आर्यसमाज के बलिदान: श्री पंडित जयराम जी ( कच्छ गुजरात)
लेखक :- स्वामी ओमानंद जी महाराज
पुस्तक :- आर्यसमाज के बलिदान
प्रस्तुतकर्ता :- अमित सिवाहा
वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जावें ।
परसेवा पर उपकार को कर निज जीवन सफल बना जावें॥
निज आन मान मर्यादा का , प्रभो ध्यान रहे अभिमान रहे।
जिस देश जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें॥
श्री जयराम जी ब्राह्मण स्वर्णकार थे । उनका जन्म चैत्र कृष्णा १४ सम्वत् १९४६ में कच्छ मौरवी में हुआ था । पाँच वर्ष की अवस्था में इन्हें पितृ स्नेह से वञ्चित होना पड़ा । इसके कुछ महीनों बाद अपनी माता के साथ जोधपुर आ गये । यहीं बड़े हुए और काम सीखकर अपनी निजी दुकान कर ली । वे काम बहुत ईमानदारी के साथ करते थे अतः दुकान खूब चलने लगी ।
एक वर्ष जयराम जी कार्य वश करांची गये । वहाँ उन्होंने आर्यसमाज का उत्सव देखा तत्पश्चात उनके मन में समाज का सदस्य बनने की अभिलाषा उत्पन्न हुई और वे जोधपुर आकर आर्यसमाज के मैम्बर बन गये । कुछ वर्षों बाद आप अन्तरंग सदस्य भी चुने गये । उनका जीवन नियमित था । नित्य चार बजे उठकर भगवान की प्रार्थना कर भ्रमण को जाते थे । पुनः आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर स्नानादि करके सन्ध्योपासना करने के बाद अपनी आजीविका कार्य में प्रवृत होते थे । प्रति श्रमावस्या को गृह पर हवन भी नियमपूर्वक करते थे । उनके प्रभाव से मोहल्ले के बहुत से लड़के भी आर्यसमाजी हो गये थे ।
जिन दिनों हैदराबाद का सत्याग्रह छिड़ा उन दिनों आपका उत्साह प्रशंसनीय था । वे कहा करते थे कि नम्बर आने पर मैं भी हैदराबाद सत्याग्रह में अवश्य जाऊंगा । उन दिनों जोधपुर में उम्मेद कन्या पाठशाला ( सोजती गेट ) में सत्याग्रह सम्बन्धी सभायें हुआ करतीं थीं । वे भी वहाँ जाया करते थे ।
उस दिन सन् १९३९ की २९ मई थी । बम्बई सरकार की सत्याग्रह शिविर को शोलापुर से हटाने के विरोध में एक विराट सभा कन्या पाठशाला में हुई थी । सभा समाप्ति के बाद अपने कुछ मित्रों के साथ जयराम जी घर को रवाना हुए । रास्ते में उन्हें पता चला कि उनके मुहल्ले के लड़कों तथा मुसलमानों में झगड़ा हो गया है । यह समाचार सुनते ही वे वहां पहुंचे और वहां से लड़कों को लेकर कुछ आगे चले होंगे कि पीछे से मुसलमान आये और उससे लड़ाई करने लगे । उन्होंने उनका सामना किया और वे भाग गये । इसके बाद बहुत से मुसलमान इकट्ठे होकर आये और पीछे से जयराम जी पर लाठियां बरसाने लगे । जयराम जी ने भी जमकर उनका सामना करना शुरू किया । कुछ देर तक सामना करने के बाद दुर्भाग्य वश जयराम जी की लाठी टूट गई । आक्रमणकारियों ने सिर में लाठियां मारकर उन्हें गिरा दिया और भाग गये । पीछे से जो लड़के सोजती गेट की तरफ चले गये थे वे उन्हें सम्हालने आये । उनके सिर में बेहद खून निकल रहा था । वे वहीं पर पट्टी बांधकर घर चले आये ।
घर पहुंचने पर मुहल्ले वालों ने उन्हें खून से भीगा हुआ देखा । वे रात को ही चोट दिखाने के लिये उन्हें सिटी पुलिस ले गये । वहां से वे रात के एक बजे अस्पताल में ले गये । वहाँ सवेरे ३० मई १९३९ तदनुसार ज्येष्ठ शुक्ला १२ सम्वत् १९९५ को उनका देहावसान हो गया । उनका शव लगभग २ बजे दिया गया । तब तक हजारों आदमी वहां एकत्रित हो गये थे । उनकी अर्थी को सजाया गया , वेद मन्त्रों का उच्चारण करते हुए उनकी श्मशान यात्रा निकली । वहां पर वैदिक रीत से अंत्येष्टि संस्कार हुआ । श्री जयराम जी का जीवन निर्भय , धर्म-प्रेमी , परोपकारी व्यक्ति का जीवन है । उनका बलिदान आर्यजाति में रंग लाये , उन जैसे सुपुत्र घर घर पैदा हों , यही भगवान से प्रार्थना है ।
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