माता की लाज पुत्रियों के हाथ में
लेखक- श्रीयुत् स्वामी श्रद्धानन्दजी महाराज
प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ
भारत माता का विलाप सन्तान के लिए असह्य हो गया, इसी लिए सन्तान माता की रक्षा और उसके पुनरुत्थान के लिए हाथ पैर मार रही है। अबतक पुरुष ही यत्न करते रहे थे, कुछ दिनों से स्त्रियों ने मातृ-सेवा का व्रत लेना शुरू कर दिया है। मन कितना ही उठने वाला विशाल क्यों न हो बिना दृढ़ बलवान शरीर और आत्मा के वह विवश ही रहता है। भारतीयों में मानसिक भाव बड़े व्यापक हैं, परन्तु आत्मा और शरीर की निर्बलता के कारण उनके संकल्प केवल संकल्प मात्र ही रहते हैं। फिर निर्बल, तेजहीन शरीर के अन्दर तेजस्वी आत्मा का निवास भी दुस्तर है।
कहा जायगा कि सुशिक्षित पुरुषों ने शारीरिक उन्नति और दृढ़ता की ओर ध्यान देना आरम्भ कर दिया है। परन्तु सन्तान वही कुछ बनती है जो उसे पिता माता (विशेषत: माता) बना दें। भारत को वीर सिंह सन्तान चाहिए, वेद के आदेशानुसार-
अस्य यजमानस्य वीरो जायताम्।
राष्ट्र में वीर सन्तान उत्पन्न होनी चाहिए।
वह वीर सन्तान कैसे उत्पन्न होगी?
आजकल की विदेशी शिक्षापद्धति ने जहां भारतीय बालकों के शरीर निस्तेज कर दिए हैं वहां आर्य बालिकाओं को भी अत्यन्त निर्बल बना दिया है। आज से ४० वर्ष पहिले की आर्य देवियां यद्यपि सर्व भाषाओं के अक्षरों से शून्य थीं तथापि शारीरिक बल से वञ्चित न थीं; उनमें इतनी शक्ति अवश्य थी कि कम से कम स्वस्थ और दृढ़ाङ्ग सन्तान उत्पन्न करें। विदेशी शिक्षा ने भारत की कुछ पुत्रियों को पुस्तक पढ़ने और अक्षर लिखने के योग्य तो बना दिया परन्तु साथ ही उन्हें दृढ़ाङ्ग वीर सन्तान उत्पन्न करने के योग्य नहीं छोड़ा। ऊंची एड़ी के बूंट और रंग बिरंगी रेशमी साड़ियां पहिन कर हमारी पुत्रियां और बहिनें तितलियां बना दी गईं। फिर तितलियों के गर्भ से सिंह कैसे पैदा हो सकते हैं।
•६०० वर्ष हुए मेवाड़ की गद्दी पर राना अजयसिंह बैठे। उनके पीछे उनके भाई अमरसिंह के पुत्र को गद्दी मिलनी थी। उन का पुत्र प्रसिद्ध राना हम्मीर हुआ जिसने ६४ वर्षों में मेवाड़ की काया पलट दी थी। उसने मेवाड़ के खोए हुए सहस्रों दुर्ग ही मुसलमानों से न लौटा लिए अपितु बादशाह महमूद ख़िलजी को भी ३ महीने तक चित्तोड़ के कारागार में रक्खा। और उसने अजमेर, रनथम्बोर, नागौर, सुई, शिवपुर के इलाके ही न छुड़वा लिए प्रत्युत ५० लाख रुपया हर्जाना और १०० हाथी कर में लिए। वह हम्मीर किस माता का पुत्र था? सुनो!
एक दिन अमरसिंह जंगली सुअर के शिकार के लिए जा रहा था सुअर एक ज्वार के खेत में घुस गया। अमरसिंह के साथियों को खेत में जाते देख एक राजपूतनी लड़की ने जो मचान पर बैठी थी उनको खेत में घुसने से रोक कर कहा- "तुम सब हट जाओ मैं शिकार को खेत में से निकाल देती हूं।"
ज्वार के एक चार गज लम्बे लट्ठे को उखाड़ कर उससे सुअर को मार उनके सामने खींच लाई और विदा हो गई। राजपूत बहादुर उस शक्ति को देख आश्चर्य में आ गए। उन सबने पास की नदी के किनारे बैठ शिकार रूंधा और जल्सा मनाने लगे। उसी समय किसी का चलाया एक मिट्टी का गोला कुमार अमरसिंह के घोड़े को लगा और उसकी हड्डी तोड़ दी। देखने पर मालूम हुआ कि मचान पर से उसी कुमारी राजपूतनी ने जानवरों को हांकने के लिए यह गोला चलाया था। उससे हानि देखकर वह कुमारी उतरी और कुमार से क्षमा प्रार्थना करके चली गई। जब सब राजपूत घर को लौट तो रास्ते में देखा तो वही कुमारी सिर पर दूध का घड़ा रखे दोनों हाथ से दो मस्त भैंसे पकड़े लिए जा रही है। हंसी में उसके सिर से दूध गिराने के लिए एक सवार आगे बढ़ा। कुमारी घबराई नहीं एक भैंसे को घोड़े की टांग में अड़ा कर घोड़ा और सवार दोनों को अड़ा दिया। अमरसिंह ने कुमारी के पिता के पास पहुंच कर उससे विवाह करने का प्रस्ताव किया। वह चन्दावत राजपूत था। निर्धन होते हुए भी अमरसिंह के बराबर बेपरवाही से बैठ गया और प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया। उसकी धर्मपत्नी ने जब समझाया तब अमरसिंह का चन्दावत राजपूतों में से विवाह हुआ। उन दोनों की सन्तान राना हम्मीर था।
•कैलवे के फतहसिंह की माता और धर्मपत्नी ने चितौरगढ़ से निकल कर मुग़ल सेना में हलचल डाल दी थी और सैकड़ों को मार कर देश की स्वतन्त्रता पर अपनी जान कुर्बान कर दी।
•वह पुस्तक की विद्या व्यर्थ है जो शरीर और आत्मा को निर्बल कर दे। झांसी की रानी की कहानी भी कोई बहुत पुरानी नहीं है। ३२ वर्ष पहिले की एक घटना तो मेरे सामने ही घटित हुई थी। एक नव विवाहित जाट लड़की यात्रा में कुटुम्ब के साथ सोई हुई थी। रात को चोर ने चांदी की चूड़ी उतारने के लिए हाथ बढ़ाया। १७ वर्ष की जाट लड़की ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए। श्वसुर और अन्य बड़े बूढ़ों से लजाते बोल न सकती थी। तीन घंटे तक उसी तरह पकड़े रक्खा जब चोर ने हाथ छुड़ाना चाहा तो उसकी कलाइयां इतनी दबाई कि चोर चींख उठा तब पुरुष जागे और चोर पकड़ा गया।
ऐसी दृढ़ाङ्ग देवियां यदि सत्य विद्या के भूषण से आभूषित कर दी जांय तब वह सन्तान उत्पन्न हो सकती है जिसकी 'वेद' ही राष्ट्र के लिए आवश्यकता बतलाता है। अब तक कन्या पाठशालाओं और महाविद्यालयों के संचालकों के पास यह सन्देश भेजता रहा हूं और अब जब कि कन्या गुरुकुल खोलने का साहस किया गया है वही सन्देश उस संस्था के संचालकों के पास पहुंचाना चाहता हूं।
[स्रोत- ज्योति 'मासिक' का जुलाई १९२४ का अंक; सम्पादिका- विद्यावती सेठ बी०ए०]
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