शुद्धि और हिन्दू समाज
#डॉ_विवेक_आर्य
1946 में बंगाल की धरती नोआखली के भयानक हत्याकांड से लाल हो गई। हज़ारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा गया। स्त्रियों का सतीत्व लूटा गया और न जाने कितनों को बलात मुसलमान बनाया गया। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस समय अखिल भारतीय शुद्धि सभा के प्रधान थे। इस सारी समस्या पर विचार करने के लिए उन्होंने हिन्दू महासभा भवन में एक बैठक बुलाई। सनातन धर्मियों के प्रतिनिधि के रूप में स्वामी करपात्री जी उपस्थित थे और आर्यसमाज के प्रतिनिधि के रूप में स्वामी विद्यानन्द जी।
डॉ मुखर्जी ने दो प्रश्न विशेष रूप से प्रस्तुत किये-
1. बलात मुसलमान बनाये गये हिन्दुओं को कैसे वापस लाया जाये!
2. हिन्दू महासभा के हाथों में शासन की बागडोर जैसे आये!
पहले प्रश्न के उत्तर में स्वामी करपात्री जी ने कहा कि जो फिर से हिन्दू बनना चाहेगा, उसे एक पाव गौ का गोबर खाना होगा। आर्य समाज के प्रतिनिधि स्वामी विद्यानन्द ने कहा कि जो यह कहे कि मैं हिन्दू हूँ, उसे हिन्दू मान लिया जाये। उसके लिए न किसी प्रकार गोबर खाने की आवश्यकता है और न किसी प्रकार के संस्कार की।
डॉ मुखर्जी ने स्वामी विद्यानन्द जी की बात का समर्थन करते हुए आपबीती हुई एक अत्यंत मार्मिक घटना सुनाई। उन्होंने कहा कि जब मैं नोआखली गया तो मुझे एक बुढ़िया मिली। उसने मुझे बताया कि मुझे और मेरी तरह अन्य बहनों को एक प्रकार मुसलमान बनाया कि दो मौलवियों ने पगड़ी का एक-एक छोर पकड़ा और हमें तलवार का भय दिखाकर पगड़ी को हाथ से पकड़ने का आदेश दिया। डर के मारे हमने पगड़ी अपने हाथों में ले ली। मौलवियों ने कलमा पढ़ा और हमें मुसलमान मान लिया गया। परन्तु जिस समय वे कलमा पढ़ रहे थे, उस समय मैं मन ही मन राम-राम कह रही थीं। मुझे बताओ कि वह बुढ़िया मुसलमान कब हुई, जो उसे फिर से हिन्दू बनने के लिए पाव गोबर खाने के लिए कहूं। मैं दीक्षित जी से पूरी तरह सहमत हूँ।
हमारे देश का इतिहास उठाकर देखिये। हमारा हाजमा बहुत अच्छा था। मंगोल, कम्बोज सभी को हम अपने में हजम कर गए। पर 1200 वर्षों में आये मुसलमान और अंग्रेज हमसे हजम नहीं हुए। मध्यकाल का गिरावट का दौर आया तो हमने विदेश यात्रा करने वाले को मलेच्छ करार दे दिया। अन्यों को अपने में क्या मिलाना था जो किसी भूल वश प्रायश्चित्त कर वापिस आना चाहते थे। उन्हें भी आने से रोका। यूँ तो इतिहास में अनेक प्रमाण मिलते है जब हमारे पूर्वजों ने शुद्ध कर अपने से बिछुड़े हुओं को मिलाया। जैसे शिवाजी ने नेताजी पालकर की शुद्धि की थी, गोवा में अनेक ईसाई बने हुए हिन्दुओं को शुद्ध किया गया, विजयनगर साम्राज्य की स्थापना करने वाले हरिहरा-बुक्का को शुद्ध किया गया था। पर हम उसे भी भूल गये। धन्य हो स्वामी दयानन्द का जिन्होंने सदियों से बंद शुद्धि प्रक्रिया को फिर से आरम्भ किया। पर उनके पश्चात आर्यसमाज के सबसे अधिक विरोध और असहयोग शुद्धि के रण में हिन्दुओं ने ही किया। केरल में मोपला दंगों के समय हिन्दुओं को जब आर्यसमाज द्वारा शुद्ध किया गया तब जाकर हिन्दू समाज में शुद्धि के लिये स्वीकारता बढ़ी। पर खुले मन से इसे आज भी नहीं अपनाया गया। आज देश में जैसी स्थिति है। उसमें शुद्धि की परम आवश्यकता है। नहीं तो हिन्दुओं का भविष्य क्या होगा। पाठक स्वयं सोच सकते है।
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