्यक है। कुछ लोग कहते है कि खण्डन नहीं करना चाहिए केवल अपना मंडन कर दिया।लोग अपना भला बुरा स्वयं सोचे हम किसी का मन क्यों दुखावे। लेकिन यह कथन हर जगह लागू नहीं होता। जैसे एक रोगी मनुष्य को रोग से बचाने के लिए हम उसे कडवी दवा जबरदस्ती भी देते है।   वह हमारे लात भी मारता है गाली भी देता है फिर भी हम दवा देते है।इसका अर्थ यह नहीं कि हम उसका बुरा चाहते है। रोगी को दवा के साथ पौष्टिक भोजन चाहिए और सत्यार्थ प्रकाश दोनों काम करता है। सत्यार्थ प्रकाश वह ज्ञान रुपी टार्च है जो हमे अविद्या अन्धकार रुपी गड्ढे मे गिरने से बचाता है।यह निश्चित है जिसने सत्यार्थ प्रकाश पढ लिया उसको कोई धोखा नहीं दे सकता ।

इसके लिए पहले ऋषि की भावना देखते है आरंभ मे वे प्रतिज्ञा करते है कि हे ईश्वर आप ही अन्तर्यामी रुप से प्रत्यक्ष ब्रह्म हो जो आपकी वेदस्थ आज्ञा है उसी को मै सबके उपदेश और आचरण भी करुंगा। सत्य बोलू ,सत्य मानू और सत्य ही करुंगा,सो आप मेरी रक्षा करो आप मुझ सत्य वक्ता की रक्षा किजिये।  जिससे मेरी बुद्धि आपकी आज्ञा के विरुद्ध कभी न हो क्योंकि जो आपकी आज्ञा वही धर्म और उसके विरुद्ध अधर्म है मै धर्म का पालन व अधर्म से घृणा सदा करु ऐसी कृपा मुझ पर किजिए मै आपका उपकार मानूगा।

सत्यार्थ प्रकाश के पहले समुल्लास मे ऋषि ने ईश्वर के मुख्य निज नाम ओ३म् की व्याख्या की है इसका क्या अर्थ है यह बताया है फिर ईश्वर के सौ गुण वाचक नाम शिव विष्णु ,गणेश आदि की व्याख्या की है और बाद मे गणेशाय: नम:आदि लिखने को गलत बताया है क्योंकि यह ऋषि परम्परा के विपरीत है।
दूसरे समुल्लास मे सन्तान की शिक्षा व पालन के विषय मे कहा है बच्चे को भूत प्रेत आदि से डराने को गलत बताते है वे कहते है माता पिता ,आचार्य अपने सन्तान व शिष्य को उपदेश करे और यह कहे जो-२ हमारे धर्म युक्त कर्म है उनको ग्रहण करो और जो दुष्ट कर्म है उनका त्याग करो।

तीसरे समुल्लास मे वे बच्चो की शिक्षा कैसी हो कौन सी पुस्तक पढे कौन सी नही ।संध्या के विषय मे कहते है-न्यून से न्यून एक घण्टा ध्यान अवश्य करे।जैसे समाधिस्थ होकर योगी ईश्वर का ध्यान करते है वैसे ही सन्ध्योपासना करे।हवन के बारे मे कहते है प्रत्येक मनुष्य सोलह -२ आहुति और छ:-२ माशे घृत की आहुति रोज अग्नि मे दे जो ऐसा नहीं करता वह पापी है।

चौथे समुल्लास मे वे विवाह कितने प्रकार के होते है कौन से उत्तम है विवाह कहाँ करना चाहिए किससे करना चाहिए कब करना चाहिये ये प्रमाण सहित बताया है।परिवार मे स्त्री पुरुष का कैसा व्यवहार हो उनके दैनिक कार्य क्या है यह बताया है।

पांचवे समुल्लास मे आश्रम व्यवस्था का पालन न होने से क्या हानि है वानप्रस्थ व सन्यास आश्रम के विषय मे कहा है। सन्यासी के गुणो का वर्णन किया है।

छटे समुल्लास मे राज्य व्यवस्था का वर्णन किया है विद्यार्य सभा ,धर्मार्य सभा और राजार्य सभा व सभापति के बारे मे कहा है।राजा के कर्तव्य मन्त्री ,युद्ध कला दंड व्यवस्था का वर्णन किया है।

सातवे समुल्लास मे ईश्वर व वेद विषय मे बताया है।ईश्वर की प्रार्थना के विषय मे कहते है -केवल मुख से बोलने का नाम प्रार्थना नहीं बल्कि मनुष्य जिस बात की प्रार्थना करे वैसा ही आचरण भी करना चाहिये ।प्रार्थना के बाद अष्टांग योग की रीति से उपासना करने का वर्णन किया है।

आठवे समुल्लास मे सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई उसकी स्थिति व प्रलय क्या है,मनुष्य की सर्वप्रथम उत्पत्ति कहाँ हुई आर्य कौन है कहाँ के निवासी है आदि का वर्णन किया है।

नवे समुल्लास मे विद्या अविद्या बन्धन और मोक्ष विषय मे बताया है।अन्नमय ,मनोमय,प्राणमय,विज्ञानमय और आनन्दमय कोश क्या है ये बताया ।मुक्ति क्या है इसका समय कितना है क्या मुक्ति के बाद जीव पुन:जन्म लेता है वेद के आधार पर बताया है।

दसवे समुल्लास मे आचार अनाचार व क्या खाना क्या नहीं खाना इसका वर्णन किया है वे कहते है जितना हिंसा और चोरी ,विश्वासघात ,छल कपट आदि से प्राप्त पदार्थो का भोग करना वह अभक्ष्य और अहिंसा ,धर्म आदि कर्मो से प्राप्त होकर भोजन करना भक्ष्य है।

ग्यारहवे समुल्लास मे आर्यवृत मे फैले अनेक मत मतान्तर के दोषो का बिना पक्षपात के वर्णन किया है।इन मतो से क्या हानि है दृष्टान्त देकर विनोद पूर्ण ढंग से बताया है।

बारहवे समुल्लास मे जैन मत बौद्ध मत चार्वाक और मूर्ति पूजा कब शुरु हुई इसकी हानि क्या है यह बताया है।

तेरहवे समुल्लास मे ईसाई मत बाईबिल के विषय मे बताया है और चौदहवे समुल्लास मे इसलाम व कुरान की पक्षपात रहित होकर समीक्षा की है।

इन चारो समुल्लासो को पढने से पहले इनकी भूमिका पढनी आवश्यक है क्योंकि ऋषि ने वहाँ अपना मनत्वय बताया है।

अन्त मे कहते है सबको सुख लाभ पहुँचाने का मेरा प्रयत्न और अभिप्राय है---

जिससे सब लोग सहज से धर्मार्थ काम मोक्ष की सिद्धि करके सदा उन्नत और आनन्दित होते रहे यही मुख्यतः मेरा प्रयोजन है।-स्वामी दयानन्द
  

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