Monday, April 23, 2018

विधर्मियों द्वारा वीरवर अखण्ड ब्रह्मचारी हनुमान जी पर अनुचित आक्षेप।



विधर्मियों द्वारा वीरवर अखण्ड ब्रह्मचारी हनुमान जी पर अनुचित आक्षेप।

डॉ विवेक आर्य

कुछ वर्ष पहले 300 रामायण नामक रामानुजम के एक लेख की चर्चा जोरों से उठी थी। जब उसे दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्य क्रम से हटा दिया गया था। इस पुस्तक में रामायण के आदर्श पात्रों के विषय में अनुचित आक्षेप किये गए थे। जैसे प्रभु राम मांसाहारी थे, लक्ष्मण की सीता जी पर आसक्ति थी आदि। इन प्रकार के असत्य तथ्यों का मूल उद्देश्य प्रभु राम के प्रति भारतीय एवं विदेशी दोनों जनमानस के मन में उनके प्रति अश्रद्धा उत्पन्न करना था। जिससे उनके छिपे हुए उद्देश्य सिद्ध हो सके। सामान्य जनता को भ्रमित करने के लिए मध्यकाल में समय समय पर रामयण के भिन्न प्रारूपों की रचना हुई। रामायण के इन विभिन्न प्रारूपों के लेखक वैदिकधर्मी न होकर वाममार्गी या नास्तिक मत जैसे बौद्ध अथवा जैन मत के थे। इसलिए उन्होंने उसे विकृत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। इसी प्रकार की दुष्ट चेष्ठा उन विधर्मियों ने हनुमान जी महाराज के चरित्र से भी करने का प्रयास किया हैं।

जहाँ सम्पूर्ण विश्व हनुमान जी से ब्रहमचर्य एवं वीरता की प्रेरणा लेता है। वही हनुमान जी के बारे में ठीक इसके विपरीत बातें थाई, जैन और मलय देश की रामायण में मिलती हैं। जैसे

फिलिप नाम के एक लेखक ने तो यह लिख दिया कि सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के ब्रहमचर्य के विषय में कोई वर्णन नहीं हैं।

जबकि वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट लिखा है कि रावण के महलों में उसकी अति सुन्दर रानियों को कम वस्त्रों में सोते हुए देखकर भी अखंड ब्रहमचारी हनुमान अपनी जितेन्द्रियता के कारण काम के वेग से पीड़ित न हुए। - सन्दर्भ वाल्मीकि रामायण ५/११/४१-४२

एक अन्य आक्षेप लगा दिया गया कि भरत ने श्री राम की अयोध्या वापिसी पर हनुमान को 16 दासियाँ पुरस्कार के रूप में दी। -सन्दर्भ वाल्मीकि रामायण का प्रक्षिप्त भाग। वैदिक काल में गुलाम बनाने, मनुष्यों की खरीद फरोख्त आदि करने का ऐसा कोई विधान नहीं था। यह दोष तो इस्लाम के प्रचलन के बाद ही व्यवहार में आया। यह भेंट में दास-दासियों को देना एक कल्पना मात्र है। यह तो संभव है कि अपने यहाँ काया करने वाले नौकरों को हनुमान जी के यहाँ पर जाकर कार्य करने के लिए कहा गया हो। मगर मनुष्य रूप में दास-दासी कोई भेंट करने की वस्तु नहीं हैं। इसलिए यह एक कल्पना मात्र है।

थाई रामायण में हनुमान जी के बारे में लिखा है कि हनुमान जी की अनेक पत्निया थीं। जिनका नाम था स्वयंप्रभा, बेनजकाया (विभीषण की पुत्री), सुवनमच्चा एवं रावण की महारानी मंदोदरी। हनुमान जी को बहुपत्नी वाला एवं विवाहित नारी से सम्बन्ध रखने का यह एक निष्फल प्रयास है। क्यूंकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई वर्णन नहीं मिलता।



सुवनमच्चा (रावण की पुत्री) से हनुमान का एक पुत्र था जिसका नाम मच्चहनु था। (लेखक की विकृत मानसिकता का इसी से पता चलता हैं की वे हनुमान जी का अनैतिक सम्बन्ध रावण की पत्नी मंदोदरी और रावण की पुत्री से स्थापित करने में किसी भी प्रकार की कोई झिझक महसूस नहीं करता। इससे उसकी मानसिक सोच का भी पता चलता हैं की वह कैसी विकृत सोच वाला था)

जैन लेख में लिखा गया है कि हनुमान ने लंका के रक्षक वज्रमुख की पुत्री लंकासुंदरी से विवाह किया था।

एक और गप्प उड़ा दी गई कि हनुमान जी का पसीना सागर में गिर गया। जिसे एक मछली ने ग्रहण कर लिया उससे उसे मत्स्य राज नाम का पुत्र पैदा हुआ।

पाठक समझ ही गए होगे कि रामायण के आदर्शों के चरित्र को धूमिल कर, साधारण जनमानस के मन में उनके प्रति घृणा पैदा कर, अपने मत मतान्तर की शोभा बढ़ाने का प्रयास एक कुटिल षडयन्त्र है। जिसका पूरजोर विरोध सभी राम प्रेमियों को करना चाहिए और इस प्रकार का अभिव्यक्ति के नाम पर को लोग बौधिक आतंकवाद जो लोग फैला रहे है। उन्हें रोकना चाहिए।

(सन्दर्भ- wikipedia-2013 पर अंग्रेजी में मिला विवरण। आज 2018 में wikipedia पर यह विवरण सम्पादित हो चूका है।)

Hanuman became more important in the medieval period, and came to be portrayed as the ideal devotee (bhakta) of Rama. His characterization as a lifelong brahmachari (celibate) was another important development during this period.[5] The belief that Hanuman's celibacy is the source of his strength became popular among the wrestlers in India.[9] The celibacy or brahmacharya aspect of Hanuman is not mentioned in the original Ramayana.[10] The original Valmiki Ramayana mentions that Bharata presented Hanuman with 16 maidens as a reward. The non-Indian versions of Ramayana, such as the Thai Ramakien, mention that Hanuman had relationships with multiple women, including Svayamprabha, Benjakaya (Vibhisana's daughter), Suvannamaccha and even Ravana's wife Mandodari.[5] According to these versions of the Ramayana, Macchanu is son of Hanuman borne by Suvannamaccha, daughter of Ravana.[11][12][13] The Jain text Paumacariya also mentions that Hanuman married Lankasundari, the daughter of Lanka's chief defender Bajramukha.[14] Another legend says that a demigod named Matsyaraja (also known as Makardhwaja or Matsyagarbha) claimed to be his son. Matsyaraja's birth is explained as follows: a fish (matsya) was impregnated by the drops of Hanuman's sweat, while he was bathing in the ocean.[5]

1 comment:

  1. नि: संदेह ऐसा हुआ है जिस कारण हम व हमारी पीढ़ी संस्‍कारों अपने मूल विचारों को अपनाने से विचलित हुई है।

    ReplyDelete