स्वामी दयानंद और स्वामी विवेकानंद
डॉ विवेक आर्य
तुलनात्मक अध्ययन
कल मैंने स्वामी दयानंद की निर्भीकता को प्रदर्शित करने के लिए एक शंका प्रस्तुत की थी। अनेक मित्रों ने अपने अपने विचार प्रकट किये। सभी का धन्यवाद। मैंने यह प्रश्न क्यों किया? इस पर चर्चा करनी आवश्यक है। दोनों महापुरुषों के विचारों में भारी भेद हैं। इसलिए इस विषय पर चिंतन की आवश्यकता है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य सत्य को ग्रहण करना एवं असत्य का त्याग करना है। इसलिए हम भी उसी का अनुसरण करे। यही इस लेख का उद्देश्य है।
1. स्वामी दयानंद वेदों को ईश्वरीय वाणी होने के कारण सत्य मानते है। स्वामी दयानंद ने यह मान्यता वर्षों के अनुसन्धान, चिंतन, मनन एवं निधिध्यासन के पश्चात स्थापित की थी। एक अनुमान से स्वामी दयानंद ने 5000 धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन उस काल में किया था जिसमें से 3000 पुस्तकें उन्हें उपस्थित थी। स्वामी विवेकानंद का वेदों में प्रवेश नहीं था। वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस द्वारा मान्य मूर्तिपूजा पद्यति एवं काली पूजा और वेदांत के उपासक थे।
2. स्वामी दयानंद ने पुराणों को मनुष्यकृत सिद्ध किया। स्वामी जी पुराण अनेक काल में विभिन्न मनुष्यों द्वारा रचे गए। एवं रचनाकार ने अपना नाम न देकर व्यास कृत दिखाकर एक अन्य प्रपंच किया। पुराणों में वेद विरुद्ध मान्यताएं,परस्पर विरोध, देवी-देवताओं के विषय में अपमानजनक बातें जैसे उन्हें कामुकी, चरित्रहीन बताना, अज्ञानी बताना, शत्रुता भाव आदि देखकर उन्हें कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति धार्मिक ग्रन्थ नहीं मान सकता। स्वामी विवेकानंद ने इतना गंभीर चिंतन पुराणों में धर्म-अधर्म विषय को लेकर नहीं किया था।
3. स्वामी दयानंद ने अपने अनुसन्धान से यह सिद्ध किया कि वेदों में गोमांस भक्षण और यज्ञ में पशुबलि आदि का उल्लेख नहीं है। मध्य काल में सायण-महीधर आदि ने वेदों के गलत अर्थ कर यह प्रपंच फैलाया। स्वामी विवेकानंद वेदों में गोमांस भक्षण और पशुबलि आदि स्वीकार करते है। वे यहाँ तक लिखते है कि प्राचीन भारत इसलिए महान था क्योंकि यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी और ब्राह्मण गोमांस भक्षण करते थे। संभवत उनकी बंगाली पृष्ठभूमि उन्हें इस मान्यता को स्थापित करने में सहायता करती थी। गोरक्षा के मुद्दे पर आपको RSS कभी स्वामी विवेकानंद का नाम लेते नहीं दिखेगा।
4. स्वामी दयानंद ने अपने भागीरथ अनुसन्धान से यह सिद्ध किया की वेदों के जो भाष्य पश्चिमी लेखक जैसे मैक्समूलर आदि कर रहे हैं, वे भ्रामक है। उनसे वेदों की प्रतिष्ठा की हानि होगी। स्वामी दयानंद मैक्समूलर महोदय को साधारण विद्वान् की श्रेणी का भी नहीं मानते। स्वामी विवेकानंद वेदों के भाष्यों के विषय में अनुसन्धान से परिचित नहीं थे। अन्यथा वे मैक्समूलर महोदय को आधुनिक सायण की उपाधि देकर महिमामंडन नहीं करते।
