Thursday, November 12, 2020

हैदराबाद सत्याग्रह में फिल्ड मार्शल "भजनोपदेशक"




हैदराबाद सत्याग्रह में फिल्ड मार्शल "भजनोपदेशक"

अमित सिवाहा

वर्ष 1938-39 में हैदराबाद निजाम के विरुद्ध आर्य समाज के सत्याग्रह में भजनोपदेशकों का योगदान चिरस्मरणीय रहेगा। हमारे भजनोपदेशकों ने हरियाणा प्रदेश में फिल्ड मार्शल की भुमिका निभाई। आज कुछ भजनोपदेशकों द्वारा भोगी यातनाओं का विवरण प्रस्तुत कर रहे है। हमारे भजनीकों ने आर्य समाज का प्रचार बेहद विकट परिस्थितियों में करके मिशाल कायम की है। अपने जीवन की सारी तमन्नाएं देश धर्म को अर्पित कर दी।

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महाशय हीरालाल आर्योपदेशक
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आर्यों का हैदराबाद में साधना और संघर्ष अपने आप में बेजोड़ रहा। इस धर्म की लड़ाई में देश का कोई भी भाग ऐसा नही था जहां से जाकर आर्यो ने भाग ने लिया हो। इतने विशाल स्तर का था आंदोलन। इस आंदोलन न्यायोचित कारण भी था। हैदराबाद का नवाब धर्मांध मुसलमान था। वह हिंदुवों को जीवन का अधिकार देना पसंद नही करता था। इस बारे सबसे दुखी सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने निजाम की निरंकुशता को विराम देने के लिए आंदोलन की रुपरेखा तय की। आंदोलन समाप्ती के बाद सरकार ने इसे "धर्म युद्ध " तथा सत्याग्रहियों को ""स्वतंत्रता सेनानी "" का दर्जा दिया।

हैदराबाद सत्याग्रह में महाशय जी का एक जत्था 15अगस्त 1938 को रवाना हूआ। निजाम की जेल में बंदी रहे। वहां की जेल नरक का दृश्य पेश करती थी। जेल का गंदा भोजन व दूषित जलवायु तो परेशान किए ही हुए थे, उपर से अधिकारियों ने भी खूब सख्ती कर दी थी। अधिकारियों की कठोरता और न ही उदारता उन्हें अपने किये निश्चय से गिरा सकी। जेल से दिनांक 27 सितंबर 1939 को घर आए । जेल की यातनाएं, अशुद्ध भोजन, के चलते इनको ह्रदय रोग हो गया ओर इनके साथ ही चला गया। जब सरकार ने ऐसे सत्याग्रहियों को पैंशन देना चाही तो ये संसार छोडकर जा चूके थे।

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स्वामी जगतमुनी सरस्वती
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हैदराबाद सत्याग्रह में श्री जगतराम जी ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। सर्वप्रथम सत्याग्रहियों की सहायता हेतू दान किया तथा खूद स्वामी ओमानंद सरस्वती जी के साथ हैदराबाद की गुलबर्गा जेल में 6 महिने तक यातनाएं सही। इनके साथ जेल में पंडित जगदेव सिंह सिद्धांति जी, महाशय रामपत वानप्रस्थी जी इत्यादि आर्य समाज के दीवाने थे। स्वामी जी वहां जेल में भी भजन सुनाकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाते थे।

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स्वामी विद्यानन्द सरस्वती झांसवा
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गांव लुखी व रेवासा ओर निकटवर्ती क्षेत्रों में स्वामी जी अपनी ओजस्वी वाणी व्याख्यानो का जलवा बिखेर चुके थे। उनके ओजस्वी व्याख्यानो का जिक्र कांग्रेस मुख्यालय में भी होने लगा, पंडित श्री राम शर्मा ने भी लोगो को जागरुक करने के लिए स्वामी जी के उपदेश करवाए। तत्पश्चात हैदराबाद का बिगुल बज गया। स्वामी जी निसंकोच हैदराबाद सत्याग्रह में जत्था लेकर गए और सत्याग्रह जीत कर लोटे। वापिस आए तो संस्कृत पाठशाला बंद हो चूकी थी। लेकिन उसके बाद स्वामी जी स्वतंत्र रुप से आर्य समाज के प्रचार में आ गए।

