हैदराबाद सिंध में क़ुरान शरीफ के जलने की घटना
हकीम वीरूमल हैदराबाद सिंध में आर्यसमाज के प्रमुख कार्यकर्ता थे। 1947 के पश्चात आप अजमेर आ गए और आर्यसमाज नला बाजार, अजमेर की आपने स्थापना की थी। क़ुरान शरीफ के जलने की घटना 1933-34 की है। हकीम जी इस के शब्दों में इस घटना को पढ़े:
'मेरा औषधालय हैदराबाद के ख्यान्तेटंडे में था और घर था फुलेली के तट पर । घर और अस्पताल के बीच की दूरी लगभग 2-3 किलोमीटर थी। लगभग रात के 10 बजे तो कुछ आदमियों ने उस समय के हैदराबाद के कलेक्टर श्री गोल्प को जा कर बताया कि ख्यान्तेटंडे में एक मस्जिद में कुरान शरीफ जलने की दुर्घटना हुई है और मुसलमानों में बहुत जोश है। कलेक्टर महोदय ने एकदम ख्यास्तेटंडे पर पुलिस का पहरा लगा दिया और मिलेट्री को भी तैनात रहने की आज्ञा दे दी गयी । परन्तु हम इस बात से एकदम अनभिज्ञ थे। हम दोनों दूसरे दिन सवेरे जब अस्पताल में आये तो वहां के आस-पास के मित्रों ने आकर इस घटना की सूचना दी और यह भी बताया कि इस घटना का सारा दोष वीरूमल ( मुझ पर ) पर थोपते हैं ।
सवेरे होते ही शहर में मानो आग लग गयी । जोश इतना बढ़ गया कि मुसलमान भाई लाठियां, तलवारें, कुल्हाड़ियां आदि हाथों में लेकर टोलियां बनाकर श्री ताराचन्द के अस्पताल के नीचे आकर इकट्ठे हुए । शोर बढ़ता गया । परन्तु कलेक्टर महोदय भी कम सावधान नहीं थे। उन्होंने बढ़ते हुए शोर गुल को दबाने के लिए तीन मशीनगन, दो वायुयान और कुछ मिलिट्री तथा हैदराबाद की पूरी पुलिस तैयार रखी थी । साढ़े दस हुए तो मुसलमान भाई अल्लाहो अकबर के नारे लगाते हुए आगे बढ़े। वे अपने स्वभावानुसार कत्ले आम और लूटमार करना चाहते थे। परन्तु बाजारों और रास्तों पर तैनात पुलिस ने उनके मन की आशा पूरी करने के लिये आज्ञा न दी । अब वे जुलूस बनाकर आगे बढ़े और मेरे अस्पताल के सामने आकर पथराव करने लगे । कई पत्थर आकर अस्पताल में गिरे । पर मुझे एक भी नहीं लगा। पुलिस के आने से भीड़ तीतर बितर हो गई।
रात को मुसलमानों ने जुलाहों के चौक में एक सभा की। जिसमें हजारों मुस्लमान उपस्थित थे । कलेक्टर साहब तथा D.S.P. स्वयं कुछ ऑफीसरों और पुलिस के साथ वहां उपस्थित रहे । उस सभा में मुसलमानों के कुछ नेता लोग जैसे शेख अब्दुलमजीद, नूरमुहम्मद, अब्दुलजबार आदि ने खूब विषैले व्याख्यान दिए ।
रात को 8 बजे महाराज द्वारका प्रसाद, हूंदराज, दीवान कोमल और कुछ अन्य सज्जन मेरे पास आए। उन्होंने आते ही बताया 'हकीम जी आपका बचना मुश्किल है । मुसलमान लोग साफ कह रहे हैं कि कुरान शरीफ को जलाने का काम मुसलमान तो नहीं करेंगे और न तो अन्य हिन्दू ही कर सकते हैं । निश्चय ही यह कार्य किसी आर्यसमाजी ने किया है । और ख्यान्ते टंडे में केवल एक ही आर्य वीरूमल जिसने यह काम किया है।'
महराज ने बात को साफ करते हुआ कहा "इस से सिद्ध है कि मुसलमानों ने आपको मारने की योजना तैयार कर रखी है। अपनी रक्षा के लिये जो कुछ करना चाहें वह कर लो। हम आपको हर प्रकार का साथ देने के लिये तैयार हैं ।"