5. स्वामी दयानंद ने पाया कि हिन्दू समाज के पतन का मुख्य कारण मूर्ति पूजा और उससे सम्बंधित अन्धविश्वास है। उन्होंने मूर्तिपूजा को वेद विरूद्ध भी सिद्ध किया। स्वामी दयानंद ने ईश्वर के निराकार स्वरुप की स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना करने का प्रावधान किया। यह मान्यता प्राचीन ऋषि परंपरा के अनुसार थी न कि कल्पित थी। स्वामी विवेकानंद जीवन भर मूर्तिपूजा का समर्थन करते रहे। उनकी अलवर नरेश के संग वार्तालाप को अधिकाधिक प्रचारित भी इसी उद्देश्य से किया जाता है। उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस भी मूर्तिपूजक थे। विडम्बना देखिये स्वामी दयानंद जिस अज्ञान रूपी खाई से हिन्दू समाज को निकालना चाहते थे हिन्दू समाज उसी खाई में और अधिक गहरे धसता चला गया। पहले राम और कृष्ण जी की मूर्तियां पूजी जाती थी। फिर कल्पित देव-देवियों जैसे काली, संतोषी माँ आदि को महत्व मिला। कालांतर में गुरुओं और मठाधीशों की मूर्तियां स्थापित हुई। वर्तमान में मूर्तिपूजा में क्रमिक विकास हुआ। सभी पिछली स्थापित मूर्तियों का त्याग कर साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां एक मस्जिद में रहने वाले मुस्लिम फकीर को चमत्कार की आशा से पूजना आरम्भ कर दिया। इससे भी मन नहीं भरा तो अजमेर के मुस्लिम ख्वाजा गरीब नवाज से लेकर भारत वर्ष में स्थित सैकड़ों इस्लामिक कब्रों पर जाकर अपना सर पटकने लगे। क्यों? केवल चमत्कार की आशा से। कर्म करने का जो सन्देश श्री कृष्ण ने गीता में दिया था उसकी धज्जियाँ स्वयं हिंदुओं ने उड़ा दी। इस मूर्ति पूजा ने हिन्दू को आलसी, अकर्मण्य, अपुरुषार्थी, भोगवादी, अज्ञानी बना दिया। मूर्तियों को भगवान मानकर पूजने से यही हानि होती है। स्वामी दयानंद अपनी दूरदृष्टि एवं अनुभव से यह समझ गए एवं हमें समझा गए थे। जबकि स्वामी विवेकानंद उसी रोग का समाधान करने के स्थान पर उसी को बढ़ावा देते दिख रहे है। RSS द्वारा कुछ दिन पहले मुस्लिम फकीर साईं बाबा की पूजा को हिन्दू दर्शन कहकर स्वीकारीय बताने को आप क्या कहेंगे? कल को हिन्दू समाज में कोई अफजल गुरु और अजमल कसाब का मकबरा बना देगा और हिन्दू उसे पूजने लगेगा। तो क्या RSS उसे भी हिन्दू दर्शन कहकर पूजने की मान्यता देगा? स्वयं चिंतन करे।
6 . स्वामी विवेकानंद मांसाहारी थे, धूम्रपान के व्यसनी थे। 32 वर्ष की आयु में अस्थमा एवं मधुमेह से उनकी असमय मृत्यु हो है। मांसाहार के इतने शौक़ीन थे कि जब अमरीका गए तब केवल मांस खाया। कुछ भक्तों ने पूजा की आपके मांसाहारी होने से आपके देशवासी नाराज होंगे। स्वामी विवेकानंद बोले कि जो नाराज होते हो तो मेरे लिए यहाँ पर शाकाहारी भोजन की व्यवस्था कर दे। स्वामी दयानंद ब्रह्मचर्य और प्राणायाम के बल पर बलिष्ठ शरीर के स्वामी, शाकाहारी होने के साथ साथ निरामिष भोजी थे। योग विद्या के बल पर शारीरिक, आध्यात्मिक उन्नति कर अपने मिलने वालों के समक्ष मनोहर छवि प्रस्तुत करते थे। जिससे मिलने वाले भी अपना जीवन उन्नत करने का प्रयास करे। एक मांसाहारी, धूम्रपान व्यसनी सन्यासी को मैं अपना आदर्श किसी भी आधार से नहीं मान सकता।