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स्वामी हीरानंद बेधड़क धमतान साहिब जींद
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देश की आजादी के लिए मर मिटने वालो में स्वामी जी का नाम भी अग्रिम पंक्तियों में लिखा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं, क्योंकि स्वामी जी पहले अंग्रेजी फौज में थे, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के व्याख्यान सुनकर अंग्रेजी फौज छोड़ दी। कई वर्षों तक नेता जी के विचारो का प्रचार भी करते रहे, वर्ष १९३८,३९ के हैदराबाद सत्याग्रह में स्वयं का जत्था लेकर गए। जेल काटी, निजाम की यातनाएं सही। हैदराबाद के सफल सत्याग्रह के बाद आर्यों में खुशी का माहौल था, स्वामी जी ने सम्पूर्ण जीवन में नौ बार जेले काटी थी।

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महाशय बलबीर झाबर अलेवा
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वर्ष १९३८/३९ के हैदराबाद सत्याग्रह में महाशय बलवीर जी भी पीछे नही रहे। सत्याग्रहियों को प्रचार के द्वारा तैयार कर खुद जत्था लेकर गए, महाशय जी के साथ प्रमुख अलेवा के श्री दलीप सिंह, श्री दीप सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहां पर महाशय जी को अमानवीय यातनाएं दी गई। निजाम की जेल में बंद रहने के बाद भी आप अविचलित रहे। ज्वार की कच्ची ,जली रोटी, कई -कई दिन सप्ताह बिना स्नान के रहे। मिट्टी के बर्तनों में खाना खाया। कोड़े खाए, लाठियां सहीं, चक्की ओर कोल्हू चलाए, परंतु अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ा। समझौता होने के बाद आप अपने प्रांत, गांव में पहुंचे।

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चौधरी पृथ्वी सिंह बेधड़क
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सन् १९३८,३९ में आर्य समाज ने हैदराबाद निजाम के हिंदुजाति के पूजा पाठ के पर प्रतिबंध के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाया। उस समय महाशय जी ने युवावस्था में कदम रखा ही था। जोश उनकी रग रग में भरा था। उस सत्याग्रह में इनका योगदान अग्रणी था। जहां जेल की यातनाओं का सहवन भी किया ओर अपनी ओजस्वी वाणी से सबका मन हर लिया। यहां सब इन्हें पिता जी के नाम से बुलाते। निजाम उनसे क्रोधित थे। ओर कैदियों को सीमेंट मिले आटे की रोटियां देते
तब महाशय जी ने ललकार कर कहा - देखी हमने निजाम, तेरी निजामी, हैदराबाद जेल में। निजाम भी उनके तर्क एवं संगत पूर्ण विचारों से प्रभावित हूए बीना रह न सके। ओजस्वी गाने की पक्तिं के आधार पर भोजन व्यवस्था में सुधार कर दिया ओर पुजा पाठ पर से प्रतिबंध हटा दिया।

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पंडित भूराराम आर्योपदेशक
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पंडित भूराराम जी इनके बेटे, वैद्य हरिसिंह व इनके बेटे अपने पूरे परिवार सहित हैदराबाद सत्याग्रह में कूच कर गए। इनको हैदराबाद की जेलों में बंदी बनाकर रखा गया। भूराराम जी स्वयं का जत्था लेकर रोहतक से रवाना हुए थे। इनको हैदराबाद के निजाम ने सीमेंट मिली आटे की रोटी मिलती। निजाम की क्रूरता आर्य समाजियों के प्रति ज्यादा थी। हैदराबाद सत्याग्रह समाप्त होने के बाद ये गांव लौेटे। हैदराबाद सत्याग्रह की पैंशन भी लेने से मना कर दिया था। इसके थोड़े दिन बाद लोहारु कांड में भी भूराराम जी गए। आजादी के बाद भूराराम जी जालंधर प्रतिनिधि सभा के उपदेशक रहे।