उन्होंने ही परामर्श दिया कि सवेरा होते ही मैं अकेला कलेक्टर साहब से भेंट करू और उन से अपनी रक्षा की मांग करूं। प्रात: मैं कलेक्टर से मिला। उस समय कलेक्टर साहब ने तथ्य पर पहुंचने के लिये मुझ से भी कई प्रश्न किये । एक प्रश्न था "आप आर्य समाज के मंत्री हो कर रहे हैं। आप ने इस समय तक कितनी शुद्धियाँ की हैं ?” मैंने साफ बताया कि मैंने इस समय तक कई शुद्धियाँ की हैं और शुद्धि करते समय हृदय प्रफुल्लित हो जाता है ।” दूसरा प्रश्न था लिये आप कुरान शरीफ को घृरणा की दृष्टि से देखते होंगे और हो सकता है कि इस घृणा की वजह से आप ने कुरान शरीफ को जलाया हो ?” यह प्रश्न सुनते ही मैंने एकदम कहा "श्रीमान यह विचार आप का एक दम गलत है । मैं महर्षि दयानन्द का अनुयायी हूँ। मैं घृणा करना नहीं जानता। मैं तो प्रेम करना ही सीखा हूं। दूसरी बात तो शुद्धि कार्य घृणा फैलाकर नहीं हो सकता, वह तो प्रेम से ही होता है । इसलिये कुरान जलाकर मैं घृणा का फैलाव कैसे कर सकता हूँ ?
कलेक्टर साहब को में यह विश्वास दिलाने में सफल हुआ कि "वीरूमल ऐसा घृणित कार्य कदाचित नहीं कर सकता है । उसके बाद कलेक्टर साहब ने कुछ पुलिस कर्मी मेरी सुरक्षा में लगा दिए। कलेक्टर ने मुझे बम्बई जाने की सलाह दी। मैंने कहा कि यदि मैं हैदराबाद को छोड़कर बम्बई चला जाऊं तो मुसलमान भाई समझेंगे कि कुरान शरीफ को वीरूमल ने ही जलाया था। वह बम्बई भाग गया । फिर इस का परिणाम यह निकलेगा कि एक तो यह घृणित कार्य मेरे मस्तक को काला करेगा, दूसरा मैं जब भी हैदराबाद लौट कर आऊंगा तब फिर से यह तास्सुब की आग जल जायगी।
खेद केवल इस बात का है कि मैं जिस कार्य को वृति कार्य -समझ रहा हूं वह मेरे माथे पर क्यों थोपा जा रहा है हकीम जी इतना कहकर गहरे सोच में पड़ गये। फिर बोले "मैंने यह कार्य नहीं किया है और ना ही मुझे मालूम है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह प्रभु की ओर से मेरी एक परीक्षा है। मैं इस परीक्षा में अवश्य पास होऊँगा। मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। केवल हैदराबाद के मुसलमान क्यों विश्व के मुसलमान भाई भी मेरे विरुद्ध क्यों न हो जायें, परन्तु मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे।"
इस आत्मविश्वास से हकीम जी की आखें एक अनोखे परन्तु शान्त मुद्रा में चमकने लगीं। हकीम जी का यह आत्मविश्वास देखकर हम दंग रह गये।
इस दुर्घटना का वास्तविक दोषी खोजने के लिये बम्बई से गोरे C. I. D. वाले बुलाये गये थे । उन्होंने दूसरे दिन पूर्ण जांच करके पूर प्रमाणों के साथ सरकार को रिपोर्ट दे दी – “एक मुसलमान भाई ने एक कुलटा से मस्जिद शरीफ में रंगरेलियां मनाते हुए जली हुई बीड़ी का टुकड़ा बेपरवाही से फेंक दिया और जिससे कुरान शरीफ जल गया ।"
यह रिपोर्ट प्रकाशित होते ही मुसलमान भाई शान्त हुए । कई -मुसलमान भाई उसी दिन ही हकीम साहब के पास आये और सच्चे दिल से हकीमजी से माफी मागी । इस प्रकार सत्य की जय हुई।
(सन्दर्भ ग्रन्थ- कर्मवीर की कहानी, हकीम वीरूमल आर्य प्रेमी का जीवन चरित्र, लीलाराम छत्तूमल तोलानी प्रभाकर, आर्य प्रेमी कार्यालय, अजमेर , 1971, पृ. 11-17)
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