7. स्वामी विवेकानंद के विचारों में मुझे कहीं नहीं दिखती। एक और वे भारतीय दर्शन के ध्वजावाहक है वही दूसरी और विदेशियों की भरपूर की प्रशंसा करते दीखते है। कभी ईसाईयों की आलोचना करते है तो कभी ईसा मसीह के गुणगान करते दीखते है। कभी इस्लाम की आलोचना करते है तो कभी मुहम्मद साहिब के गुणगान करते दीखते है। कभी अंग्रेजों के गुलाम बनाने पर निंदा करते है तो कभी अंग्रेजों की प्रशंसा करते दीखते है। उनके विचारों में एकरूपता, सिद्धांत की स्थापना जैसा कुछ नहीं दीखता। उनके इसी चिंतन का असर रामकृष्ण परमहंस मिशन पर स्पष्ट दीखता है। 1990 में इस मिशन ने हम हिन्दू नहीं है के नाम से कोर्ट में याचिका दायर कर अपने आपको अलग दिखाने का प्रयास किया था। वर्तमान में ईसा मसीह की वाणी और मुहम्मद साहिब के विचार जैसी पुस्तकें इस मिशन द्वारा प्रकाशित होती हैं। सेक्युलर लबादे में अपने आपको लपेट कर दुकानदारी अच्छे से चलती है। कड़वे सत्य को बोलने में बुराई मिलती है। यही कारण है कि सत्य के उपदेशक स्वामी दयानंद को हिन्दू समाज उतना मान नहीं देता जितना मान मीठी मीठी बात करने वाले स्वामी विवेकानंद को देता है।
8. स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण का बड़ा महिमामंडन किया जाता है। इस भाषण को दुनिया में परिवर्तन करने वाला भाषण करार दिया गया है। मैंने 1883 में विश्व धर्म समेल्लन में दिए गए अन्य वक्ताओं के भाषण को पढ़ा। स्वामी विवेकानंद की उपस्थिति में उसी मंच से अनेक ईसाई वक्ताओं से मंच से वेदों में गोमांस भक्षण और यज्ञों में पशुबलि जैसे वेदों की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाले अनेक भाषों को पढ़ा। स्वामी विवेकानंद ने किसी भी प्रकार से प्रतिकार नहीं किया। पाठक इस विषय में स्वयं निणय करे। क्यों? स्वामी विवेकानंद आलोचना का शिकार नहीं बनना चाहते थे। जहाँ तक कुछ ईसाईयों को वेदान्त में दीक्षित करने का प्रश्न है। साउथ अफ्रीका में प्रवासी हिंदुओं को तेजी से ईसाई बनते देख उन्हें शुद्ध करने वाले भवानीदयाल सन्यासी ने लिखा कि जिस काल में स्व,स्वामी विवेकानंद चंद ईसाईयों को वेदांती बनाने में लगे हुए थे उस काल हज़ारों की संख्या में अफ्रीका और लैटिन अमरीका में हिंदुओं को ईसाई बनाया गया। स्वामी विवेकानंद ने ईसाई मिशनरी का कोई प्रतिकार नहीं किया। पाठक 1869 में हुए सैकड़ों पंडितों उपस्थिति में किये गए काशी शास्त्रार्थ को इतिहास की सबसे बड़ी घटना क्यों नहीं मानते? जब स्वामी दयानंद ने शताब्दियों से प्रचलित अन्धविश्वास की रीति को एक वार में रोक दिया। न किसी प्रलोभन में आये। प्राण हानि तक का खतरा था। राजा से लेकर सभी पंडित अपनी रोजी-रोटी के चलते उनके विरुद्ध थे। मगर सत्य के उपासक दयानंद ने को केवल ईश्वर विश्वास और वेदों के ज्ञान पर भरोसा था। इस घटना का महिमामंडन शिकागो भाषण के समान किया जाता तो आज हिंदुओं की संतान मुस्लिम पीरों पर सर न पटक रही होती।
इतने भारी सिद्धांतिक भेद होने के कारण भी स्वामी दयानंद के स्थान पर स्वामी विवेकानंद का महिमामंडन करना हिन्दू समाज को शोभा नहीं देता। दयानंद केवल और केवल सत्य के उपासक है। जबकि विवेकानंद सुनियोजित छवि निर्माण (Planned Marketing) के उत्पाद है।
मैंने अपनी क्षमता से अपने विचार प्रकट किये है। पाठक अपनी योग्यतानुसार निर्णय करे कि स्वामी दयानंद को उनका वास्तविक स्थान और मान हिन्दू समाज क्यों न दे?