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स्वामी नित्यानंद सरस्वती
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स्वामी नित्यानंद जी ने हैदराबाद सत्याग्रह को सफल बनाने के लिए तन मन धन से सहयोग किया। उन्होने प्रचार करके सत्याग्रह को जन जन तक पहूंचा दिया। ओर भगत फूल सिंह जी रोहतक जत्थे को लेकर प्रधानता कर रहे थे। स्वामी नित्यानंद जी २५ सत्याग्रहियों के साथ निकल पड़े जिनको तिलक खूद बहन सुभीषिणि व यशोदा ने किया। जत्था हैदराबाद पहूंचा तो निजाम के सामने स्वामी नित्यानंद जी भजन गा रहे थे वो चौंकन्ने होकर बोले ये आदमी आ रहे हैं या हाथी। हरेक आर्य विद्वज्जन ने इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। कुंवर जौहरी सिंह जसराणा भी इस सत्याग्रह में स्वयं ही पहुंच गए। भक्त फुल सिंह जी ने इनका विरोध किया ओर कहा आपकी यहां जरुरत नहीं है। अपितु आप वहां रहकर जत्थे भेजने का कार्य करे। कुंवर जौहरी सिंह जी ने ऐसा उचित समझा।

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कवि रतन सिंह चौहान मितरौल
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हैदराबाद सत्याग्रह में कवि रतन सिंह जी औरंगाबाद जत्थे में सम्मिलित हुए ओर गिरफ्तार देकर करीबन ढेड वर्ष के बाद वापस आए। आपके साथ, जसवंत आर्य,स्वामी रघुवर दास जी व अन्य सत्याग्रही (नाम ज्ञात नहीं) सम्मिलित थे। आपने पैंशन लेने के लिए भी मना कर दिया। ये जानकारी आपके शिष्य महाशय भजनलाल जी ने बताई। आपने आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन में भी भाग लिया।

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पंडित प्रभुदयाल आर्य प्रभाकर पौली जींद
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इस आंदोलन में अनेको जगह से आर्यों ने इकट्टे होकर निजाम का विरोध किया ओर आर्य समाज की विजय हूई।इस आंदोलन में आर्य प्रादेशिक सभा दिल्ली के अंतर्गत पंडित जी भी गए। ओर सक्रिय भूमिका निभाई। इसी दौरान इनको सात महिने की जेल हूई। हैदराबाद के निजाम उस्मान ने इनको इतनी यातनाएं दी की दिन में भुखे पेट चार चार किलो ज्वार का आटा पिसना, सोने के लिए भी कंकरों के उपर बीना बिस्तर के सोना, ओर खाने में दो ज्वार के आटे की रोटी। भुख प्यास से व्याकुल हूए लेकिन फिर भी अपने पथ पर रहे। हैदराबाद जेल में पंडित जी 22/1/1939से 18/8/1939तक रहें। अंग्रेजो का दमन चक्र भी सहा, आजादी के लिए भी पंडित जी ने जमकर प्रचार किया। अप्रैल 1939 में रोहतक जत्थे पर मुसलमानों ने हमला कर दिया जिससे गुरुकुल भैंसवाल के ब्रह्मचारी बुरी तरह घायल हो गए, इस हमले से पंडित जी को बहुत चोटें आई। ऐसे ही जून में निजाम के सिपाहियों ने जत्थे पर हमला किया वहां भी पंडित जो अनेको चोटें आई। कड़कति धूप में पंडित घास खोदते तब जाकर वहां का निजाम रुखी सुखी रोटी देता। लेकिन अंतत: आर्यो के सामने निजाम ने घुटने टेक दिये।

