हिंदुओं की 6 जमात
डॉ विवेक आर्य
पहले पौराणिक हिन्दू। जो अन्धविश्वास, मूर्तिपूजा, तीर्थों, गुरुओं, मठों आदि के चक्कर में पड़े हुए हैं। उनका धन, सामर्थ्य, शक्ति हिन्दू समाज के कल्याण देने के स्थान पर व्यर्थ नष्ट हो रही हैं।
दूसरा भोगवादी हिन्दू। जो शराब, धूम्रपान और व्यभिचार में इतना अंदर तक डूब चूका है कि उसके समस्त जीवन में अब केवल अन्धकार ही अंधकार हैं।
तीसरा नास्तिक/कम्युनिस्ट हिन्दू। जो कुतर्कवादी है। अपनी प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं को बिना समझे आंख बंदकर उनका बहिष्कार करता हैं। और यह समझना ही नहीं चाहता कि इस्लाम और ईसाइयत कैसे उसके शत्रु हैं।
चौथा अम्बेडकवादी हिन्दू। यह केवल आक्रोश प्रकट करता जानता है। कभी ब्राह्मणवाद के नाम पर, कभी मनुवाद के नाम पर और कभी जातिवाद के नाम पर। यह परोक्ष रूप से मुसलमान और ईसाईयों की सहायता करता दिख रहा हैं। यह महात्मा बुद्ध और डॉ अम्बेडकर की मान्यताओं के बिलकुल विपरीत चलता हैं।
पांचवा जैन/सिख मत आदि हिन्दू हैं। जो हिंदुओं की पारंपरिक रीती से अलग होकर अपने मत विशेष को अधिक महत्व देते हैं। ये हिन्दू संगठन की आवश्यकता एवं एकजुटता के दूरगामी महत्व से अनभिज्ञ हैं।
छठा आर्यसमाजी हिन्दू। इसे यह तो मालूम है कि समाज का हित कैसे होगा। मगर यह अपनी सारी ऊर्जा, सारी शक्ति आपस में लड़ने में नष्ट कर रहा हैं। इस जमात के लिए अपनी नाक, अपनी पदवी, अपनी प्रतिष्ठा स्वामी दयानंद के मिशन से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
भगवान इन सभी को सद्बुद्धि दीजिये। यही एक प्रार्थना है।
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