सिख गुरू और यज्ञ
कुमार आर्य
सृष्टि के आदिकाल से ही वैदिक रीति से यज्ञ करने की परम्परा रही है । प्रत्येक पुण्य कार्य में हवन करने का विधान ऋषियों ने वेद के आधार पर किया है क्योंकि पवित्र करने के लिए अग्नि से उत्तम कोई भी अन्य साधन नहीं है । अग्नि ही है जो प्रत्येक द्रव्य को सूक्ष्म बनाकर वायु में बिखेर देती है । जैसे कि जल हर पदार्थ की शुद्धि बाहर से करता है परन्तु अग्नि प्रत्येक छोटे से कण को भी शुद्ध कर देती है । तभी ऋषियों ने अग्नि में मनुष्य मात्र का कल्याण करने वाली औषधियों को डालकर गौघृत के साथ हवन करने की परम्परा चलाई थी जिससे कि उत्तम औषधीयाँ सूक्ष्म होकर वायुमण्डल को शुद्ध करें और समय पर वृष्टि होकर सारी वनस्पति हरी भरी होकर मनुष्य को उत्तम फल फूल आदि उत्पन्न करवाएँ । लेकिन समय के साथ जब वैदिक धर्म में विकृतियाँ आने लगी। वाममार्ग के कारण वैदिक धर्म में अन्धविश्वास का समावेश हुआ। अनेक कुप्रथाएं प्रचलित हो गई। यज्ञाग्नि में निर्दोष पशुओं की बली दी जाने लगी । इन अंधविश्वासों को देखकर लोग वैदिक धर्म और यज्ञ की निंदा करने लगे । परंतु शुद्ध यज्ञ परम्परा अक्षुण रूप में कहीं न कहीं चलती ही रही । इसी परम्परा का पालन करने वाले हमारे सिख गुरु थे। सिख गुरुओं ने वैदिक रीति से सभी यज्ञ संस्कार करवाए थे।
इसका जिनका प्रमाण नीचे दिया जा रहा है :-
ਤਿਤੁ ਘਿਅ ਹੋਮ ਜਗ ਸਦ ਪੂਜਾ ਕਾਰਜ ਸੋਹੇ ।
( ਮਾਝ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੧/ ੨੬ )
जिस घी से होम ( हवन ) को जग करता है उसके कार्य सिद्ध होते हैं ।
ਹੋਮ ਜਗ ਉਰਧ ਤਪ ਪੂਜਾ । ਕੋਟੀ ਤੀਰਥ ਇਸਨਾਨ ਕੀਜਾ ।।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਿਮਿਸ਼ਰਿਦੇ ਧਾਰੇ । ਗੋਵਿੰਦ ਜਪਤ ਸਭ ਕਾਰਜ ਸਾਰੇ ।।
( ਰਾਗ ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸ਼ਟਪਦੀਆਂ ੩ )
होम के द्वारा जग तप करता है । वो कोटी तीरथों और स्नानो के बराबार है । ईश्वर के चरण कमलों में वसता है और उसी गोविंद ( ईश्वर ) के जाप से सब कार्य सिद्ध होते हैं ।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने जो हवन किया था उसके विषय में ज्ञानी ज्ञानसिंह जी पंथ प्रकाश में लिखते हैं :-
ਇਹ ਤੋ ਧਰਮ ਹਮਾਰਾ ਸਾਰ । ਕਰਤ ਰਹੇ ਨ੍ਰਿਪੁ ਮੁਨਿ ਅਵਤਾਰ ।।
ਸੋ ਤੋ ਹਮ ਭੀ ਕਰਨਾ ਚੈਹੈਂ । ਜਿਸਸੇ ਸਭ ਸ੍ਰਸ਼ਟੀ ਸੁੱਖ ਪੈਹੈਂ ।।
ਇੱਕ ਤੋ ਅਬ ਦੁਰਭਿੱਖ ਅਤਿ ਭਾਰੀ । ਹੈ ਪੜ ਰਹਿਉ ਨਾ ਵਰਸਤ ਵਾਰੀ ।।
ਦੂਸਰ ਭਾਰਤਵਰਸ਼ ਮਝਾਰੇ । ਮਹਾਮਰੀ ਪੜ ਰਹੀ ਅਪਾਰੇ ।।
ਤ੍ਰਿਤੀਯ ਜੋ ਨਰ ਨਾਰੀ ਆਏਂ । ਹੋਈ ਰਹੇ ਨਿੱਤ ਧਰਮੋਂ ਖਾਰਜ ।।
ਪਾਪ ਕੁਕਰਮਨ ਮੇਂ ਸਭ ਲਾਗੇ । ਇਸੀ ਹੇਤ ਬਨ ਰਹੇ ਅਭਾਗੇ ।।
ਜਗਯ ਹਵਨ ਲੋਂ ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਜੇ ਹੈਂ, ਹਾਕਮ ਤੁਰਕ ਕਰਨ ਨਾ ਦੈਹੈਂ ।।
ਹਮ ਜਬ ਹਵਨ ਜਗਯ ਕਰਵੈ ਹੈਂ । ਖੁਸ਼ ਹੋਈ ਧਨ ਜੱਲ ਬਹੁ ਵਰਸੈਹੈਂ ।।
ਦੁਰਭਿੱਖ ਨਾਸੇ ਅੰਨ ਬਹੁ ਪੈਹੈਂ । ਧਰਨੀ ਰਸ ਸਭ ਵਿਧੀ ਪ੍ਰਗਟੈਹੈ ।।
ਬੁੱਧੀ ਸ਼ੁੱਧ ਨਰ ਨਾਰਿਨ ਲੈਹੈਂ । ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਸਬ ਕਰਨੇ ਲਗ ਜੈਹੈਂ ।।
ਨਸੇ ਅਵਿਦਿਆ ਵਿਦਿਆ ਐ ਹੈਂ । ਸੂਰਵੀਰਤਾ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ ਪ੍ਰਕਟੈਹੈਂ ।।
( ਪੰਸ਼ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪੰਜਾਬੀ ਯੁਨਿਵਰਸਿਟੀ ਪਟਿਆਲਾ ਨਿਵਾਸ ੨੫ ਪ੍ਰਸ਼ਠ ੨੦੧,੨੦੨ )
गुरु गोबिंद सिंह जी कहते है कि हमारे धर्म ( वैदिक ) का सार यही है कि जिस पुण्य कर्म को सभी मनुष्य, ऋषि और अवतार कहे जाने वाले करते हैं सो हमें भी करना चाहिए । जिसे न करने के कारण पूरे भारतवर्ष में महामारी जैसी स्थिति है । नर नारी सभी धर्म से खारिज होते जा रहे हैं । पाप कुकर्मों में लगकर सभी अभागे बन रहे हैं । यज्ञ हवन जो सुकृत कर्म हैं उन्हें तुर्क शासक करने नहीं दे रहे हैं । परंतु जब हम हवन करते हैं तो अन्न जल प्रसन्न होकर बरसता है । दुर्भाग्य का नाश होता है । बुद्धि शुद्ध हो जाती है जिसके कारण सुकृत कर्मों में मन लगता है । अविद्या नष्ट होकर विद्या प्रकट होती है और शूरवीरता में वृद्धि होती है ।
ऐसे ही गुरुवाणी में अनेकों प्रमाण यज्ञ के समर्थन में मिलते हैं । लेकिन यज्ञ की शुद्ध परम्परा को स्थापित करने हेतु पूरा यत्न करना पड़ेगा। सभी सिख भाइयों को गुरुओं के समान यज्ञ में पूर्ण आस्था रखनी चाहिए।
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