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महाशय रामपत वानप्रस्थी आसन रोहतक
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१९३९ के हैदराबाद आंदोलन में आर्यों ने अपनी ताकत लोहा मनवाया जिसका श्रेय उपदेशको, भजनोपदेशकों, विद्वानों को जाता है। महाशय रामपत जी ने इस आंदोलन में आसन्न गांव के आसपास पाक्कसमां, भालौट, बोहर इत्यादि गांवो से दो महिने तक जत्थे तैयार करते रहे, वहां से सत्याग्रही तैयार कर उन्होनें अपनी अपनी गिरफ्तारी दी। हैदराबाद के निजाम द्वारा दी गई अनेकों यातनाएं वहन की। भक्त फूल सिंह जी से महाशय रामपत जी भी आज्ञा पाकर खूद सत्याग्रह के लिए निकल पड़े, आचार्य भगवान देव,जगदेव सिंह सिद्धांति जी के साथ इनको गुलबर्गा जेल में रखा, वहां भी महाशय जी जोशीले भजन सुनाकर सत्याग्रहियों में जोश भरते थे। निजाम हैदराबाद से समझौता होने पर घर लौटे, ओर आर्य समाज के प्रचार में लगे रहे।

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चौधरी नर सिंह भापड़ोदा
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हैदराबाद सत्याग्रह में भापड़ोदा गांव का विशेष योगदान था। गांव की गली गली से सत्याग्रही तैयार हो गए। क्रांतिकारियों ने सीधा निजाम से टक्कर जा ली। चौधरी नरसिंह जी व प्यारेलाल जी ने पैदल कूच करते हुए सत्याग्रह का नाद अपने क्षेत्र में गुंजा दिया। चौधरी नरसिंह जी व अन्य उपदेशक इस दृष्टिकोण से सत्याग्रह के लिये सबसे उपयुक्त थे। वे जनसाधारण में उन्हीं की भाषा में और उन्हीं की निजाम की बुराई करते और सत्याग्रह के लिए वातावरण तैयार किया। इस प्रकार के गीत की एक पंक्ति देखिए, जो नरसिंह जी व अन्य उपदेशक गाया करते ---

"कान शेर के थ्यागे धोके में, निजाम कै"

इस प्रकार के गीत गाकर सत्याग्रहियों में जोश फुंक देते थे। चौधरी नरसिंह जी खूद सत्याग्रह में गांव वालो के साथ चले गए और हैदराबाद की जेलों में कैद हो गए। इनके साथ भापड़ोदा के कन्हैयालाल, जयदेव सिंह, देशराज, मांगेराम, मातूराम, लालचंद,मनफुल,सिद्धराम,सूरजभान,हेतराम, हिरदे, ज्ञानचन्द्र, ज्ञानीराम इत्यादि सत्याग्रहियों को औरंगाबाद निजामाबाद की जेलों में रखा गया। वहां पर सभी सत्याग्रहियों को खाने पीने, नहाने इत्यादि की यातनाएं दी गई। सत्याग्रहियों को निजाम के सैनिक कोड़े बैंत इत्यादि भी मारते। निजाम के साथ समझोता होने पर सभी सत्याग्रही घर वापिस लौटे।

नोट :- वर्तमान समय में कुछ मतिभ्रष्ट, तुच्छ प्राणी आर्य समाज के भजनोपदेशकों को चटोरा लिखते हैं। जबकि खुद का चरित्र हरियाणा जानता है। इन्हीं भजनोपदेशक की वजह से सभी सत्याग्रह सफल रहे। जिसका आज हरियाणा की जनता आनंद ले रही है। हमारा अगला लेखन हिंदी आंदोलन में भजनोपदेशकों के समर्पण पर होगा।

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