(पाखंड खंडन)
RSS( आरएसएस) के अखिल भारतीय महासचिव भैयाजी जोशी ने बयान दिया की साईं बाबा को भगवान मानने में किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। कोई अगर साईं बाबा को भगवान के रूप में पूजता है और उनके मंदिर बनवाता है। न हमें कोई आपत्ति नहीं करनी चाहिए न हमें इस विषय पर बहस करनी चाहिए। मुझे इस बयान के पश्चात साईं बाबा का विश्लेषण करने का मन हुआ। मैंने साईं बाबा के जीवन चरित्र को पढ़ा। इसे पढ़ कर कोई भी निष्पक्ष हिन्दू यह विश्लेषण सरलता से कर सकता है कि साईं बाबा भगवान तो छोड़ो सामान्य सदाचारी व्यक्ति भी नहीं था। प्रमाण देखिये-
इस्लाम मत की मान्यताओं में विश्वास
1. क्या हिन्दू समाज साईं को आप अपना भगवान् मान सकता है जो साईं सत्चरित्र के अध्याय 23 के अनुसार रोजाना कुरान पढ़ते थे।
2. अध्याय 11, 14 के अनुसार साईं बिना फातिहा पढ़े वे भोजन नहीं करते थे।
3. अध्याय 28 के अनुसार साईं बाबा ने फातिहा पढने के बाद ही एक ब्राह्मणको जबरदस्ती मांस खाने को कहा।
4. साईं ने अध्याय 14 में ही बकरा हलाल करने की बात कही है।
क्या ऐसे कट्टर मुस्लिम को आप अपने मंदिरों में बिठा कर मंदिरों को भ्रष्ट करेंगे?
साईं बाबा मांस भक्षण का बड़ा शौक़ीन था। साँई माँसाहार का प्रयोग ही नहीं करता था अपितु स्वयं से जीव हत्या भी करता था।
1. साईं सत्चरित्र के अध्याय 7 में वर्णन आता है कि वे फकीरों के साथ आमिष तथा मछली का सेवन भी कर लेते थे।
2. मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ। बाबा ने शामा से कहा हाजी से पुछो उसे क्या रुचिकर होगा – “बकरे का मांस, नाध या अंडकोष ?”
-अध्याय 11
3. मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।अध्याय 23. पृष्ठ 161.
4. तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा। अध्याय 23. पृष्ठ 162.
5 . फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे। अध्याय 5
6 . कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव। अध्याय 38 पृष्ठ 269
7. एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे। अध्याय 32 पृष्ठ 270.
साईं बाबा धूम्रपान के शौक़ीन थे।
1. साईं बाबा अपने एक भक्त के साथ धुम्रपान कर रहे है।
2. वैसे भी अध्याय 14 के अनुसार यदि कोई बाबा को कुछ पैसे देता था तो बाबा उन्हें बीड़ी चिलम खरीद कर पीते थे।
इस लेख को पढ़कर कैसे कोई साईं बाबा को भगवान मान सकता है? पाठक स्वयं आत्मचिंतन कर निर्णय ले।
डॉ विवेक आर्य
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