डॉ विवेक आर्य
विवेकानंद की सच्चाई
ReplyDeleteविवेकानंद नाम आते ही एक राष्ट्र भक्त हिन्दू महात्मा की छवि उभरती है |परन्तु मित्रो इससे पहले कुछ प्रमाणों पर नजर डालते है | क्योकि बिना सच जाने और माने कभी हम धर्म की रक्षा यही कर पाएंगे |
"कम्पलीट वर्क और विवेकानंद" नामक पुस्तक में विवेकानंद जी के संसार भर में दिए गए व्याख्यानों और लिखे गए पत्रो को उन्ही के स्थापित किया संघठन ने छापा है |
1: स्वामी विवेकानंद द्वारा पशु बलि Sister Christine को बेलुरे मठ हावड़ा से 12th November 1901 को Sister Christine को लिखे अपने पत्र में लिखते हैं की हमने काली मां की पूजा की और बकरे की बली दी। स्वामी जी अपनी अज्ञानता के कारण जहाँ वैदिक धर्म पर बली का आरोप जड़ते हैं वही खुद वो ही निंदनीय कर्म करने मे संलग्न होते हैं। We had an image, too, and sacrificed a goat and burned a lot of fireworks. The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 9- Pg 169
2: Mrs Ole Bull को Alambazar Math Calcutta (Darjelling ) से 26 th March
1897 को लिखे अपने पत्र में अपनी बीमारी से ग्रस्त होने को बयां करते हुए स्वामी विवेकानंद लिखते हैं की केवल मांस खाना ही लम्बी आयु का राज है Admitting about the diabetes problem he
said that Eating only meat and drinking no water seems to be the only way to prolong
life -The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 9- Pg 93
3: मैरी नामक महिला को 28th April 1897 को अपने स्वास्थय के बारे में लिखते हुए स्वामी विवेकानंद लिखते हें की मेरे बाल भूरे हो गए हें चहरे पर झुर्रियां पड़ने लगी हैं और में अपनी उम्र से 20 वर्ष ज्यादा का दिखने लगा हूँ। मेरा शरीर कमजोर हो रहा है। में मांस खाने के लिए ही बना हूँ ना रोटी ना आलू ना राइस ना ही शक्कर| My hair is turning grey in bundles, and my face is getting wrinkled up all over; that losing of flesh has given me twenty years of age more. And now I am losing flesh rapidly, because I am made to live upon meat and meat alone — no bread, no rice,
no potatoes, not even a lump of sugar in my coffee!! I
-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 391
4: अगर भारत के लोग चाहते है की में हिन्दू धर्म के अनुसार भोजन करू तो उनसे कहो की मेरे लिए पर्याप्त धनराशि और रसोइया भेज दे | If the people in India want me to keep strictly to my Hindu diet, please tell them to send me a cook and money enough to keep him. -The complete work of Swamee Vivekanand Vol 5 , Page 95
5: चाहे कोई कुछ भी कहे परन्तु सच ये ही है की जो जो देश भोजन के रूप में हमेशा मांस का सेवन नियमबद्ध करते है वे निसंदेह वीर, पराक्रमी और विचारवान है | Whatever one or the other may say, the real fact, however, is that the nations who take the animal food are always, as a rule, notably brave, heroic and thoughtful.
The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 484
6: मेरे अनुभव से अगर संसार में कोई धर्म समानता, सोहाद्र और प्रेम की प्रसंशनीय प्राप्ति कर सकता है तो वह सिर्फ और सिफ इस्लाम है| हमारी अपनी मातृभूमि के लिए एक ही उम्मीद है दो महान प्रणाली, हिंदू धर्म और इस्लाम का मिला जुला एक स्वरुप - वेदांत मस्तिष्क और इस्लामिक शरीर| Whether we call it Vedantism or any ism, the truth is that Advaitism is the last word of religion and thought and the only position from which one can look upon all religions and sects with love On the other hand, my experience is that if ever any religion approached to this equality in an appreciable manner, it is Islam and Islam alone.
For our own motherland a junction of the two great systems, Hinduism and Islam — Vedanta brain and Islam body — is the only hope.
The complete work of Swamee Vivekanand, Vol –6
लगता है सिर्फ ब्राम्हण वर्ण जिंदा है. क्योकि बिना मास खाये सैनिक युद्ध करणे मे काबिल बनता है ना ही लोगोकी उतनी एनर्जी शाकाहार से मिलती है.
ReplyDeleteजरा महाभारत में वर्णित व्याध गीता
झूठ बोल रहा है तू शाकाहार में मांसाहार से ज्यादा एनर्जी और न्यूट्रीशन होता है चना में मांस से कई गुना ज्यादा प्रोटीन और ऊर्जा होती है सोयाबीन में मांस से ज्यादा प्रोटीन विटामिन फाइबर्स मिनरल्स और पोषक तत्व होते है सोयाबीन में सबसे ज्यादा प्रोटीन होता है साइंस भी मानता है महाभारत में सब शाकाहारी ही थे तू झूंठा है सूअर
Deleteविवेकानंद को कैसे महान बना दिया ये तो दिग्भ्रमित इन्सान थे ।स्वामी शब्द लिखना शब्द का अपमान है
ReplyDeleteजी हां
DeleteKoi kahi se vi kuch utha ke de ge ga bina sachai jane man lena is foolish ness jab 1987 mey oh europe mey ek indian besh vusa mey geye the ha, pehle thora unka life history check karlo, vuke mar jate o england mey, england ke log sakahari to nehi the or swami ji ke pas peysa vi nehi tha, jeyse teyse nanga vuka 2 mahina gujare hey oha, uppar se jo kam ke liye oha geye the bina pura kiye nehi ana tha, england ke log hindu dekh kar or jada dharnmatarita karna chahte the oh alag oh to unki dir nistha or desh prem se unho hindu dhar ko age pouchaya, 1988-
ReplyDelete